नागरिकता संशोधन बिल पर विदेशी मीडिया की प्रतिक्रिया विरोधाभासी है
कुछ समय पहले तक यही विदेशी मीडिया (Foreign Media Reaction) पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की खबरें छापता रहा है, लेकिन अब वही Citizenship Amendment Bill 2019 को बांटने वाला बिल बता रही है.
-
Total Shares
मोदी सरकार (Modi Government) की कोशिशों के चलते आखिरकार नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill 2019) लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो चुका है. इस बिल के तहत बांग्लादेश (Bangladesh), पाकिस्तान (Pakistan) और अफगानिस्तान (Afghanistan) के उन हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी, जिनका धर्म के आधार पर उनके देशों में उत्पीड़न हो रहा है. भारत में विपक्षी पार्टियां ये कहते हुए विरोध कर रही हैं कि इसमें मुस्लिमों (Muslim) को शामिल नहीं करना गलत है, जबकि भाजपा का तर्क है कि जिन देशों के अल्पसंख्यकों पर ये बिल लागू होगा, वह इस्लामिक देश हैं, ऐसे में वहां धर्म के आधार पर उत्पीड़न होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. अब बिल के लागू हो जाने के बाद से दुनिया भर की मीडिया इस पर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दे रही है. बहुत से मीडिया हाउस की प्रतिक्रिया में एक विरोधाभास दिख रहा है. कुछ समय पहले तक यही विदेशी मीडिया पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की खबरें छापता रहा है, लेकिन अब जब भारत सरकार अल्पसंख्यकों की मदद के लिए नागरिकता संशोधन बिल लाई है तो यही विदेशी मीडिया (Foreign Media Reaction on Citizenship Amendment Bill) इसे बांटने वाला बिल बता रही है.
नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में असम में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहा है.
पहले बात न्यूयॉर्क टाइम्स की
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि 'भारत की संसद में लोगों को बांटने वाला नागरिकता बिल पारित हो गया है. इस पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. लिखा है कि इस बिल में धार्मिक आधार पर ये तय किया जाएगा कि कौन अवैध शरणार्थी है और कौन नहीं. इस बिल ने दक्षिण एशिया के सभी मुख्य धर्मों को शामिल किया है, सिवाय मुस्लिम धर्म के.'
यहां ध्यान देने वाली बात है कि न्यूयॉर्क टाइम्स में आए दिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न की दास्तानें छपती ही रहती हैं. अभी अक्टूबर महीने में ही 5 तारीख को न्यूयॉर्क टाइम्स ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हालात बयां करते हुए एक आर्टिकल लिखा था. आर्टिकल की हेडिंग थी कि पाकिस्तान के हिंदू भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. लिखा था कि वहां के हिंदू सोच रहे हैं कि क्या ऐसे देश में रहना भी चाहिए या नहीं, जहां उनकी जिंदगी हर दम खतरे में रहती है. बता दें कि आर्टिकल में इस बात का जिक्र किया गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तोड़ा जा रहा है, उनके साथ आए दिन मारपीट होती है. जिस न्यूयॉर्क टाइम्स ने खुद ही पाकिस्तान की हकीकत उजागर करने का काम किया, वही अब नागरिकता संशोधन बिल को बांटने वाला बता रहा है, जबकि ये बिल पाकिस्तान के भी अल्पसंख्यकों की मदद करेगा. अब इसे विरोधाभास नहीं कहें तो क्या कहें.
इंडेपेंडेंट अखबार ने कहा विवादित कानून
इंडेपेंडेंट अखबार ने इस बिल को विवादित कहा है. उन्होंने लिखा है- 'भारत की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार ने विवाद कानून पर संसद से मंजूरी हासिल कर ली है. ये कानून पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता दिलाने में मदद करेगा, सिवाय मुस्लिमों के'. बेशक इस बिल में मुस्लिम शामिल नहीं हैं, क्योंकि इसमें सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को शामिल किया गया है और ये तीनों ही इस्मालिक देश हैं. भाजपा का यही तर्क भी है कि एक इस्लामिक देश में किसी मुस्लिम शख्स के साथ धर्म के आधार पर उत्पीड़न नहीं होता है. इसी वजह से इस बिल में सिर्फ अल्पसंख्यकों को शामिल किया गया है.
खैर, इसी इंडेपेंडेंट अखबार ने कुछ समय पहले लिखा था कि पाकिस्तान में ईसाईयों पर उत्पीड़न हो रहा है. ये बात अखबार ने सलमान तासीर की हत्या और आसिया बीबी पर जुल्म देखते हुए लिखी थी. बता दें कि आसिया बीबी को ईशनिंदा के अरोप में जेल की सजा सुनाई गई थी. पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर ने ईशनिंदा कानून का विरोध किया था, जिसके तहत एक महिला को जेल में डाला गया. तासीर के इस कदम से उन्हीं का बॉडीगार्ड मुमताज कादरी नाराज हो गया और उसने 2011 में सलमान तासीर को गोली मार दी. हालांकि, इस अपराध के लिए कादरी को फांसी हुई. सोचिए, जिस पाकिस्तान में अल्पसंख्यक महफूज नहीं हैं और खुद इंडेपेंडेंट ने भी जिसके खिलाफ आवाज उठाई, आज वो नागरिकता बिल वो विवादित बताकर अपनी ही बातें के विरोधाभास में फंसा हुआ नजर आ रहा है.
बाकी मीडिया क्या बोले?
इसी तरह वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि भारत ने मुस्लिम शरणार्थियों को अलग रखते हुए विवादित नागरिकता बिल को पारित कर दिया है. द पोस्ट ने लिखा है कि नए कानून ने कुछ दक्षिण एशिया के देशों के शरणार्थियों के लिए भारत में नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन मुस्लिम इसमें शामिल नहीं हैं, जिसमें विश्वास रखने वाले करीब 20 करोड़ लोग भारत के नागरिक हैं. विदेशी मीडिया आज भी अगर बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान में जाए तो उसे साफ दिखेगा कि वहां अल्पसंख्यकों पर धर्म के आधार पर जुल्म हो रहे हैं. कहीं पर भी किसी मुस्लिम पर धर्म के आधार पर उत्पीड़न होता नहीं दिखेगा. ऐसे में भारत के नागरिकता संशोधन बिल को विवादित या बांटने वाला बताना विदेशी मीडिया की विरोधाभासी बात लगता है.
ये भी पढ़ें-
नागरिकता बिल पर JDU-शिवसेना जो भी स्टैंड लें - फायदा BJP को ही होगा
Citizenship Amendment Bill नतीजा है नेहरू-लियाकत समझौता की नाकामी का
Citizenship Amendment Bill: हमारी संसद ने बंटवारे के जुर्म से जिन्ना को बरी कर दिया!
आपकी राय