क्या CBI किसी भटकती आत्मा की तरह अरविंद केजरीवाल का पीछा कर रही है?
मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के घर पर छापेमारी के लिए केंद्र की मोदी सरकार को खरी खोटी सुना कर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) संतोष कर सकते हैं - अगर कुछ गलत नहीं किया है तो भी सीबीआई (CBI) को स्वायत्तता मिलने तक निजात नहीं मिलने वाली है.
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19 अगस्त को मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के घर पर सीबीआई (CBI) की रेड पड़ी थी. छापे के बाद दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने ऐसा आशंका भी जतायी थी कि दो-चार दिन में ही उनको गिरफ्तार कर लिया जाएगा, लेकिन अब तक उनकी आशंका गलत ही मानी जाएगी.
मनीष सिसोदिया ने लुक आउट नोटिस जारी करने को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जम कर हमला बोला. फिर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और आम आजमी पार्टी की तरफ से सीबीआई के बाद ईडी के संभावित एक्शन का आरोप लगाया गया, लेकिन पता चला कि न तो लुकआउट नोटिस जारी हुआ है, न ही ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का कोई केस दर्ज किया है.
सीबीआई के छापे मारने के बाद से हफ्ता भर से ज्यादा समय गुजर चुका है और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के भारतीय जनता पार्टी से रोजाना दो दो हाथ करते देखा जा रहा है. बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस भी AAP की दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है.
देखा गया कि सीबीआई की छापेमारी के बीच बीजेपी की दिल्ली ब्रिगेड ने भी मोर्चा संभाल लिया था. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ साथ दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा और मनोज तिवारी में तो अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार को महाभ्रष्ट साबित करने की तो जैसे होड़ ही मची रही.
बीजेपी के हमलों को काउंटर करने के लिए मनीष सिसोदिया ने अपनी पार्टी तोड़ देने पर बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री बनाने के ऑफर का दावा कर दिया. मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा कि 40 विधायकों को 20 करोड़ कैश के ऑफर का दावा किया जाने लगा. ऐसे ही ऑफर में आप नेताओं ने दावा किया कि अगर कोई विधायक किसी को रेफर करेगा तो उसे 25 करोड़ तक मिल सकते हैं.
कुछ देर के लिए कई विधायकों के संपर्क में न होने को लेकर जबरदस्त माहौल भी बनाया गया, लेकिन बाद में सारे विधायक साथ आ गये और खुशी जताते हुए अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि बीजेपी की कोशिशों के बावजूद उनके विधायकों को खरीदा नहीं जा सका.
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते तो अरविंद केजरीवाल 10 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भ्रष्टाचार का मुद्दा कभी उनके भी गले पड़ जाएगा - न तो किसी को शक है और न ही अब तक किसी ने अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार का आरोप ही लगाया है. कपिल मिश्रा के 2 करोड़ के रिश्वत वाले दावे का तो तब उनको संरक्षण दे रहे कुमार विश्वास ने ही खारिज कर दिया था. यहां तक कि दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिये जाने के बावजूद योगेंद्र यादव ने भी कह दिया था कि कुछ भी हो जाये, ऐसा वो कभी नहीं मान सकते.
वैसे भी राजनीति में आरोप प्रत्यारोप तो तब तक गंभीर नहीं माने जाते जब तक माफी मांगने की नौबत नहीं आ जाती. जब तक माफीनामा कोर्ट में जमा नहीं हो जाता - और माफीनामे को कोर्ट की मंजूरी नहीं मिल जाती.
भला अरविंद केजरीवाल से बेहतर इसे कौन जानता होगा. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जिन्होंने कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये. मामला कोर्ट में पहुंचने पर कुछ दिन तक मानहानि का मुकदमा भी लड़े - और जब पूरी तरह घिर गये तो माफी मांग कर छुटकारा पा लिये.
मानहानि के मुकदमों से तो छुटकारा मिल गया, लेकिन लगता नहीं कि वादाखिलाफी के लिए सीबीआई की आत्मा अरविंद केजरीवाल को बख्शने वाली है. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जिन्होंने जन लोकपाल लाकर सीबीआई को स्वायत्तता दिलाने की बात की थी - और अब किसी भटकती हुई आत्मा की तरह सीबीआई अरविंद केजरीवाल का पीछा ही नहीं छोड़ रही है.
