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Updated: 04 जून, 2021 05:43 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मलेरकोटला को पंजाब का नया जिला बनाने पर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) में जोरदार तकरार हुई थी. ईद के मौके पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुस्लिम आबादी बहुत मलेरकोटला को पंजाब का 23 जिला घोषित किया था - और साथ में ढेर सारे सौगात भी दिये.

UP के मुख्यमंत्री को पंजाब सरकार से खासी खुन्नस रही. मुख्तार अंसारी के मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार को पंजाब पुलिस के रोड़े अटकाने से काफी गुस्सा रहा. बीजेपी विधायक अलका राय के प्रियंका गांधी वाड्रा को बार बार पत्र लिखने से तो कोई फर्क नहीं पड़ा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कैप्टन अमरिंदर सरकार आखिरकार मुख्तार अंसारी को यूपी पुलिस के हवाले करने को मजबूर हुई.

योगी आदित्यनाथ को मलेरकोटला को जिला बनाये जाने में भारत-पाकिस्तान बंटवारे का अक्स दिखा - और उसी को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी के मुख्यमंत्री ने पंजाब की कांग्रेस सरकार के खिलाफ ताबड़तोड़ ट्वीट किये - जवाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरफ से भी कई नसीहत भरे ट्वीट योगी आदित्यनाथ को संबोधित करते हुए किये गये. ये सब कोरोना संकट के बीच ही होता रहा और नया मुद्दा गर्माने के साथ ही मलेरकोटला पर टकराव भी शांत हो गया.

योगी आदित्यनाथ के साथ ही कैप्टन अमरिंदर सिंह एक बार फिर सुर्खियों में छाये हुए हैं - और ये आपसी तकरार के चलते नहीं बल्कि दोनों के साथ अपने अपने पार्टी आलाकमान के संभावित एक्शन को लेकर हुआ है.

यूपी और पंजाब दोनों ही जगह चुनाव (Assembly Election 2022) से पहले नेतृत्व को लेकर चर्चाएं इसलिए चल पड़ीं क्योंकि जैसे बीजेपी नेता लखनऊ पहुंच कर फीडबैक जुटा रहे थे, कांग्रेस का एक पैनल दिल्ली में नवजोत सिंह सिद्धू सहित पंजाब के नेताओं को बुलाकर राज्य के सियासी हालात का जायजा लेने लगा.

बीजेपी की तरफ से तो एक तरीके से ये संकेत देने की भी कोशिश हुई है कि योगी आदित्यनाथ को लेकर जो कयास लगाये जा रहे हैं उनमें कोई दम नहीं है. यूपी के मंत्रियों ने तो ऐसी बातों से इनकार किया ही था, बीजेपी के संगठन महासचिव बीएल संतोष का ट्वीट भी उसी पर मुहर लगा रहा है.

उत्तर प्रदेश और पंजाब दोनों ही राज्यों में करीब नौ महीने बाद एक साथ ही विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं - और देश की दो बड़ी पार्टियों में अपने अपने मुख्यमंत्रियों को लेकर एक ही तरह की हरकत ने सत्ता के गलियारों से होते हुए कयासों को मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंचने का मौका दिया.

बेशक ये सब दोनों ही पार्टियों की चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन क्या बीजेपी और कांग्रेस नेतृत्व यूपी और पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चली चर्चाओं को तत्काल प्रभाव से रोक नहीं सकता था - कहीं ऐसा तो नहीं कि दोनों का ही मकसद ऐसी चर्चाओं को हवा देना रहा हो?

पंजाब में क्या चल रहा है

कैप्टन अमरिंदर सिंह और योगी आदित्यनाथ में एक और कॉमन चीज है जो दोनों ही के अपने अपने पार्टी नेतृत्व के आंखों में हर वक्त खटकता रहा होगा - दोनों ही नेताओं ने मुख्यमंत्री बनने से पहले अपने आलाकमान को अपनी बात मानने के लिए मजबूर किया है. फर्क सिर्फ ये है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा चुनाव से पहले और योगी आदित्यनाथ ने नतीजे आने के बाद.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर हर तरीके से दबाव बनाया था - नतीजा ये हुआ कि राहुल गांधी के करीबी प्रताप सिंह बाजवा को हटाकर कांग्रेस नेतृत्व को कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमान सौंपनी पड़ी थी. बाद में हरियाणा में भी पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी करीब करीब वैसे ही दबाव बनाया और अपनी बात काफी हद तक मनवाने में सफल भी रहे.

yogi adityanath, capt, amrinder singhआगे जो भी अभी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह और योगी आदित्यनाथ एक ही नाव पर सवार लगते हैं!

