Congress को अभी स्थायी नहीं, एक 'एक्सीडेंटल प्रेसिडेंट' चाहिए
कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को फैसला तो लेना ही पड़ेगा. हर तरफ मुश्किल ही नजर आ रही हो तो बेहतर यही रहेगा कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से सीख लेते हुए मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को भी कांग्रेस अध्यक्ष बना दें - निराश होने की गुंजाइश नहीं होगी.
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कांग्रेस में स्थायी अध्यक्ष की मांग अब तक तो जोर ही पकड़ती रही, लेकिन अब तूल पकड़ने लगी है. कांग्रेस की ज्यादातर बैठकों में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को फिर से पार्टी की कमान सौंपे जाने की मांग के बावजूद वो कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.
ऐसे में मुफ्त की सलाह तो यही है कि जैसे सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को कांग्रेस के प्रधानमंत्री के तौर पर चुना था, राहुल गांधी भी कांग्रेस के लिए एक 'एक्सीडेंटल प्रेसिडेंट' चुन लें - और इसके लिए भी न तो मैराथन तलाश की जरूरत है न बहुत परेशान होने की. प्रधानमंत्री बनाने की तरह कांग्रेस एक बार फिर मनमोहन सिंह पर भी भरोसा करती है तो निराश नहीं होना पड़ेगा.
'अध्यक्ष जी' के बगैर काम नहीं चलने वाला
15 साल बाद राहुल गांधी को भी कांग्रेस के लिए एक वैसे ही नेता की जरूरत महसूस हुई जैसी सोनिया गांधी को हुई थी. 2019 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस नेताओं के सामने बहुत बड़ी चुनौती रख दी - ऐसे अध्यक्ष की तलाश करो जो गांधी परिवार से न हो. उसी वक्त प्रियंका गांधी वाड्रा को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आया तो राहुल गांधी ने उसे भी खारिज कर दिया. हालात ऐसे बने के सोनिया गांधी को कांग्रेस पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया और एक साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जहां की तहां ही है.
राहुल गांधी के गैर-गांधी परिवार अध्यक्ष की डिमांड रखने की सिर्फ एक ही वजह रही, बीजेपी का कांग्रेस पर परिवारवाद की राजनीति को लेकर लगातार तीखे हमले. तब से लेकर अब तक हर कुछ दिन बाद कांग्रेस में राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की मांग उठती रहती है. कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान भी अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह के अलावा कई नेताओं ने फिर से राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग की है - लेकिन राहुल गांधी ने अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है.
कांग्रेस के हिसाब से राजस्थान का राजनीतिक संकट सुलझ जाने के बाद भी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चा चल पड़ी है. वैसे राजस्थान संकट सुलझाने में प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका की भी खूब सराहना हो रही है - और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में उनकी भूमिका बढ़ सकती है. प्रियंका गांधी ने भी फेसबुक-व्हाट्सऐप को लेकर बीजेपी और RSS पर हमला बोल कर ऐसी संभावनाओं को आगे बढ़ा दिया है.
राहुल गांधी को चाहिये कि एक बार मनमोहन सिंह को आजमा कर देखें - निराश नहीं होंगे!
कांग्रेस प्रवक्ता रहे संजय झा का एक ट्वीट इस बीच नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है. कांग्रेस से निकाले जाने के बाद संजय झा ने दावा किया है कि कई सांसदों सहित करीब 100 कांग्रेस नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया अपनाते हुए कांग्रेस के नेतृत्व में बदलाव की मांग की है.
It is estimated that around 100 Congress leaders (including MP's) , distressed at the state of affairs within the party, have written a letter to Mrs Sonia Gandhi, Congress President, asking for change in political leadership and transparent elections in CWC.
Watch this space.
— Sanjay Jha (@JhaSanjay) August 17, 2020
जून, 2020 में संजय झा को कांग्रेस के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया था. दरअसल, संजय झा कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल उठा रहे थे - और पार्टी की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया था. साथ ही, सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का संजय झा का सुझाव कांग्रेस को बर्दाश्त नहीं हुआ और उनको सस्पेंड कर दिया गया. कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि संजय झा कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं हैं और वे फेसबुक-बीजेपी विवाद से ध्यान हटाने के लिए वो बीजेपी के प्रभाव में ट्वीट कर रहे हैं.
TO WHOM IT MAY CONCERN
“Special Misinformation Group on Media-TV Debate Guidance” in its what’sapp of today directed to run the story of a non existant letter of Congress leaders to divert attention from Facebook-BJP links.
Of course, BJP stooges have started acting upon it.