सीबीआई को स्वायत्तता कभी मिल पाएगी?
2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये गये आंदोलन के मुख्य कर्ताधर्ता अरविंद केजरीवाल ही थी. तब अरविंद केजरीवाल को टीम अन्ना का प्रमुख सदस्य कह कर बुलाया जाता रहा.
ये तब की बात है जब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार थी - और बीजेपी विपक्ष में हुआ करती थी. अन्ना के आंदोलन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सपोर्ट होने के भी आरोप लगे थे और बीजेपी की बी टीम तक कहा जाता रहा. शायद इसलिए भी क्योंकि अन्ना आंदोलन की डिमांड को संसद में भी बीजेपी का समर्थन मिलता रहा.
भारत को नंबर 1 बनाने के लिए 130 करोड़ लोगों से जुड़ने जा रहे अरविंद केजरीवाल आखिर ये वादा क्यों नहीं कर पा रहे हैं कि मिशन की कामयाबी के लिए वो लोकपाल लाएंगे और सीबीआई को स्वायत्तता भी दिलाएंगे?
लोक सभा में तब की विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अन्ना हजारे की तरफ से उठाये जा रहे मुद्दों का समर्थन किया था. अन्ना हजारे देश में कानून बनाकर लोकपाल की नियुक्ति की मांग कर रहे थे. बाद में सरकार के लोकपाल के ड्राफ्ट को टीम अन्ना ने जोकपाल करार दिया था - और अपने हिसाब से जन लोकपाल का ड्राफ्ट तैयार किया.
बाकी बातों के अलावा अरविंद केजरीवाल तब सीबीआई को स्वायत्त संस्था बनाने की मांग कर रहे थे - और प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाने की मांग कर रहे थे. कालांतर में लोकपाल को औपचारिक रूप दिया भी गया और सुप्रीम कोर्ट के दबाव में नियुक्ति भी हुई, लेकिन सीबीआई को लेकर हुई बातें जहां की तहां रह गयीं.
तब अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी एक ही मंच पर अन्ना हजारे के साथ देखे जा सकते थे. किरण बेदी ने तभी कहा था, हम करप्शन से आजाद देश चाहते हैं... इसके लिए आजाद सीबीआई चाहिये.
और अरविंद केजरीवाल ने भी पूरे देश के सामने वादा किया था, 'हम आखिरी दम तक एक सशक्त लोकपाल को लेकर प्रतिबद्ध हैं.'
रामलीला आंदोलन के बाद जब राजनीतिक दल बनाने की बात हुई तो सबके रास्ते अलग हो गये. अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बना ली और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गये. अन्ना हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धि चले गये - और दिल्ली में बीजेपी के चुनाव हार जाने के बाद किरण बेदी को पुड्डुचेरी का उपराज्यपाल बनाया गया था, लेकिन वहां से भी कार्यकाल खत्म होने के पहले ही बुला लिया गया.
सब अपने अपने काम में उलझ गये. अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बाद देश की राजनीति में हाथ पांव मारने लगे - और सीबीआई स्वायत्त होने के इंतजार में अब तक बैठी हुई है.
केजरीवाल के वादे जो कागजी रह गये!
ये देखने को मिला है कि अरविंद केजरीवाल पूरे देश में शिक्षा, इलाज के साथ साथ बिजली-पानी मुफ्त देने के बढ़ चढ़ कर वादे करते जा रहे हैं, लेकिन अब उनके मुंह से कभी सीबीआई को स्वायत्ता दिलाने जैसी बातें सुनने को नहीं मिलतीं.
तो क्या अब सीबीआई को ये मान लेना चाहिये कि अरविंद केजरीवाल पूरी तरह बदल गये हैं? पूरी तरह अपनी राह से भटक गये हैं?