2017 के चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक गोलमोल मैसेज भी देने की कोशिश की थी कि वो उनका आखिरी चुनाव होगा, लेकिन पांच साल सरकार चलाने के बाद लगता है कैप्टन का मन बदल गया - और अब एक और पारी का इरादा कर बैठे हैं. तभी तो लंबे अरसे बाद कैप्टन अमरिंदर को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में बाकियों की तरह मददगार साबित हुए प्रशांत किशोर की सेवाएं एक बार फिर लेने का फैसला किया है. ये बात अलग है कि पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर का कहना है कि अब वो इलेक्शन कैंपेन का काम नहीं करने जा रहे हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पुराने भरोसेमंद मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में एक पैनल बनाकर पंजाब के विधायकों से फीडबैक लिया है - और उसमें सबसे ज्यादा चर्चा कैप्टन अमरिंदर सिंह के कट्टर विरोधी नवजोत सिंह सिद्धू के बयान दर्ज कराने की चल रही है.

खबर ये भी है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपने स्तर पर कांग्रेस पैनल की मीटिंग से पहले करीब दर्जन भर विधायकों से फोन पर बात करके फीडबैक लिया है. मीडिया रिपोर्ट में राहुल गांधी और विधायकों के बीच हुई बातचीत की पुष्टि की गयी है.

मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई वाले तीन सदस्यों के पैनल के साथ सबसे लंबी मीटिंग पंजाब के बागी नेता नवजोत सिंह सिद्धू के साथ ही चली. मीटिंग के दौरान बताते हैं कि सिद्धू कैप्टन अमरिंदर सिंह पर गुरुग्रंथ साहिब बेअदबी के मामले और पुलिस फायरिंग केस में बादल परिवार को बचाने का भी आरोप लगाया है. सिद्धू ये मामला काफी दिनों से उठा रहे हैं. मीटिंग के बाद सिद्धू ने ट्वीट कर पंजाब और पंजाबियत के मुद्दे पर कोई भी समझौता न करने की बात दोहरायी.

मल्लिकार्जुन खड़गे पैनल में पंजाब कांग्रेस के 25 विधायकों के अलावा पांच सांसदों के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार से भी मुलाकात की है. अब कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी कमेटी के सामने पेश होने को कहा गया है - और इसे लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह का क्या रुख रहता है वही इस कवायद का अंजाम भी तय करेगा.

अभी तक तो यही देखा गया है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने सभी राजनीतिक विरोधियों का मुंह बंद कर रखा है - कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी. किसानों के समर्थन में मोदी कैबिनेट के साथ साथ एनडीए छोड़ देने वाले अकाली दल का हाल चाल भी किसी से छिपा नहीं है. पंजाब के पंचायत चुनाव के नतीजों ने एक तरीके से अगले विधानसभा चुनाव के नतीजों की एक संभावित झलक तो दिखा ही दी है.

जहां तक नवजोत सिंह सिद्धू का सवाल है वो सबसे ज्यादा नुकसान में रहे हैं. इमरान खान और पाकिस्तान के मुद्दे पर उनकी बयानबाजी ने उनके राजनीतिक कॅरियर के साथ साथ कॉमेडी शो से होने वाली कमाई भी बंद करा दी.

देश के सवाल पर कैप्टन अमरिंदर का स्टैंड ऐसा रहा है कि बीजेपी नेता भी कोई सवाल नहीं उठा पाते - और कैप्टन अमरिंदर की देशभक्त छवि के सामने सिद्धू राष्ट्रवाद की राजनीति में देशद्रोही वाली कैटेगरी में पहुंच जाते हैं.

राहुल गांधी के बूते सिद्धू खूब पंजाब से लेकर तेलंगाना तक इतराते देखे गये, लेकिन उनके कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ते ही सिद्धू को मंत्री पद और बंगला साथ साथ छोड़ना पड़ा था.

लेटेस्ट सपोर्ट सिद्धू को चाहे जहां से भी मिल रहा हो, लेकिन पंजाब की मौजूदा राजनीति में कैप्टन अमरिंद सिंह अभी तो ऐसी स्थिति में हैं ही कि राहुल और सोनिया गांधी चाह कर भी उनका कुछ नहीं कर सकते. किसानों के आंदोलन को लेकर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी परस्पर विरोधी स्टैंड टकराते देखा गया है, लेकिन कैप्टन अमरिंदर के विरोधी कुछ ट्वीट और बयानबाजी से ज्यादा कुछ भी नहीं कर पाये.

