CJI गोगोई समेत सभी पक्ष हैं कठघरे में
12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट में जो हलचल 4 जजों की प्रेस कान्फ्रेंस से मची थी, कुछ वैसा ही तनावपूर्ण माहौल सीजेआई रंजन गोगोई पर लगे यौन शोषण के आरोप के बाद शनिवार को था.
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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई के खिलाफ लगे यौन शोषण के आरोप ने न्यायपालिका को हिलाकर रख दिया. 35 वर्षीय ये महिला सुप्रीम कोर्ट में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के रूप में काम कर रही थी. महिला ने 22 न्यायाधीशों को एक एफिडेविट भेजकर शिकायत की है. जिसमें उसने 10 और 11 अक्टूबर, 2018 को CJI निवास पर उसके साथ हुई कथित घटना का विस्तृत ब्यौरा दिया है.
इन गंभीर आरोपों पर जब चीफ जस्टिस से जवाब मांगा गया तो सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल का ईमेल आया जिसमें इन आरोपों का खंडन किया गया था और इन्हें पूरी तरह से गलत और अपमानजनक बताया गया. ईमेल में ये भी लिखा गया था कि 'इस बात की भी काफी संभवना है कि संस्था को बदनाम करने के इरादे से ये सब किया गया हो"
सुप्रीम कोर्ट में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन शोषण का आरोप लगाया है
CJI ranjan gogoi पर यौन शोषण के आरोप काफी चौंकाने वाले हैं
जाहिर तौर पर भारत के चीफ जस्टिस पर इस तरह के आरोपों का लगना बेहद चौंका देने वाली बात है. खासतौर पर ऐसे समय में जबकि वे काफी संवेदनशील मामलों की सुनवाई कर रहे हैं. इतना ही नहीं, जिस तरह यह मामला प्रकाश में आया है वह तो इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता ही है, इस मामले की सुनवाई के दौरान जो बातें कहीं गईं वह भी कई सवाल खड़े करती हैं.
1. शनिवार सुबह 3.37 बजे चार न्यूज पोर्टल Wire, Caravan, Scroll और लीगल वेबसाइट Leaflet की ओर चीफ जस्टिस कार्यालय को यौन शोषण की गंभीर शिकायत से जुड़ा ईमेल पहुंचता है. सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल जवाब में चीफ जस्टिस पर लगे आरोपों को नकारते हैं. कहते हैं कि जिस महिला का जिक्र है, उसने चीफ जस्टिस निवास पर डेढ़ महीने काम किया, जहां सभी कर्मचारियों के साथ सम्मानपूर्वक बर्ताव किया जाता है.
2. सुप्रीम कोर्ट से मिले जवाब के बावजूद महिला के यौन शोषण की कहानी चारों न्यूज पोर्टल पर विस्तार से शनिवार सुबह 9.30 बजे पब्लिश कर दी जाती है. (यहां यह बताना जरूरी है कि यह चारों वेबसाइट नरेंद्र मोदी सरकार की प्रबल आलोचक रही हैं, इतना ही नहीं राफेल डील से जुड़े विचाराधीन मामले में एक सरकार विरोधी राय को लेकर कंटेंट प्रकाशित करते रहे हैं).
3. CJI के खिलाफ छपी खबर को इन वेबसाइट के संचालकों ने आक्रामक टिप्पणी के साथ प्रमोट भी किया.
4. अपने ऊपर लगे आरोपों को सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई में लाने की पहल खुद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने की. उन्होंने खुद की सदस्यता वाली तीन सदस्यीय बेंच गठित की, जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना को भी शामिल किया गया. (सुप्रीम कोर्ट के वकील दुष्यंत दवे ने सीजेआई की आलोचना करते हुए कहा कि कोई जज अपने खिलाफ लगे आरोप की सुनवाई कैसे कर सकता है? दिलचस्प तथ्य यह है कि इस मामले के ऑर्डर की कॉपी पर जस्टिस मिश्रा और जस्टिस खन्ना के नाम तो थे, जस्टिस गोगोई का नाम नहीं था).
5. जस्टिस गोगोई ने मामले को ‘जनता के लिए जरूरी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ से जुड़ा बताया. जस्टिस गोगोई इतने तक ही नहीं रुके. उन्होंने इस शिकायत के पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ बताया, जो सीजेआई ऑफिस को कमजोर करना चाहती है. जस्टिस गोगोई ने CJI ऑफिस और पीएमओ को देश के दो सबसे निष्पक्ष दफ्तर बताते हुए कहा, यदि इस तरह से सतही आरोप गढ़े जाने लगे तो कोई ईमानदार आदमी यहां नहीं आना चाहेगा.
