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Updated: 16 मई, 2021 03:47 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मलेरकोटलना (Malerkotla) ऐसा मुद्दा है जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही के राजनीतिक मिजाज को पूरी तरह सूट करता है - संगरूर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर मुस्लिम बहुल आबादी वाले कस्बा मलेरकोटला को पंजाब का 23वां जिला बनाया गया है.

14 मई को ईद के मौके पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) ने मलेरकोटला को पंजाब का नया जिला बनाने का ऐलान किया है. पंजाब के संगरूर जिले में मलेरकोटला के साथ लगे अमरगढ़ और अहमदगढ़ भी नये जिले का हिस्सा होंगे. मलेरकोटला को जिले का दर्जा देने का कांग्रेस ने चुनावी वादा किया था और अपने मिशन 2022 की तैयारी में जुटे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंद सिंह ने ऐन चुनावों से पहले ही पूरा भी किया है.

कैप्टन अमरिंदर के मलेरकोटला को नयी पहचान देने के ऐलान के फौरन बाद ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने चुनावों से काफी पहले ही लपक कर इसे बहस का हॉट टापिक बना दिया है - और एक झटके में पाकिस्तान से जोड़ दिया है.

जगहों और शहरों के नाम बदलने के पुराने शौकीन योगी आदित्यनाथ की मलेरकोटला में गहरी दिलचस्पी तो सामने आ ही चुकी है. ये मुद्दा दौड़ कर लपक लेने की कम से कम दो वजह तो साफ लगती है - एक, योगी आदित्यनाथ ने अपना राजनीतिक इरादा साफ कर दिया है कि वो अगले साल यूपी में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से कैसे निबटने वाले हैं - और दूसरा, यूपी चुनाव में उनका मुख्य एजेंडा हिंदू-मुस्लिम पॉलिटिक्स ही होने वाला है.

वैसे भी कोरोना संकट में जो बुरा हाल हुआ है और सूबे के लोग जिस तरह से ऑक्सीजन से लेकर अस्पतालों में बेड और जरूरी दवाइयों के लिए सड़कों पर मारे मारे फिरे हैं, योगी आदित्यनाथ के पास सत्ता में वापसी को लेकर लोगों से वोट मांगते वक्त बहुत कुछ बताने के लिए है भी नहीं. कोरोना की पिछली लहर में योगी आदित्यनाथ के पास अपने काम और लोगों की सेवा के नाम पर बहुत कुछ कहने को था, लेकिन कोविड 19 की दूसरी लहर में सरकारी लापरवाही ने सब कुछ धो डाला है - निश्चित तौर पर यूपी विधानसभा चुनाव में अभी वक्त काफी बचा है, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने मलेरकोटला के मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया से अपना चुनावी एजेंडा पहले से ही सबको साफ कर दिया है.

मलेरकोटला पर योगी और कैप्टन आमने सामने क्यों

मलेरकोटला के मुद्दे पर कांग्रेस को पंजाब विधानसभा चुनाव में जितना फायदा मिल पाता, योगी आदित्यनाथ ने अपनी हिस्सेदारी जता कर उसे डबल बेनिफिट स्कीम बना डाला है.

बेशक कैप्टन अमरिंदर सिंह और योगी आदित्यनाथ मलेरकोटला के मुद्दे पर आमने-सामने आ गये हैं, लेकिन मान कर चलना चाहिये कि अब ये मुद्दा दोनों के लिए फायदेमंद होने वाला है.

captain amrinder singh, yogi adityanathमलेरकोटला का मुद्दा योगी आदित्यनाथ और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच एक्सचेंज ऑफर वाली पॉलिटिक्स का मौका दे रहा है

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मलेरकोटला में 500 करोड़ का एक मेडिकल कॉलेज, एक महिला कॉलेज, एक नया बस स्टैंड - और एक महिला पुलिस थाना बनाने का भी ऐलान किया है.

कैप्टन अमरिंदर के मलेरकोटला को नया जिला बनाने की ट्विटर पर घोषणा के ठीक 24 घंटे बाद ही योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कांग्रेस की राजनीति पर हमला बोल दिया.

योगी आदित्यनाथ ने ट्विटर पर लिखा - 'इस वक्त मलेरकोटला का गठन कांग्रेस की विभाजनकारी नीति का परिचायक है.' योगी आदित्यनाथ ने पंजाब सरकार के फैसले को भारतीय संविधान की भूल भावना के खिलाफ भी बता डाला.

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अव्वल तो योगी आदित्यनाथ को पंजाब के मामलों से दूर रहने के लिए आगाह किया है, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री के ट्वीट को बेशर्मी भरा प्रयास और पंजाब में सांप्रदायिकता वैमनस्य भड़काने की कोशिश बताया है. पंजाब के मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से ट्विटर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह के हवाले से योगी आदित्यनाथ को नसीहत भी दी गयी है कि यूपी में वो अपने लोगों को बचाने पर ध्यान लगायें.

वैसे भी योगी आदित्यनाथ और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच तनातनी कई महीनों से चल रही है - और पंचायत के लिए योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही कैप्टन अमरिंदर सरकार ने माफिया विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब की जेल से यूपी पुलिस को बांदा ले जाने दिया.

