राहुल गांधी को लेना होगा दादी इंदिरा का गुरुमंत्र
कांग्रेस की पहचान सबसे पुराने राजनैतिक दल के रुप में रही है. कांग्रेस एक विचारधारा के बजाय राजनीति और उसके विज्ञान की पहली पाठशाला रही है. राजनीति के क्षितिज पर जितने दलों का अभ्युदय हुआ है उसके मूल में कहीं न कहीं कांग्रेस खड़ी दिखती है.
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कांग्रेस एक नई उम्मीद और भरोसे के साथ पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी चौथी पीढ़ी के युवराज राहुल गांधी के कंधे पर देने जा रही है. अभी तक पार्टी में दूसरी पायदान के नेता रहे राहुल गांधी पहली पंक्ति में अधिक जवाबदेही के साथ पार्टी की कमान संभालने जा रहे हैं. 2013 में उन्हें उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी. दस जनपथ से युवराज की ताजपोशी की सारी औपचारिकताएं पुरी हो चुकी हैं. 4 दिसंबर को राहुल गांधी आधिकारिक रूप से पार्टी प्रमुख बन जाएंगे.
सोमवार को पार्टी की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई. यह तय माना जा रहा है कि राहुल गांधी के खिलाफ कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं होगा. इसलिए परिणाम उसी दिन जारी कर दिए जाएंगे. राजीव गांधी 1985-91 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे. पार्टी की कमान 1998 से सोनिया गांधी के हाथ रही. अब यह जिम्मेदारी राहुल गांधी को सौंपी जा रही है.
राहुल गांधी कांग्रेस के 88वें अध्यक्ष होंगे
राहुल गांधी 88वें पार्टी अध्यक्ष के रुप में अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे. कांग्रेस के जिस बुरे वक्त में पार्टी की कमान उन्हें सौंपी जा रही है, यह उनके लिए चुनौती ही होगी. अभी तक उन्होंने डूबती कांग्रेस के लिए कोई चमात्कारिक करिश्मा नहीं कर दिखाया है. एक के बाद एक ढहते कांग्रेसी गढ़ को भी बचाने में राहुल गांधी नाकाम रहे हैं. कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले दक्षिण और पूर्वोतर भारत से पार्टी का सफाया हो गया है. गोवा, त्रिपुरा और मणिपुर में वक्त पर फैसला न लेने की वजह से कांग्रेस की ज़मीन खिसक गई. वहीं कुशल नेतृत्व, सधी और सटीक रणनीति की वजह से भाजपा के हाथ बाजी लग गई.
2017 में यूपी चुनाव राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा गया था. भाजपा को पटखनी देने के लिए उन्होंने सपा से तालमेल किया और किसानों को लुभाने के लिए खाट पंचायत का सहारा लिया. लेकिन कांग्रेस के साथ सपा की भी खटिया खड़ी हो गई. मोदी की आंधी में दोनों युवा तुर्क उड़ गए. पार्टी अपना 2012 का प्रदर्शन भी दोहरा नहीं पाई. उनकी बेहद किरकिरी हुई और पार्टी की कमान प्रियंका गांधी को सौंपने की मांग उठने लगी.
गुजरात में जिस तरह का तेवर राहुल ने दिखाया है, उससे भाजपा परेशान है. पीएम मोदी और अमित शाह की मुश्किल बढ़ गई है. जीएसटी, नोटबंदी, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई पर हमला बोल, वह गुजरात की जनता की दु:खती रग को पकड़ने में कामयाब हुए हैं. व्यापारी वर्ग को अपने सम्बोधन से काफी प्रभावित किया है. पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बाद नए समीकरण बने हैं. भाजपा को राज्य से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए दलित, पटेल और ओबीसी नेताओं को लेकर नया गठजोड़ तैयार करने में कांग्रेस सफल रही है.
