योगी को महाराज जी बोलने वाले पुलिस अफसर आदेश की अवहेलना करें, बात हजम नहीं होती!
IPS अफसर मुकुल गोयल (Mukul Goel) का उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (UP DGP) के पद से हटाया जाना बहुत हैरान करता है - असली वजह जो भी हो, लेकिन ये बात कतई गले नहीं उतरती कि योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के आदेशों की कोई पुलिस अफसर अवहेलना कर सके!
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मुकुल गोयल (Mukul Goel) को उत्तर प्रदेश के डीजीपी के पद से हटाये जाने के मामले में कई कारण बताये जा रहे हैं. निश्चित तौर पर ये वही कारण हैं जो सरकारी तौर पर बताये गये हैं - ये कारण सरकारी फाइलों में लिखने के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, लेकिन आसानी से गले के नीचे नहीं उतर पा रहे हैं.
अपराध पर रोकथाम और कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए 'एनकाउंटर' पुलिस का सबसे पसंदीदा शगल होता है. पुलिस कहीं की भी क्यों न हो ज्यादातर एनकाउंटर सवालों के घेरे में ही रहते हैं - समाज और मीडिया से लेकर अदालतों तक में पुलिस को अपने एनकाउंटर को सही साबित करने के लिए एक्शन और ड्रामा से भरपूर कहानी सुनानी पड़ती है.
लेकिन योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री को भला कौन पुलिस अफसर पसंद नहीं करेगा, जो डंके की चोट पर सरेआम पुलिस एनकाउंटर को जायज ठहराता हो. ऐसा मुख्यमंत्री जो हमेशा पुलिस की पीठ पर हाथ रखे हो और पहले से ही ब्लैंक चेक की तरह अप्रूवल लेटर दे रखा हो - 'जाओ ठोक दो!'
मुकुल गोयल पर मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना करने का आरोप लगा है. 'शासकीय कार्यों की अवहेलना करने' का साधारण मतलब यही होता है. बताया जा रहा है कि वो पुलिसिंग पर ध्यान नहीं दे रहे थे. जो भी सरकारी काम उनके जिम्मे थे वो नजरअंदाज कर रहे थे - और एक खास इल्जाम भी कि वो विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ले रहे थे.
फिर तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि ऐसा अफसर 11 महीने तक डीजीपी (UP DGP) की कुर्सी पर बैठा कैसे रहा? आखिर किस बात का इंतजार हो रहा था? सवाल ये भी है कि क्या ये सब मुकुल गोयल डीजीपी बनने के बाद महसूस किया गया? और अगर ऐसा वास्तव में है तो ये विडंबना है कि किसी ऐसे अफसर को सूबे की पुलिस की कमान सौंपने का फैसला ही क्यों लिया गया?
मुकुल गोयल को हटाये जाने की वजहें हद से ज्यादा हैरान करने वाली हैं - क्योंकि जब सिर पर चुनाव हों, भला कोई मुख्यमंत्री किसी ऐसे अफसर को किसी विभाग का मुखिया बनाएगा ही क्यों, जिसमें ढेरों खामियां हों? मुकुल गोयल को लेकर मीडिया में आई कुछ खबरों में उनको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाराजगी की बातें बतायी गयी हैं.
लेकिन ऐसे कारण भी ठीक नहीं लगते. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के सामने बहुत सारी चुनौतियां थीं. जो मुख्यमंत्री अपनी मर्जी के खिलाफ कैबिनेट में किसी नेता विशेष को लेने को तैयार न हो, भला वो किसी ऐसे अफसर को डीजीपी कैसे बना सकता है जिसे वो पसंद न करता हो. ऐसे में सवाल उठ सकता है कि क्या वास्तव में ये फैसला योगी आदित्यनाथ ने अपने मन से ही लिया है? क्या डीजीपी को हटाये जाने में योगी आदित्यनाथ के करीबी सलाहकारों की भी कोई भूमिका हो सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली में हुए फैसले का एक्शन लखनऊ में देखा जा रहा हो?
विवादित थे तो डीजीपी बनाये क्यों गये?
