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Updated: 26 अप्रिल, 2021 10:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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टेलीविजन के आने से पहले कोई भी बात रेडियो पर सिर्फ सुना जा सकता था - आंख मूंद कर. चाहे कोई भी बड़ी खबर हो या क्रिकेट की कमेंट्री. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मन की बात कार्यक्रम बना तो रेडियो के लिए है, लेकिन वो टीवी पर देखने को भी मिल जाता है - अगर आंख मूंद कर मन की बात सुनें तो बड़ा ही सुकून देने वाला लगता है, लेकिन आंख खुलते ही जो नजारा दिखता है रूह कांप उठती है.

मन की बात के ताजा एपिसोड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका थोड़ी बदली हुई सी लगी. वो अक्सर देश के अलग अलग हिस्सों से लोगों को मन की बात में शामिल करते रहे हैं. पहले भी कोविड (Covid 19 Second Wave) के संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों के अनुभव भी मन की बात में सुनने को मिले हैं - लेकिन इस बार लगा जैसे प्रधानमंत्री मन की बात को होस्ट कर रहे हों. अपनी बात कम और औरों की बातें ज्यादा सुनाने की कोशिश नजर आयी.

मन की बात में शामिल लोगों की बातें कितने उनके मन की होती हैं ये तो नहीं मालूम, लेकिन कैमरे पर ऑक्सीजन के लिए मरीज के परिवार के लोग जो रोते और चिल्लाते नजर आ रहे हैं, मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर बात करते करते बिलखने लगते हैं - और अस्पतालों के अधिकारी मरीजों को न बचा पाने की मजबूरी बताते वक्त अपने आंसू नहीं रोक पाते उनको भी कोई सुन या देख रहा है क्या?

कैमरे पर जो कराह और सिसकियां उठ रही हैं, वे मन की बात में शुमार लोगों के अनुभवों को मुंह चिढ़ा रही हैं - जमीनी हालात की हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश कर रही हैं.

टीवी कैमरे पर तो ऐसी बातें सामने आ भी जा रही हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर जो चीत्कार उठ रही है उसके खिलाफ सरकार की सक्रियता के सबूत और रुझान भी आने लगे हैं - और इस बीच सरकारी फरमान पर ट्विटर ने ऐसे कई ट्वीट डिलीट किये हैं जो सिस्टम के फेल होने को लेकर आवाज उठा रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात के बीच होम आइसोलेशन से ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ट्वीट किया है - 'सिस्टम फेल हो गया है.'

सवाल है कि सिस्टम क्यों फेल हो गया है - और फेल हुआ भी है तो कौन जिम्मेदार है? किसी न किसी की तो जिम्मेदारी बनती ही होगी?

जो सिस्टम फेल हुआ है वो किसका बनाया हुआ है - क्या ये जवाहर लाल नेहरू का बनाया सिस्टम है? नेहरू ने तो योजना आयोग बनाया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे खत्म कर एक नया नीति आयोग बनाया है. नीति आयोग के ही सदस्य डॉक्टर वीके पॉल कोविड संकट में स्वास्थ्य सेवाओं की दृष्टि से निगरानी भी कर रहे हैं - और हर वक्त यथाशक्ति सलाह भी दे रहे हैं.

क्या ऐसा लगता है कि कोरोना वायरस की वजह से सिस्टम फेल हुआ है या फिर कोविड से पैदा हुए हालात ने सिर्फ सिस्टम से पर्दा भर उठाया है?

एहतियाती उपाय क्यों जरूरी होते हैं?

ये मेडिकल साइंस का ही सूत्र वाक्य है - 'रोगों की रोकथाम, इलाज से बेहतर होता है.' ठीक वैसे ही जैसे कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए एहतियाती तौर पर धारा 144 लागू कर दी जाती है. कोरोना वायरस के फैलाव पर काबू पाने के मकसद से धारा 144 तो महाराष्ट्र में भी लागू की गयी, लेकिन बहुत कुछ नुकसान हो जाने के बाद.

जब चारों तरफ ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है तो प्लांट लगाने की खबरें भी आ रही हैं. अभी अभी पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार से वक्त निकाल कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने संसदीय क्षेत्र गांधीनगर में भी ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने गये थे - और भरोसा भी दिलाया कि जब ऑक्सीजन का उत्पादन होने लगेगा तो गुजरात की जरूरत पूरी होने के बाद दूसरे राज्यों में भी आपूर्ति की कोशिश होगी.