(यहां, यह बताना जरूरी है जस्टिस गोगोई से पहले सीजेआई रहते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा पर भी कई गंभीर आरोप लगाए गए थे. जिनमें एक आरोप यह भी था कि सीजेआई ऑफिस पीएमओ के साथ मिलकर महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई प्रभावित कर रहा है. आरोप लगाने वालों में जस्टिस गोगोई भी शामिल थे. आरोपों का वह सिलसिला सुप्रीम कोर्ट की चार-दीवारी से निकलकर संसद तक पहुंच गया था, जहां चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लाया गया. आखिर में बिना किसी नजीजे पर पहुंचे दीपक मिश्रा पर लगे आरोप कड़वा अध्याय बनकर खत्म हो गए. लेकिन अब वैसा ही कड़वा घूंट पीने की बारी जस्टिस गोगोई की है.)
'इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, जो सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं'
6. अब बात शिकायतकर्ता महिला की. उसने CJI पर उसी तरह के आरोप लगाए हैं, जैसे कि Me Too अभियान के दौरान सुनाई पड़े थे. लेकिन एक हकीकत यह भी थी कि उस महिला के खिलाफ पहले से कानूनी कार्रवाई चल रही थी. इतना ही नहीं, पुलिस विभाग में पदस्थ उसके पति पर पुलिस केस दर्ज था. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस पर सवाल उठे, जिसने इनको क्लीन चिट दी थी. (सवाल यह है कि क्या महिला की शिकायत किसी मकसद से की गई थी, और यह शिकायत उन्हीं चार पोर्टल के पास कैसे पहुंची जो सरकार विरोधी नजरिया रखते हैं.)
7. सबसे आखिर में सीजेआई गोगोई का संकल्प. वे कह रहे हैं कि इतने निम्न दर्जे के आरोप से वे इतने आहत हैं कि इस खंडन करते हुए भी उन्हें शर्मिंदगी हो रही है. लेकिन वे ऐसी साजिश के आगे झुकेंगे नहीं, अपना काम करते रहेंगे. और न्यायपालिका की निष्पक्षता का ख्याल रखते हुए पत्रकारों को भी संवेदनशील होना पड़ेगा. उन्होंने शिकायतकर्ता महिला और उसकी शिकायत पब्लिश करने वाली वेबसाइटों के खिलाफ ऑर्डर नहीं दिया. (लेकिन, सोशल मीडिया पर सीजेआई पर लगे आरोप पर बहस होती रही. कई लोगों की दलील ये भी थी कि ऐसे ही एक आरोप में एमजे अकबर को अपना मंत्रीपद छोड़ना पड़ा है, तो जस्टिस गोगोई कैसे सीजेआई पद पर बने रहे सकते हैं.)
8. सोशल मीडिया पर इस शिकायत को लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कुछ लोगों की दलील है कि चूंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट राफेल डील की दोबारा सुनवाई करने जा रहा है, इसलिए सीजेआई पर दबाव बनाने के लिए यह शिकायत गढ़ी गई है. जबकि कई लोगों का यह भी तर्क है कि जिस तरह सरकार विरोधी पोर्टल ने सीजेआई गोगोई के खिलाफ इस खबर को छापा है, उससे इसमें विपक्ष की साजिश की बू आती है. क्योंकि राफेल डील को पहले क्लीन चिट भी तो सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने ही दी थी.
9. सुप्रीम कोर्ट अगले सप्ताह कई अहम मामलों की सुनवाई करने जा रहा है, जिसमें राफेल डील का मामला भी शामिल है. इसी हफ्ते में जस्टिस गोगोई अपने खिलाफ हुई इस शिकायत की सुनवाई के लिए दोबारा एक बेंच गठित करें, जिसमें वो खुद शामिल न हों. लेकिन इतना तय हो ही गया है कि इस शिकायत के चलते जस्टिस गोगोई पर दबाव बनाने वालों के हाथ एक हथियार तो लग ही गया है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को बहुत टफ जज कहा जाता है. उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों में फैसला दिया है. जैसे- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन केस. ये न्यायमूर्ति गोगोई के आदेश ही थे कि असम के लिए विवादास्पद NRC तैयार किया जा रहा है. CJI गोगोई सुप्रीम कोर्ट के 25 जज में से उन 11 जजों में से एक हैं जिन्होंने अदालत की वेबसाइट पर अपनी संपत्ति का सार्वजनिक विवरण दिया है. जस्टिस गोगोई के पास फिलहाल दो बड़े मामले भी हैं पहला राफेल मामला जिसपर सरकार पर आरोप है तो दूसरा राम मंदिर मामला. ये दोनों ही मामले काफी पेचीदा हैं जिसपर चीफ जस्टिस गोगोई का फैसला बेहद महत्वपूर्ण होगा.
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