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) August 17, 2020
शशि थरूर ने भी हाल ही में सलाह दी थी कि कांग्रेस के लिए जरूरी हो गया है कि अपनी छवि बचाये रखने के लिए वो एक स्थायी अध्यक्ष चुन ले. शशि थरूर का मानना है कि कांग्रेस दिशाहीन हो चली है. शशि थरूर की ये टिप्पणी सोनिया गांधी के खिलाफ जाती, इसलिए उन्होंने ये भी जोड़ दिया था कि राहुल गांधी सक्षम भी हैं और काबिल भी और वो फिर से पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं. कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने भी स्थायी अध्यक्ष की सलाह दी थी. ये भी कहा था कि कांग्रेस में करीब आधा दर्जन नेता हैं जो ये काम अच्छे से कर सकते हैं - और खास बात ये रही कि शशि थरूर ने तब संदीप दीक्षित के बयान को ज्यादातर कांग्रेस नेताओं के मन की बात बतायी थी.
अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे मई, 2019 से राहुल गांधी का भी वही हाल हो रखा है जो 2004 में आम चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी का हो रखा था. सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर बीजेपी नेता वैसे ही शोर मचा रहे थे जैसे अभी परिवारवाद की राजनीति पर. तब सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर सबसे बड़े त्याग का मैसेज देने की कोशिश की थी. लगता है वो वक्त भी आ गया है जब राहुल गांधी भी ऐसा ही कुछ ठोस फैसला लें और राजनीतिक विरोधियों की बोलती बंद कर दें.
असल बात तो ये है कि अब राहुल गांधी को भी एक मनमोहन सिंह की सख्त जरूरत आ पड़ी है. तब सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो प्रणब मुखर्जी की तरह अनुभवी और काबिल राजनीतिज्ञ न हो - और उसका कोई जनाधार न हो जिससे वो कभी बगावत पर उतर आये और मुसीबत खड़ी कर दे. मनमोहन सिंह पांच साल तक सोनिया गांधी की सभी उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे और दूसरी पारी के लिए भी उनका कोई विकल्प नहीं दिखा, लिहाजा कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए शासन में मनमोहन सिंह दस साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे.
'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' कहे जा चुके मनमोहन सिंह मानते तो यही हैं कि इतिहास उनके कार्यकाल का दयापूर्वक आकलन करेगा - और कांग्रेस के कट्टर विरोधी भी न तो उनकी अकादमिक काबिलियत और न ही इमानदारी पर कभी शक करते हैं, तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें 'रेन कोट पहन कर बाथरूम में स्नान करने वाला' काबिल नेता बताते हैं.
अब तो वक्त की भी मांग लगती है कि राहुल गांधी को भी अपने लिये नया मनमोहन सिंह तलाश लेना चाहिये - और ऐसा न हो पाये तो मनमोहन सिंह पर ही फिर से भरोसा जताते हुए उनको कांग्रेस के नेतृत्व की भी जिम्मेदारी सौंप देनी चाहिये.
मनमोहन सिंह आज भी ब्रह्मास्त्र साबित हो रहे हैं
कांग्रेस के राज्य सभा सांसदों की एक मीटिंग में बड़ा ही दिलचस्प नजारा देखने को मिला था. सीनियर नेता कपिल सिब्बल के आत्ममंथन की सलाह पर राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले राजीव सातव भड़क गये और यूपीए शासन की समीक्षी की सलाह दे डाली. ज्यादातर खामोश रहने वाले मनमोहन सिंह ने यूपीए शासन पर सवाल उठने पर आपत्ति तो जतायी ही, कांग्रेस के सीनियर नेता भड़क गये. ये सब सोनिया गांधी की मौजूदगी में वर्चुअल मीटिंग में चल रहा था. मीटिंग के अगले दिन शशि थरूर सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने मनमोहन सिंह का खुल कर बचाव किया और बगैर नाम लिए राजीव सातव को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. बाद में राजीव सातव ने भी सफाई दी और फिर मामला बीच बचाव कर शांत करा दिया गया. राहुल गांधी के लिए ध्यान देने वाली बात ये है कि अगर वो अपनी पंसद के नेताओं को कब्जे में रखने में सक्षम हैं तो मनमोहन सिंह को आगे कर कांग्रेस नेतृत्व को लेकर कुछ दिनों के लिए स्थायी समाधान तो पा ही सकते हैं.
मनमोहन सिंह कांग्रेस आजमाये हुए और आज भी तुरूप का पत्ता साबित हो रहे हैं - जब जब प्रधानमंत्री मोदी पर जोरदार हमले की जरूरत होती है, कांग्रेस मनमोहन सिंह को ही आगे कर देती है. ऐसे कई वाकये हुए हैं जब मनमोहन सिंह कांग्रेस के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हुए हैं.
