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Updated: 12 दिसम्बर, 2021 10:31 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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जयपुर वेन्यू काफी दिनों से कांग्रेस नेतृत्व के दिमाग में चल रहा था. राजस्थान में सरकार होने के हिसाब से जयपुर की ही तरह छत्तीसगढ़ में भी कोई जगह हो सकती थी. जब भी राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दोबारा ताजपोशी की खबरें आतीं, ये भी चर्चा हुआ करती कि कहां ऐसे आयोजन की संभावना हो सकती है. मध्य प्रदेश में तो सत्ता छिन ही गयी थी, महाराष्ट्र और झारखंड में तो सत्ता में हिस्सेदारी भर ही - और पंजाब का मामला तो शुरू से ही अलग रहा.

अगर राहुल गांधी फिर से कांग्रेस की कमान संभालने को लेकर मान गये होते तो जयपुर में भी महंगाई हटाओ रैली की जगह कांग्रेस अधिवेशवन हो रहा होता - और राहुल गांधी की फिर से ताजपोशी हुई होती. मान भी जाते अगर 2021 में हुए पांच विधानसभा चुनावों में से कोई एक भी अपने दम पर जीत गये होते. जैसे 2018 के आखिर में तीन राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही थी.

बड़े दिनों बाद सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) भी कांग्रेस की किसी रैली में पहुंची थीं - और पूरे गांधी परिवार ने एक साथ मिल कर केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर जोरदार हमला बोला. हमला ज्यादा असरदार भी हो सकता था, अगर राहुल गांधी अचानक मुद्दे से भटक नहीं गये होते.

मोदी सरकार पर ये हमला तो महंगाई (Congress Inflation Rally) को लेकर था, लेकिन तभी राहुल गांधी फिर से हिंदू और हिंदुत्व की परिभाषा (Rahul Gandhi Hindutva Theory) समझाने लगे और उसे गांधी बनाम गोडसे की बहस से जोड़ दिया - राहुल गांधी का ये प्रयोग और भी प्रभावी हो सकता था, बशर्ते वो इस मुद्दे पर अलग से एक रैली बुला लेते.

हिंदुत्व के चक्कर में महंगाई को क्यों दबा दिया

कांग्रेस की किसी रैली में लंबे अरसे बाद सोनिया गांधी भी पहुंची थीं. पूरे गांधी परिवार को भी एक साथ ऐसे किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में काफी दिनों बाद देखा गया - और ऐसे पहले वाले मौकों की तरह ही सबने मिल कर एक सुर में केंद्र की मोदी सरकार पर धावा भी बोला.

2019 के आम चुनाव में तो ऐसे नजारे अक्सर देखने को मिला करते थे. रायबरेली में सोनिया गांधी के नामांकन के दौरान भी पूरा गांधी परिवार एक साथ देखा गया था. दिसंबर, 2019 में कांग्रेस की भारत बचाओ रैली और उसके हफ्ता भर बाद ही राजघाट पर गांधी प्रतिमा के पास कांग्रेस के सत्याग्रह में भी सोनिया गांधी, बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ पहुंची थीं. कांग्रेस का वो सत्याग्रह नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के समर्थन में रहा. बाद में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने गांधी परिवार को बाकायदा ट्विटर पर धन्यवाद भी दिया था - क्योंकि वही सत्याग्रह के प्रेरणास्रोत भी रहे.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadra, sonia gandhiकांग्रेस की महंगाई पर रैली में राहुल गांधी का हिंदुत्व पर लेक्चर कितने लोग हजम कर पाये होंगे?

जयपुर में कांग्रेस की तरफ से जो महंगाई हटाओ रैली आयोजित की गयी थी, राहुल गांधी ने पार्टी की भारत बचाओ रैली की ही तरह अलग ही लाइन ले ली. भारत बचाओ रैली के दौरान राहुल गांधी का एक बयान काफी चर्चित रहा - 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है - मर जाऊंगा पर माफी नहीं मांगूंगा.' असल में रैली से ठीक पहले संसद में राहुल गांधी से माफी मंगवाने के लिए बीजेपी की महिला नेताओं ने काफी हंगामा किया था. दरअसल, वो हंगामा झारखंड चुनावों के दौरान राहुल गांधी के 'रेप इन इंडिया' वाले बयान के रिएक्शन में था.

