गैरों का नसीब और कांग्रेस के अपने उसे ले डूबे...
अरुणाचल में कांग्रेस ने अगर केंद्रीय नेतृत्व के चलते सत्ता गवांई तो उत्तराखंड में हरीश रावत की किस्मत और काबिलियत की बदौलत बचा पाई.
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कांग्रेस मुक्त भारत का स्लोगन बीजेपी ने दिया जरूर है - उसे अमल में लाने में कांग्रेस खुद कोई कसर बाकी नहीं रख रही. कांग्रेस चाहे तो अपनी बदकिस्मती के लिए गैरों के नसीब को कोस सकती है, लेकिन उसके अपनों के कारनामे उसे डुबाने के लिए कम हैं क्या?
मणिकांचन योग
चुनाव नतीजों के पहले ही रुझान देख कर राहुल गांधी ने बड़ी विनम्रता के साथ जनता के फैसले को स्वीकार किया. लेकिन मणिशंकर अय्यर से ये बर्दाश्त नहीं हुआ.
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अय्यर खुद पर काबू नहीं रख सके और बेहद गुस्से में कहा कि बंगाल के नतीजे एक बार फिर साबित कर रहे हैं कि क्यों आजादी के बाद कांग्रेस ने आधे बंगाल को पाकिस्तान के सुपुर्द करने का निर्णय लिया था.
Idiots in Bengal just showed why we agreed to give half of Bengal to Pakistan in '47. #BengalPolls #Verdict2016 - utter fools.
— Mani Shankar Aiyar (@ManiAyeSir) May 19, 2016
अय्यर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. केंद्र में मंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस के पक्ष में मीडिया में परसेप्शन बनाए रखने के लिए हद से ज्यादा सक्रिय रहते हैं.
1947 में भारत पाक बंटवारे का जिक्र कर अय्यर ने ये तो बता दिया कि कांग्रेस ने ऐसा क्यों किया, लेकिन फिर 1971 में कांग्रेस ने जो किया वो क्या था? तो क्या नेहरू ने सही किया था - और इंदिरा गांधी ने गलत कर दिया. अय्यर ने अभी ये नहीं बताया है कि इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश बनाकर गलत किया या सही. हो सकता है इस बारे में अपनी राय देने के लिए उन्हें किसी और मौके का इंतजार हो.
पिछले साल नंवबर की बात है. अय्यर पाकिस्तान के दुनिया टीवी से बातचीत कर रहे थे.
दुनिया टीवी ने पूछा, "पाकिस्तान और भारत के बीच बाइलेट्रल टॉक कैसे फिर से शुरू की जा सकती हैं?"
अय्यर बोले, “इनको हटाइए, हमको लाइए.”
शाबाश अय्यर साहब. अब इनको जिससे आपका मतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से था, उन्हें पाकिस्तान हटाएगा! गजब! उससे भी गजब आपको भी सत्ता पाकिस्तान ही दिलाएगा.
अय्यर के जवाब पर दुनिया टीवी ने कहा, "ये तो कांग्रेस पार्टी ही कर सकती है."
तो अय्यर बोले, "तब तक पाकिस्तान को इंतजार करना होगा?"
अभी हार, आगे जिम्मेदारी
पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव में सबसे बुरी हार कांग्रेस की ही हुई है. राहुल गांधी ने इसे खुले दिल से स्वीकारा करते हुए जीतने वालों को शुभकामनाएं दी हैं.
पहले से ही चर्चा थी और अब खबरें भी आ रही हैं कि इस हार से राहुल गांधी की ताजपोशी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. हां, बाकियों पर बड़ा फर्क पड़ने वाला है. कई महासचिव बदले जाने वाले हैं. कुछ नये चेहरों को मौका मिलने वाला है. इन सब बातों का फैसला भी यूपी और पंजाब चुनावों को ध्यान में रख कर किया जाएगा.
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असम और केरल में कांग्रेस के सत्ता गंवाने को लेकर ये भी कहा जा सकता है कि चुनावों में हार जीत लगी रहती है. केरल में तो ये परंपरा रही है, लेकिन परंपरा तो तमिलनाडु में भी रही है. असम में बिलकुल दिल्ली जैसे हालात तो नहीं थे, लेकिन बीजेपी ने तरुण गोगोई को जोरदार चुनौती थी. हाल ही में कांग्रेस के हाथ से अरुणाचल भी खिसक गया. अगर कांग्रेस के हिसाब से असम और अरुणाचल को देखें तो दोनों ही मामलों में कांग्रेस का एक रवैया कॉमन रहा.
मेरी कश्ती वहां डूबी जहां... |
अरुणाचल कांग्रेस के बागियों की यही शिकायत रही कि तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी. बात तो दूर मुलाकात तक का वक्त नहीं दिया. असम के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. 2014 के लोक सभा चुनाव से भी पहले कांग्रेस ने हिमंता बिस्वा सरमा की बगावत को नजरअंदाज किया - और इस चुनाव में वहीं हिमंता बीजेपी की जीत के मेन आर्किटेक्ट बने.
अरुणाचल में कांग्रेस ने अगर केंद्रीय नेतृत्व के चलते सत्ता गवांई तो उत्तराखंड में हरीश रावत की किस्मत और काबिलियत की बदौलत बचा पाई. अब काबिलियत के दायरे में क्या क्या आता है ये सिर्फ समझने वाली बात है.
अब नेतृत्व क्षेत्रीय नेताओं को क्यों तवज्जो नहीं देता? ये राहुल गांधी का खुद का फैसला होता है या उन्हें ऐसी ही सलाह दी जाती है? सलाह देनेवालों का एक मकसद तो रहता ही होगा जैसे भी हो उनकी नौकरी पर आंच न आए.
जैसा कि माना जा रहा है हार से बेपरवाह कांग्रेस में राहुल गांधी की ताजपोशी पक्की है. उधर, कांग्रेस की नैया पार लगाने के लिए मझधार में कूदे प्रशांत किशोर से भी खटपट की खबरें उड़ती हुई आ रही हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेस के ही कई वरिष्ठ नेता प्रशांत के काम में अड़ंगा बन रहे हैं. उन्हें लगता होगा अगर प्रशांत ही मैदान लूट ले गये तो उनका क्या हाल होगा?
कांग्रेस की हार पर शशि थरूर ने सही टिप्पणी की है. बीबीसी से बातचीत में थरूर ने कहा, "कांग्रेस के अच्छे दिन तो नहीं आए हैं लेकिन जब तक ओवर की आखिरी बॉल नहीं पड़ जाती तब तक मैच खत्म नहीं होता."
कांग्रेस के लिए इस बेहद नाजुक घड़ी में सोनिया ने समझदारी से काम नहीं लिया तो बाद में प्रियंका को भी लाकर लोकतंत्र को बचाना मुश्किल होगा.
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