Chattisgarh में शराबबंदी का चुनावी वादा भूल बैठी है कांग्रेस
साल 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जो वादा कांग्रेस ( Congress) ने शराब बंदी (Liquor ban) को लेकर किया वो किया वो उसे भूल गयी और आज छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में शराब को सरकारी संरक्षण प्राप्त है जिस कारण कांग्रेस की तीखी आलोचना हो रही है.
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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने कहा था कि अगर मैं एक दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बगैर मुआवजा दिए शराब (Liquor) की दुकानों और कारखानों को बंद करा दूंगा. शराब से व्यक्ति,परिवार और समाज को होने वाले नुकसान को गांधीजी ने बखूबी समझा था और इसीलिए शराब के हमेशा खिलाफ रहे. गांधीजी की सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए ही संविधान में भी शराबबंदी (Liquor Ban) का जिक्र राज्य के नीति निदेशक तत्व वाले हिस्से में किया गया. हालांकि ये भी सच है कि बहुत कम राज्यों ने शराबबंदी को कानून के तहत लागू करने की जिम्मेदारी उठाई. कुछ राज्यों में इसकी चर्चा तो होती रही लेकिन सियासी इच्छा शक्ति का अभाव रहा और कुछ राज्यों में वादा करके उसे भुला दिया गया. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भी ऐसा ही हुआ. साल 2018 के विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Elelction) में 69 सीटें जीतने से पहले कांग्रेस (Congress) ने कई चुनावी वादे किए थे. राज्य में पूर्ण शराबबंदी उनमें से एक था. राज्य में कांग्रेस की सरकार बने अरसा हो गया लेकिन लगता है कि शराबबंदी का वादा हाशिए पर जा चुका है. कांग्रेस ने इस मामले जिस तरह पलटी मारी है, उससे लोगों में भी हैरानी है और अब विपक्ष भी हमलावर है. इस मामले में पूरी तरह यू-टर्न ले लिया है.
ये अपने में दुर्भाग्यपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ में शराब को सरकारी संरक्षण दिया जा रहा है
असल में पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान ही शराबबंदी के मुद्दे ने ज्यादा जोर पकड़ा था. हवा भी इसे कांग्रेस ने ही दी थी. कांग्रेस के घोषणा पत्र में जिसे खुद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जारी किया था, पार्टी ने राज्य में सरकार बनने के बाद पूरी तरह शराबबंदी का ऐलान किया था. हालांकि आदिवासी इलाकों जैसे कि बस्तर और सरगुजा में स्थानीय ग्रामीण परिषद को इस मामले में फैसला लेने का अधिकार देने की बात भी कही गई थी. लेकिन मोटे तौर पर पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था.
चुनाव से पहले करीब सभी रैलियों में कांग्रेस के नेता शराब पर पूरी रोक लगाने का वादा करने से नहीं थकते थे. कहने की जरूरत नहीं कि ये मुद्दा छत्तीसगढ़ के लोगों के दिल के करीब था और इस मामले में कांग्रेस को समर्थन भी भरपूर मिला. शराबबंदी को मुद्दा बनाने में मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी बड़ा योगदान रहा. दिलचस्प बात है कि तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मौजूदा सीएम ने तो इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी घेरा था.
भूपेश बघेल ने आरोप लगाया था कि आरएसएस तब की रमण सिंह सरकार को शराबबंदी लागू करने के लिए तैयार नहीं कर पाया. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में शराबबंदी की मांग नई नहीं थी, और उस दौरान भूपेश बघेल सभी मंचों से शराबबंदी की मांग का पूरजोर समर्थन कर रहे थे. चुनाव के बाद नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए. भूपेश बघेल की सरकार बनी. साथ ही इस बात की उम्मीद जगी कि राज्य में शराबबंदी लागू हो जाएगी.
लेकिन सत्ता में आते ही कांग्रेस का नजरिया बदल गया. शराबबंदी की चर्चा तक बंद हो गई. सरकार के मुखिया या मंत्री इस मामले में खामोश हो गए. बेशक विपक्ष के कुछ नेता जब-तब कांग्रेस नेताओं को उस नाटकीय शपथ ग्रहण की जरूर याद दिलाते रहे, जिसमें हाथ में गंगाजल लेकर राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की कसम खाई गई थी. लेकिन कांग्रेस या सरकार ने विपक्ष के ऐसे तंज पर ध्यान भी नहीं दिया.
शराब को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी तीखी आलोचना का सामना कर रहे हैं
कभी कभी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जरूर कहा कि वो शराबबंदी पर विचार कर रहे हैं लेकिन विचार करते करते डेढ साल से ज्यादा समय बीत चुका है. इससे धीरे-धीरे जाहिर हो गया कि सरकार का फोकस शराबबंदी पर नहीं है बल्कि उसकी नजर शराब से होने वाली कमाई पर है. यहां शराब से मिलने वाले राजस्व का गणित भी समझना जरूरी है.
पीआरएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जो दिसंबर 2019 में ‘राज्य की वित्तीय अवस्था 2019-20’ के नाम से प्रकाशित हुई, छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने कुल राजस्व का 22 फीसदी एक्साइज ड्यूटी के तौर पर हासिल किया. यानी कुल कमाई का करीब एक चौथाई हिस्सा जबकि गुजरात और बिहार जैसे राज्यों में जहां पूर्ण शराबबंदी है, एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाला राजस्व करीब शून्य है.
समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में शराब की ब्रिकी फिलहाल सरकार के लिए मायने रखती है. शराब से मिलने वाले राजस्व पर छत्तीसगढ़ की निर्भरता इस बात से समझी जा सकती है कि जब अप्रैल में कोरोना वायरस की वजह से देश भर में लॉकडाउन लगा था, मुख्यमंत्री ने रजिस्ट्री, ट्रांसपोर्ट और माइन्स का काम रुकने के साथ-साथ शराब की ब्रिकी बंद होने पर भी चिंता जताई थी. सीएम बघेल ने कहा था कि राज्य के पास राजस्व नहीं है और अगर चीजें इसी तरह चलती रहीं तो सरकार कर्मचारियों को वेतन देने की हालत में नहीं होगी.
यानी मुख्यमंत्री ने खुलेआम माना कि राज्य की कमाई का बड़ा जरिया शराब की ब्रिकी है. सच्चाई जल्द ही सामने भी आ गई. छत्तीसगढ से ही आई जानकारी के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान, दो महीने बाद जब शराब की ब्रिकी पर से रोक हटाई गई तो, राज्य में शराब की खपत बढ़ गई. रायपुर ने तो जैसे शराब ब्रिकी का रिकॉर्ड ही बना दिया. इस दौरान सरकार ने भी खूब मेहनत की.
राजस्व को बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने घरों तक सीधे शराब पहुंचाने के लिए ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च कर दिया. ये सारी तस्वीरें चुनाव के दौरान किए गए वादों के ठीक उलट थीं. दिलचस्प बात ये है कि राज्य सरकार ने शराब पर स्पेशल कोरोना चार्ज भी लगा दिया, जिसके तहत स्थानीय शराब की हर बोतल पर 10 रुपए बढ़ा दिए गए और हर तरह की विदेशी शराब के रिटेल रेट में 10 फीसदी का इजाफा कर दिया गया.
मजेदार बात ये है कि जब पूरा देश में लॉक डाउन को चरणों में अनलॉक की प्रक्रिया चल रही है, तब भी छत्तीसगढ़ में शराब की होम डिलीवरी जारी है. इसके रजिस्ट्रेशन के लिए सिर्फ आधार और फोन नंबर की जरूरत है और शराब घर तक पहुंच जाती है. यानी कोरोना संकट ने बघेल सरकार को शराब से ज्यादा कमाई करने का एक और मौका मुहैया करा दिया है. लेकिन शराब से हो रही कमाई के आगे कुछ जरूरी चीजों को नजरअंदाज किया जा रहा है.
स्थानीय अखबारों में बार-बार ये मुद्दा उठाया जा रहा है कि शराब ब्रिकी के लिए सख्त नियम-कायदे नहीं हैं. इसके अलावा कई जगहों पर अवैध शराब बेचे जाने का भी शिकायत सामने आई है. यानी राज्य में शराब माफिया के मजबूत होने के पूरे संकेत हैं. लेकिन असली चिन्ता की वजह और है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों में भी शराब की लत लगने की खबर आने लगी.
जब ये खबरें आईं तो शराब एक बार फिर मुद्दा बन गया. इसीलिए राज्य में पूर्ण शराबबंदी की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है. सवाल ये है कि कांग्रेस सरकार इसे गंभीरता से लेती है या नहीं? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहचान एक जुझारू और मेहनती नेता की है. लेकिन ये बात समझ में नहीं आती कि शराबबंदी पर उनके तेवर शांत क्यों हैं. बीजेपी और केन्द्र सरकार के वादों को जुमला बताकर कांग्रेस चुटकी लेती रही है.
ब्लैकमनी हो या रोजगार, कांग्रेस मोदी सरकार पर अपने वादों से मुकर जाने का आरोप लगाती है. लेकिन कांग्रेस के मामले में 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' वाली कहावत लागू होती है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने ठोक-बजाकर शराबबंदी का वादा किया था. तो सवाल यह है कि छत्सीगढ़ की कांग्रेस सरकार पर वादाफरामोशी का आरोप क्यों नहीं लगना चाहिए? कांग्रेस ने तो शराबबंदी को न सिर्फ चुनावी प्रचार में मुद्दा बनाया था बल्कि घोषणा पत्र में जिक्र करके प्रतिबद्धता जताई थी.
जाहिर है दूसरे वादों की तरह कांग्रेस ने सरकार में आते ही शराबबंदी का वादा भूला दिया. मुमकिन है कांग्रेस के लिए राजस्व के आगे सियासी नैतिकता अहमियत नहीं रखती हो. जबकि राज्य में कई जगह महिलाएं शराब ब्रिकी के खिलाफ धरने पर उतरने लगी हैं, अपने बच्चों के जान की फिक्र मां-बाप को सताने लगी है और अखबार सरकार को उसकी जिम्मेदारी याद दिला रहे हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री बघेल कान बंद किए बैठे हैं.
अगर राज्य सरकार को लगता है कि वह आर्थिक मजबूरियों के चलते अपना वादा पूरा नहीं कर सकती, तो क्या बेहतर नहीं होता कि मुख्यमंत्री जनता को सच्चाई बताकर माफी मांग लेते. आखिर वो जिस पार्टी की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, वो पार्टी महात्मा गांधी के साए में पली बढ़ी है. वैसे भी उनके सामने बिहार जैसे राज्य का भी उदाहरण है, जहां राजस्व का नुकसान उठाते हुए भी नीतीश सरकार शराबबंदी के अपने फैसले पर कायम है.
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