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Updated: 17 अक्टूबर, 2020 11:26 AM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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कांग्रेसी नेता उदित राज (Udit Raj) अपने तीखे और विवादित बोल के लिए ही जाने और पहचाने जाते हैं. इसी वजह से वह सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल भी होते रहते हैं. ताजा मामले में भी उदित राज ने एक ऐसा ट्वीट कर डाला है जिसको लेकर वह सोशल मीडिया पर आलोचनाओं का शिकार हो रहे हैं. उदित नारायण ने कुंभ मेले (Kumbh Mela) के आयोजन में सरकारी पैसे के इस्तेमाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं. दरअसल असम सरकार (Assam Government) ने अपने सरकारी फंड से मदरसों को न चलाने का निर्णय लिया है और राज्य में सभी सरकारी मदरसे को बंद करने का फैसला किया है. उदित राज ने इसी फैसले को लेकर विरोध दर्ज कराते हुए मदरसे की तुलना कुंभ से कर डाली और कहा कि किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में सरकारी फंड का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, यह गलत है. इसी ट्वीट पर वह ट्वीटर पर घिर गए मामला तूल पकड़ते देख उन्होंने ट्वीट ही डिलीट कर डाला. लेकिन मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए भाजपा (BJP) ने उदित राज के हवाले से कांग्रेस (Congress) को घेर डाला. भाजपा ने सियासी टिप्पणी करते हुए ये सोच उदित राज की होने के बजाए कांग्रेस की ही सोच बता डाली.

Udit Raj, Congress, Controversial Statement, Kumbh, Madrasaकुंभ पर बयान देकर उदित राज ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है

अब अगर विश्लेषण किया जाए तो अपनी अपनी जगह दोनों ही गलत हैं. पहले तो भाजपा के घेराव की बात करते हैं. भाजपा ने कांग्रेसी नेता के इस बयान को कांग्रेस की सोच बताया है. भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस इस आयोजन को बंद कर देना चाहती है जबकि अगर इतिहास के पन्नों को टटोला जाए तो कांग्रेस सहित लगभग सभी सरकार ने इस आयोजन पर कभी भी किसी तरह की रोकटोक नहीं लगाई है. कुंभ का बजट हर सरकार में लगातार बढ़ता ही रहा है. यानी सारी सरकार कुंभ मेले को बेहतर से बेहतर तरीके से आयोजित करने की कोशिश करती थी.

किसी भी सरकार ने कुंभ मेले के बजट में कोई भी कटौती नहीं की है वह चाहे केंद्र की सरकार रही हो या उत्तर प्रदेश की. कुंभ मेले में सरकारी फंड के इस्तेमाल पर कोई मुखर आवाज़ नहीं उठी है और न ही कभी उठनी चाहिए. कांग्रेसी नेता ने कुंभ मेले में सरकारी फंड के इस्तेमाल पर सवाल ज़रूर दागे हैं लेकिन उनको अभी तक किसी का भी समर्थन नहीं मिला है और न ही अब वही अपनी बात पर कायम हैं वह खुद ट्वीट डिलीट कर इसे एक उदाहरण मात्र बता रहे हैं. कांग्रेसी नेता उदित राज को कुंभ मेले के सरकारी आयोजन पर सवाल खड़े करने से पहले दुनिया के अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के बारे में जानकारी जुटा लेनी चाहिए थी.

ऐसा नहीं है कि सरकारी पैसों से धार्मिक आयोजन सिर्फ भारत में होता है. सऊदी अरब की सरकार भी हज का आयोजन सरकारी पैसों से ही करती है. अमेरिका में भी क्रिसमस के कई आयोजन सरकारी होते हैं. इस्राइल, ईराक, जापान, फ्रांस जैसे देशों में भी सरकारी पैसों से कुछ धार्मिक कार्यक्रम कराए जाते हैं. कांग्रेस नेता को कुंभ की अहमियत को समझने की ज़रूरत है. कुंभ मेला सनातन धर्म की आस्था है जिसमें न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों से भी लाखों-करोंड़ो लोग शामिल होते हैं. जबकि मदरसा की तुलना कुंभ से करना कतई ठीक नहीं है.

मदरसा शिक्षा प्रदान करने की जगह है. जहां पर इस्लाम की शिक्षा दी जाती है. ये आस्था का केन्द्र नहीं है ये शिक्षा का केन्द्र है. मदरसा सरकारी होना न होना एक अलग विषय है. असम सरकार के इस फैसले से जहां एक तरफ मदरसा और संस्कृत संस्थान में लगने वाले पैसों की बचत होगी वहीं सरकार यह संदेश देने में भी कामयाब होगी की जब बाइबिल और गीता की शिक्षा सरकार नहीं दे रही तो मुस्लिम समाज को इसका फायदा क्यों मिलना चाहिए.

हालांकि इससे मदरसा से जुड़े कई लोगों की आर्थिक हालत पर संकट तो पैदा होगा ही वहीं दूसरी ओर प्राइवेट मदरसों के फीसों में भी वृद्धि देखने को मिलेगी. मदरसा पर चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम पर उदित राज कूदे तो ज़रूर लेकिन वह इसमें अपनी ही नुकसान करा बैठे. अब सवाल उठता है कि कांग्रेस पार्टी उदित राज के इस बयान को किस तरह से देखती है. कांग्रेस के किसी भी नेता ने अबतक इस बयान पर उठे सियासी बवाल को लेकर चुप्पी ही साधे हुए है. लेकिन क्या कांग्रेस उदित राज के इस बयान के बाद उन पर कोई कार्यवायी कर सकती है.

यह पहला मौका नहीं है जब उदित राज घिरे हों. वह कई बार विवादित बयान दे चुके हैं लेकिन कांग्रेस की मजबूरी है कि वह मणिशंकर अय्यर की तरह ही वोटबैंक का ख्याल रखते हुए उदित राज पर भी कोई कार्यवायी करने से हिचकती है. उदित राज इंडियन जस्टिस पार्टी के फांउडर हैं लेकिन वर्ष 2014 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस पार्टी में विलय कर लिया था. उनके साथ दलित तबका भी कांग्रेस के साथ जुड़ गया और इसी दलित वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस उदित राज के किसी भी बयान पर कार्यवायी या असहमति जताने के बजाए चुप्पी साध लेती है.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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