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Updated: 22 सितम्बर, 2018 11:40 AM
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छत्तीसगढ़ में मायावती और अजित जोगी के गठबंधन का असर दूरगामी ज्यादा लगता है, बनिस्बत तात्कालिक के. ऐसे में जबकि कांग्रेस नेतृत्व केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ 2019 के लिए विपक्ष को एकजुट करने में जी जान से जुटी है, ये समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यूपी में भी यही हाल होने वाला है क्या? मध्य प्रदेश को लेकर जिस तरीके से मायावती की बीएसपी ने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है उससे शक का दायरा बढ़ा हुआ ही लगता है. कांग्रेस के लिए चिंता की बात ये है कि ये सब उसके खिलाफ जा रहा है.

2018 के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाले मध्य प्रदेश और राजस्थान से पहले रोड शो करने राहुल गांधी छत्तीसगढ़ ही पहुंचे थे - और तब से लगातार कोशिशें जारी रहीं कि सूबे में बीजेपी के खिलाफ बाकियों को कैसे एक मंच पर लाया जा सके.

स्लोगन से कितना हासिल?

जब से राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर से लौटे हैं कांग्रेस कार्यकर्ता नये नारे से उनका स्वागत कर रहे हैं - 'हर-हर बम बम'. राहुल गांधी के लिए भले ही इसका इस्तेमाल नया हो, लेकिन नारा पुराना है. ये नारा अमूमन मूर्ति विसर्जन के दौरान सुनने को मिलता रहा है या फिर छात्र संघ चुनावों में. चूंकि ये सॉफ्ट हिंदुत्व के खांचे में फिट बैठता है इसलिए कांग्रेस इसे अपनाने की कोशिश कर रही है.

भोपाल में राहुल गांधी के रोड शो से पहले ही बतौर शिव भक्त उनके पोस्टर लगे हुए थे, जब पहुंचे तो शंखनाद के साथ भव्य स्वागत भी हुआ. 'हर हर बम बम' के नारे तो यकीन दिलाने में जुटे थे कि गुजरात से शुरू हुई कांग्रेस की भक्ति यात्रा कर्नाटक होते हुए मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी श्रद्धाभाव के साथ ही गुजरेगी.

मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में भी एक से बढ़ कर एक नारे गढ़े जा रहे हैं. एक स्लोगन में तो सीधे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही टारगेट किया गया है - 'गली गली में शोर है, हिंदुस्तान का चौकीदार चोर है.'

हैरानी की बात ये है कि प्रधानमंत्री पद के सम्मान का दावा करने वाले राहुल गांधी खुद ये नारा लगा रहे हैं - और साथ में उनकी सभा में जुटी भीड़ भी दोहराए जा रही है.

ऐसी तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस अब तक 'विकास पागल है' जैसा स्लोगन नहीं तलाश पायी है - जो 'अच्छे दिन आने वाले हैं' जैसा प्रभावी हो. इसीलिए सवाल उठता है कि क्या इन नारों के भरोसे ही कांग्रेस तीनों राज्यों में अपनी सरकार बनने का दावा कर रही है.

मिशन 'टॉप सीक्रेट' छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में विपक्ष के पास बहुत बड़ा मौका है. मुख्यमंत्री रमन सिंह की सरकार भले ही सारी चीजें मैनेज करने में कामयाब क्यों न हो जाये - एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर की चुनौती बहुत बड़ी होती है. मगर, ये बड़ी चुनौती तभी होती है जब सामने से भी कोई चुनौती दे. रमन सिंह किस्मत वाले नजर आ रहे हैं कि उन्हें चैलेंज करने वाला कोई विकल्प नहीं खड़ा हो पा रहा है.

मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ जैसे राज्यों में तो हाल ये हो चला है कि पूरी की पूरी एक पीढ़ी ही नेतृत्वविहीन जैसी हो चली है. अजित जोगी के अलग पार्टी बनाने के बाद से कांग्रेस कोई ऐसा नेता नहीं तैयार कर सकी है जो सत्ताधारी बीजेपी को उतनी ही मजबूती से चैलेंज कर सके. ये जरूर है कि नक्सल हमले में कांग्रेस को पहली कतार के कई नेता गंवाने पड़े, लेकिन एक लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी कांग्रेस खड़ा भले हो रही हो, लेकिन चैलेंज करने के लिए तो दौड़ना पड़ता है.

ajit jogi, mayawatiकांग्रेस की मुश्किल अभी नहीं, बाद में...

ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस और मायावती के बीच तीनों राज्यों में गठबंधन हो जाएगा. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर मायावती के नाम पर अनापत्ति प्रमाण पत्र देकर इसे ट्रैक पर लाने की कोशिश की थी. मगर मायावती ने अपना मिशन टॉप सीक्रेट रखा - और आखिर तक किसी को भनक तक न लगी.

अजित जोगी को कई साल से ट्रेन ही नहीं हवाई यात्रा से बचने की सलाह दी गयी है, बावजूद इसके वो डील को अंतिम रूप देने के लिए दिल्ली होते हुए सड़क से लखनऊ पहुंचे थे. डील पक्की हो जाने के बाद भी दोनों में से किसी ने प्रेस कांफ्रेंस नहीं की और खबर सिर्फ एजेंसी को देकर चुप्पी अख्तियार कर ली. लखनऊ के मीडिया को जब तक भनक लगती छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी शहर से काफी दूर जा चुके थे.

छत्तीसगढ़ को लेकर कांग्रेस के लिए बहुत अफसोस की बात नहीं है, उसके सामने चुनौती 2019 के लिए प्रस्तावित महागठबंधन है. बीजेपी की इसमें कोई भूमिका हो न हो, पूरा फायदा तो उसी को मिलने वाला है.

कांग्रेस को असली झटका मध्य प्रदेश में लगा है

कांग्रेस की ओर से ऐसे संकेत दिये जा रहे थे कि मध्य प्रदेश में अपनी कोर टीम के अलावा वो गुजरात के कई चेहरों को भी चुनाव प्रचार में उतारेगी. इसका मकसद शिवराज सिंह चौहान की सरकार से नाराज स्थानीय नेताओं को एकजुट करना था. बीएसपी के साथ गठजोड़ तो बड़ा सपोर्ट था. अब तो बीएसपी ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के साथ ही अपने 22 उम्मीदवारों की भी घोषणा कर डाली है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए बड़ी बाधा नेताओं की गुटबाजी है. मध्य प्रदेश में वैसे तो हर नेता अपनेआप में बड़ा क्षत्रप होता है और पूरा इलाका उसी का होता है, लेकिन नेतृत्व उसे साथ बनाये रखता है. कुछ तो संघ की वजह से और कुछ विचारधारा के कारण बीजेपी इस मामले में कांग्रेस के कदम कदम पर बीस पड़ती है.

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राजस्थान में तो राहुल गांधी से समझा बुझा कर अशोक गहलोत को सचिन पायलट की मोटर साइकल के पीछे बिठा दिया, लेकिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों अलग अलग नावों पर अब भी सवार हैं. बीच बीच में दिग्विजय सिंह टांग अड़ाते भी हैं तो कभी कभी खींचते भी रहते हैं. मध्य प्रदेश को लेकर बीएसपी की घोषणा के बावजूद एक खबर ये भी आ रही है कि विपक्षी दलों का एक गैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाने की भी कोशिश चल रही है. बताते हैं कि करीब 150 सीटों पर बीएसपी के साथ समाजवादी पार्टी और स्थानीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आम राय बनाने की कोशिश में लगे हैं.

अगर ऐसा वास्तव में हो जाता है तो कांग्रेस को यूपी को लेकर और परेशान होना पड़ेगा. कांग्रेस को अब मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी ही नहीं उसके खिलाफ भी लामबंदी तेजी से चल रही है.

राजस्थान मे हाल जरूर बेहतर है

चुनावी नारों का सबसे ज्यादा इस्मेमाल कांग्रेस राजस्थान में ही कर रही है. बीजेपी के 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' को काउंटर करने के मकसद से 'हर-हर कांग्रेस, घर-घर कांग्रेस' गढ़ा गया है. 'गली गली में शोर...' तो रेतीली धरती की हवाओं में गूंज ही रहा है.

राजस्थान में कांग्रेस के सत्ता में वापसी की वजहें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से काफी ज्यादा है. पहली वजह तो अपवादों को छोड़ कर बारी बारी से बीजेपी और दोनों सरकार बनाना है. दूसरी वजह वसुंधरा राजे के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है. तीसरी वजह, हाल फिलहाल के उपचुनावों के नतीजे हैं. दो लोक सभा सहित सारे उपचुनाव जीतने से कांग्रेस कार्यकर्ता जोश से लबालब हैं.

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