एक गुड न्यूज ये भी है कि केंद्र सरकार ने ऑक्‍सीजन की जरूरी उपलब्‍धता सुनिश्चित कराने के लिए 551 ऑक्‍सीजन प्‍लांट स्‍थापित करने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ट्वीट करके ये जानकारी दी है.

arvind kejriwal, narendra modi, rahul gandhiसिस्टम के नाम पर कब तक राजनीति चमकेगी?

प्रधानमंत्री ने कहा है कि ये प्लांट जल्द से जल्द शुरू कराया जाएगा. प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद जतायी है कि इस महत्वपूर्ण कदम से अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपब्धता बढ़ेगी और देश भर के लोगों को मदद मिलेगी.

अच्छा प्रयास है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट के साथ एक नोट भी अटैच किया है जिससे पता चलता है कि पीएम केयर्स फंड से ये काम कराया जा रहा है. वैसे भी पीएम केयर्स फंड को लेकर सवाल उठ रहे थे, ऐसे सवालों पर विराम लग सकेगा.

ऑक्सीजन के घोर अभाव को लेकर सबसे ज्यादा परेशान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं. प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग में भी केजरीवाल ने ये मामला उठाया था. दिल्ली के कई अस्पताल भी ऑक्सीजन को लेकर सरकारी मदद न मिल पाने की स्थिति में हाईकोर्ट गये हुए हैं. ऑक्सीजन की स्थिति सुनने के बाद तो सुनवाई कर रही हाईकोर्ट की पीठ ने यहां तक कह डाला कि ऑक्सीजन की सप्लाई में कोई बाधा बना तो उसके लटका देंगे - और वो कोई भी हो.

अरविंद केजरीवाल के ऑक्सीजन के अभाव का मुद्दा उठाये जाने के बाद असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमंता बिस्व सरमा की तरफ से जवाब आया है. असल में अरविंद केजरीवाल कह रहे थे कि दिल्ली में ऑक्सीजन प्लांट नहीं है इसलिए दिक्कत ज्यादा है.

ट्विटर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को टैग करते हुए असम के मंत्री ने बताया है कि दिसंबर, 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली को पीएम केयर्स के तहत 8 प्लांट लगाने के लिए फंड मुहैया कराया था, लेकिन आपकी सरकार फेल रही और 8 में से सिर्फ 1 ही लगा सकी - फिर PM मोदी को दोष क्यों दे रहे हैं?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि केंद्र से हमें सहयोग मिल रहा है, लेकिन लगे हाथ वो ये भी बताते हैं कि उनको 700 टन (MT) की जरूरत है - केंद्र ने कहा था 480 टन देने के लिए और मिल रहा है 335 टन ही - मतलब जितनी जरूरत है उसके आधे से भी कम.

द प्रिंट की एक रिपोर्ट से मालूम हुआ कि कैसे देश के सबसे सीनियर अफसरों की मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तैयारियों पर न सिर्फ असंतोष जताया कि बल्कि गहरी नाराजगी भी जतायी. सूत्रों के हवाले से तैयार की गयी रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने अफसरों से कहा कि पिछली बार की तरह कोरोना संकट को लेकर उनमें उत्साह भी नहीं नजर आ रहा है, जबकि पुराने अनुभवों के चलते इस बार बेहतर तैयारियां हो सकती थीं.

मार्च, 2020 में मोदी सरकार ने सचिव स्तर के अफसरों के नेतृत्व में 11 एम्पावर्ड ग्रुप बनाये थे और ये ग्रुप ही कोविड प्रोटोकॉल से जुड़े सारे कामकाज की मॉनिटरिंग करता रहा और प्रधानमंत्री को अपडेट करता रहा. प्रधानमंत्री मोदी ने एक्सपर्ट ग्रुप को लेकर भी नाराजगी जतायी है. प्रधानमंत्री मोदी ने यहां तक कह डाला कि तकनीकी दक्षता वाले ऐसे एक्सपर्ट ग्रुप के होने का क्या फायदा जब ऐसी भारी तादाद में सामने आ रहे कोविड के मामलों को को हैंडल करने में वो कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं.

ये सिस्टम तो फेल होना ही था

पंचायती राज दिवस के एक डिजिटल आयोजन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर सूरत में गांवों तक संक्रमण पहुंचने से रोकना होगा. मालूम होना चाहिये कि अब ये रोकने से भी नहीं रुकने वाला - क्योंकि गांवों को भी कोविड अपने संक्रमण की चपेट में पहले ही ले चुका है.

