CWG 2018 में शक की 'सुई' भारत पर हो तो मैडल का जश्न कैसे मना सकते हैं
21वें कॉमनवेल्थ गेम्स के पहले ही दिन गोल्ड कोस्ट में भारत को दो पदक मिल गए हैं. लेकिन इस कामयाबी के बावजूद डोपिंग का कलंक भारतीय दल का सता रहा है.
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21वें कॉमनवेल्थ गेम्स के पहले ही दिन गोल्ड कोस्ट में भारतीय भारोत्तोलक ( weightlifter ) मीरा बाई चानू ने भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाया. मीरा बाई ने 86 किलोग्राम वजन उठाकर दो बार अपनी ही रिकॉर्ड तोड़ दिया. इससे पहले 56 किग्रा वर्ग में 25 वर्षीय गुरुराजा ने सिल्वर मेडल जीतकर देश के लिए मैडलों का खाता खोला था. लेकिन भारतीय खिलाडि़यों की इस कामयाबी के बीच बदनामी की वो तलवार अब भी लटक रही है, जिसकी कल्पना दुनिया का कोई देश नहीं करता है. भारतीय एथलेटिक्स दल के पास से सिरिंज मिलने के बाद CWG के आयोजक हरकत में आ गए हैं. ड्रग्स के इस्तेमाल को लेकर सख्ती के चलते पूरे भारतीय एथलेटिक दल को ही शंका से देखा जा रहा है.
कुछ समय पहले ही हुए खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में स्कूली बच्चों द्वारा प्रतिबंधित दवाएं लेने का मामला सामने आया था. अभी उसे लेकर फैसला हो भी नहीं पाया है कि एक नया मामला सीधे ऑस्ट्रेलिया से आ रहा है. ऑस्ट्रेलिया में 4 अप्रैल से कॉमनवेल्थ गेम शुरू होने वाले हैं, लेकिन उससे पहले ही भारतीयों के रहने की जगह के पास सुइयां (डोपिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली सिरिंज) मिली हैं. आशंका जताई गई है कि इन सुइयों का इस्तेमाल प्रतिबंधित दवाइयां लेने के लिए किया गया होगा.
अभी तक की जांच में यह तो पता नहीं चला है कि किसने उन सुइयों को इस्तेमाल किया, लेकिन भारत भी शक के घेरे में है. भारतीय खिलाड़ियों ने इन सुइयों से कोई भी नाता होने से साफ मना कर दिया है. हालांकि, बॉक्सिंग टीम के कोच ने यह जरूर कहा है कि एक बॉक्सर की तबियत खराब थी, जिसको डॉक्टर ने खुद आकर विटामिन का इंजेक्शन दिया और इसकी जानकारी अधिकारियों को दी जा चुकी है. ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर डोपिंग के लिए दोषी किसे माना जाए? इन समझदार खिलाड़ियों को या फिर खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में खेलने आए बच्चों को? या फिर दोषी ठहराया जाए या उस सरकार को जो इन सबकी निगरानी करने में नाकाम साबित होती दिख रही है?
डोपिंग के मामले में भारत तीसरे नंबर पर
दिल्ली में 31 जनवरी से लेकर 8 फरवरी तक खेल मंत्रालय द्वारा कराए गए 'खेलो इंडिया स्कूल गेम्स' में 12 बच्चों ने प्रतिबंधित दवाएं लीं. नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (NADA) ने इन सभी 12 खिलाड़ियों को नोटिस भी भेज दिए हैं. आपको बता दें कि जिन 12 स्कूली खिलाड़ियों को नोटिस भेजे गए हैं, उनमें से 5 अपने खेल में प्रथम आए हैं और उन्होंने स्वर्ण पदक जीता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि जूनियर लेवल पर डोपिंग के मामलों में वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी ने भारत को दुनिया में तीसरे स्थान पर रखा है. वहीं रूस और इटली डोपिंग के मामले में भारत से भी आगे हैं. जूनियर लेवल से ही नसों में दौड़ता डोपिंग का जहर बड़ा होने पर भी इंसान को खुद से अलग नहीं होने देता है.
हर चौथे दिन एक खिलाड़ी फंसता है डोपिंग में
डोपिंग का जहर खिलाड़ियों की नसों में किस हद तक घुल गया है, इसका अंदाजा आप डोपिंग के आंकड़ों से लगा सकते हैं. खिलाड़ियों में डोपिंग को रोकने के लिए भारत में 2009 में राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी (NADA) की स्थापना की गई. अब अगर NADA के आंकड़े देखें तो 2009 से लेकर 2017 तक यानी कुल 8 सालों में 852 खिलाड़ी डोपिंग के नियमों का उल्लंघन करने में फंसे हैं. इस तरह से देखा जाए तो लगभग हर चौथे दिन एक खिलाड़ी डोपिंग का कलंक अपने माथे पर लगा लेता है. आंकड़े इतने बड़े होने के बावजूद सरकार की ओर से इसे रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं. नीचे दिए गए चार्ट में देखिए किस साल में डोपिंग के कितने मामले सामने आए.
खुद NADA भी है एक हद तक जिम्मेदार
अगर ये कहा जाए कि डोपिंग के बढ़ते मामलों के लिए खुद NADA भी एक हद तक जिम्मेदार है, तो कुछ गलत नहीं होगा. 2017 के लिए NADA ने टारगेट तय किया था कि इस पूरे साल में कुल 7000 खिलाड़ियों का टेस्ट किया जाएगा. लेकिन दिल्ली में स्थित नेशनल डोप टेस्टिंग लेबोरेटरी के आंकड़े कुछ और ही तस्वीर बयां कर रहे हैं. इन आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2017 से लेकर दिसंबर 2017 तक सिर्फ 2,667 लोगों का डोप टेस्ट किया गया. यानी जितना टारगटे रखा था वह मार्च 2018 तक तो पूरा होने से रहा यानी वित्त वर्ष के इस टारगेट तक NADA नहीं पहुंच सकेगी. अब जब सरकार की ओर से ही ऐसी ढिलाई बरती जाएगी तो डोपिंग के मामले सामने आते ही रहेंगे.
अब जरा समझ लीजिए क्या होती है डोपिंग
डोपिंग ऐसे पदार्थों के सेवन को कहा जाता है, जिनसे खेल के मैदान में किसी खिलाड़ी का प्रदर्शन बढ़ जाता है. इसके लिए कोई खिलाड़ी ऐसी दवाओं का इंजेक्शन ले सकता है या फिर कोई ऐसा पाउडर पानी में घोलकर पी सकता है. लेकिन डोपिंग टेस्ट में खिलाड़ी का पूरा कच्चा-चिट्ठा सामने आ जाता है. डोप टेस्ट में खिलाड़ी के यूरिन (पेशाब) का सैंपल लिया जाता है. ये टेस्ट NADA या फिर WADA (वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी) द्वारा किए जाते हैं.
डोपिंग के मामलों में किसी भारतीय खिलाड़ी के फंसने पर सिर्फ उस खिलाड़ी का करियर ही खराब नहीं होता, बल्कि डोपिंग का कलंक हमेशा उसके माथे पर लगा रहता है. इसका सीधा असर देश की अस्मिता पर पड़ता है. विदेशों में अगर कोई भारतीय डोपिंग टेस्ट में फंसता है तो इससे देश की सीधे तौर पर बदनामी होती है. इतना सब कुछ होने के बावजूद सरकार डोपिंग को रोकने के लिए अहम कदम नहीं उठा रही है. जो एजेंसी (NADA) बनाई है, ऐसा लगता है कि वह भी अपना काम पूरी इमानदारी से नहीं कर रही है.
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