मुख्तार अंसारी को यूपी ले जाने में कांग्रेस सरकार पर अड़चन डालने का आरोप लगता रहा - और बीजेपी विधायक अलका राय ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को पत्र लिख कर ऐसा न करने की अपील की थी. जाहिर है, यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी को बीजेपी की तरफ से लगाये जाने वाले ऐसे आरोपों का जवाब भी देना होगा.

मलेरकोटला यूपी चुनाव में तो मुद्दा बनेगा ही - ये अभी से साफ हो चुका है, लेकिन क्या बीजेपी भी पंजाब पहुंच कर कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में इस ऐंगल से घेरने की कोशिश करेगी अभी नहीं कहा जा सकता. पिछले चुनावों तक पंजाब में बीजेपी और अकाली दल के बीच एनडीए का गठबंधन रहा है, लेकिन कृषि कानूनों को लेकर हरसिमरत कौर के मोदी कैबिनेट से इस्तीफे के बाद अकाली दल ने एडीए भी छोड़ दिया था. गौर करने वाली बात ये है कि पंजाब के पंचायत चुनावों में अकाली दल का भी वही हाल हुआ जो हाल में हुए यूपी के पंचायत चुनावों में बीजेपी के साथ हुआ है.

मलेरकोटला जैसे मुद्दे ही तो योगी की राजनीति चमकाते हैं

योगी आदित्यनाथ भले ही मुख्यमंत्री बनने के बाद इलाहाबाद और फैजाबाद के नाम क्रमशः प्रयागराज और अयोध्या बदल कर चर्चित रहे और सुर्खियां बटोरे लेकिन ये सब उनका काफी पुराना और फेवरेट शगल रहा है.

जब वो गोरखपुर के सांसद हुआ करते थे तभी योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर के अलीनगर को आर्यनगर, उर्दू बाजार को हिंदी बाजार, हुमायूंपुर को हनुमानपुर और मियां बाजार को माया बाजार कहने और कहलवाने शुरू कर दिये थे.

मलेरकोटला का मुद्दा उठाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने योगी आदित्यनाथ की शुरुआती राजनीति की तरफ ध्यान दिलाया है. मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने योगी आदित्यनाथ के हिंदू युवा वाहिनी की याद दिलाते हुए लव जिहाद का भी जिक्र किया और उसे ही मुसलमानों की लिंचिग की वजह बताया. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ताजमहल को लेकर भी योगी आदित्यनाथ के स्टैंड की याद दिलायी है और कहा है कि कैसे उनकी खुली नफरत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का पात्र बनी. लव जिहाद कानून को लेकर भी कांग्रेस नेता ने तंज कसा है.

ये सब याद दिलाते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह मलेरकोटला पर योगी आदित्यनाथ के ट्वीट को अनुचित और पूरी तरह हास्यास्पद बताते हैं. कहते हैं, 'आदित्यनाथ को अपने राज्य को बचाने पर फोकस करना चाहिये, जहां कोविड की स्थिति बेकाबू हो रही है - शव नदियों में फेंके जा रहे हैं और सभ्य तरीके से दाह संस्कार या दफन की गरिमा से भी लोगों को वंचित किया जा रहा है.'

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यूपी के पंचायत चुनाव के नतीजों का जिक्र करते हुए कटाक्ष किया है, 'लगता है कि यूपी के मुख्यमंत्री भूल गये हैं कि उनके राज्य में भी उसी वक्त चुनाव होने वाले हैं - और अगर हाल के पंचायत चुनाव के नतीजे कोई संकेत हैं तो बीजेपी पूरी तरह से और चौंकने वाली है.'

बतौर मुख्यमंत्री 2020 में लॉकडाउन के वक्त प्रवासी मजदूरों और कोटा में फंसे छात्रों की घर वापसी को छोड़ दें तो योगी आदित्यनाथ की पूरी राजनीति ही प्रतीकवाद और धार्मिक ध्रुवीकरण पर आधारित रही है. घर वापसी भी लव जिहाद की तरह उनकी राजनीतिक गतिविधियों का हिस्सा रहा है - लेकिन उसका आशय हिंदू धर्म में वापसी से है.

अब अगर कोरोना संकट में लोगों को उनके हाल पर छोड़ देने के बाद ऑक्सीजन की शिकायत करने वालों की संपत्ति सीज करने और उन पर NSA लगाने जैसे फरमान छोड़ दें तो योगी सरकार के पास लोक कल्याण से जुड़ी कोई उपलब्धि बताने के लिए तो है नहीं.

रहा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा तो योगी आदित्यनाथ तो भूमि पूजन में एक भागीदार भर रहे हैं - क्योंकि बीजेपी तो उसका क्रेडिट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देती है.

अब तो लगता है 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ के पास वही पुराना लव जिहाद, श्मशान-कब्रिस्तान और नये में मलेरकोटला जैसा मुद्दे हो सकते हैं - और एक बात तो तय है कि नीतीश कुमार की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी योगी आदित्यनाथ की चुनावी वैतरणी भी पार लगाने की कोशिश करनी ही होगी. वैसे कोरोना संकट से जूझ रहे देश के लोग मोदी सरकार से भी तो नाराज ही हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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