आनंदीबेन सरकार की वो गलतियां जिसके कारण भड़का दलितों का गुस्सा
गुजरात में अगल दलित सड़क पर उतरे तो इसका एक बड़ा कारण सरकार की विफलता भी मानी जा रही है. गुजरात सरकार ने समय रहते घटना की गंभीरता को नहीं समझा. कई और कारण भी हैं जिसने इस घटना को इतना तूल दिया..
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गुजरात में दलितों के सड़क पर उतरने की एक बड़ी वजह आनंदीबेन पटेल सरकार की विफलता है. दरअसल, घटना के बाद सरकार द्वारा की गई कार्यवाई की बात को मीडिया से शेयर नहीं किया गया. इसके बाद लोगों को इकट्ठा होने और इसे आंदोलन का रूप देने का मौका मिला. इसने BSP को भी एक मौका दे दिया है जो अब तक राज्य में उतनी सक्रिय नहीं रही है. साथ ही कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को भी सरकार को घेरने का एक मौका मिल गया.
आईए, जानते हैं आंनदीबेन पटेल सरकार की उन गलतियों के बारे में जिसके कारण दलितों का आंदोलन आक्रामक रूप लेता चला गया..
- गौरक्षकों द्वारा दलितों को पीटे जाने के बाद जब वीडियो मीडिया में वायरल होने लगा, तब सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. दूसरे दिन जब दलितों ने मिलकर पुलिस स्टेशन का घेराव किया तब जाकर सरकार हरकत में आई और पुलिस ने आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करने का आदेश दिया. इसके बाद पांच गौरक्षकों को गिरफ्तार किया गया.
- पुलिस स्टेशन के सामने दलीतों को मारे जाने के मामले अगर तूल पकड़ा तो इसका एक कारण पुलिस की लचर शैली भी रही. पुलिस अगर घटना वाले दिन यानी 11 जुलाई को ही कड़े कदम उठाती तो मुद्दा इतना तूल नहीं पकड़ता.
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- इसमें कुछ हद तक सरकार को भी दोषी करार दिया जा सकता है. मामला संवेदनशील होने के चलते अगर शुरू से ही इस पर नजर रखी गयी होती तो आज यह सरकार के लिए गले की फांस नहीं बनता.
- शुरुआत में सरकार इसे एक आम मामला ही मान रही थी. इस कारण पहले तो पीड़ितो के लिए 4 लाख के मुआवजे की घोषना हुई और 5 मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया. हालंकि इसकी जानकारी किसी भी मीडिया या दलित समुदाय तक नहीं पहुंचाई गई.
- एक हफ्ते बाद जब मायावती ने इस मामले को राज्यसभा में उठाया तब सरकार हरकत में आई. आननफानन में सरकार ने कार्यवाही करते हुए और 7 लोगो को गिरफ्तार किया. इस मामले की पूरी जांच CID क्राईम को सौंपी गई. इतना ही नहीं 60 दिन में चार्जशीट कर स्पेशल कोर्ट में मामला चले, ये घोषण भी कर दी गई.
सरकार और पुलिस का ढीला रवैया बना दलितों के गुस्से की वजह... |
- सरकार की यह घोषणा काफी देर से हुई. वैसे देखा जाए तो जिस तरह की घटना थी इसमें इससे ज्यादा सरकारी कार्रवाई की क्या उम्मीद की जा सकती है. लेकिन अब इस मुद्दे ने न्याय, और अत्याचार से हटकर राजनीतिक शक्ल ले ली है
- सरकारी घोषणा में देरी के चलते दलितों को भी वक्त मिला ओर राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो गईं. इसके चलते इन आठ दिनों में दलित अत्याचार मामले ने राजनीतिक स्वरुप ले लिया था.
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- 11 जुलाई को हुए इस हादसे में सूबे की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को पीड़ित परिवार ओर पीड़ितों से मिलने में 9 दिन का वक्त लग गया. दरअसल, पीडितों से मिलने का फैसला भी तब हुआ जब आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ऊना के पीड़ित परिवार से मिलने की घोषणा की.
- खास कर ये देखा गया है कि बीजेपी सरकार हमेशा गाय के कत्ल के मुद्दे पर संवेदनशील रहती है. पुलिस जहां गाय को खाए जाने के मामलों को रोक नही पाती. वहां अब गौरक्षक जैसे संगठन के लोग सक्रिय नजर आते हैं. सरकार ने कभी ऐसे गौरक्षकों के खिलाफ कभी कोई कार्यवाई नहीं की. क्योंकि कुल मिलाकर ये बीजेपी सरकार को ही वोट बैंक का फायदा कराते हैं. ये भी सरकार कि निष्क्रियता के लिये बड़ी वजह मानी जाती है.
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