दूसरी बात गुरुदासपुर के बाद चित्रकूट उपचुनाव में पार्टी की जीत से हौसले बुलंद हैं. कांग्रेस शासित राज्यों पर भाजपा का कब्जा जारी है. अब तक उसका प्रभाव अठ्ठारह राज्यों तक फैल चुका है. जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी लोकसभा में 44 के आंकड़े पर पहुंच गई. पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में भी भगवा का अभ्युदय हुआ. माना जाता था कि मध्य भारत में भाजपा की जीत सम्भव है. लेकिन दक्षिण और पूर्वोत्तर में उसका फैलाव सम्भव नहीं है. मोदी लहर ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया. राहुल गांधी और कांग्रेस की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा हिमाचल प्रदेश को बचाना है. क्योंकि वहां कांग्रेस की सत्ता है. जबकि भाजपा अपनी वापसी के लिए पूरी कोशिश में है.
इस बार सोनिया गांधी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती
कांग्रेस की पहचान सबसे पुराने राजनैतिक दल के रुप में रही है. कांग्रेस एक विचारधारा के बजाय राजनीति और उसके विज्ञान की पहली पाठशाला रही है. राजनीति के क्षितिज पर जितने दलों का अभ्युदय हुआ है उसके मूल में कहीं न कहीं कांग्रेस खड़ी दिखती है. सवाल उठता है कि गुजरात चुनाव के पहले पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंपकर कांग्रेस क्या संदेश देना चाहती है. क्योंकि चुनाव परिणाम के बाद भाजपा और दूसरे विपक्षी दल राहुल गांधी के कार्य की समीक्षा करने लगेंगे. और हारने की स्थिति में यह ताजपोशी टल सकती है.
राहुल के ताजपोशी की दूसरी सबसे बड़ी वजह सोनिया गांधी की तबियत मानी जा रही है. यही वजह है कि उन्होंने गुजरात और हिमाचल में चुनावी प्रचार से अपने को दूर रखा है. वो अपनी मौजूदगी में राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंप बेफ्रिक होना चाहती हैं. वह भी नहीं चाहती कि कांग्रेस की कमान नेहरू और गांधी परिवार से अलग किसी के हाथ में जाए.
कांग्रेस के इतिहास को देखा जाय तो सोनिया गांधी का कार्यकाल सबसे लम्बा रहा है. 17 साल तक उन्होंने पार्टी की कमान अपने पास रखी. उनके लिए कांग्रेस संविधान में संशोधन भी हुआ. 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई थी. कांग्रेस के पहले अध्यक्ष उमेश चन्द्र बनर्जी बनाए गए. वे दो बार अध्यक्ष रहे. नेहरू और गांधी खानदान में से पहली बार मोतीलाल नेहरू ने 1919 और उसके बाद 1928 में अध्यक्ष बनाए गए. जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू 1929 से 30, 1936 से 37 तक अध्यक्ष रहे. उसके बाद 1951, 52, 53, 54 में उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी संभाली.
दादी के पदचिन्हों पर राहुल को चलना होगा
इसके बाद इंदिरा गांधी के युग की शुरुआत हुई. आयरन लेडी गांधी ने अपने नेतृत्व में कांग्रेस को नई ऊंचाईयां दिलाई. पहली बार 1959 में इंदिरा पार्टी अध्यक्ष बनी. इसके बाद 1983- 84 तक उन्होंने ये जिम्मेदारी निभाई. पंजाब में जहां आतंकवाद का डटकर मुकाबला किया. वहीं 1971 में पाकिस्तान का विभाजन कर बंग्लादेश का निर्माण कराया. राजनैतिक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए 1975 में इमरजेंसी लागू किया. हालांकि इस कदम के लिए उनकी कड़ी आलोचना हुई और चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. लेकिन कांग्रेस के कई बिखराव और विरोधियों की मुखरता के बाद भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में कड़े और तुरंत फैसले लेने के लिए अपनी अलग पहचान बनाई. राहुल गांधी को दादी की नेतृत्व क्षमता को अपनाना होगा. तभी वो कांग्रेस के लिए कुछ बेहतर कर पाएंगे.
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