मुकुल गोयल को यूपी के पुलिस महानिदेशक के पद से हटा कर सिविल डिफेंस का डायरेक्टर जनरल बनाया गया है - लेकिन जिन वजहों से मुकुल गोयल को हटाया गया है, उसके बाद तो किसी अफसर को सेवा में बनाये रखे जाने का मतलब ही नहीं समझ में आता.
मुकुल गोयल को हटाया जाना भी यूपी पुलिस के बाकी एनकाउंटर जैसा ही क्यों लगता है?
जो अफसर शासकीय आदेशों की अवहेलना कर रहा हो, जिसकी विभागीय कार्यों में रुचि न हो - भला उसे किसी और विभाग का भी चीफ क्यों बनाया जाना चाहिये? यूपी पुलिस का सिविल डिफेंस कोई बीजेपी का मार्गदर्शक मंडल थोड़े ही है?
1987 बैच के IPS अफसर मुकुल गोयल ने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के साथ ही एमबीए भी किया है. बताते हैं कि फ्रेंच भाषा में भी मुकुल गोयल की अच्छी खासी दखल है - और आपदा प्रबंधन में डिप्लोमा कोर्स भी कर चुके हैं.
2020 में मुकुल गोयल को केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से अति उत्कृष्ट सेवा पदक दिया जा चुका है. 2012 में विशिष्ट सेवा के लिए मुकुल गोयल को राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित किया जा चुका है. डेप्युटेशन पर वो आईटीबीपी, एनडीआरएफ, और बीएसएफ में भी काम कर चुके हैं.
1. मुकुल गोयल के साथ कुछ विवाद भी जुड़े हुए हैं, लेकिन ऐसे कितने अफसर हैं जो निर्विवाद रहे हों और सस्पेंड न किये गये हों. कई बार तो ऐसा भी होता है कि अच्छे काम कर रहे अफसरों को भी सस्पेंड कर दिया जाता है क्योंकि उसके कार्यकाल में अचानक कोई ऐसी घटना हो जाती है.
काम करने वाले अफसरों को ही कभी लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए तो कभी राजनीतिक विरोध को शांत करने के लिए ट्रांसफर या सस्पेंड तक कर दिया जाता है. अब अगर मुकुल गोयल को सहारनपुर के एसएसपी रहते एक बीजेपी नेता की हत्या के कारण सस्पेंड किया गया था तो ये कोई अजीब बात नहीं लगती.
बताते हैं कि बीजेपी नेता ने पुलिस से मदद मांगी थी, लेकिन पुलिस समय पर नहीं पहुंच पायी थी. वैसे पुलिस समय पर पहुंचती ही कब है? ऐसा होता भी है तो दुर्लभ घटना ही होगी.
2. हां, पुलिस भर्ती घोटाले में मुकुल गोयल का नाम आना उनके लिए बुरी खबर रही होगी. 2006 के पुलिस भर्ती घोटाले में जिन 25 पुलिस अफसरों के नाम आये थे, एक नाम मुकुल गोयल का भी था. तब मुकुल गोयल आगरा में डीआईजी थे और वहां के भर्ती बोर्ड के चीफ थे.
3. 2007 में जब सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं तो ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई. तभी मुकुल गोयल डेप्युटेशन पर केंद्र में चले गये - और जब अपने काडर में लौटे तब तक बीएसपी की सरकार जा चुकी थी. समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुकुल गोयल के खिलाफ दर्ज सारे मामले वापस ले लिये थे.
तब की बात करें तो मुकुल गोयल के साथ यूपी की दो राजनीति दलों की सरकारें अलग अलग तरीके से पेश आयीं. मायावती की सरकार ने एक्शन लिया, तो अखिलेश यादव की सरकार ने फैसला पलट दिया. जिस वक्त भर्ती घोटाले की बात बतायी जाती है, उस वक्त समाजवादी पार्टी की सरकार थी. इस लिहाज से देखें तो मुकुल गोयल बीएसपी सरकार में शिकार हुए और समाजवादी सरकार में इनाम पा गये.
अब ये सब ऐसी बातें तो हैं कि नहीं 2017 में मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ को ऐसी बातों की भनक तक न होगी. अगर मुकुल गोयल पर समाजवादी पार्टी से रिश्तों का शक था तो साढ़े चार साल के बीजेपी के शासन के बाद योगी आदित्यनाथ ने उनको डीजीपी क्यों बनाया?
