14 उपचुनाव में वोटरों ने 'सहानुभूति' तो किनारे पर ही रखी
उपचुनावों के नतीजे दिखाते हैं कि किसी सीट पर तो सहानुभूति का फैक्टर काम कर रहा है तो कहीं पर लोगों ने सहानुभूति को दरकिनार करते हुए उम्मीदवार को चुनने में अन्य फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा है.
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देशभर की 10 विधानसभा सीटों और 4 लोकसभा सीटों पर सोमवार को उपचुनाव हुआ. अब उसके नतीजे सामने आ रहे हैं. ये 14 सीटें या तो इस्तीफा देने की वजह से खाली हो गई थीं या फिर उस सीट के विजेता के निधन की वजह से. इसके चलते इन सीटों पर उपचुनाव हुए. लेकिन नतीजे दिखाते हैं कि किसी सीट पर तो सहानुभूति फैक्टर ने काम किया और इसका फायदा पार्टी को मिला, लेकिन कई जगहों पर लोगों ने सहानुभूति को दरकिनार कर के भावनाओं में न बहते हुए उम्मीदवार का चुनाव किया. तो चलिए जानते हैं किस सीट पर हुआ सहानुभूति से फायदा और कहां पर लोगों ने दिखाया एक अलग पैटर्न.
पहले नजर डालते हैं चारों लोकसभा सीटों पर
1- कैराना (यूपी)
पहले किसके पास थी सीट- भाजपा
क्यों खाली हुई सीट- वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह के निधन के बाद यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- भाजपा ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया है. उन्हें तगड़ी टक्कर गठबंधन की ओर से राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन दे रही हैं.
क्या हैं नतीजे- कैराना लोकसभा सीट पर आरएलडी की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने जीत हासिल कर ली है, जबकि पूर्व भाजपा सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका हार गई हैं. यानी यहां पर न तो सहानुभूति फैक्टर ने काम किया, ना ही लोगों ने पार्टी पर भरोसा किया और भाजपा की विरासत आरएलडी के हाथों में सौंप दी.
2- पालघर (महाराष्ट्र)
पहले किसके पास थी सीट- भाजपा
क्यों खाली हुई सीट- भाजपा सांसद चिंतामन वनगा के निधन की वजह से यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- चिंतामन वनगा के निधन के बाद अब शिवसेना ने उनके बेटे श्रीनिवास वनगा को इस से खड़ा किया है. वहीं भाजपा के राजेंद्र गावित उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. स्थानीय स्तर पर बहुजन विकास अघाड़ी की भी यहां अच्छी पकड़ है.
क्या हैं नतीजे- महाराष्ट्र की पालघर सीट पर भाजपा के उम्मीदवार राजेंद्र गावित 29,572 वोटों से जीत गए हैं. यहां पर भी सहानुभूति फैक्टर ने कोई काम नहीं किया. हां, लोगों का भरोसा जरूर भाजपा पर ही बना रहा. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर भाजपा सांसद के बेटे चिंतामन वानगा भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते तो उन्हें सहानुभूति जरूर मिलती, लेकिन शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ने के चलते उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. लोगों ने भावनाओं में न बहकर अपनी पुरानी पार्टी पर विश्वास कायम रखा.
3- भंडारा-गोंडिया (महाराष्ट्र)
पहले किसके पास थी सीट- भाजपा
क्यों खाली हुई सीट- यह सीट भाजपा सांसद नाना पटोले के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी. उन्होंने भाजपा पर किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. हालांकि, पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया.
किन के बीच है टक्कर- अपने ही सांसद से आरोपों को झेल चुकी भाजपा ने गोंदिया-भंडारा से सतर्कता बरतते हुए पूर्व विधायक हेमंत पटोले को चुनावी मैदान में उतारा है. उनकी सीधी टक्कर एनसीपी के मधुकर कुकड़े से है.
