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Updated: 14 अक्टूबर, 2020 12:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार चुनाव की सरगर्मी के बीच सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे थे कि आखिर PK यानी प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) हैं कहां? सबको मालूम है कि प्रशांत किशोर 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए ममता बनर्जी की चुनावी मुहिम संभाल रहे हैं. बिहार चुनाव से ठीक पहले प्रशांत किशोर की AAP नेता अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली की चुनावी मुहिम कामयाब रही है. तभी तो संजय सिंह यहां तक कहने लगे थे कि अगर प्रशांत किशोर को मंजूर हो तो आम आदमी पार्टी में स्वागत है.

प्रशांत किशोर को लेकर अब नयी थ्योरी आ रही है कि नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान की चुनावी बिसात के ग्रैंड मास्टर वही हैं. जोड़ने के लिए कई कड़ियां भी पेश की जा चुकी हैं. हालांकि, प्रशांत किशोर ने ऐसी बातों को बकवास बताया है.

सवाल ये है कि प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार (Nitish Kumars) बनाम चिराग पासवान (Chirag Paswan) चुनावी चक्की में पीसने की कोशिश क्यों हो रही है - अगर इस थ्योरी के पीछे भी बीजेपी नेताओं का दिमाग है तो क्या नीतीश कुमार के गले के नीचे ये सब आसानी से उतर जाएगा? मुद्दे की बात ये है कि अगर नीतीश कुमार को नहीं लगता कि चिराग पासवान के पीछे PK हैं तो मान लेना चाहिये कि ये नयी थ्योरी भी बेजान है.

चिराग की मुहिम के पीछे PK का दिमाग!

जो सवाल चिराग पासवान के मामले में बीजेपी को लेकर नीतीश कुमार के मन में भी चल रहा है, अपने बचाव में प्रशांत किशोर भी वही दलील पेश कर रहे हैं.

एनडीटीवी से बातचीत में प्रशांत किशोर पूछते हैं, बिहार के कई बीजेपी नेताओं के चिराग पासवान से जुड़ने के बाद भी वो एनडीए में क्यों बने हुए हैं? प्रशांत किशोर का कहना है कि चिराग पासवान के साथ उनकी आखिरी मुलाकात नीतीश कुमार के घर में उनकी मौजूदगी में ही हुई थी. प्रशांत किशोर के मुताबिक, ये सब नीतीश कुमार को मूर्ख बनाने की बीजेपी की सोची समझी रणनीति है.

मजे की बात ये है कि प्रशांत किशोर और चिराग पासवान की नजदीकियों की कहानी गढ़ने के लिए भी उसी लोकेशन और टाइम का इस्तेमाल किया जा रहा है. कहानी गढ़ने के लिए भी सूत्रों को भी मोर्चे पर लगा दिया गया है जो खास रणनीति के तहत खबर के नाम पर ऐसी जानकारियां लीक कर रहे हैं जो बीजेपी के पक्ष को मजबूत करने में इस्तेमाल हो सकें - और ये सूत्र ही मीडिया रिपोर्ट में चिराग पासवान और प्रशांत किशोर की कहानी के सूत्रधार बने हुए हैं.

बताते हैं 12 नवंबर, 2018 को प्रशांत किशोर और चिराग पासवान की पटना के मुख्यमंत्री आवास में मुलाकात हुई थी. मुलाकात से ठीक एक दिन पहले चिराग पासवान और प्रशांत किशोर रामविलास पासवान के पटना वाले घर पर मिले थे - और, ऐसा दावा किया जा रहा है कि तभी से दोनों में लगातार संपर्क बना हुआ है. समझा जाना चाहिये कि प्रशांत किशोर जिसे चिराग पासवान के साथ अपनी आखिरी मुलाकात बता रहे हैं उसी को कहानी में बड़े ही करीने से पिरोया गया है.

nitish kumar, prashant kishor, chirag paswanनीतीश कुमार बनाम चिराग पासवान की जंग में PK थ्योरी के बाद क्या है?

