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Updated: 15 मार्च, 2017 04:36 PM
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चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. पंरपरा के मुताबिक नतीजों का मंथन करने के लिए कांग्रेस का थिंक टैंक शिद्दत के साथ जुटा है. पार्टी के दिग्गज नेताओं के मुंह पर जो सबसे पहली बात थी, वो ये कि पंजाब में पार्टी की सत्ता में शानदार वापसी के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से किए गए प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है. उनका कहना था कि ये राहुल जी की ही दूरदृष्टि थी जो कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद के लिए ऐन चुनाव से पहले सीएम का उम्मीदवार घोषित कर दिया. साथ ही राहुल जी का दूसरा मास्टरस्ट्रोक था कि नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस में शामिल कराना. सिद्धू इससे इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने तत्काल अरुण जेटली की जगह राहुल गांधी को अपना राजनीतिक गुरु मानने की घोषणा कर दी.

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पार्टी के विचार मंथन के दौरान इस बात पर भी सब एकमत दिखाई दिए कि गोवा और मणिपुर में कांग्रेस जो सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी उसके पीछे राहुल गांधी की रैलियों का ही कमाल रहा. इसी वजह से तीन बार के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान को कुछ हद तक थामने में मदद मिली और पार्टी को 28 सीट पर जीत हासिल करने में कामयाबी मिली. ये प्रस्ताव भी किया गया कि गोवा में चुनाव से पहले बीजेपी की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीट मिली तो इसके पीछे भी राहुल के प्रचार का ही प्रताप था.

जहां तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पार्टी की हार का सवाल है तो पार्टी का हर नेता इसकी जिम्मेदारी अपने सिर पर लेने के लिए तैयार दिखा.

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देश के सबसे बड़े और राजनीतिक दृष्टि से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को लेकर पार्टी के नेता इस बात पर एकमत दिखाई दिए कि वहां उम्मीद के मुताबिक पार्टी का प्रदर्शन नहीं होने के लिए कई वजहों को गिनाया गया, मसलन-

1. समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने से कांग्रेस की संभावनाओं पर असर पड़ा, पार्टी अकेले लड़ती तो कहीं बेहतर प्रदर्शन दिखाती. अखिलेश यादव के साथ जनसभाएं और रोड शो करने से लोगों का ध्यान बंट गया.

2. यूपी में समाजवादी पार्टी के कुनबे की कलह और अखिलेश सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान का कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ा.

3. प्रशांत किशोर की रणनीति पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना महंगा पड़ा.

4. पार्टी की प्रदेश इकाई को स्थानीय स्तर पर संगठन की खामियों को दूर करने के लिए जिस तरह ध्यान देना चाहिए था, वैसे नहीं दिया गया.

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यूपी में हार पर मंथन होने के बाद राहुल गांधी और प्रियंका की ओर से प्रदेश में पार्टी के प्रचार के लिए जो अथक मेहनत की गई, उसके लिए धन्यवाद प्रस्ताव पारित करने की बात हुई.

ये सब होने के बाद पार्टी की भावी रणनीति पर विचार किया गया. साथ ही कई प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई गई जैसे कि-

1. अब समय आ गया है कि राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमताओं को देखते हुए, उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पर प्रोन्नति दी जाए और पार्टी की कमान पूरी तरह उनके हाथों में सौंप दी जाए. इसके लिए बाकायदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से आग्रह करते हुए प्रस्ताव भेजा जाएगा.

2. दिल्ली एमसीडी का चुनाव अब सबसे पहले होने हैं. राहुल गांधी ने रामलीला मैदान में विशाल रैली कर पार्टी के लिए मोमेंटम बना दिया है. बस अब जरूरत आगे भी इसे बरकरार रखने की है.

3. इस साल हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी चुनाव होने हैं. इसकी पूरी रणनीति बनाने का अधिकार राहुल गांधी पर ही छोड़ा जाए.

4. 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अभी से राहुल गांधी को कांग्रेस की ओर प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए जिससे कि प्रचार में लीड ली जा सके. साथ ही सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से सहमति बनाने की कोशिश की जाए कि वे महामोर्चा बनाकर राहुल के नेतृत्व में ही अगला लोकसभा चुनाव लड़ें.

5. हालिया चुनावी पराजयों को पार्टी ने सकारात्मक तौर पर लेते हुए पार्टी ने इस सूत्रवाक्य को गिनाया-

"गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले"

कांग्रेस ने साथ ही फैसला किया कि पार्टी के योद्धाओं का चुनावी युद्धाभ्यास जारी रहे इसलिए पार्टी का वॉर रूम अब 24 घंटे काम करेगा.

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