उद्धव ठाकरे का कट्टर हिंदू या सेक्युलर होना नहीं, राज्यपाल का पत्र जरूर आपत्तिजनक है
महाराष्ट्र में मंदिर खोलने को लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पत्र में हिंदुत्व को लेकर सवाल उतना आपत्तिजनक नहीं है, जितना एक मुख्यमंत्री के 'सेक्युलर' होने से उनको ऐतराज होना - बाकियों की तरह उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackarey) को भी तो संविधान से ही हक मिला है.
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महाराष्ट्र में मंदिर खोलने की एक साधारण सी मांग विवादों में उलझ गयी है. ये मांग एक सवाल के साथ उठी है और वो भी बिलकुल वाजिब लगती है - अगर बार और रेस्तरां खोले जा सकते हैं, तो महाराष्ट्र में मंदिर क्यों नहीं खुल सकते?
मंदिर खोलने की मांग को लेकर कुछ लोग राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात भी किये थे, लिहाजा राजभवन की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Governor Uddhav Thackarey) को पत्र लिखा गया. पत्र भी सीधे सादे अंदाज में लिखा गया होता तो भी कोई बात नहीं होती. राज्यपाल की तरफ से मुख्यमंत्री को भेजे गये पत्र में जिस तरीके से उदाहरण दे देकर सवाल उठाये गये, उतना भी चल जाता, हालांकि, लहजा व्यंग्यात्मक ही है - लेकिन किसी मुख्यमंत्री से किसी राज्यपाल का ये पूछना कि 'कहीं वो सेक्युलर तो नहीं हो गया है' - कहां तक जायज समझा जाना चाहिये?
आखिर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को क्यों लगता है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को कट्टर हिंदू ही बने रहना चाहिये - सेक्युलर नहीं!
ये राजभवन और मुख्यमंत्री के बीच कोई आम टकराव नहीं है
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पत्र लिखने के पहले से ही बीजेपी नेता महाराष्ट्र में मंदिर अब तक न खोलने को लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के फैसले पर सवाल उठाते रहे हैं - और ऐसा ही सवाल पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस ने भी उठाया है.
अमृता फडणवीस का तो पूरा हक बनता है कि वो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से पूछें कि मंदिर क्यों नहीं खुल रहा है, जबकि बार और रेस्तरां खुल रहे हैं. अमृता फडणवीस को ये हक इसलिए नहीं मिल रहा क्योंकि वो बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी हैं - बल्कि इसलिए क्योंकि ये उनकी अपनी आस्था का सवाल है और वो वहां की रहने वाली हैं.
अमृता फडणवीस ने मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया है, बल्कि 'वाह प्रशासन' कह कर संबोधित किया है क्योंकि ये फैसला वही ले सकते हैं. अमृता फडणवीस ने ट्विटर पर लिखा है - महाराष्ट्र में बार और शराब की दुकानों को खोलने की छूट है, लेकिन मंदिर खतरनाक जोन में हैं... भरोसा न कर पाने वाले लोगों को प्रमाण पत्र देकर खुद को साबित करना होता है, ऐसे लोग SOP यानी तयशुदा तौर तरीकों को लागू करवाने में नाकाम रहते हैं.
वाह प्रशासन - bars and liquor shops are wild wide open but temples are danger zones ?Definitely sometimes ‘certificate’ is required to prove the saneness of some dicey creatures who are incapable of having SOPs in place ! ???????? #Maharashtra
— AMRUTA FADNAVIS (@fadnavis_amruta) October 13, 2020
उद्धव ठाकरे जब से कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर गठबंधन की सरकार बना लिये हैं, शिवसेना प्रमुख के राजनीतिक विरोधी उनके कट्टर हिंदुत्व की राजनीति पर सवाल उठने लगे हैं. तभी तो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के लिए ई-पूजा की उनकी सलाह को करीब करीब वैसे ही लिया गया था जैसे एनसीपी नेता शरद पवार के तंज को, 'कुछ लोगों को लगता है कि मंदिर बनाने से कोरोना खत्म हो जाएगा.'
बावजूद इसके कि CAA और चीन सीमा विवाद जैसे मसलों पर शिवसेना केंद्र की बीजेपी सरकार के साथ ही खड़ी नजर आयी है - हां, जब भी बीजेपी नेता राहुल गांधी पर हमले किये जाते हैं तो संजय राउत बचाव के लिए आगे जरूर आते हैं, लेकिन जब राहुल गांधी वीर सावरकर को लेकर टिप्पणी करते हैं तो शिवसेना उनका भी जोरदार विरोध करती है - 'ये तो बिलकुल नहीं चलेगा.'