1. देश की अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर: मोदी सरकार के खिलाफ अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर रूटीन हमले के लिए तो कांग्रेस ने पी. चिदंबरम की ड्यूटी लगा ही रखी है, लेकिन जब भी परिस्थियां विशेष होती हैं - मनमोहन सिंह को आगे कर दिया जाता है. कोरोना संकट और लॉकडाउन के असर से उबारने के लिए भी मनमोहन सिंह तीन सुझाव दे चुके हैं.
2. चीन के मुद्दे पर सलाह: चीन के मुद्दे पर राहुल गांधी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर काफी दिनों से 24x7 हमलावर रहे हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक में सोनिया गांधी के सवालों पर जवाब के बाद वजन बढ़ाने के लिए मनमोहन सिंह को ही आगे करना पड़ा था. दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर काफी कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी और PMO को सफाई तक देनी पड़ी थी.
फिर मनमोहन सिंह मोर्चे पर आये और प्रधानमंत्री मोदी को सलाह दी कि ऐसा कोई बयान नहीं देना चाहिये जिसका चीन अपने पक्ष में इस्तेमाल करे. जाहिर है राहुल गांधी या दूसरे नेताओं की बातों को उतना तवज्जो नहीं मिलता.
3. मोदी सरकार को राजधर्म की सलाह: दिल्ली दंगे के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस नेताओं के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने गयी थीं. मुलाकात के दौरान कांग्रेस की तरफ से ज्ञापन दिया गया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ एक्शन लेने की मांग भी. साथ ही, ज्ञापन में एक और मांग शामिल की गयी थी और उसके बारे में मीडिया के सामने जानकारी देने का काम भी मनमोहन सिंह को ही सौंप दिया गया - मनमोहन सिंह ने बताया कि कांग्रेस की तरह से राष्ट्रपति से मोदी सरकार को राजधर्म की याद दिलाने की भी गुजारिश की गयी है.
ऐसे और भी कई मौके देखने को मिले हैं जब कांग्रेस नेतृत्व मनमोहन सिंह को मोर्चे पर खड़ा कर देता है. कोरोना काल में सोनिया गांधी ने एक 11 सदस्यों की एक सलाहकार समिति बनायी है और उसका अध्यक्ष भी मनमोहन सिंह को ही बनाया गया है. हालांकि, उस कमेटी में न तो प्रियंका गांधी वाड्रा को जगह मिली है, न अहमद पटेल, एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद जैसे कांग्रेस कमेटियों में परंपरागत रूप से सदस्य बनाये जाने वाले नेताओं को ही.
सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष जरूर हैं और राहुल गांधी न तो संगठन के कोई पदाधिकारी हैं और न ही किसी राज्य के प्रभारी ही. तकनीकी तौर पर राहुल गांधी CWC सदस्य होने के अलावा सिर्फ वायनाड से कांग्रेस सांसद हैं - लेकिन क्या उनका कामकाज और दखल भी वायनाड तक ही सीमित है?
राजस्थान में बवाल होता है तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच झगड़ा राहुल गांधी ही सुलझाते हैं. बिहार चुनाव में विपक्षी दलों के साथ गठबंधन के मुद्दे पर नेताओं को गाइड भी राहुल गांधी ही करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नॉन-स्टॉप हमला भी राहुल गांधी ही बोलते हैं - यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी को सेना पर भी भरोसा नहीं है.
ये सब देख कर लगता तो ऐसा ही है जैसे राहुल गांधी ने अपने कामकाज के लिए एक कम्फर्ट जोन तैयार कर लिया है - और कांग्रेस में फैसलों के लिए दस्तखत की औपचारिकताओं के लिए ही पार्टी को एक स्थायी अध्यक्ष की जरूरत रह गयी है. कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं कि राहुल गांधी को किसी भी गलती के लिए जिम्मेदारी लेने में भी कोई गुरेज नहीं है, बस वो कुर्सी और उस पर बैठ कर दस्तखत करने वाली कलम से परहेज है.
फिर तो यही लगता है कि सोनिया गांधी की ही तरह राहुल गांधी को भी कांग्रेस के लिए एक 'एक्सीडेंटल प्रेसिडेंट' खोज लेना चाहिये और जैसे चल रहा है काम काम करते रहना चाहिये. जिस तरीके से मनमोहन सिंह कांग्रेस के लिए खास मौकों पर ब्रह्मास्त्र साबित हो रहे हैं - कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर भी उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरेंगे.
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