जैसे बीजेपी के लिए गुजरात था, वैसे कांग्रेस के लिए मेघालय है
भले ही मेघालय छोटा राज्य हो मगर मेघालय की सत्ता बचाना कांग्रेस के मनोबल को बनाये रखने में काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है. क्योंकि अगले एक साल में कई चुनाव होने हैं.
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चुनाव आयोग ने नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. त्रिपुरा में 18 फरवरी को जबकि मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को चुनाव होंगे. त्रिपुरा में जहां लेफ्ट की सरकार है, वहीं, मेघालय में कांग्रेस सत्ता में है. नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन सत्तासीन है. डेमोक्रेटिक गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी साझीदार है.
इन चुनावों को जहां भारतीय जनता पार्टी अपने 'कांग्रेस मुक्त भारत' की ओर एक और कदम बढ़ाने के सुनहरे मौके के रूप में देख रही है, जहां उसके पास मेघालय में सत्तासीन कांग्रेस को हराने का एक सुनहरा अवसर है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेघालय के दो दौरे कर चुके हैं.
तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के लिए परेशानियां कम होने का नाम ही नहीं ले रही. अभी हाल ही में संपन्न हुए गुजरात चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि शायद कांग्रेस अब एक नयी ऊर्जा के साथ भारतीय जनता पार्टी से लोहा लेगी. मगर मेघालय में जिस तरह से कांग्रेसी विधायक लगातार पार्टी का दामन छोड़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि खुद पार्टी के नेता ही अपनी पार्टी के विश्वनीयता को लेकर आश्वस्त नहीं दिखते. पिछले एक महीने में पार्टी के कम से कम 7 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं. इनमें से जहां पांच नेशनल पीपल पार्टी के साथ हो लिए हैं, तो साथ ही दो ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है.
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कांग्रेस पार्टी की कुछ ऐसी ही स्थिति गुजरात चुनावों के पहले भी थी, जब पार्टी विधायक पार्टी का दामन छोड़ रहे थे. परिस्थिति तो ऐसी हो गयी थी कि कांग्रेस को अपने वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को राज्यसभा भेजने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ी थी. हालांकि इसके बाद राहुल गांधी ने पूरे गुजरात में जबरदस्त प्रचार किया था और चुनावों में इसका फायदा भी कांग्रेस को मिला. चुनावों से पूर्व हांफती हुई कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देने में कामयाब रही थी.
अब कल से राहुल गांधी दो दिनों के मेघालय दौरे पर हैं, जहां वो पार्टी नेताओं से मुलाकात करेंगे. ऐसे में राहुल गांधी से यही उम्मीद होगी कि वो पार्टी के कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार कर पाने में सफल रहें. साथ ही यह भरोसा दिला पाएं कि उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से लोहा लेने में सक्षम है. अन्यथा कांग्रेस इन चुनावों में कुछ बेहतर कर सके ऐसा लगता नहीं.
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वैसे कांग्रेस का सारा ध्यान अभी से ही कर्नाटक में अपना किला बचाने की ओर है. कर्नाटक अपेक्षाकृत बड़ा राज्य है और कांग्रेस इसे हारने की स्थिति में केवल पंजाब और पुडुचेरी जैसे राज्यों में सिमट जाएगी. कांग्रेस हालांकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों के दौरान भी यही गलती कर चुकी है. हिमाचल में सत्ता में होने के बावजूद उसे बचाने को लेकर कुछ ख़ास मेहनत उन्होंने नहीं की थी और एक तरह से उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था.
अब मेघालय चुनावों में कांग्रेस की कैसी रणनीति होगी यह देखना दिलचस्प होगा. वैसे भले ही मेघालय छोटा राज्य हो मगर मेघालय की सत्ता बचाना कांग्रेस के मनोबल को बनाये रखने में काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है. क्योंकि अगले एक साल में कई चुनाव होने हैं. 2018 में ही इन चुनावों के बाद पांच और राज्यों में चुनाव हैं. वहीं 2019 की शुरुआत से ही देश लोकसभा चुनावों के मोड में चला जायेगा. ऐसे में तीन राज्यों के चुनाव परिणाम भी कांग्रेस के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहने वाले हैं.
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