प्रियंका के लिए PK की 2017 वाली सलाह पर कांग्रेस अब अमल कर रही है
2017 में कांग्रेस ने प्रशांत किशोर की सलाह को तो दरकिनार किया ही उन्हें प्रियंका गांधी के कार्यक्षेत्र से भी दूर रखा गया था. अब कांग्रेस प्रियंका को 2022 के लिए तैयार कर रही है और सलाहकार भी पीके के पुराने साथी को ही बनाया गया है.
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प्रियंका गांधी वाड्रा अब कांग्रेस की महासचिव बन चुकी हैं और प्रशांत किशोर जेडीयू के उपाध्यक्ष. 2017 में प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार थे - और प्रियंका गांधी पार्टी की ऐसी स्टार कैंपेनर थीं जिसका दायरा सिर्फ दो लोक सभा सीटों तक सीमित रहा.
दो साल बाद कांग्रेस पीके की सलाह पर ही आगे बढ़ती देखी जा सकती है. बतौर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने के बाद अब उनको 2022 में यूपी की कमान सौंपने की चर्चा चल रही है - ये सलाह भी तो पीके ने ही दी थी. ऊपर से पीके के ही पुराने साथी को प्रियंका का सलाहकार भी बनाया गया है.
जो राह कांग्रेस को पीके ने दिखायी थी
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की तोहमत भी प्रशांत किशोर पर ही थोपने की कोशिश हुई थी, जो हकीकत से काफी अलग रही. कांग्रेस ने पीके का स्लोगन 'यूपी को साथ पसंद है' तो अपना लिया था लेकिन काम करने के लिए शायद ही कभी खुली छूट देनी चाही.
समझने के लिए एक वाकया काफी है. यूपी विधानसभा चुनाव कैंपेन का काम संभालने के बाद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्षों को दो काम सौंपे थे. एक हर विधानसभा क्षेत्र से कम से कम 20 समर्पित कार्यकर्ताओं के नाम, फोटो और मोबाइल नंबर जुटाना. दूसरा, इलाके में पार्टी और संगठन की खामियां और खूबियां दिये गये फॉर्म पर भर कर देना. बाद में जब प्रशांत किशोर समीक्षा करने लगे तो मालूम हुआ कि उस प्रक्रिया में रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर के कार्यकर्ताओं को शामिल नहीं किया गया.
प्रशांत किशोर को बताया गया कि उन तीन इलाकों का कामकाज खुद प्रियंका गांधी वाड्रा देखती हैं और उसमें उनके दखल की जरूरत नहीं है. रायबरेली चूंकि सोनिया गांधी का इलाका है और अमेठी राहुल गांधी लेकिन सुल्तानपुर क्यों? ये सवाल तब प्रशांत किशोर के मन में भी रहा होगा. हाल की चर्चाओं के जरिये इसे नये सिरे से समझा जा सकता है. सुल्तानपुर कांग्रेस का इलाका नहीं बल्कि बीजेपी सांसद वरुण गांधी का क्षेत्र है, लेकिन वहां के मामलों में भी प्रशांत किशोर को हस्तक्षेप न करने को कह दिया गया था.
प्रियंका गांधी की 2022 की तैयारियों के लिए चुनावी सलाहकार भी नियुक्त
कांग्रेस में प्रियंका गांधी को औपचारिक जिम्मेदारी दिये जाने को प्रशांत किशोर ने ऐसी एंट्री बताया था जिसका भारतीय राजनीति में अरसे से इंतजार रहा. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के दौरान कांग्रेस के लिए काम करने का अच्छा अनुभव न होने के बावजूद प्रशांत किशोर ने प्रियंका की नयी पारी का गर्मजोशी से स्वागत किया.
One of the most awaited entries in Indian politics is finally here! While people may debate the timing, exact role and position, to me, the real news is that she finally decided to take the plunge! Congratulations and best wishes to Priyanka Gandhi.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) January 23, 2019
जेडीयू का उपाध्यक्ष बन जाने के बाद प्रशांत किशोर के पेशवराना सलाहियत की सीमाएं तय हो चुकी हैं. अब वो सिर्फ जेडीयू या ज्यादा से ज्यादा एनडीए सहयोगियों के लिए उपलब्ध होते हैं - या फिर उनके लिए जिनके आज नहीं तो कल एनडीए का हिस्सा बनने की संभावनाएं समझ में आती हों. जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस संभावनाओं के हिसाब से भी फिट बैठती है और पुराने क्लाइंट होने के चलते भी.
