मौर्या की चुनौती - माया-मुलायम को काउंटर और नीतीश को न्यूट्रलाइज करना
बीजेपी की मजबूरी ये है कि मायावती और मुलायम के राजनीतिक कद के आगे टिक सके ऐसा कोई चेहरा नहीं है. मौर्या को लाकर बीजेपी की कोशिश है कि जितना भी हो सके माया और मुलायम को कमजोर किया जा सके.
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केशव मौर्या का कुल जमा 16 साल का अनुभव है - 12 साल वीएचपी में, फिर 4 साल बीजेपी में. वीएचपी बैकग्राउंड होने के कारण उनसे सबसे पहले मंदिर को लेकर ही सवाल पूछे जा रहे हैं. मगर, मौर्या कह रहे हैं कि राम मंदिर बीजेपी के लिए कभी मुद्दा नहीं रहा - और 2014 के बाद तो इसका सवाल ही पैदा नहीं होता.
टारगेट नंबर 1 - मायावती
यूपी के चुनावी प्लेटफॉर्म पर बार बार एक ही एनाउंसमेंट हो रहा है - मायावती एक्सप्रेस के आने का संकेत हो चुका है. बाकी किसी को ये स्वर भले ही धीमा लगे बीजेपी के मोबाइल पर पूरी तरह साफ, स्पष्ट और तेज है.
"आशीर्वाद दें, आप जैसी कामयाबी हासिल कर पाऊं..." |
जिस तरह मायावती को लगता है कि दलित वोट तो उनका ही है, उसी तरह बीजेपी भी ब्राह्मण और बनिया सहित सवर्ण वोटों के प्रति आश्वस्त रहती है.
बीजेपी की मजबूरी ये है कि मायावती और मुलायम के राजनीतिक कद के आगे टिक सके ऐसा कोई चेहरा नहीं है. मौर्या को लाकर बीजेपी की कोशिश है कि जितना भी हो सके माया और मुलायम को कमजोर किया जा सके.
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मायावती की पार्टी बीएसपी को कोइरी समुदाय का खासा सपोर्ट हासिल है - यही वजह है कि बीएसपी के सफर में स्वामी प्रसाद मौर्य और बाबू सिंह कुशवाहा रथ के पहियों की तरह रहे हैं.
टारगेट नंबर 2 - मुलायम और नीतीश
कोइरी तबके को रिझाने के मकसद से ही बीजेपी ने 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले कुशवाहा को पार्टी में शामिल किया था - लेकिन एनआरएचएम घोटाले में बुरी तरह घिरे कुशवाहा से उसे जैसे तैसे पीछा छुड़ाना पड़ा.
"आशीर्वाद दें, आप जैसी कामयाबी पा सकूं..." |
ये कोइरी मतदाता ही रहे जिनके चलते मुलायम की पार्टी ने भी कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या को गाजीपुर लोक सभा सीट से मैदान में उतारा - लेकिन बाद में दोनों के बीच दूरिया खड़ी हो गईं. फिलहाल कुशवाहा जमानत पर रिहा हो चुके हैं.
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बिहार चुनाव के बाद यूपी में नीतीश की भी सक्रियता देखी जा रही है - जो कोइरी और कुर्मी वोटों के भरोसे जमीन तैयार करने की कोशिश में हैं. इस तरह मौर्या को लाकर बीजेपी ने नीतीश को भी झटका देने की कोशिश की है.
ऑल इन वन पैकेज
कभी वीएचपी नेता अशोक सिंघल के बेहद करीबी रहे मौर्या का राम मंदिर पर बयान तो यही जता रहा है कि बीजेपी बदल रही है है. क्या सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण के आरोप बीजेपी के लिए भारी पड़ रहे हैं - या राम मंदिर और घर वापसी जैसे मामले नये जमाने में फिट नहीं हो पा रहे हैं. वैसे भी अब तो सारी लड़ाई 'भारत माता की जय' बोलने को लेकर है.
"आशीर्वाद दें, मिशन - 265 में कामयाबी होऊं..." |
साध्वियों और साक्षी की बातें बेअसर होने और बाकी नेताओं के ऊलजलूल बयानों से मुसीबत खड़ी होने की वजह से बीजेपी को शायद मौर्या की ही जरूरत रही होगी. मौर्या के साथ एक खास बात ये भी है कि वीएचपी बैकग्राउंड होने के नाते वो आजम खां और असदुद्दीन ओवैसी को बातों बातों में ही हैंडल कर लेंगे.
ओबीसी तबके से आने के नाते वो सत्ता में आने को बेताब मायावती और मुलायम सिंह यादव के लिए भी मोस्ट सुटेबल वेपन हैं. अंबेडकर फॉर्मूले में वो पूरी तरह फिट बैठते हैं - और सबसे खास बात जिसका बीजेपी के प्रेस नोट में विशेष उल्लेख था - वो भी बचपन में चाय बेचते थे.
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