आसान नहीं था एंटोनीयो माइनो का सोनिया गांधी बनना...
कट्टरपंथी यूं ही सोनिया गांधी से नही चिढ़ते हैं, उनके चिढ़ने के कारण हैं. इस महिला ने प्रधानमंत्री भी उसे बनाया जिसके धर्म के लोगों को दो दशक पहले कठघरे में रखकर उत्पात मचाया गया था.
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यूं ही नफरत नही करते हैं, डलहौजीवादी, दक्षिणपंथी, छोटी सोच वाले, इस महिला से, 14 मार्च 1998 कैसे भूलेंगे यह लोग. जब दीमक लगी कुर्सी पर उसने बैठने का फैसला किया, कांटो के मुकुट को सिर पर रखा और पीठ पर वार सहने को चेहरे पर मुस्कान धरी. उस कुर्सी पर जिस कुर्सी की ताकत लोगों को लगता था कि खत्म हो गई है, कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) की कुर्सी. उस कुर्सी पर जिस कुर्सी से दुनिया की सबसे बड़ी सल्तनत निपट गई थी मगर वह कमज़ोर होने लगी, लोगों को लगता था, बेचारी कमज़ोर औरत क्या ही करेगी. साल दो साल में थककर हारकर निपट जाएगी. यह महिला इन्हें ख्वाबों में डराती है, क्योंकि इन्हें पता है कि इस देश में अगर खुलकर मनमानी का राज करना है, तो इस परिवार की उस आख़री महिला को बच्चों समेत राजनैतिक रूप से मिटा दो, जो लौह महिला के स्पर्श और सानिध्य में ढली है. आज वह बूढ़ी लगती हैं मगर सोचो उस दौर के सबसे उच्चकोटि के वक़्ता, कवि, ब्राह्मण कुल के युग पुरुष और मातृभाषा हिन्दी के महारथी को अपनी टूटी फूटी हिन्दी से इस महिला ने मात दी. 98 में जब कुर्सी पर बैठीं, तो किसने सोचा था कि हम सत्ता में लौटेंगे मगर वह औरत कुछ सालों में ही नागफनी के जंगल से सत्ता खींचकर उस आंगन तक ले आई, जिसमे लेटे लोग अपनी विरासत के जा चुकने का ग़म मना रहे थे.
तमाम चुनौतियां थीं जिनका सामना एक राजनेता के रूप में सोनिया गांधी को करना पड़ा
पूरा देश एक सुर में उस महिला को देश के शीर्ष पद पर देखना चाह रहा था, मगर उसने नकार दिया. 'कुर्सी' जिसके लिए कौन से प्रपंच हमारी भूमि पर नही किये गए, उसे नकार दिया. जिन्हें लगता है यह चाल थी, वह मूर्ख लोग हैं. जाएं और किसी से भी पूछें कि तुम प्रधानमंत्री बनना पसन्द करोगे या बैकडोर से राज करोगे. उत्तर पा जाओगे, मूर्ख भी नही मिलेगा जो नकार दे, प्रधान, सरपंच तक तो यह फार्मूला काम करता है मगर प्रधानमंत्री जैसा पद अच्छे अच्छे फिसल कर गिरेंगे. हमने तो इस पद की लालच में बूढ़ों को दुत्कार कर किनारे होते देखा है, हाथ जोड़े बेबस खड़े देखा है, इसलिए जानते हैं कुर्सी से मुंह मोड़ना दुनिया का सबसे बड़े त्याग में से एक है.
कट्टरपंथी यूं ही इस महिला से नही चिढ़ते हैं, उनके चिढ़ने के कारण हैं. इस महिला ने प्रधानमंत्री भी उसे बनाया जिसके धर्म के लोगों को दो दशक पहले कठघरे में रखकर उत्पात मचाया गया था. सोचिए बीस साल में, सिर्फ बीस साल में देश का वह प्रधानमंत्री बन गया, जिसे बीस साल पहले उसके धर्म की वजह से मार डाला जाता. एक धर्म जो दहशत में था, उसका प्रधानमंत्री, यह सोच पाना ही कुछ लोगों की छोटी सोच से मुमकिन नही.
यह महिला काल बनकर आई दक्षिणपंथियों कट्टरपंथियों के लिए और उनके सबसे बड़े संगठनकर्ता कथित लौह पुरुष में ज़ंग लगाकर निकल गई. दस साल उस कांग्रेस को प्रधानमंत्री दे गई, जो 98 में मरने के कगार पर थी. हां वह बीमार पड़ी, खूब बीमार पड़ी और पकड़ ढीली हुई. जैसे ही पकड़ ढीली हुई, विरोधियों को सांस मिल गई. उसने घर से बाहर निकले पांव समेटे और इधर एक चेहरा उभरा. वह महिला दर्द में उलझी की उसपर बेतरतीब वार हुए. सब एक साथ मिलकर उसपर टूट पड़े, उसके वंश पर टूट पड़े. अच्छे बुरे सब एक साथ मिलकर उसे घेरने लगे, तरह तरह वेषधर उसको मिटाने निकले, वह डंटकर मुकाबला करती, मगर हार गई, अपनो से ही हार गई.
जब उसपर हमले शुरू हुए, तो अपने उसके ही पीछे दुबक गए. कोई नही आया सीना खोलकर की मुझ पर वार करो, मैं मरने को तैयार हूं. उसने खुद को समेटा, नए खून को आगे किया. वह जान गई कि उसका वक़्त पूरा हुआ, अब वह लड़ें जिन्हें इस विचार को आगे बढ़ाना है. इन्हें जैसी भी हो, बची खुची गांधी की विरासत को ताक़त देना है, वह सम्भालें. हट गई, जैसे तमाम बार हट जाती थीं. बिना कोई ज़ोर लगाए हट गईं और उसकी पार्टी फिर वहीं पहुंच गई, जहां से चली थी, निराशा के अथाह समन्दर में डूब गई.
