2019 चुनाव के लिए कांग्रेस ने पेश की चुनौती
कांग्रेस ने भी संकेत दे दिया है कि समय से पहले चुनाव होने पर भी वो तैयार है. अहम बात ये रही कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंदर उन सभी नेताओं को कड़ा संदेश दिया जो राहुल गांधी के नेतृत्व से नाखुश हो सकते हैं.
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राजस्थान उपचुनाव के नतीजों से कांग्रेस का आत्मविश्वास बहुत बढ़ा हुआ है. गुजरात चुनाव में कांग्रेस के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद राजस्थान में लोक सभा की दो सीटें जीतना वास्तव में कांग्रेस के लिए काफी अहम है. 2014 में कांग्रेस को राजस्थान में एक भी सीट नहीं मिल पायी थी.
संसदीय बोर्ड की मीटिंग में सोनिया गांधी ने जो कुछ भी कहा उसमें कई तरह के संदेश देखे जा रहे हैं और उन्हीं में से एक है - समय पूर्व चुनाव के लिए भी तैयार रहने की हिदायत.
सिर्फ राहुल गांधी कोई और नहीं!
कांग्रेस के अंदर और बाहर बारी बारी यही संदेश देने की कोशिश हो रही है कि नेता के नाम पर वहां सिर्फ और सिर्फ एक नाम है - राहुल गांधी. इसको लेकर किसी को कोई कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिये. ऐसा ही मैसेज पहले कांग्रेस प्रवक्ता की ओर से विपक्षी दलों को दिया गया था - और खुद सोनिया गांधी ने कांग्रेस के उन सभी नेताओं को दी है जिन्हें राहुल गांधी के साथ काम करने में कोई न कोई दिक्कत आ रही है.
संसदीय बोर्ड की मीटिंग में सोनिया ने कहा - 'हमारे पास नये कांग्रेस अध्यक्ष हैं और मैं आपकी और खुद अपनी ओर से उन्हें शुभकामनाएं देती हूं.'
कांग्रेस में सभी के 'बॉस' !
बात कहीं इतने में ही न निबट जाये इसलिए सोनिया ने जोर देकर सभी को फिर से याद दिलाने की कोशिश की - 'वो अब मेरे भी बॉस हैं. इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिये.' सोनिया की ये बात कांग्रेस के उन सभी नेताओँ के लिए सख्त संदेश मानी जा रही है जो राहुल गांधी को अध्यक्ष बनने से खुश नहीं हैं.
सोनिया गांधी ने उम्मीद जतायी की कर्नाटक में भी कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करेगी. गुजरात की लड़ाई को उन्होंने मुश्किल बताया और राजस्थान में कांग्रेस के प्रदर्शन की तारीफ की. फिर मोदी सरकार पर बरसीं, 'इस सरकार को सत्ता में आए हुए करीब चार साल हो चुके हैं. इस दौरान संसद, न्यायपालिका, मीडिया और सिविल सोसायटी समेत कई लोकतांत्रिक संस्थानों को निशाना बनाया गया.' सोनिया ने दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक घटनाओं को राजनीतिक फायदे के लिए बताया और आरोप लगाया कि उसी के लिए समाज में ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है.
जैसा कि सोनिया गांधी के बारे में पहले भी कहा गया था कि उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ा है राजनीति नहीं. अब उसी बात को आगे ऐसे बढ़ाया गया है कि सोनिया गांधी आने वाले दिनों में मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश करेंगी. वैसे सोनिया गांधी तो राष्ट्रपति चुनाव के वक्त से ही ऐसी कोशिशें कर रही हैं, लेकिन इस राह में इतने सारे अड़ंगे हैं कि बात आगे बढती ही नहीं.
अकेले राहुल गांधी 2019 में कहां खड़े होंगे?
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का हाल ही में बयान आया था कि देश में नरेंद्र मोदी का विकल्प सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं. सुरजेवाला की ये बात उन नेताओं को बहुत रास नहीं आयी जिनके साथ खड़े होने की कांग्रेस को उम्मीद रही होगी.
आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा ने ये तो कहा कि कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी की सोच सकारात्मक है, लेकिन लोकतंत्र में फैसला सामूहिक तौर पर होना चाहिये. हालांकि, मनोज झा की राय में राहुल की राजनीति मोदी की तुलना में भारत की आत्मा के करीब है.
लेकिन समाजवाही पार्टी को सुरजेवाला की बात बिलकुल पसंद नहीं आयी है. समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी तो मोदी के मुकाबले अखिलेश यादव को ही बड़ा विकल्प बता रहे हैं.
हाल ही में आये इंडिया टुडे सर्वे में पाया गया था कि मोदी अब भी सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन पहले की तुलना में इसमें गिरावट आयी है. दूसरी तरफ, राहुल गांधी की लोकप्रियता में इजाफा दर्ज किया गया है. सर्वे के मुताबिक अभी चुनाव होने पर एनडीए को 309 सीटें और यूपीए को 102 सीटें मिलने की उम्मीद जतायी गयी थी जबकि बाकियों के हिस्से में 132 सीटों की संभावना है. इससे पहले हुए सर्वे में एनडीए को 349 और यूपीए को 75 सीटों की उम्मीद जतायी गयी थी.
गुजरात चुनाव कांग्रेस इतनी मजबूत इस बार इसीलिए आयी क्योंकि बीजेपी के कट्टर विरोधी उसके साथ लगातार डटे रहे. आखिर गुजरात के हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी - भी तो मौजूदा दौर में वैसे ही हैं जैसे यूपी में अखिलेश और मायावती की धाक रही है.
कांग्रेस की चुनावी चाल
कांग्रेस की जो टीम 2019 की तैयारी में जुटी है उसे लगता है कि बीजेपी के गढ़ गुजरात में अगर उसे घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकता है, फिर तो बाकी जगहों के लिए क्या कहना. अगर ऐसा ही मुकाबला वहां हो जहां कांग्रेस परंपरागत तौर पर मजबूत है या फिर दोनों के बीच सीधी टक्कर है तो निश्चित रूप से नतीजे अलग हो सकते हैं. कांग्रेस उन इलाकों में ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश में है जहां विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ता पहले से ही जी जान से जुटे हैं. अब सवाल है कि अगर 2019 से पहले चुनाव हुए और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ भी साथ ही हो गये तो बीजेपी उसका पूरा फायदा उठाना चाहेगी. हालांकि, मीडिया रिपोर्ट में कांग्रेस के कुछ नेताओँ ने इससे असहमति जतायी है.
कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी ने 2014 में जितनी सीटें हासिल की थीं, 2019 में उससे बेहतर प्रदर्शन तो नहीं ही करेगी. सीटों की संख्या को लेकर तो नहीं लेकिन बीजेपी खुद भी ये मान कर चल रही है कि जरूरी नहीं कि पार्टी उन सभी सीटों को फिर से जीत पाएगी जहां 2014 में वो विजयी रही थी. यही वजह है कि बीजेपी देश भर के 150 उन सीटों पर खास जोर दे रही है जहां उम्मीदवार कम अंतर से चुनाव हार गये थे.
कांग्रेस की भी इस मामले में तैयारी बीजेपी से मिलती जुलती है. कांग्रेस ने भी ऐसे 60 सीटों की पहचान की है जहां बीजेपी को भारी मुश्किल हुई थी. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि 2019 चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री नहीं चुने जा सकेंगे. नेता ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'ऐसा लग रहा है कि 2019 में या तो कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी या फिर बीजेपी अगर सत्ता में वापस भी आई तो पीएम नरेंद्र मोदी नहीं होंगे. मोदी की कार्यशैली गठबंधन को बनाकर रखने की नहीं है. शिवसेना, टीडीपी और अकाली दलों की तरफ से आ रही टकराव की खबरें इस बात की पुष्टि करती हैं.'
कांग्रेस की नॉर्थ-ईस्ट चुनावों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखती, लेकिन कर्नाटक पर पूरा जोर है. राहुल गांधी तीन दिन के दौरे पर कर्नाटक 10 फरवरी को पहुंच रहे हैं. कर्नाटक के बाद कांग्रेस का जोर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों को लेकर है. आगे की तैयारियों के तहत लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का चुनावी विश्लेषण भी शुरू हो चुका है.
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