कांग्रेस की दिल्ली सल्तनत के वफादारों का कैप्टन की कप्तानी पर हमला!
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) का पंजाब में जो भी नेता विरोध कर रहे हैं उनके तार सीधे दिल्ली से जुड़े हुए लगते हैं - नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) भी तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को ही असली कैप्टन मानते हैं.
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दिल्ली में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) के विरोधी कांग्रेस पैनल के सामने शिकायतें दर्ज करा रहे थे, पंजाब में वो AAP के तीन विधायकों को पार्टी की सदस्यता दिला रहे थे - कैप्टन अमरिंदर सिंह का ये मैसेज विरोधियों के साथ साथ सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए भी था.
कांग्रेस की पंजाब यूनिट की तरफ से ट्वीट करके भी ये जानकारी दी गयी जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह नये सदस्यों का स्वागत करते देखे गये. आप से कांग्रेस में शामिल होने वाले तीन विधायक हैं - सुखपाल सिंह खैरा, जगदेव सिंह कमलू और पिरमल सिंह धौला.
कैप्टन अमरिंदर के लिए कांग्रेस के भीतर से होने वाला विरोध कोई नया नहीं है, लेकिन अभी ये ऐसे मौके पर हो रहा है जब वो 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों से लेकर 2019 के आम चुनाव तक तो विरोध का बिगुल अकेले नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ही बुलंद किये हुए थे, लेकिन राहुल गांधी के कांग्रेस की कमान छोड़ देने के बाद उनको खामोश हो जाना पड़ा था.
फिलहाल सिद्धू तो विरोध तेज कर ही चुके हैं, कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ कई और भी विरोधी खेमा खड़ा हो गया है - और उनमें से एक है जो दलित मुख्यमंत्री की मांग करने लगा है. किसान आंदोलन के बाद दलितों का मुद्दा भी अब जोर शोर से उठने लगा है.
कैप्टन अमरिंदर के सामने भी वैसी ही चुनौतियां आ पड़ी हैं जैसी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सामने हैं. योगी आदित्यनाथ का मामला तो अब ठंडा पड़ता लगता है, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर कांग्रेस नेतृत्व का रुख अब तक साफ नहीं हुआ है.
2017 के विधानसभा चुनावों से पहले सोनिया गांधी ने पंजाब कांग्रेस की कमान बदल दी थी, लेकिन तब कांग्रेस विपक्ष में हुआ करती थी. अब भी वे लोग ही कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ विरोध की आवाज बने हुए हैं - हालांकि, अब तो नहीं लगता कि कांग्रेस नेतृत्व चुनाव के ऐन पहले ऐसा कोई जोखिम उठाने का फैसला करेगा.
फिर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुश्किल ये है कि उनके राजनीतिक विरोधी सिर्फ नवजोत सिंह सिद्धू ही नहीं हैं - सिद्धू जैसे कई और भी हैं और मुश्किल ये भी है कि कैप्टन के ज्यादातर विरोधी भी सिद्धू की तरह राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को ही अपना और असली कैप्टन मानते हैं.
क्या विरोध के मूल में कोई जेनरेशन गैप है
दिल्ली में कांग्रेस का तीन सदस्यों वाला पैनल पंजाब के नेताओं और विधायकों से तो मिला ही, नवजोत सिंह सिद्धू अकेले दो घंटे तक अपनी शिकायतें दर्ज कराते रहे - और अपनी बारी आने पर पेश होकर कैप्टन अमरिंदर सिंह भी तीन घंटे तक अपने खिलाफ शिकायतों पर जवाब और सफाई देते रहे.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ विरोधियों की शिकायतों की बड़ी ही लंबी फेहरिस्त है. गुरुग्रंथ साहिब बेअदबी और पुलिस फायरिंग केस में कैप्टन अममरिंदर सिंह पर बादल परिवार को बचाये जाने के आरोप लग रहे हैं तो चुनावी वादे पूरा न करने से लेकिन ड्रग्स और माइनिंग जैसे मुद्दे भी हैं.
लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जो अजीब लगते हैं - और आसानी से किसी के भी गले उतरने वाले नहीं लगते. कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ विधायकों की शिकायत है कि नौकरशाही हावी है - और इस कदर हावी है कि अफसर मुख्यमंत्री से ही मिलने नहीं देते. हद है, अगर ऐसा रहा तो अब तक क्या ऐसी शिकायतों से फाइलें सजायी जा रही थीं?
