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Updated: 18 मार्च, 2018 04:36 PM
मौसमी सिंह
मौसमी सिंह
  @mausami.singh.7
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'वक्त है बदलाव का' अपने 84वें महाधिवेशन में ये नारा देकर कांग्रेस ने उसके सामने खड़ी हो रही चुनौतियों का अंदाजा होने का एहसास दिलाया. मगर बदलाव लाने के पुलिंदे कस रही पार्टी खुद को बदलने के लिए कितनी तैयार है? यह बड़ा सवाल है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि यह कार्यकर्ताओं का महाधिवेशन है. युवाओं, महिलाओं और शोषित तबके को इस अधिवेशन में मौका मिलेगा. मंच पर इसकी झलक भी देखी, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है यह भी सत्य नहीं है. पिछले कई सेशन में बकायदा कार्यकर्ताओं को तवज्जो दी गई और उनको मंच से बोलने का मौका मिला.

राहुल गांधी, कांग्रेस, मोदी सरकार, नरेंद्र मोदी, भाजपा

दरअसल, किसान आंदोलन में हिस्सा लेने से लेकेर भट्टा-परसौल की मोटरसाइकिल राइड तक, कलावती के घर खाना खाने से लेकर आम नागरिक की तरह ट्रेन में सफर करने तक, राहुल गांधी ने अपना एक अलग अंदाज दिखाया है. बतौर नेता वह खुद को आम जनता के साथ जुड़ा देखना चाहते हैं.

मगर राहुल साहब दिल को बहलाने के लिए ये ख्याल अच्छा है! क्योंकि अगर आपकी पार्टी बदलाव की बात कर रही है तो उसको गांधी जी की यह सीख याद ही होगी कि खुद वो बदलाव बनो जो तुम दुनिया में देखना चाहते हो और इसके लिए कड़े फैसले लेने की जरूरत है. मौका भी हाथ में था.

जिस सादगी से जाकर आप स्टेडियम में कार्यकर्ताओं के बीच बैठे उसी सादगी से पार्टी मंच से यह ऐलान करते कि कांग्रेस कार्यसमिति का चयन होगा, सदस्यों को मनोनीत नहीं किया जाएगा, कोई चापलूसी और गुटबाजी नहीं चलेगी. तब सुनते आप तालियों की गड़गड़ाहट. देखते कुर्सियों में बैठे उनघाई लेते हर एक कार्यकर्ता किस तरह से जोश से भर जाते और अपनी छाती चौड़ा कर 2019 की दौड़ के लिए दम भरते!

पर इसके उलट 4 मिनट में एक प्रस्ताव पारित करके कांग्रेस ने फिर यह जता दिया कि 'मोदी सरकार से देश भले ही थका हुआ हो' पर कांग्रेस के पास कुछ नया सोचने की और नया करने की कोई कुब्बत नहीं है. कांग्रेस कार्यसमिति को मनोनीत करने के लिए आप चार बहाने भले ही बता दें मगर अपने संगठन को जीवंत करने का मौका आपने गंवा दिया.

राहुल गांधी, कांग्रेस, मोदी सरकार, नरेंद्र मोदी, भाजपा

दिलचस्प बात यह है कि इस अधिवेशन में अगले 5 साल का मसौदा रखा जाना था. मगर रह रह कर चर्चा में कांग्रेस का कम और मोदी सरकार का जिक्र ज्यादा चला आया. पिछले दो दिन में कोई नेता नहीं, जिसने मंच से ऐसा ना किया हो. मोदी सरकार का दसियों बार और पीएम मोदी का नाम दर्जनों बार लिया जा चुका है. सवाल यही है कि सिर्फ मोदी सरकार को कोसने से आपका काम चलेगा क्या?

जो बची खुची कसर थी वो तो मीडिया को कोस कर पूरी कर दी गई. हैरानी की बात है कि कांग्रेस पार्टी ने अपने अधिवेशन के मंच से मीडिया को कोसना और खरी-खोटी सुनाना उचित समझा. मीडिया की भूमिका पर पहले दिन ही एक पैनल डिस्कशन रखा गया. चलिए मान लिया मीडिया कोई दूध की धुली नहीं है. पक्षपात और चापलूसी के आरोपों से घिरी कुछ मीडिया से देश की जनता का विश्वास उठ गया है. मगर दूसरे के घर की मरम्मत सुझाने से पहले खुद की दरकती दीवारों की ओर तो झांक लेते.

पार्टी का मूड भांपने के लिए ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं. इंदिरा गांधी स्टेडियम के आंगन में अंदर बाहर आते-जाते कार्यकर्ताओं पर नजर दौड़ाइए तो छोटे-छोटे गुटों में आपस में चर्चा चल रही है. इन चौपालों में जवाब से ज्यादा सवाल पूछे जा रहे हैं. पकोड़े-समोसे और भोजन की चर्चा के साथ-साथ सियासी चुटकुलों पर भी जोर है. खुद पर हंसना भी कला होती है. और सत्ता के अकाल से जूझ रहे कार्यकर्तों को ये बखूबी जानते हैं.

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लेखक

मौसमी सिंह मौसमी सिंह @mausami.singh.7

लेखिका आज तक में विशेष संवाददाता हैं.

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