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सेक्युलर उद्धव ठाकरे पंसद क्यों नहीं आते?
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी चिट्ठी पर शरद पवार ने भी आपत्ति जतायी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है. शरद पवार ने राज्यपाल की चिट्ठी की भाषा पर हैरानी जतायी है 'राज्यपाल के पत्र की भाषा ऐसी है जैसे किसी राजनीतिक पार्टी के नेता ने लिखा हो.'
वैसे तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी दो टूक जवाब दे दिया है - मुझे आपसे हिंदुत्व की तालीम नहीं लेनी है.
ऐसा भी नहीं है कि भगत सिंह कोश्यारी इस तरह के पत्र लिखने वाले कोई पहले राज्यपाल बने हैं. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ तो अपनी पूरी वकालत का अनुभव ही ममता बनर्जी को पत्र लिखने में उड़ेल देते हैं, लेकिन वो ज्वलंत मुद्दे उठाते हैं - कभी कोरोना गाइडलाइन को लेकर तो कभी राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर. या फिर और भी जहां कहीं उनको लगता है कि संविधान और कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने की गुंजाइश बनती है. ये उनका हक भी है और ड्यूटी भी. और शायद ही किसी को इस पर आपत्ति होनी चाहिये, ममता बनर्जी की बात और है. मुख्यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी के कामकाज पर सवाल उठेगा ही क्योंकि ये उनकी जवाबदेही है.
लेकिन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी तो जैसे उद्धव ठाकरे को बीजेपी से भी आगे बढ़ कर जलील करने की कोशिश कर रहे लगते हैं - एक राज्यपाल होकर भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को लेकर ऐसा सवाल उठाया है जैसा न तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह या बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ही उठाया होगा.
ये तो ऐसा लग रहा है जैसे भगत सिंह कोश्यारी शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत से होड़ ले रहे हों, कम से कम उनको तो ऐसा करने से बचना ही चाहिये - क्योंकि संजय राउत के लिए तो एक ही शख्सियत काफी है - फिल्म एक्टर कंगना रनौत.
उद्धव ठाकरे का 'सेक्युलर' होना गुनाह है क्या?
किसी भी राज्य में राज्यपाल को संवैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन सुनिश्चित करना होता है - और वही संविधान कहता है कि देश में कोई व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष हो सकता है या नहीं भी हो सकता है - कोई किसी धर्म विशेष में यकीन करे या न करे ये उसकी अपनी मर्जी है. 'घर वापसी' जैसी मुहिम भी इसलिए चल जाती है क्योंकि वो जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ होती है.
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पत्र में सबसे ज्यादा जो आपत्तिजनक बात है वो है उद्धव ठाकरे से पूछा जाना - "क्या आपने हिंदुत्व छोड़ दिया है और 'सेक्युलर' हो गए हैं?"
धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया है - और वही भारत के सभी नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास और धार्मिक आस्था की भी आजादी देता है - देश के दूसरे आम नागरिकों की तरह ही उद्धव ठाकरे को भी व्यक्तिगत तौर पर खुद को हिंदू बने रहने या सेक्युलर हो जाने का पूरा हक हासिल है.
शरद पवार ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में इसी तरफ ध्यान दिलाया है, 'सेक्युलर शब्द हमारे संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा है, राज्य के मुख्यमंत्री से भी अपेक्षा की जाती है कि वो इस शब्द की मर्यादा का ख्याल रखेगा और इसमें कोई बुराई भी नहीं है... मगर, राज्यपाल ने जिस तरह इसका इस्तेमाल किया है - ऐसा लगता है कि वो राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बल्कि किसी राजनीतिक दल के नेता को संबोधित कर रहे हों.'
राज्यपाल कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को याद दिलायी है कि वो मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या जाकर श्रीराम के प्रति अपनी श्रद्धा को सार्वजनिक किये. वो आषाढ़ी एकादसी को पंढरपुर के विट्ठल रुक्मिणी मंदिर भी गये और पूजा की.
निश्चित तौर पर उद्धव ठाकरे आम चुनाव से पहले भी अयोध्या गये थे और चुनाव बाद जीते हुए सांसदों को लेकर भी अयोध्या पहुंचे थे. यहां तक कि अपनी उसी गठबंधन सरकार के सौ दिन पूरे होने का जश्न भी उद्धव ठाकरे ने अयोध्या में ही मनाया था.
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को अपने जवाबी पत्र में उद्धव ठाकरे ने एक और बात खास तौर पर कही है - "मेरे राज्य की राजधानी को PoK कहने वालों का हंसते हुए घर में स्वागत करना मेरे हिंदुत्व में नहीं बैठता है."
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