जहां तक कैप्टन अमरिंदर सिंह की उपलब्धता और लोगों से मिलने की बात है, ये काफी पुराना आरोप है - और इसी धारणा को बदलने के मकसद से 2017 के विधानसभा चुनाव में अमरिंदर सिंह के चुनाव रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने 'कॉफी विद कैप्टन' जैसे कार्यक्रम शुरू किये थे. नाम तो सुनने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चाय पर चर्चा जैसा ही रहा, लेकिन मुख्य मकसद आम लोगों के बीच कैप्टन अमरिंदर सिंह की मौजूदगी दर्ज कराने की रही.
क्या कांग्रेस के दो पावर सेंटर के बीच में पिसने लगे हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह
कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते 2005 में भी जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था. तब राजिंदर कौल भट्टल ने 25 विधायकों के साथ दिल्ली में डेरा डाल दिया और मुख्यमंत्री को हटाने की मांग पर अड़ गयीं.
2002 से 2007 के बीच मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह पर तब भी आरोप लगाया जाता रहा कि उनके इर्द-गिर्द चापलूसों की एक टोली बन गयी है जो सरकार चलाती है - और भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ अगर विधायकों की तरफ से कोई शिकायत होती है तो उस पर कोई सुनवाई नहीं होती.
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बने कांग्रेस पैनल ने नवजोत सिंह सिद्धू और हाकी खिलाड़ी रहे विधायक परगट सिंह के अलावा कैप्टन के कट्टर विरोधी मंत्रियों चरणजीत सिंह चन्नी, सुखजिंदर सिंह रंधावा, राणा केपी सिंह के अलावा करीब दो दर्जन विधायकों से भी मुलाकात की है. साथ ही, उन नेताओं से भी संपर्क किया गया है जो कैप्टन अमरिंदर के समर्थक बताये जाते हैं - और प्रताप सिंह बाजवा, शमशेर सिंह दुल्लो, मोहिंदर सिंह केपी और राजिंदर कौर भट्टल जैसे नेताओं से भी.
कांग्रेस पैनल में मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ पंजाब के प्रभारी हरीश रावत और बुजुर्ग कांग्रेसी जेपी अग्रवाल को भी शामिल किया गया है. कांग्रेस पैनल और नेताओं की मुलाकात के आगे पीछे कुछ अलग वाकये भी दर्ज किये गये हैं. मसलन, राहुल गांधी का फोन पर कुछ विधायकों से बात करना और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पेशी के ठीक पहले प्रताप सिंह बाजवा का कांग्रेस पैनल से दोबारा मिलना.
प्रताप सिंह बाजवा ही वो कांग्रेस नेता हैं जो 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुआ करते थे. उसके पहले के लगातार दो चुनावों में हार के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर प्रताप सिंह बाजवा को ही सूबे की कमान सौंप दी गयी थी. चुनावों से कुछ महीने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह कमान अपने हाथ में लेने के लिए अड़ गये. जब ऊपर तक मैसेज ये पहुंचने लगा कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह की बात को अनसुना किया गया तो वो पार्टी तोड़ देंगे और अपनी अलग पार्टी बना लेंगे, तब जाकर सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की बात मान ली थी.
दरअसल, प्रताप सिंह बाजवा को राहुल गांधी पसंद करते हैं - और किसान आंदोलन के दौरान भी ऐसा ही टकराव देखने को मिला था. कैप्टन अमरिंदर सिंह विधानसभा चुनाव नजदीक देख जल्दी से किसान आंदोलन खत्म करना चाहते थे, लेकिन राहुल गांधी मोदी सरकार के खिलाफ हाथ लगा एक बड़ा मुद्दा आसानी से नहीं जाने देना चाहते थे. 2020 के आखिर में जब किसान आंदोलन जोर पकड़े हुए था, राहुल गांधी के बाजवा और रवनीत सिंह बिट्टू जैसे सपोर्टर खूब बयानबाजी कर रहे थे. वे सारी ऐसी बातें करते रहे जो कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुश्किल में डालने वाली हों और राहुल गांधी की तारीफ में कसीदे समझी जायें.
कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर एक खास बात ये भी मानी जाती है कि वो सोनिया गांधी के करीबी नेताओं में से एक हैं. याद कीजिये शुरुआती दौर में जब राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की मांग जोर पकड़ रही थी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह उन नेताओं की जमात में शामिल थे जो सोनिया गांधी के ही अध्यक्ष बने रहने के पक्षधर हुआ करते थे - ऐसे नेताओं का स्टैंड साफ साफ राहुल गांधी के विरोध में रहा.
