क्या मोदी देगें ये #Sandesh2Soldiers?
प्रधानमंत्री और जवानों के बीच इतनी गर्मजोशी के बाद आखिर क्यों सेना के जवानों ने रक्षा मंत्रालय के खिलाफ विकलांगता पेंशन को लेकर मोर्चा खोल रखा है?
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सरहद पर जारी तनाव को देखते हुए #Sandesh2Soldiers एक अच्छी मुहिम है. हमारा देश वर्दी में तैनात उन जवानों के कर्ज तले दबा है जिनका बलिदान हमें सुरक्षित रखता है. लिहाजा प्रधानमंत्री की अपील कि हम उन जवानों को पत्र लिखे जो विषम परिस्थितियों में भी आंतरिक और बाहरी खतरों से हमारी रक्षा करने के लिए तत्पर रहते हैं.
मैनें सियाचिन ग्लेशियर समेत पूरे नियंत्रण रेखा से रिपोर्टिग की है. विश्वास मानिए यहां अधिकांश ऐसे इलाके हैं जहां कुछ घंटे खड़ा रहना भी मुश्किल हो जाता है और ये जवान पूरे साल यहां हमारी सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं.
बदले में हम उन्हें क्या दे रहे हैं? #Sandesh2Soldiers?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद अपनी दोनों दीपावली जवानों के बीच रहकर मनाई. हमें बताया गया कि प्रधानमंत्री जवानों के साथ एक जुड़ाव महसूस करते हैं. वह बड़ी ही गर्मजोशी के साथ इन दुर्गम इलाकों में जाकर उनसे मुलाकात करते हैं. और बदले में ऐसा ही सम्मान प्रधानमंत्री को जवानों से भी मिलता है.
प्रधानमंत्री और जवानों के बीच इतनी गर्मजोशी के बाद आखिर क्यों सेना के जवानों ने रक्षा मंत्रालय के खिलाफ विकलांगता पेंशन को लेकर मोर्चा खोल रखा है? आखिर क्यों जवान सैलरी में समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं? आखिर #Sandesh2Soldiers में संवाद कहां टूट रहा है?
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जब उरी हमले के बाद सेना को नियंत्रण रेखा के पार मौजूद दुश्मनों (वर्दी और बिना वर्दी वाले) पर हमला करने के लिए हरी झंडी दिखाई गई तब उसमें खासा उत्साह था. सेना के सीनियर कमांडरों का कहना है कि वह सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग के वक्त बारीकियों को समझने की प्रधानमंत्री की प्रतिभा से भी खासे प्रभावित थे. सेना से अपने सभी संवाद में प्रधानमंत्री की यही कोशिश थी कि इस स्ट्राइक में अपने जवानों को बचाते हुए दुश्मनों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने का काम किया जाए.
फिर क्यों ऐसा लग रहा है कि नौकरशाही उन जवानों को गंभीर मानसिक आघात पहुंचाने की कोशिश कर रही है जिनके लिए देश की इज्जत खुद की जिंदगी से बढ़कर है? क्यों नौकरशाह इस गुनाह की सजा से बच रहे हैं?
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आखिर क्यों सरहद पर पाकिस्तानी सेना और आंतकियों की गोलाबारी का सामना करने के साथ-साथ उन्हें नौकरशाही के खिलाफ युद्ध का ऐलान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है?
आखिर क्यों सेना मुख्यालय और नौकरशाही सैलरी समानता के मुद्दे पर एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हैं? आखिर क्यों नौकरशाही और आर्मी, नेवी और एयर फोर्स के सीनियर अफसरों की मुलाकात के बाद भी यह मुद्दा उलझा हुआ है?
सरकार अपने बयान पर कायम है कि सेना में जवानों की सैलरी और रैंक को लेकर कोई विसंगति नहीं है. यह बयान रक्षा मंत्रालय की तरफ से लिखित तौर भी जारी किया गया है. इसके बावजूद सेना ने आरोप लगाया है कि नौकरशाही पूरा सच नहीं बोल रही है. इस मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी माना है कि मंत्री समूह (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स-GoM) की रिपोर्ट पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है.
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आखिर क्यों 2009 के उस मंत्री समूह, जिसके प्रमुख मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी थे, के आदेश को नजरअंदाज किया जा रहा है? जबकि जनवरी 2009 में ही मनमोहन सरकार ने उसे मंजूर कर दिया था. इस मंत्री समूह ने सेना और केन्द्र सरकार की सैलरी और रैंक का विस्तृत अध्ययन करते हुए अपनी अनुशंशा की थी. सूत्रों का कहना है कि इस रिपोर्ट के मुताबिक सेना का लेफ्टिनेंट कर्नल भारत सरकार में नियुक्त डिप्टी सेक्रेटरी/ज्वाइंट डायरेक्टर से सीनीयर है. उस वक्त केन्द्र सरकार में डायरेक्टर सेना में कर्नल के समकक्ष हुआ करता था. लिहाजा, यह विवाद इस रिपोर्ट के साथ ही सुलझ गया था.
अब सेना मुख्यालय को यह पता नहीं है कि क्या मंत्रालय ने मौजूदा रक्षा मंत्री मनोहर परिकर को 2009 तक की स्थिति विस्तार से बताई थी. या फिर उनका फैसला महज 2005 तक की स्थिति पर ही आधारित है? सेना को शक है कि नौकरशाही ने मौजूदा सरकार से पूर्ण तथ्य छिपा लिया है. हालांकि परिकर ने पूरे मामले की जांच करने का वादा किया है. सेना के जवानों को सेवानृवित जवानों को अभी भी इंसाफ का इंतजार है.
छठे वेतन आयोग ने लेफ्टिनेंट कर्नल को डिप्टी सेक्रेटरी/ज्वाइंट डायरेक्टर और कर्नल को डायरेक्टर के समकक्ष माना है. जबकि 2009 के मंत्री समूह ने साफ कर दिया था कि लेफ्टिनेंट कर्नल ज्वाइंट डायरेक्टर से सीनियर होगा. लिहाजा सवाल यही है कि कैसे 2016 में नया आदेश दिया गया कि ज्वाइंट डायरेक्टर को कर्नल और डायरेक्टर को ब्रिगेडियर के बराबर माना जाए?
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इन विसंगतियों पर सेना मुख्यालय अभी भी आश्वस्त नहीं है और उसका दावा है कि 2009 में मंत्री समूह के उस फैसले जिसे प्रधानमंत्री ने भी स्वीकार लिया था को नजरअंदाज किया गया है. अब सेना मुख्यालय ने इस मामले को रक्षा मंत्री के सामने फिर से उठाने के लिए वक्त मांगा है. वहीं सूत्र यह भी कह रहे हैं कि इससे प्रभावित हो रहे कुछ अधिकारी अदालत का दरवाजा भी खटखटाने की तैयारी में हैं.
आने वाले दिनों में रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री के लिए जा रहे फैसलों पर सेना की नजर बनी हुई है. इतना जरूर है कि हाल में सेना को उरी के हमलावरों के खिलाफ कदम उठाने की इजाजत मिलने से उसमें उत्साह की स्थिति है. लेकिन क्या अब सरकार भी वही तत्परता दिखाते हुए सेना के जवानों को न्याय देने का काम करेगी? क्योंकि सेना के मनोबल को मजबूत करने का यही सबसे बेहतर #Sandesh2Soldiers है.
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