आखिरी पड़ाव पर मिसफिट कैसे हो गये मुकुल गोयल
मुकुल गोयल फरवरी, 2024 में डीजीपी के पद से ही रिटायर होने वाले थे - बतौर डीजीपी सुबह वो मुख्यमंत्री की मीटिंग में शामिल भी हुए थे - और देर शाम होते होते अचानक मुकुल गोयल को हटाने का आदेश जारी हो गया. मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार को यूपी डीजीपी का अतिरिक्त कार्यभार मिला है.
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डीजीपी के तौर पर मुकुल गोयल को पसंद नहीं करते थे - और कई बैठकों में मुकुल गोयल सबके सामने डांट फटकार के शिकार हो चुके थे. बताते हैं कि महीने भर में ही मुख्यमंत्री के साथ हुई दो मीटिंग में सारे आला अफसर पहुंचे थे, लेकिन डीजीपी होकर भी मुकुल गोयल नहीं देखे गये.
रिपोर्ट बताती हैं कि दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कानून व्यवस्था को लेकर अधिकारियों की मीटिंग बुलायी थी. कहते हैं कि मीटिंग में मुकुल गोयल को बुलाया ही नहीं गया, जबकि वो अपने ऑफिस में ही थे. प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री की मीटिंग हो और डीजीपी ही न हों, तभी से हर कोई मान कर चल रहा था कि मुकुल गोयल अपने दफ्तर में ज्यादा दिन के मेहमान नहीं हैं.
बुलडोजर अभियान में सक्रिय नहीं होना: डीजीपी को हटाये जाने को लेकर जो कारण बताये जा रहे हैं, उनमें एक है - यूपी सरकार के बुलडोजर मुहिम में मुकुल गोयल का सक्रियता से हिस्सा न लेना.
योगी आदित्यनाथ तो चुनावों में ही बुलडोजर बाबा के नाम से मशहूर हो गये थे, दोबारा शपथ लेते ही नये ब्रांड को प्रमोट करना ही था. बुलडोजर अभियान फिर से चालू हो गया - और ऐसे शुरू हुआ कि यूपी क्या मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली तक बुलडोजर सुर्खियों में छा गया.
अगर बुलडोजर मुहिम में मुकुल गोयल के दिलचस्पी न लेने की बातें सही हैं, तो ऐसा क्यों हुआ होगा? ये तो तभी हो सकता है जब किसी अफसर को लगता हो कि जो काम वो करने जा रहा है वो गलत है. किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ बुलडोजर एक्शन में उस अफसर को अपराध या कानून-व्यवस्था का मामला कम और राजनीति ज्यादा लगती हो?
ये भी हो सकता है कि किसी माफिया के केस में मुकुल गोयल ने बुलडोजर एक्शन की फाइल राजनीतिक वजहों से ही होल्ड कर ली हो - और ये भी हुआ हो कि किसी अपराधी या माफिया के मामले में मुकुल गोयल ने अपने एहतियाती इंतजामों से गाड़ी न पलटने दी हो.
ऐसा करने की दोनों वजहें हो सकती हैं - या तो मामला पूरी तरह गलत लगा हो और सोचे हों कि सेवा के आखिरी पड़ाव पर ऐसे पाप क्यों करें या फिर किसी वैचारिक या भावनात्मक वजह से एक्शन न लेने की कोई मजबूरी हो.
राजनीतिक कनेक्शन की बातों में कितना दम: एक्शन तो मुकुल गोयल पर समाजवादी सरकार में भी हुआ था. मुकुल गोयल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर बनाये गये थे और उनके कार्यकाल में ही मुजफ्फरनगर दंगे हुए थे. दंगों के दौरान सरकार के कुछ आला अधिकारियों, पुलिस अफसरों और एक तत्कालीन मंत्री पर भी सवाल उठे थे - और तभी मुकुल गोयल को हटाकर दूसरे अफसर को उनकी जगह जिम्मेदारी दे दी गयी थी.