कांग्रेस की महंगाई रैली में राहुल गांधी ने मां सोनिया और बहन प्रियंका के साथ मिल कर मोदी सरकार को महंगाई के मुद्दे पर तो घेरा ही, लेकिन हिंदू और हिंदुत्व की बहस को आगे बढ़ाने के चक्कर में 'गांधी बनाम गोडसे' की लड़ाई छेड़ दी है - ये तो नहीं कह सकते कि कांग्रेस नेता ने मुद्दे को गलत तरीके से पेश कर दिया है, लेकिन गलत मौका होने के कारण कन्फ्यूजन बढ़ा दिया है.

1. कांग्रेस रैली से मैसेज देने की कोशिश: कांग्रेस रैली के जरिये सोनिया गांधी ने कई तरीके के संदेश देने की भी कोशिश की है. एक संदेश तो यही है कि कांग्रेस को कमांड वही कर रही हैं. कांग्रेस कार्यकारिणी में जो कुछ साथी नेताओं से सोनिया गांधी ने कहा था, वही संदेश अब सार्वजनिक तौर पर मंच पर उपस्थित हो कर दिया है.

रैली में शामिल होकर सोनिया गांधी का भाषण न देना भी एक संदेश ही है. ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी के साथ साथ अब वो प्रियंका गांधी को भी एक साथ इंट्रोड्यूस कर रही हों. खुद न बोल कर दोनों बच्चों को एक साथ बोलने का मौका दे रही हैं. मतलब ये भी समझा जा सकता है कि आगे से प्रियंका गांधी को भी ज्यादा अहमियत मिलने वाली है.

2. प्रियंका के बढ़ते कद का संकेत: ऐसा भी नहीं कि प्रियंका गांधी यूपी कांग्रेस की प्रभारी होने के चलते सिर्फ योगी आदित्यनाथ को ही टारगेट करती रहती हैं, छोड़ती तो तो वो प्रधानमंत्री मोदी को भी नहीं, जबकि वो राहुल गांधी के एक्सक्लूसिव बीट जैसा लगता है.

लाइन तो प्रियंका गांधी ने भी राहुल गांधी वाली ही पकड़ी थी, 'ये सरकार सिर्फ गिने चुने उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है' - लेकिन फिर अपनी वाली स्टाइल भी दिखाने से नहीं चूकीं. हो सकता है राहुल गांधी और बाकियों ने भी गौर किया हो.

प्रियंका गांधी ने कहा, 'हमारे पर्यटक प्रधानमंत्री अपने आवास से 10 किलोमीटर दूर किसानों से मिलने नहीं जा पाये, लेकिन पूरी दुनिया घूम आये.'

और उसके बाद तो प्रियंका गांधी का सवाल था, स्टाइल भी राहुल गांधी से काफी अलग थी - '70 साल की रट छोड़िये मोदी जी आप ये बताइये कि आपने 7 साल में क्या किया?'

3. सचिन पायलट को एनडोर्स किया जाना: अशोक गहलोत के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सचिन पायलट के लिए भी ये शानदार मौका साबित हुआ. गांधी परिवार और गहलोत की मौजूदगी में रैली के मंच से सचिन पायलट ने भी मोदी सरकार को महंगाई पर खूब खरी खोटी सुनायी.

निश्चित तौर पर सचिन पायलट को ये मौका खोया हुआ सम्मान वापस मिलने जैसा लगा होगा. जाहिर है ये सब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जरा भी अच्छा नहीं लगा होगा, लेकिन कोई चारा भी तो नहीं बचा था.

4. रैली से लोगों को मिला क्या: आखिर लोगों के लिए रैली का टेक-अवे क्या है? लोग हिंदू और हिंदुत्व के फर्क को राहुल गांधी के नजरिये से समझने की कोशिश करें या महंगाई के बारे में सोचें. हुआ तो ये है कि हिंदुत्व को लेकर संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने के चक्कर में राहुल गांधी ने सबको नये सिरे से कन्फ्यूज कर दिया है.

अगर हिंदुत्व पर ही बहस आगे बढ़ानी थी तो रैली का नाम महंगाई हटाओ रैली रखने की क्या जरूरत थी. जैसे बनारस में प्रियंका गांधी ने प्रतिज्ञा रैली की जगह मौके की नजाकत को समझते हुए किसान न्याय रैली नाम कर दिया था, जयपुर में भी किया जा सकता था.

ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी ने हिंदुत्व की ये थ्योरी कोई पहली बार पेश की हो. हिंदुत्व और जिहादी इस्लाम के तुलनात्मक अध्ययन वाली सलमान खुर्शीद की किताब आने के ठीक बाद ही राहुल गांधी ने कांग्रेस के एक कार्यक्रम में हिंदू और हिंदुत्व का फर्क समझाने की कोशिश की थी.

ये तो हर किसी के समझ में आया कि राहुल गांधी ये सब यूपी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कर रहे हैं, लेकिन एक तरीके से ये सलमान खुर्शीद के स्टैंड का सपोर्ट ही समझ में आया, लेकिन उसी बात को आगे बढ़ाने के लिए राहुल गांधी ने 'महंगाई हटाओ महारैली' के मंच इस्तेमाल किया. कांग्रेस के मंच का राहुल गांधी चाहे जैसे इस्तेमाल करें, ये तो उनको हक भी हासिल है, लेकिन एक अच्छे मौके का खुद ही कबाड़ा कर दिया ये तो सुनना ही पड़ेगा.

हिंदुत्व से राष्ट्रवाद को जोड़ने की कोशिश

हिंदू और हिंदुत्व में राहुल गांधी ये कहते हुए फर्क समझा चुके हैं कि अगर दोनों अलग अलग नहीं होते तो दो अलग अलग शब्दों की जरूरत ही क्यों पड़ती - और दलील को दमदार बनाने के लिए वो अपने उपनिषद अध्ययन का हवाला भी दे चुके हैं. महंगाई पर हुई कांग्रेस की जयपुर रैली में भी राहुल गांधी ने हिंदू माइथॉलजी से मिसालें पेश की.

रैली के मंच से राहुल गांधी ने अपना राजनीतिक इरादा भी जाहिर किया, बोले, '2014 से हिंदुत्ववादी सत्ता में हैं, हिंदू सत्ता से बाहर है. हमें इन हिंदुत्ववादियों को हटाकर हिंदुओं को सत्ता में लाना है.'

अपनी पुरानी थ्योरी को ही आगे बढ़ाते हुए राहुल गांधी ने समझाया, 'देश में दो शब्दों की टक्कर है - हिंदू और हिंदुत्ववादी. राहुल गांधी के मुताबिक, ये दो अलग अलग शब्द हैं, - और वो समझाते भी हैं, 'दो शब्दों की आत्मा एक जैसी नहीं हो सकती.'

राहुल गांधी ने कांग्रेस रैली में ये सब काफी विस्तारपूर्वक समझाया और यहां आप संक्षेप में देख सकते हैं -

1. 'हिंदुत्ववादी को सिर्फ सत्ता चाहिये, सत्य नहीं. उनका रास्ता सत्याग्रह नहीं, सत्ता ग्रह है.'

2. 'हिंदू अपने डर का सामना करता है, वो शिव की तरह अपने डर को पी जाता है - लेकिन हिंदुत्ववादी भय में जीता है.'

3. हिंदू सत्य के लिए मरता है. सत्य उसका पथ है. वो आजीवन सत्य की खोज करता है.'

जैसे महात्मा थे, वैसे ही राहुल गांधी हैं: हिंदू और हिंदुत्व का फर्क समझाते हुए राहुल गांधी ने महात्मा गांधी का भी खासतौर पर जिक्र किया और अपने बारे में भी बताया कि वो कहां फिट होते हैं - जो पैमाना पेश किया उससे तो राहुल गांधी भी महात्मा गांधी वाली ही कैटेगरी में नजर आते हैं.

राहुल गांधी ने बताया, 'महात्मा गांधी ने पूरे जीवन सत्य की खोज की, लेकिन हिंदुत्ववादी गोडसे ने उनके सीने में तीन गोलियां मार दीं.'

फिर समझाया, "महात्मा गांधी हिंदू थे और गोडसे हिंदुत्ववादी."

और फिर अपने बारे में बताया, "मैं हिंदू हूं, लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं."

ऐसा लगा जैसे कोई स्कूली छात्र पाइथागोरस का प्रमेय सिद्ध कर रहा हो और आखिर में लिख भी रहा हो - इति सिद्धम्.

भला इतनी सारी चीजें एक साथ सुनने और समझने की कोशिश कैसे की जा सकती है. हिंदु, हिंदुत्व, हिंदुत्ववादी, महात्मा गांधी और और फिर राहुल गांधी - बहुत कन्फ्यूजन है भाई.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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