क्या हैं नतीजे- महाराष्ट्र के भंडारा-गोंदिया में एनसीपी ने 45,000 वोटों से भाजपा को हराकर जीत हासिल कर ली है. भाजपा के पूर्व सांसद ने पार्टी पर जो गंभीर आरोप लगाए थे, उनसे पार्टी को काफी नुकसान हुआ है. यहां से भाजपा प्रत्याशी हेमंत पटोले चुनावी मैदान में थे, लेकिन हार गए और एनसीपी के मधुकर कुकड़े ने विजय पा ली है. यह सीट जीतना भाजपा के लिए जरूरी था, क्योंकि भाजपा पर किसानों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए नाना पटोले ने इस्तीफा दिया था और चुनावी नतीजे दिखाते हैं कि लोगों ने उन आरोपों को गंभीरता लिया है.
4- नगालैंड
पहले किसके पास थी सीट- भाजपा के समर्थन वाली एनडीपीपी
क्यों खाली हुई सीट- मौजूदा मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के इस्तीफे से ये सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- यह राज्य की इकलौती लोकसभा सीट है, जिस पर कांग्रेस के समर्थन वाली नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के उम्मीदवार सी अपोक जमीर और भाजपा के समर्थन वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के उम्मीदवार तोखेयो येपथोमी के बीच मुकाबला है.
क्या हैं नतीजे- यहां से भले ही भाजपा के समर्थन वाली एनडीपीपी के उम्मीदवार नेफ्यू रियो ने इस्तीफा दिया था, लेकिन कांग्रेस के समर्थन वाली एनपीएफ करीब 11000 वोटों से आगे चल रही है. देखा जाए तो लोगों को भाजपा का नया उम्मीदवार पंसद नहीं आया लगता है.
अब बात करते हैं विधानसभा सीटों की
1- पलूस कडेगांव (महाराष्ट्र)
पहले किसके पास थी सीट- कांग्रेस
क्यों खाली हुई सीट- कांग्रेस विधायक पंतगराव कदम के निधन से यह सीट खाली हुई है.
किन के बीच है टक्कर- यहां पर कांग्रेस पार्टी की ओर से पंतगराव कदम के बेटे विश्वजीत को चुनावी मैदान में उतारा गया था, जिन्हें टक्कर देने के लिए भाजपा ने संग्राम सिंह देशमुख को खड़ा किया था.
क्या हैं नतीजे- इस सीट पर सहानुभूति फैक्टर ने बहुत तगड़ा काम किया. एनसीपी और शिवसेना ने पंतगराव को श्रद्धांजलि के रूप में उनके बेटे को पहले ही समर्थन दे दिया था. वहीं संग्राम सिंह देशमुख ने अंतिम समय में अपना नामांकन वापस ले लिया और विश्वजीत निर्विरोध जीत गए.
2- नूरपुर (यूपी)
पहले किसके पास थी सीट- भाजपा
क्यों खाली हुई सीट- विधायक लोकेंद्र सिंह के निधन के बाद यह सीट खाली हुई है.
किन के बीच है टक्कर- दिवंगत लोकेंद्र सिंह की पत्नी अवनि सिंह भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में थे. उनकी टक्कर समाजवादी पार्टी के नईमुल हसन से थी.
क्या हैं नतीजे- नूरपुर में समाजवादी पार्टी के नईमुल हसन 6211 वोटों से जीत चुके हैं. यानी यहां भी सहानुभूति फैक्टर ने काम नहीं किया. लोगों ने लोकेंद्र सिंह की पत्नी अवनि को न चुनकर समाजवादी पार्टी के नईमुल हसन को चुना है.
3- जोकीहाट (बिहार)
पहले किसके पास थी सीट- जदयू
क्यों खाली हुई सीट- विधायक सरफराज आलम के इस्तीफा देकर राजद में जाने की वजह से यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- इस सीट पर जेडीयू के प्रत्याशी मो. मुर्शीद आलम और राजद प्रत्याशी शाहनवाज के बीच तगड़ी टक्कर है.