कांग्रेस पूरी तरह विरोधी खेमे में है इसलिए पीके के सहयोगी रॉबिन शर्मा उपलब्ध हो पाये हैं. रॉबिन शर्मा अब प्रियंका गांधी वाड्रा के सलाहकार के तौर पर काम करेंगे.
PK के पुराने साथी प्रियंका के सलाहकार बने
कांग्रेस में प्रियंका गांधी की औपचारिक एंट्री धमाकेदार रही. लखनऊ पहुंच कर प्रियंका गांधी ने रोड शो और उसके बाद घंटों मीटिंग कर कार्यकर्ताओं में जोश भरने की भरपूर कोशिश की थी - लेकिन तभी पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादी हमला हो गया. उसके चलते प्रियंका ने अपने कार्यक्रम तो टाल ही दिये अहमदाबाद में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक को भी स्थगित करना पड़ा. पहले ये बैठक 28 फरवरी को होने वाला थी. अब 12 मार्च को होने जा रही है. इससे पहले 1960 में अहमदाबाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक अहमदाबाद में हुई थी. बैठक का मकसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में चुनौती पेश करनी है - और माना जा रहा है कि उसी दिन गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं. भारत पाक तनाव के बीच विपक्ष की राजनीति में फंसी कांग्रेस कई मुश्किलों से जूझ रही है - यहां तक कि प्रियंका गांधी वाड्रा अभी तक प्रेस कांफ्रेंस तक नहीं कर पायी हैं क्योंकि रोड शो या उसके बाद भी राहुल गांधी खुद ही मोर्चा संभाले हुए थे.
इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक प्रियंका गांधी के चुनावी अभियान में रॉबिन शर्मा सलाहकार की भूमिका निभाने जा रहे हैं. प्रशांत किशोर के सहयोगी रहे रॉबिन शर्मा सिटीजन फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस के को-फाउंडर हैं और इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी से भी जुड़े हैं.
प्रशांत किशोर के कई सफल कैंपेन में रॉबिन शर्मा की बड़ी भूमिका बतायी जा रही है. कहते हैं 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए 'चाय पे चर्चा', 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के 'हर घर नीतीश, हर मन नीतीश' नाम से निकाली गई साइकिल यात्रा और 2017 में राहुल गांधी की 'खाट सभा' रॉबिन शर्मा के दिमाग की ही उपज रही.
प्रियंका गांधी की राजनीतिक सक्रियता से जो उम्मीद अभी या 2022 में की जा रही है वो तो पहले भी हो सकता था. जो काम 2017 में हो सकता था उसके लिए कांग्रेस को अभी तीन साल और इंतजार करना होगा. आगे क्या होगा, अभी से भला क्या कहा जाये? लेकिन दो साल पहले जो राजनीतिक परिस्थियां रहीं वो अब पूरी तरह बदल चुकी हैं. तब बीजेपी सहित सारी पार्टियां यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए जी जान से जूझ रही थीं. कांग्रेस की हालत खराब जरूर थी लेकिन बाकी कोई भी पक्का दावेदार नजर नहीं आ रहा था. बाद की बात और है, अभी तो हाल ये है कि बीजेपी का सत्ता पर कब्जा है और सपा-बसपा गठबंधन ने भी मोर्चा संभाल लिया. कांग्रेस को तो गठबंधन से दूर ही रखा गया है. रस्मअदायगी के तौर पर दो सीटें जरूर छोड़ी गयी हैं.
अव्वल तो 2019 का आम चुनाव सिर पर है - 2022 तक राजनीति कितनी करवटें बदलेगी अभी कुछ अंदाजा लगाना ठीक नहीं होगा. अब ये भी जरूरी तो नहीं कि हर बार देर से आने को दुरूस्त ही समझा जाएगा और नतीजे भी उसी हिसाब से हासिल होंगे.
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