2014 का चायवाला 2019 में 'भागीदार' होगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के मणिशंकर अय्यर के 'चायवाला' की तरह ही राहुल गांधी का 'भागीदार' भी लपक लिया है. जिस हिसाब से मोदी इसे लगातार दोहरा रहे हैं, लगता है 2019 में 'भागीदार' ही ट्रेंड करने वाला है.
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लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का एक हिस्सा सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे शाहजहांपुर का रिकॉर्डेड वीडियो प्ले हो रहा हो. शाहजहांपुर मोदी अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के ठीक अगले दिन किसानों की रैली में पहुंचे थे. किसानों की उस रैली में भी ट्रेंडिंग कीवर्ड रहा - 'भागीदार'.
दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी ने मोदी पर हमला करते हुए कहा था - 'चौकीदार नहीं भागीदार हैं.' जवाबी हमले तो मोदी ने संसद में ही शुरू कर दिये थे अब तो लगातार खुद को भागीदार बताने पर ही जोर दिखता है.
जिस अंदाज में मोदी ने 'भागीदार' शब्द लपक लिया है वो 2014 के 'चायवाला' की याद दिला रहा है. लग तो ऐसा रहा है कि 2019 में 'भागीदार' भी 'चायवाला' की तरह ही सुपरहिट होने वाला है.
चुनावी राजनीति का अय्यरकांड - फिर से
2017 के गुजरात चुनाव के दौरान भी कई दिनों तक कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर सुर्खियों में छाये रहे. तब अय्यर में प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल किया था - 'नीच'. बाद में बवाल मचने पर अंग्रेजी में समझाने लगे कि वो हादसा उनकी खराब हिंदी के चलते हो गया. हालांकि, अय्यर के सिर्फ सफाई देने से काम नहीं चला, राहुल गांधी ने उनसे माफी भी मंगवाई.
एक 'चायवाले' का 'भागीदार' बनना!
कांग्रेस को अय्यर का ये बड़बोलापन बहुत ही भारी पड़ा. बीजेपी नेताओं ने गुजरात के लोगों को प्रधानमंत्री पर निजी हमले के तौर पर समझाया और पार्टी ने जल्द ही कांग्रेस को पछाड़ दिया. कांग्रेस को इससे काफी नुकसान हुआ.
अय्यर वही कांग्रेस नेता हैं जिनका एक बयान 2014 के आम चुनाव में भी कांग्रेस के लिए मुसीबत बन चुका है. 2014 की चुनावी मुहिम के दौरान मणिशंकर अय्यर ने कहा था - 'नरेंद्र मोदी 21वीं सदी में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते... वो चाहें तो कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में चाय बेच सकते हैं.'
मोदी ने बगैर कोई मौका गंवाए लोगों को समझाना शुरू कर दिया कि चूंकि वो निचले तबके से उठकर आए हैं इसलिए उन पर ऐसे निजी हमले होते रहते हैं. तकरीबन हर रैली में मोदी ने इस बात का विस्तार से जिक्र किया और मध्यम वर्ग की भावनाएं ऐसे उमड़ीं कि सबकी सब वोट में तब्दील होते देर न लगी. जो काम 2014 में मणिशंकर अय्यर ने किया था, राहुल गांधी ने भी 2019 के मुहाने पर वही दोहरा दिया है - और मोदी ने उसे आगे बढ़ कर कैच कर लिया है.
असल में प्रधानमंत्री मोदी ये बात अच्छी तरह समझ गये हैं कि कांग्रेस के इल्जाम की काट पार्टी नेताओं के बयानों में से ही खोजना ज्यादा असरदार होगा. वैसे यूपी चुनाव में भी प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे प्रयोग खूब किये थे. चुनाव के दौरान पता चला अखिलेश यादव ने स्लोगन दिया - 'काम बोलता है'. फिर मोदी हर रैली में लोगों को समझाने लगे - 'आपका काम नहीं कारनामा बोलता है'.
चुनावी मौसम में निजी हमले का काउंटर आम लोगों के बीच बेहद कारगर राजनीतिक टूल साबित होता है. बिहार में नीतीश कुमार के 'डीएनए में खोट' की बात और गुजरात में मोदी के खिलाफ 'विकास गांडो थायो छे' का क्या असर होता है सबने देखा ही है. भागीदार बता कर राहुल गांधी ने मोदी पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया है - मोदी अब लोगों को भागीदार पर मसीहा के तौर पर समझा रहे हैं.
'मैं भागीदार हूं और मुझे इस पर गर्व है'
संसद में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील में घोटाले की बात कह रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर झूठ बोलने का आरोप लगाया. फिर प्रधानमंत्री मोदी पर अपने करीबी लोगों को फायदा पहुंचाने का इल्जाम लगाया और इसीबात के लिए उन्हें चौकीदार की जगह भागीदार करार दिया. मोदी कई मौकों पर खुद को चौकीदार बता चुके हैं.
