तानाशाही है अनिवार्य मतदान, अपनी कब्र खोद रही है गुजरात सरकार
विधानसभा की बैठकों में हिस्सा नहीं लेते विधायक, आ जाते हैं तो सोते हुए मिलते हैं, वोटिंग के दिन नदारद रहते हैं... फिर आम जनता के लिए अनिवार्य मतदान का बोझ क्यों???
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हद हो गई यार! एक उम्र के बाद मां-बाप भी बच्चों के फैसले में टांग नहीं अड़ाते. जब तक आप गलत न करें, समाज-कानून भी आपकी तरफ पर उंगली नहीं उठाता है. फिर ऐसी क्या राजनीतिक मजबूरी हो सकती है गुजरात सरकार की जिसके चलते वो स्थानीय निकाय चुनावों में अनिवार्य मतदान का बोझ वोटरों पर डालना चाहती है! अब मेरी इस बात को लोकतंत्र के खिलाफ मत मान लीजिएगा.
गुजरात की सीएम आनंदीबेन पटेल से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब बहुत ही स्पष्ट था - हम अनिवार्य मतदान से संबंधित कानून लाने वाले हैं. इसे गुजरात कॉर्पोरेशन चुनाव और जिला पंचायत चुनाव में लागू किया जाना है. राज्य सरकार ने इसके लिए सारी तैयारी कर रखी है. जो लोग वोट नहीं देते हैं या नहीं दे सकते हैं, उनसे संबंधी सजा या कानूनी प्रावधान भी बनाया जा रहा है. अब मान गए ना, कि ये लोकतंत्र के खिलाफ है.
बढ़िया है. अब आप लोगों को सजा भी देंगी! क्योंकि वह आपको या आप जैसों को वोट देने नहीं आया. गजब! क्या लोकतंत्र है. वैसे आपकी विधानसभा में भी बहुत सारे विधायक बैठक में हिस्सा नहीं लेते, वोटिंग के दिन नदारद रहते हैं, या आ जाते हैं तो सोते हुए मिलते हैं, उनके बारे में कुछ कानून बनाया जा रहा है या नहीं?
मैडम आनंदीबेन पटेल! माना कि अनिवार्य मतदान बिल नरेंद्र मोदी के सीएम रहते 2009 में पहली बार विधानसभा में पारित किया गया था. यह और बात है कि तब की राज्यपाल कमला बेनीवाल ने बिल को खारिज कर दिया था. इसे फिर 2011 में पास किया गया. हास्यास्पद तो यह है कि तब इसमें वोटिंग नहीं करने वालों को सजा देने का भी प्रावधान था. जो होना था, वही हुआ. बिल राज्यपाल के पास पड़ा रहा. नवंबर 2014 में राज्यपाल ओ.पी. कोहली ने बिल पर हस्ताक्षर किए और यह अधिनियम बना.
मैडम अब आप सीएम हैं. मोदी नहीं. राज्य में अनिवार्य मतदान को लागू करने के नफे-नुकसान को आपको झेलना होगा, पीएम मोदी को नहीं. जनता की याददाश्त कमजोर होती है. वह इस तानाशाही फैसले के लिए आपको जिम्मेदार मानेगी, पीएम मोदी को नहीं.
मैडम आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में सिर्फ 31 देश हैं, जहां अनिवार्य मतदान है. इनमें न अमेरिका है, न ही चीन. न रूस, न फ्रांस और न ही इंग्लैंड. और हां, यह भी मत मानिए कि वहां इसे लेकर बहस नहीं हुई हैं. खूब बहस हुई हैं. लेकिन अंततः उनकी समझ में यह आ गया कि कुछ और नहीं अपने ही नागरिकों के अधिकारों का हनन है. इतने उन्नत देश जब अनिवार्य मतदान के चूल्हे में अपना हाथ नहीं डाल रहे तो आप क्यों शहीद होना चाहती हैं!
वैसे सरकार आपकी है. बहुमत वाली. फैसला आपको करना है. जनता अगली चुनाव में उस पर अपनी प्रतिक्रिया देगी. देखना आपको है कि अनिवार्य मतदान के चक्कर में कहीं आप अपनी सरकार के लिए कब्र न खोद लें!!!
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