जब सब बिखरने लगा, तो फिर उसने ज़िद छोड़ी. उसको याद आया कि उसकी आखरी सांस तक लौह महिला से किया वायदा निभाना है. महात्मा के विचारों के दल को दलदल से निकालना है. जो औरत प्रधानमंत्री का पद त्याग चुकी थी, वह सबसे कमज़ोर वक़्त में अपनी जिद छोड़ वापिस कमान संभालने निकल पड़ी, साथ मे ही निकल पड़ी ऊर्जा और एक के बाद एक कदम सूरज के नज़दीक़ बढ़ने लगा.
पूरा गिरोह इस औरत से डरता है, क्योंकि उन्हें उसमें, अपने पूर्वजों के, दुश्मन पूर्वजों की पूरी खेप दिखाई पड़ती है. वह उसमें गांधी से राजीव तक की छाप देख, दहलते हैं. वह उसको नीचा दिखाना चाहते हैं, उसे बर्बाद कर डालना चाहते हैं मगर यह सच है, भारत की त्यागी बहू से भला कौन जीता है. एक बहू ने अपने बाल खोले थे, दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध हुआ और पूरा पथभृष्ट राजतंत्र नष्ट हो गया, जो सुई की नोक के बराबर भूमि नही देना चाहते थे, तहस नहस हो गए. बहू जब अन्याय के विरुद्ध कदम उठाती है, तो बड़े से बड़े महल दरक जाते हैं. आज ताक़त में खड़ी बांटने वाली ताकते इस बहू से ही डरते हैं, जिसे वह बहू स्वीकार नही कर पाते.
अंतिम सत्य जानलो, दुनिया मे बड़े से बड़े निज़ाम में चाभी बहू के हाथ सौंपी जाती है, बहू ने अगर उस चाभी की लाज समझ ली तो दुनिया की कोई ताक़त उससे ज़बरन ताला खुलवा नही सकती, क्योंकि नई नस्ल को संस्कृति परम्पराओं के साथ आगे के लिए तैयार करना बहू की ज़िम्मेदारी होती है, उस बहू से ही तो यह सब डरते हैं.
जब से वह उस कुर्सी पर लौटी है, तमाम कुर्सियां डगमगाने लगी है. विद्रोह के स्वर उठने लगे हैं. डरे हुए विपक्षी भयभीत होकर उसके सिपाहियों को छीन रहें हैं क्योंकि उन्हें वह दिख रहा है, जो उनके पूर्वजों को दिखा करता था. वह जानते हैं, जब तक यह महिला है, तब तक उनको रोज़ नई तरकीब आज़मानी होगी. वह एक त्यागी बहु है, जिसकी काट पीले पन्नो में नही है. यह यक़ीन करो, वह फिर नागफनी के जंगल में नंगे पांव निकल पड़ी है.
लौटेगी तो फिर दरककर गिरेंगे कथित शूरवीर. असली चाणक्य ने भी बहू की महिमा, साहस और आवश्यकता समझी थी, नकली चाणक्य तो बहू के पांव में काटें बो रहें, कीचड़ उछाल रहें, सब लौटेगा,सूद समेत लौटेगा. डरो, डरकर उसपर वार करो, जितना तेज़ उछलोगे उतना नीचे जाओगे. हर एक जिसने उसके साय से परहेज़ किया, सबको उसकी चौखट छूनी पड़ी है.1998 से 2019 तक देख डालो, उस महिला का लोहा मान लोगे. देखो उसकी हर चाल हैरत है, जिनके पुरखे उसपर हमले करते थे, उनके बच्चे उससे ढाल मांग रहे हैं.
सिर पर आंचल धरे पूरी उम्र काट दी हमारे देश की चौखट पर. अब फिर सक्रिय हुईं की सत्ता में खलबली मच गई. जब जब देश के संविधान की मूल आत्मा की बात होगी, तब यह महिला उसके सबसे नज़दीक़, सबसे अधिक मजबूती से खड़ी दिखाई देंगी क्योंकि वह हमारा भरोसा हैं. सोनिया गांधी पर जितने चाहे सवाल दाग दो मगर उनकी मेहनत, रणनीति और सौम्यता से विपक्ष को घुटने के बल बैठाना लम्बे वक़्त तक याद किया जाएगा.
सबसे लंबे वक्त तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठकर, सबसे कमजोर वक़्त में भी दसयों साल सत्ता दिलवा पाना आसान नही है. सोनिया गांधी के बेहतर चीज़ है, सही वक्त पर सही निर्णय. देश के इतिहास में सोनिया गांधी की राजनीति बहुत ऊंचा स्थान रखेगी, क्योंकि बिना नीचे गिरे, बिना बदला लिए, बिना गन्दी बात बोले भी राजनीति में शिखर छुआ जा सकता है. एक आखरी बात की जिन मां बेटे से इतनी तक़लीफ़ है, जिनको यह बांटने वाले डलहौजीवादी कमज़ोर और बेकार समझते हैं, वह जानते हैं कि उनके लिए काल है यह मां, क्योंकि उनको पता है नफरत, हिंसा, झूठ, अत्याचार, लालच का विकल्प प्रेम, अहिंसा, संवेदना और त्याग,जो इस वक़्त सोनिया के दामन में टंके हैं.
सोनिया बहुत कर चुकी हैं, फिर भी अभी उन्हें सड़क पर खड़े, लोकतंत्र के लिए लड़ते देख ऊर्जा आती है कि जब तक ऐसे लीडर हैं, हमे निराश नही होना चाहिए.
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