क्या हैं नतीजे- इस सीट पर राजद के शाहनवाज करीब 40,000 वोटों से जीत गए हैं. जदयू के लिए ये एक बड़ा झटका है. नतीजे साफ दिखाते हैं कि लोगों को भरोसा जदयू से हट गया है और राजद की ओर चला गया है. देखा जाए तो सरफराज आलम द्वारा इस्तीफा देकर राजद में जाने से जेडीयू काफी नुकसान हुआ है.
4- सिल्ली (झारखंड)
पहले किसके पास थी सीट- झामुमो
क्यों खाली हुई सीट- विधायकों के अयोग्य घोषित होने की वजह से यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- सिल्ली में आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) के सुदेश महतो और झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) की सीमा देवी के बीच टक्कर है.
क्या हैं नतीजे- पहले भी ये सीट झामुमो के पास थी और अभी भी ये सीट झामुमो के पाले में ही है. इस सीट से सीमा देवी 9000 से भी अधिक वोटों जीत गई हैं. भले ही विधायकों को अयोग्य साबित कर दिया गया हो, लेकिन पार्टी से लोगों का भरोसा अभी तक नहीं उठा है.
5- गोमिया (झारखंड)
पहले किसके पास थी सीट- झामुमो
क्यों खाली हुई सीट- विधायकों के अयोग्य घोषित होने की वजह से यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- गोमिया सीट पर झामुमो प्रत्याशी बबीता देवी और आजसू के प्रत्याशी डॉ. लंबोदर महतो के बीच है. भाजपा भी इस सीट पर तगड़ी टक्कर दे रही है.
क्या हैं नतीजे- इस सीट पर भी लोगों का भरोसा झामुमो में ही है. झामुमो की बबीता देवी भाजपा और आजसू दोनों को टक्कर देते हुए करीब 6 हजार वोटों से आगे चल रही हैं.
6- थराली (उत्तराखंड)
पहले किसके पास थी सीट- भाजपा
क्यों खाली हुई सीट- विधायक मगनलाल शाह के निधन से ये सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- इस सीट पर भाजपा की मुन्नी देवी और कांग्रेस के जीतराम के बीच तगड़ी तक्कर थी. आपको बता दें कि मुन्नी देवी पूर्व दिवंगत विधायक मगनलाल शाह की पत्नी हैं, जो वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष भी हैं
क्या हैं नतीजे- भाजपा और कांग्रेस की नाक का सवाल बनी उत्तराखंड की थराली विधानसभा सीट पर सहानुभूति फैक्टर ने तगड़ा काम किया. यहां से पूर्व विधायक मगनलाल शाह की पत्नी मुन्नी देवी 1,872 वोटों से जीत गई हैं.
7- महेशतला (पश्चिम बंगाल)
पहले किसके पास थी सीट- टीएमसी
क्यों खाली हुई सीट- विधायक कस्तूरी दास के निधन के बाद यह सीट खाली हुई
किन के बीच है टक्कर- इस सीट पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भाजपा, माकपा के बीच मुकाबला है.
क्या हैं नतीजे- महेशतला से तृणमूल कांग्रेस सबसे आगे है, जबकि भाजपा और माकपा पीछे हैं. टीएमसी करीब 21,000 वोटों से आगे है. पश्चिम बंगाल में भी सहानुभूति फैक्टर ने सीट बचाने में पूरी मदद की है. इस सीट पर टीएमसी ने दुलाल दास को उतारा है, जो कस्तूरी दास के पति हैं.
8- शाहकोट (पंजाब)
पहले किसके पास थी सीट- अकाली दल
क्यों खाली हुई सीट- विधायक अजीत सिंह कोहड़ के निधन के बाद यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- यहां मुकाबला कांग्रेस के हरदेव सिंह लाडी शेरोवालिया, अकाली दल के नायब सिंह कोहाड़ और आम आदमी पार्टी के रतन सिंह काकड़कलां के बीच था.