विधानसभा चुनाव नतीजे आने से पहले ही कई पुलिस अफसरों के अपने राजनीतिक कनेक्शन तलाशने और जो पहले से रहे उसे दुरूस्त करने की खबरें आयी थीं. लेकिन ये सब अंदर ही अंदर होता रहा, बाहर तो सिर्फ बलिया में एक एसएचओ को दयाशंकर मिश्रा को कैबिनेट मंत्री बनने की बधायी देते ही देखा गया - वो भी तब जब उसका वीडियो वायरल हुआ.
उसी दौरान डीजीपी और कुछ पुलिस अफसरों की आपसी बातचीत में सत्ता परिवर्तन पर चर्चा होने की खबरें भी आयी थीं. ऐसे करीब दर्जन भर पुलिस अफसरों के बारे में चर्चा रही कि वे समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के संपर्क में रहे थे - और ये तभी तय हो गया था कि नयी सरकार बनते ही उनके साथ अच्छा या बुरा सलूक होने वाला है.
लखीमपुर खीरी की घटना में भूमिका: चुनावों से काफी पहले अक्टूबर, 2021 में लखीमपुर हिंसा को लेकर भी मुकुल गोयल के सक्रिय न होने की बातें चल रही हैं. ऐसी घटना जिसमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का बेटा मुख्य आरोपी हो, डीजीपी का मौके पर न जाना एकबारगी सवाल तो खड़े करता ही है.
बहरहाल, अतिरिक्त महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने मोर्चा संभाल लिया था - और बताते हैं कि दो दिनों तक वो लखीमपुर में कैंप भी किये रहे. ये तो रहा कि चुनाव नतीजों पर उस घटना का कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन घटना की वजह से बीजेपी सरकार की फजीहत तो हुई ही.
हो सकता है, मुकुल गोयल से भी राजनीतिक नेतृत्व को वैसी ही अपेक्षा रही हो जैसा हाथरस गैंगरेप के मामले में देखने को मिला था. या जैसे तत्कालीन बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को लेकर देखा गया था. हाथरस केस में तो यूपी पुलिस के अफसर रेप होने से ही इनकार करते रहे, जबकि सीबीआई जांच में सही पाया गया. सीबीआई ने तो उन आरोपियों के खिलाफ ही चार्जशीट भी फाइल की जो नामजद थे और यूपी पुलिस ने जेल भेजा था. उन्नाव गैंगरेप के मामले में बड़े बड़े पुलिस वाले तब बलात्कार के आरोपी रहे कुलदीप सेंगर को 'माननीय विधायक जी' कह कर संबोधित करते रहे.
हो सकता है मुकुल गोयल ऐसी जगहों पर खुद को मिसफिट पाते हों. ऐसे कम ही अफसर होते हैं जो हर सरकार में फिट हो जाते हैं. ये ऐसे अफसर होते हैं जो सिस्टम के हिसाब से चलते हैं, राजनीतिक विचारधारा का उनका कोई असर नहीं होता. विचारधारा से बेअसर होने से आशय ऐसे अफसरों को फर्क ही नहीं पड़ता.
जिस सूबे का चीफ मिनिस्टर पुलिस एनकाउंटर की सरेआम तारीफ करता हो, वहां के पुलिस अफसर तो सबसे ज्यादा खुश रहते होंगे - वैसे भी जब तब पूरी वर्दी में अफसरों की योगी आदित्यनाथ के चरणों में बैठी तस्वीरें तो यही कहती हैं कि 'महाराज जी' के प्रति उनकी कितनी श्रद्धा है.
कुछ अफसर ऐसे जरूर होते हैं जिनकी विचारधारा उनके एक्शन में नजर आ जाती है - और वे मौजूदा नेतृत्व की नजर में आसानी से चढ़ जाते हैं. नजर में चढ़ते ही उनकी पूछ भी घट जाती है. हो सकता है मुकुल गोयल के साथ भी ऐसा ही हुआ हो.
नये डीजीपी को लेकर कुछ अफसरों के नाम की चर्चा भी शुरू हो गयी है और उनमें एक नाम दिल्ली में डेप्युटेशन से लौटने वाले अफसर भी हैं - क्या मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्रा के बाद ये एक और मौका होगा जब दिल्ली में बैठा कोई अफसर डेप्युटेशन से लौट कर यूपी पुलिस की कमान संभालने वाला है?
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