तकनीकी तौर पर ऐसा कहना मुश्किल है. हां, जैसे वो पहले राजनीतिक विरोधियों पर कोई न कोई आरोप लगाते रहे, सीबीआई भी लगा सकती है - लेकिन ये भी ध्यान रहे, आखिरकार उसे भी अरविंद केजरीवाल से उनकी ही तरह माफी भी मांगनी पड़ेगी. क्योंकि अभी तक अरविंद केजरीवाल ने कागजों से अपने आंदोलन को दूर नहीं किया है.
4 फरवरी, 2020 को जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी का मैनिफेस्टो जारी किया तो सबसे ऊपर दिल्ली जनलोकपाल बिल का ही मुद्दा रखा हुआ था - और दूसरे नंबर पर दिल्ली स्वराज बिल.
2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में भी अरविंद केजरीवाल ने यही जताने की कोशिश की कि ये दोनों ही उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. 2015 में अपने मैनिफेस्टो को लेकर अरविंद केजरीवाल का कहना था, ये कोई मामूली चुनावी दस्तावेज नहीं है... बल्कि आम आदमी पार्टी की गीता, बाइबिल, कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब है... दिल्ली में आप की सरकार बनते ही इन सभी घोषणाओं पर काम किया जाएगा... मूल रूप में ही लागू करेंगे.
28 pointer #AAPManifesto pic.twitter.com/FyGt6ckoRB
— Aam Aadmi Party Delhi (@AAPDelhi) February 4, 2020
जनता भी छप्पर फाड़ कर देती है
पहले तो अरविंद केजरीवाल लोकपाल की मांग को लेकर केंद्र सरकार पर ठीकरा फोड़ दिया करते थे, लेकिन अब तो ऐसा लगता है जैसे चुप्पी ही साध ली हो - क्या कभी आपने हाल फिलहाल अरविंद केजरीवाल या मनीष सिसोदिया के मुंह से लोकपाल या सीबीआई की स्वायत्तता जैसी बातें सुनी है?
जैसा कि मनीष सिसोदिया खुद को कट्टर इमानदार बता रहे हैं और अरविंद केजरीवाल को भी पक्का यकीन है, लेकिन अगर सीबीआई स्वायत्त संस्था के रूप में काम कर रही होती तो तस्वीर कितनी अलग होती. अव्वल तो सीबीआई छापा ही नहीं मारती.
अगर सीबीआई छापे मारती तो भी मनीष सिसोदिया को अपनी गिरफ्तारी की आशंका नहीं होती क्योंकि सीबीआई तो बगैर किसी दबाव के काम कर रही होती - और जैसी की टीम अन्ना की पुरानी डिमांड रही, लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री भी होते. फिर तो सब कुछ दूध का दूध और पानी का पानी ही होता. कोई किंतु परंतु नहीं होता.
ऐसे में अरविंद केजरीवाल को मुफ्त की सलाह यही है कि अपने मूल एजेंडे को वो महज कागजी दस्तावेजों तक सीमित न रखें, बल्कि व्यवहार में भी लायें. कहने को तो वो दावा करते ही हैं कि दिल्ली की तरह ही पंजाब में भी भ्रष्टाचार खत्म कर चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल से लोगों की बड़ी उम्मीदें थीं. बड़े दिनों बाद लोगों को लगा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई योद्धा उनकी आंखों के सामने आ गया है, लेकिन ये तो वो भी जानते हैं कि लोगों की आंखों से ओझल होते देर भी नहीं लगती.
बिजली-पानी और शिक्षा-इलाज की तरह अरविंद केजरीवाल अगर फिर से लोकपाल और सीबीआई को स्वायत्तता जैसे मुद्दे के साथ आयें तो लोग फिर से मौका दे सकते हैं, क्योंकि दूसरों पर भ्रष्टाचार के इल्जाम लगाकर उनके माफी मांग लेने से भी खासी निराशा हुई थी. ये तो वो भी जानते हैं कि राजनीतिक विरोधी ही नहीं जनता भी मांगने पर माफी दे देती है. और माफी ही नहीं जब देने पर आती है तो छप्पर फाड़ कर देती है - 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटों का तोहफा आखिर क्या था?
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