फौरन ही मोदी ने 'भागीदार' अपने लिए हमले का हथियार बना डाला - 'हां, मैं भागीदार हूं और मुझे इस पर गर्व है'. तब से मोदी लगातार जोर देकर लोगों को समझा रहे हैं कि वो भागीदार तो हैं लेकिन वो नहीं जो राहुल गांधी उन्हें मानते हैं - बल्कि, आम लोगों के दुख-दर्द का भागीदार.
लखनऊ में मोदी बोले, "मुझे गर्व है कि मैं एक गरीब मां का बेटा हूं... गरीबी ने मुझे ईमानदारी और हिम्मत दी है... "
2019 में 'भागीदार' की बड़ी भूमिका...
मोदी समझाते हैं, "आज कल मुझपर आरोप लगाए जा रहे हैं कि मैं चौकीदार नहीं भागीदार हूं... मैं गर्व से कहता हूं की मैं भागीदार हूं देश के गरीबों के दुःख का... मेहनतकश मजदूरों के दुखों और हर दुखियारी मां की तकलीफों का... मैं उस हर मां के दर्द का भागीदार हूं जो लकड़ियां बीनकर घर का चूल्हा जलाती है... मैं उस किसान के दर्द का भागीदार हूं जिसकी फसल सूखे या पानी में बर्बाद हो जाती है... मैं भागीदार हूं, उन जवानों के जुनून का, जो हड्डी गलाने वाली सर्दी और झुलसाने वाली गर्मी में देश की रक्षा करते हैं..."
फिर तीखा कटाक्ष करते हैं, "गरीबी की मार ने मुझे जीना सिखाया है... गरीबी का दर्द मैंने करीब से देखा है... मगर जिसके पांव फटे ना बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई..."
हां, मैं भागीदार हूं और मुझे इस पर गर्व है।
मैं हर दुखियारी मां की तकलीफों का भागीदार हूं।
मैं किसान के दर्द का भागीदार हूं।
मैं देश के युवाओं के सपनों को साकार करने में भागीदार हूं।
मैं गरीब परिवार की पीड़ा का भागीदार हूं। pic.twitter.com/1zC2P7zcVB
— Narendra Modi (@narendramodi) July 28, 2018
जैसे एक मजदूर, किसान और जनता की भागीदारी होती है...
'भागीदारी' को प्रधानमंत्री मोदी उद्योगपति की सोहबत से भी सीधे सीधे जोड़ देते हैं और वो भी महात्मा गांधी के जमाने के वाकये से जोड़ते हुए. मोदी समझाते हैं कि किस तरीके से महात्मा गांधी को देश के विकास के लिए बिड़ला परिवार के साथ खड़े होने में संकोच नहीं हुआ. फिर भागीदारी को एक साथ मल्टीपल टारगेट पर पहुंचाने की कोशिश होती है. हमले चाहे 'सूट बूट की सरकार' के रूप में हों या फिर 'फेयर एंड लवली' अंदाज में. राजनीति ऐसी कि भागीदारी फौरन ही नियत से कनेक्ट हो जाये और विरोधी का दाव उल्टा उसी पर बैकफायर करने लगे.
भाषण पर गौर कीजिए, "जैसे एक मजदूर, किसान और जनता की भागीदारी होती है वैसे ही देश के उद्योगकारों की देश को बनाने में अहम भूमिका रहती है. क्या हम उन्हें अपमानित करेंगे? चोर, लूटेरे कहेंगे?" आवाज का वॉल्यूम अचानक पीक पर पहुंच जाता है. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच 'मोदी-मोदी' गूंजने लगाता है. फिर तो समझो काम हो गया. दवा असर कर गयी.
भाषण के कुछ और बातों पर गौर फरमाइये, "उद्योगपतियों के साथ का विरोध करने वाले पर्दे के पीछे तो उनसे खूब मुलाकात करते हैं और सामने आकर उनका ही विरोध करते हैं... उद्योगपतियों का साथ जरूरी है लेकिन जो गलत करेगा उसे या तो देश से भागना पड़ेगा या फिर जेल में जीवन बिताना पड़ेगा. पहले ऐसा नहीं होता था क्योंकि आज जो लोग विरोध कर रहे हैं पहले वो पर्दे के पीछे से इन्हें सपोर्ट करते थे. यह सबको मालूम है कौन लोग किसके हवाई जहाज से घूमते रहे."
मोदी को कुल मिलाकर कोशिश यही होती है कि लोग ये बात मन में उतार लें कि भागीदारी के साथ नियत जोड़ देने से शब्द के मायने किस हद तक बदल जाते हैं. ये उसी 'भागीदारी' का पलटवार है. भागीदारी इधर भी है, उधर भी. कोशिश इतनी है कि लोग भागीदारी के साथ नियति की भूमिका समझ लें - और भागीदारी को तो संज्ञा ही समझें लेकिन 'नियति' को संज्ञा की जगह विशेषण मान लें.
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