हो सकता है ये सिस्टम की ही खामी हो जो प्रधानमंत्री मोदी तक जमीनी हकीकत नहीं पहुंच पा रही है. बनारस, लखनऊ, कानपुर या प्रयागराज जैसे शहरों में ऑक्सीजन और बेड के लिए जो मारा-मारी मची है वे लोग सिर्फ उन शहरों के बाशिंदे ही नहीं हैं, बल्कि दूरदराज के गांवों के अस्पतालों से भेजे हुए मरीज और उनके परिवार के लोग और रिश्तेदार हैं - और जो दिखायी दे रहे हैं वे ही सभी आने वाले नहीं हैं क्योंकि ऐसे कई मरीज हैं जो शहर पहुंचने से पहले ही रास्ते में दम तोड़ दे रहे हैं.

आखिर पुलवामा आतंकी हमला भी तो सिस्टम की ही खामी का नतीजा रहा - क्या खुफिया इनपुट पर एक्शन लेकर और तमाम दूसरे एहतियात बरतते हुए उसे रोका नहीं जा सकता था?

अब सर्जिकल स्ट्राइक ही करना है तो कोरोना वायरस से पैदा हुए हालात के बाद प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम जो कुछ भी कर रही है वो सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ही तो है. साढ़े पांच सौ ऑक्सीजन के प्लांट लगाने की कोशिश या अमित शाह का गांधी नगर में ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन आखिर सर्जिकल स्ट्राइक नहीं तो क्या है - लेकिन ये नौबत आये ही क्यों अगर पहले से ही अलर्ट रहा जाये.

अब कोरोना वायरस की तैयारियों की ही बात करें तो पता चला है कि संसद की एक स्थायी समिति ने नवंबर, 2020 में ही केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि अस्पतालों में बेड की संख्या और ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया जाये. समिति की ये भी सलाह रही कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य प्राधिकरण को ऑक्सीजन सिलिंडर की कीमत का निर्धारण करना चाहिये ताकि ये किफायती दर पर लोगों के लिए उपलब्ध हो सके.

समिति के साथ राजनीतिक बाधा ये जरूर रही कि उसके अध्यक्ष समाजवादी पार्टी के महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव हैं, लेकिन ये भी सच है कि समिति में 16 सदस्य बीजेपी के भी हैं.

समिति ने स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने और स्वास्थ्य सेवाओं के विकेंद्रीकरण की भी सलाह दी थी - और इस बात का जिक्र भी कि अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर की कमी के कारण महामारी पर अंकुश लगाने के प्रयास पर असर पड़ रहा है.

कहीं सिस्टम के फेल होने की नयी कहानी वैसे ही तो नहीं सुनायी जा रही है जैसे चुनावी हार के बाद नेतृत्व को बचाने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी ले ली जाती है. ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ बीजेपी में ही होता है, कांग्रेस में भी बिलकुल ऐसा ही होता है - और बार बार हो रहा है. अगर इतने भर से मन नहीं मानता तो हार की समीक्षा के लिए एक कमेटी भी बना दी जाती है. कमेटी ने कैसे समीक्षा की ये तो नहीं बताया जाता, लेकिन एक दिन बता दिया जाता है कि सब कुछ टीम वर्क होता है - और ये सबकी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है.

बेशक सिस्टम के फेल होने की जिम्मेदारी सामूहिक बनती है, लेकिन वो तब होता है जब सिस्मट का हर हिस्सा न सही, लेकिन कुछ हिस्से तो सभी फैसलों में हिस्सेदार होते हों - लेकिन जब एक ही या दो व्यक्ति पूरे सिस्टम को चला रहे हों तो पूरे सिस्टम को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

1999 सनसनीखेज जेसिका लाल हत्याकांड में जब निचली अदालत से सारे आरोपी छूट गये तो एक अंग्रेजी अखबार की हेडलाइन थी - "नो वन किल्ड जेसिका". लगता है सिस्टम जिम्मेदारियों का ठीकरा फोड़ने का नया ठिकाना बनाया जा रहा है. सीनियर पत्रकार प्रकाश के रे ने फेसबुक पर बड़ी सटीक टिप्पणी की है - "कोई सिस्टम कोलैप्स नहीं हुआ है, यही सिस्टम है."

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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