ठीक वैसे ही नवजोत सिंह सिद्धू और प्रताप सिंह बाजवा जैसे नेता राहुल गांधी के करीब माने जाते हैं. असल में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को बुजुर्ग कांग्रेसियों की टोली का सदस्य मानते हैं, जबकि नवजोद सिंह सिद्धू दोनों ही को युवा जोश से भरपूर और नयी पीढ़ी के नुमाइंदे लगते हैं - और यही जेनरेशन गैप पंजाब कांग्रेस की मोजूदा अंदरूनी कलह की सबसे बड़ी वजह बना हुआ है.
दलित सीएम की मांग क्यों उठी
पंजाब में दलित आबादी 32 फीसदी है, लेकिन दूसरे राज्यों की तरह अलग से वे चुनावी मुद्दा कम ही बनते हैं, शायद इसलिए भी क्योंकि किसानों और ड्रग्स का मुद्दा सब पर बहुत भारी पड़ता है.
पहले तो यही देखने को मिलता रहा है कि बीजेपी पंजाब के मामले में कम ही बोला करती रही, लेकिन कृषि कानूनों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल के एनडीए छोड़ देने के बाद भारतीय जनता पार्टी की तरफ से भी दस्तक दिया जाना शुरू हो गया है.
बीजेपी भले हाल के केरल और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों की तरह ही पंजाब में दिलचस्पी दिखाये, लेकिन खेल तो करेगी ही. पंचायत चुनाव में बुरी तरह शिकस्त मिलने और किसानों के तगड़े विरोध के चलते बीजेपी ने पंजाब में नया पैंतरा शुरू किया है - दलित कार्ड खेलने का.
बीजेपी ने ऐलान कर दिया है कि अगर 2022 के चुनाव जीत कर पार्टी सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री दलित समुदाय से होगा. नतीजा ये हो रहा है कि पंजाब के ज्यादातर राजनीतिक दल किसानों के मुद्दों को भुलाकर दलितों के मुद्दे पर राजनीति शुरू कर चुके हैं.
पिछले चुनाव तक बीजेपी के साथ रहे सुखबीर बादल ने घोषणा कर दी है कि चुनाव जीतने के बाद अकाली दल की सरकार बनने पर वो दलित तबके के नेता को ही डिप्टी सीएम बनाएंगे.
भला कांग्रेस नेता इस मामले में कैसे पीछे रहते. कैप्टन अमरिंद सिंह के विरोधी खेमे के और दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी ने दलित विधायकों को बुलाकर मीटिंग करने लगे और दलित मुख्यमंत्री की मांग शुरू कर दी है.
चन्नी की ही राह पकड़ते हुए कैप्टन अमरिंदर के एक और विरोधी नेता शमशेर सिंह दुल्लो ने भी दलित मुख्यमंत्री की मांग को आगे बढ़ा दिया है. शमशेर सिंह का कहना है कि कांग्रेस को सत्ता में वापसी करनी है तो पंजाब में किसी दलित नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर देनी चाहिये.
शमशेर सिंह ये मामले और आगे ले जाने की कोशिश में लगते हैं. कहते हैं, दलित समुदाय हमेशा ही कांग्रेस का समर्थक रहा है, लेकिन महज एक वोट बैंक बन कर रह गया है. वो मानते हैं कि पहले कांग्रेस दलितों के हितों का ख्याल जरूर रखती थी, लेकिन अब पार्टी के लिए दलितों की अहमियत एक वोट बैंक से ज्यादा नहीं बची लगती है.
एक अखबार से बातचीत में शमशेर सिंह की दलील सुनायी देती है - पिछले 75 साल में पंजाब में ब्राह्मण, जट्ट सिख और पिछड़े वर्ग को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल चुका है, लेकिन आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा नंबर होने के बावजूद दलितों को अब तक ये मौका नहीं मिल सका है - अगली बार तो दलित मुख्यमंत्री ही होना चाहिये.
देखें तो बीजेपी ने किसानों के मुद्दे की काट में दलित कार्ड चल कर चुनावी मुद्दा तो बनाने की कोशिश कर ही चुकी है - और कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने ये नयी मुश्किल खड़ी हो गयी है.
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