क्या सिद्धू 2017 पंजाब चुनाव में चौका छक्का लगा पाएंगे?
पंजाब विधानसभा चुनावों में सिद्धू के फैसले का बीजेपी पर क्या असर पड़ेगा? इसके साथ ही यह देखना भी दिलचस्प होगा कि वह आम आदमी पार्टी में शामिल होकर क्या कमाल दिखाते हैं.
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जाने माने पूर्व क्रिकेट खिलाडी नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा सदस्यता के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया. चौबीस घंटे तक सस्पेंस रखने के बाद सिद्धू ने साफ कर दिया है कि वह अगले हफ्ते "आम आदमी पार्टी" में शामिल हो जाएंगे. कारण, बीजेपी में वे अब सहज महसूस नहीं कर रहे थे. हालाँकि कुछ दिन पहले ही बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट दिया था और ऐसा प्रतीत हो रहा था की अब सिद्धू और पार्टी में जो नाराजगी थी वो खत्म हो गयी थी.
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लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था और अपने सवभाव के अनुसार ही उन्होंने ऐन वक़्त में राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. अब सवाल ये है की क्या आने वाले चुनावों में बीजेपी को नुकसान होगा या फिर इसका फायदा मिलेगा? सवाल ये भी है की आम आदमी पार्टी में शामिल होने की घोषणा करने के बाद क्या उनकी नई पार्टी को कोई बड़ा फायदा मिलेगा. हालांकि पंजाब में विधानसभा चुनाव 2017 में होने हैं लेकिन सिद्धू के इस्तीफे ने राज्य में चुनावी बिगुल बजा दिया है.
नवजोत सिंह सिद्धू |
2014 में बीजेपी ने उन्हें लोक सभा का टिकट नहीं दिया था जिसके कारण वो पार्टी में बिलकुल अलग-थलग पड़ गए थे. हालांकि उससे पहले भी वो राजनीती में पूरी तरह सक्रिय नहीं थे. कई बार उनपर ये आरोप लगता रहा है की वो अपनी संसदीय छेत्र अमृतसर को समय नहीं देते थे. नवजोत सिंह सिद्धू के लिए राजनीती एक पार्ट टाइम जॉब है. ये सच है की नवजोत सिंह सिद्धू बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद उन्होंने अपनी प्रतिभा का बखूभी प्रदर्शन क्रिकेट कमेंटरी और कई कॉमेडी शोज में दिखाया है. उनकी पहचान एक कुशल एंटरटेनर के रूप में भी होती है, परन्तु राजनीती में उनकी यह ऊर्जा क्या काम आएगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा.
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सिद्धू जाट सिख समुदाय से आते है, जो पंजाब की कुल वोटिंग परसेंटेज में 21 फीसदी के करीब है. यह फैक्टर कभी-कभी पंजाब चुनाव में निर्णायक हो जाता है. वे युवाओं को भी अपनी और आकर्षित कर सकते है. हालांकि एक अपराधिक केस उनपर दर्ज हुआ था, फिर भी उनकी छवि साफ सुथरे व्यक्ति के रूप में की जाती है. इस लिहाज से देखें तो आगामी चुनावों में वो कुछ न कुछ प्रभाव दिखा सकते है.
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इसके उलट सिद्धू को गंभीर नेता नहीं माना जाता है. कई लोगों का मानना है कि सिद्धू रैली के लिए भीड़ तो आसानी से जुटा सकते हैं लेकिन जीत दिलाना उनके बस में नहीं है. लिहाजा, यदि आम आदमी पार्टी अगर उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मदीवार बनाती है तो उन्हें ध्यान में रखना होगा की कहीं उनका भी हाल 2015 के दिल्ली चुनावों में बीजेपी जैसा न हो, जहां किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया गया था.
बहरहाल, सूत्रों के हवाले से यह भी जानकारी मिल रही है कि सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद कोई पद या जिम्मेदारी नहीं लेंगे. वह आगामी चुनावों में बस एक स्टार प्रचारक की भूमिका निभाएंगे. ऐसे में एक बार फिर सवाल यही उठता है कि यही स्थिति तो उनकी बीजेपी में थी लिहाजा अब आम आदमी पार्टी में भी यूं ही रहा तो सिद्धू के लिए क्या बदला?
या फिर आम आदमी पार्टी ने अफवाहों के बाजार को ठंडा करने के लिए सिद्धू को ज्यादा अहम भूमिका देने से कन्नी काट ली है. ऐसा करना आम आदमी पार्टी के लिए वैसे भी जरूरी था क्योंकि कुछ जानकारों का मानना है कि सिद्धू को बतौर सीएम प्रोजेक्ट करने पर आम आदमी पार्टी को सिर्फ नुकसान ही होना था और चुनाव से पहले उसे राज्य के कई अहम नेताओं से हाथ भी धोना पड़ सकता था.
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