हाल ही में बीजेपी के बागी नेताओं के साथ ही जेडीयू से टिकट कटने के बाद भगवान सिंह कुशवाहा ने भी चिराग पासवान का हाथ मजबूत करने का फैसला कर लिया. भगवान सिंह कुशवाहा को प्रशांत किशोर का करीबी बताया जा रहा है. एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि जेडीयू उपाध्यक्ष रहते प्रशांत किशोर ने भगवान सिंह कुशवाहा को उनके ढेर सारे समर्थकों के साथ पार्टी ज्वाइन करायी थी, जिसमें लोक सभा का टिकट दिलाने का वादा भी शामिल था. बताते हैं कि प्रशांत किशोर के कट्टर विरोधी आरसीपी सिंह उन पर भारी पड़े और 2019 में भगवान सिंह कुशवाहा बेटिकट रह गये - और रही सही उम्मीद विधानसभा चुनाव में खत्म हो गयी. भगवान सिंह कुशवाहा की तरह ही कुछ और भी गुमनाम कहानियां गढ़ी गयी हैं और उनकी मदद से

बशर्ते नीतीश कुमार भी इत्तेफाक रखते हों!

बीजेपी के प्रति नीतीश कुमार की धारणा बदलने की कोशिश की जा रही है - सवाल है कि चिराग पासवान के पीछे प्रशांत किशोर के दिमाग होने की दलीलें नीतीश कुमार के गले भी उतर रही होंगी क्या? अगर ऐसा नहीं हो पाता तो नयी नयी थ्योरी गढ़ने की ये सारी कवायद बेकार है.

ये तो साफ है कि नीतीश कुमार के लिए बिहार चुनाव अस्तित्व की लड़ाई का मैदान बना है, जबकि चिराग पासवान के लिए भविष्य की लड़ाई का - और इन दोनों की लड़ाई में बीजेपी के लिए मौका है बिहार की राजनीति में मजबूती के साथ पांव जमाने का.

अगर किसी को ऐसा लगता है कि बीजेपी के सामने चिराग पासवान ने खुद के इस्तेमाल होने की खुली छूट दे डाली है तो ये सही नहीं है. बेशक चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए खुद के इस्तेमाल होने का रास्ता चुना हो, लेकिन ऐसा वो खुद के फायदे के लिए कर रहे हैं. चिराग पासवान के पिता ने दिल्ली में तो बीजेपी के साथ उनकी राजनीति के लिए जगह पहले से पक्की कर रखी है, लेकिन बिहार से उनकी पार्टी का सफाया होने लगा था. 2000 के पहले चुनाव में 29 और दूसरे चुनाव में 10 के बाद किसी भी चुनाव में पासवान की पार्टी को दहाई तक पहुंचने का मौका नहीं मिल पाया है. फिलहाल, एलजेपी के दो विधायक हैं और वे भी दलित समुदाय से नहीं हैं जिस वोट बैंक पर चिराग पासवान का भविष्य टिका है.

चिराग पासवान के एनडीए छोड़ कर अकेले चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी पर दबाव बनाया तो उसका असर भी देखने को मिला है. सुना तो ये भी गया था कि नीतीश कुमार सीटों के बंटवारे के लिए प्रेस कांफ्रेंस में भी बैठने को राजी नहीं थे, लेकिन बीजेपी ने मना लिया. कैसे और क्यों माने होंगे ये प्रेस कांफ्रेंस में डिप्टी सीएम सुशील मोदी के बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है. सुशील मोदी ने कहा था कि जो एनडीए में नहीं है वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं कर सकता - और अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराएगी.

बाद में जब VIP वाले मुकेश साहनी बीजेपी ज्वाइन कर रहे थे तो प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दोहराया कि अगर बागी बीजेपी नेता पार्टी में नहीं लौटते तो एक्शन लिया जाएगा. संजय जायसवाल ने एक डेडलाइन भी बतायी थी - 12 अक्टूबर. ये नाम वापस लेने की आखिरी तारीख रही. संजय जायसवाल बीजेपी के उन बागी नेताओं को चेतावनी दे रहे थे जो एलजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर चुके हैं और एनडीए के ही जेडीयू कोटे के उम्मीदवारों को चैलेंज कर रहे हैं.

निश्चित तौर पर नीतीश कुमार भी अंदर का खेल समझ रहे हैं और उसके हिसाब से धीरे धीरे कदम भी आगे बढ़ाते जा रहे हैं क्योंकि असली लड़ाई तो चुनाव नतीजे आने के बाद होनी है. चुनाव नहीं चुनाव के बाद की लड़ाई जो जीतेगा वही सिंकदर होगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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