क्या हैं नतीजे- इस सीट पर कांग्रेस के लाडी शेरोवालिया 38,801 वोटों से जीत हासिल कर ली है. यहां पूर्व दिवंगत विधायक अजीत सिंह कोहाड़ के बेटे नायब सिंह कोहाड़ को लोगों की सहानुभूति नहीं मिल पाई और इस बार के चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. लोगों ने न तो भावनाओं में बहकर वोट किया, ना ही अकाली दल के लिए कोई सहानुभूति दिखाई.
9- चेंगानूर (केरल)
पहले किसके पास थी सीट- माकपा
क्यों खाली हुई सीट- विधायक केके रामचंद्रन नायर के निधन के बाद यह सीट खाली हुई.
किन के बीच है टक्कर- यहां सीपीएम के सजी चेरियन, कांग्रेस के डी. विजयकुमार और भाजपा की तरफ से पीएम श्रीधरन पिल्लई चुनाव लड़ रहे हैं.
क्या हैं नतीजे- इस सीट पर विश्वास के फैक्टर ने पूरा काम किया है. माकपा पर भरोसा करते हुए लोगों ने उसे पहले भी जिताया था और इस बार भी जिता रहे हैं. माकपा 20,000 से भी अधिक वोटों से आगे चल रही है.
10- अंपाती (मेघालय)
पहले किसके पास थी सीट- कांग्रेस
क्यों खाली हुई सीट- यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के इस्तीफे के बाद खाली हुई. वह 27 फरवरी को हुए चुनावों में अंपाती और सोंगसाक दोनों क्षेत्रों से जीत गए थे.
किन के बीच है टक्कर- कांग्रेस के उम्मीदवार डी शिरा और एनपीपी (नेशनल पीपुल्स पार्टी) के जी मोमीन के बीच यहां तगड़ा मुकाबला था.
क्या हैं नतीजे- कांग्रेस के उम्मीदवार मियानी डी शिरा ने अंपाती सीट से जीत दर्ज कर ली है. उन्होंने जी मोमीन को करीब 3191 वोटों से हरा दिया है. यहां आपको बता दें कि मियानी डी शिरा मुकुल संगमा की बेटी हैं. ऐसे में देखा जाए तो लोगों ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी पर अपना भरोसा रखा, बल्कि मुकुल संगमा पर भी उनका भरोसा कायम रहा.
लोगों का वोटिंग पैटर्न देखकर यह साफ होता है कि ये उपचुनाव न तो सिर्फ सहानुभूति के आधार पर जीते गए, ना ही लोगों के पार्टी पर भरोसा करने के आधार पर. लोकसभा और विधानसभा की कुल 14 सीटों में से 8 सीटें ऐसी हैं, जो पूर्व सांसद या विधायक की मौत होने की वजह से खाली हुई थीं. इनमें से 5 सीटों पर तो पार्टी अपनी विरासत कायम रखने में कामयाब रही, लेकिन 3 सीटों पर उसे करासी शिकस्त मिली है. पलूस कडेगांव, थराली और महेशतला जैसी सीटों पर तो प्रत्याशियों को जनता की सहानुभूति मिली और उन्होंने जीत हासिल की. लेकिन पालघर और चेंगनूर जैसी सीटों पर लोगों ने भावना में बहकर वोट देने के बजाय पार्टी पर भरोसा किया और उसी पार्टी को जिताया, जिससे पूर्व विधायक या सांसद जीते थे. वहीं दूसरी ओर कैराना, नूरपुर और शाहकोट जैसी सीटों पर न तो सहानुभूति फैक्टर ने काम किया, ना ही लोगों ने पार्टी के प्रति कोई विश्वास दिखाया. इन तीनों जगहों पर लोगों ने एक अलग ही पार्टी के प्रत्याशी को जीत दिलाई.
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