यूपी में ये क्या हो रहा है

कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही तरह यूपी में भी योगी आदित्यनाथ का ही दबदबा देखने को मिल रहा है - और पंजाब के मुख्यमंत्री की ही तरह यूपी में भी योगी आदित्यनाथ का रवैया भी बीजेपी नेतृत्व को लेकर कोई अनुशासित कार्यकर्ता वाला नहीं लग रहा है.

जैसे पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस नेतृत्व ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोहरा बना रखा है वैसे ही यूपी में भी एक प्रयोग चल रहा है, हालांकि, तरीका थोड़ा अलग लगता है.

जैसे नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए बयानबाजी के चलते मुश्किलों का सबब बने हुए हैं, उत्तर प्रदेश में बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा अपने कामकाज के चलते योगी आदित्यनाथ के सामने चैलेंज पेश कर रहे हैं.

दिल्ली से कंट्रोल करने की हो रही में दोनों राज्यों की राजनीति में फर्क ये है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह का मुकाबला जहां एक कमजोर विरोधी से हो रहा है, वहीं उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सामने एक ऐसा विरोधी है जिसका वही पक्ष भारी पड़ रहा है जिसे मुख्यमंत्री की कमजोरी मानी जाती रही है - प्रशासनिक कामकाज का हुनर.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता दत्तात्रेय होसबले के बाद बीजेपी के संगठन महासचिव बीएल संतोष भी लखनऊ जाकर बीजेपी के मंत्रियों और नेताओं से फीडबैक लेकर लौट चुके हैं - और अब सबकी नजर 5 जून को दिल्ली में होने वाली बैठक पर है. ये बैठक संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ होनी है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल होंगे. वैसे बैठक से पहले दिल्ली और लखनऊ के बीच जो गतिविधियां हाल फिलहाल हुई हैं उस पर विराम देने के लिए बीएल संतोष ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ में एक ट्वीट से किया है.

उत्तराखंड की तरह यूपी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर तो नहीं, लेकिन बीबीसी से बातचीत में एक बीजेपी नेता ने जो बात कही है उससे योगी आदित्यनाथ के स्टैंड का तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है - और अगर वास्तव में वैसा ही ही चल रहा है तो ये बीजेपी के लिए बहुत ही खतरनाक चीज है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक बीजेपी नेता ने बताया है, 'मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर कह दिया है कि अरविंद शर्मा को कोई महत्वपूर्ण विभाग तो छोड़िये, कैबिनेट मंत्री भी बनाना मुश्किल है. राज्य मंत्री से ज्यादा वो उन्हें कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं.'

ये तो साफ है कि योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद पूर्व नौकरशाह के जरिये उन पर नकेल कसने की मंशा समझ में आ चुकी है, लेकिन ये भी तो है कि योगी का ये स्टैंड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे सीधे चैलेंज करने के तौर पर लिया जाएगा.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा करके भी योगी आदित्यनाथ को यूपी के बीजेपी विधायकों का समर्थन कायम रख पाएंगे? और क्या अरविंद शर्मा के मामले में अगर योगी आदित्यनाथ का यही रुख रहता है तो संघ ऐसी चीजों का सपोर्ट करेगा जो सीधे सीधे बीजेपी में प्रधानमंत्री मोदी की अवहेलना से जुड़ा मामला हो?

ये दो ऐसे अहम सवाल हैं जिनके जवाब में ही योगी आदित्यनाथ के साथ साथ यूपी में बीजेपी का भविष्य भी टिका हुआ लगता है. बीबीसी से ही बातचीत में दिल्ली में बीजेपी के एक सीनियर नेता की बात का मतलब समझना भी जरूरी हो जाता है, 'पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी आदित्यनाथ को अक्सर ये याद दिलाता रहता है कि वो मुख्यमंत्री किसकी वजह से बने हैं - और मौका पाने पर योगी आदित्यनाथ भी ये जताने में कोई कसर नहीं छोड़ते कि नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी में प्रधानमंत्री के विकल्प भी वो ही हैं.'

ये दोनों ही बातें सच हैं - और ऐसी सच्चाई हैं कि मिल कर बीजेपी को यूपी में बेमिसाल बनाती हैं, लेकिन टकराव की सूरत में विपक्षी दलों के सामने सजाकर थाली परोस रही हों, ऐसा लगता है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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