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Updated: 11 जनवरी, 2023 04:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए पंजाब का मामला शुरू से ही बेहद संवेदनशील रहा है. राहुल गांधी अपनी तरफ से पंजाब के लोगों और गांधी परिवार के रिश्ते को नाजुक मोड़ से आगे ले जाने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर उनका स्टैंड हमेशा ही राहुल गांधी को उनके राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर ला देता है - और एक बार फिर उनके स्वर्ण मंदिर जाने पर वही सारी बातें दोहरायी जा रही हैं.

बाकी लोग तो हैरान हैं ही, पंजाब कांग्रेस के नेता भी भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) से पहले राहुल गांधी के स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) जाने के कार्यक्रम को लेकर सकते में हैं. ये सब इसलिए नहीं कि राहुल गांधी वहां क्यों गये, बल्कि इसलिए क्योंकि राहुल गांधी के स्वर्णमंदिर जाने के कार्यक्रम को गोपनीय रखे जाने की वजह क्या हो सकती है? असल में, राहुल गांधी के अमृतसर पहुंचने से कुछ देर पहले तक पंजाब कांग्रेस के नेताओं को ये नहीं मालूम था कि वो स्वर्ण मंदिर जाकर मत्था टेकने वाले हैं.

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक अपने अचरज भरे फैसलों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन राहुल गांधी ऐसे झटके देने की स्टाइल अलग ही होती है. वो कभी जोर का झटका धीरे से नहीं देते. अगर देने का प्रयास भी होता होगा तो, समझ में तो नहीं ही आता है.

भरी संसद में लाइव टीवी पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट पर जाकर गले मिलते देखना भी लोगों को ऐसा ही लगा था - और उसके बाद जो राहुल गांधी ने किया बार बार क्या ही जिक्र किया जाये?

कुछ दिनों से ये भी देखने को मिल रहा है, जब भी राहुल गांधी पंजाब का रुख करते हैं या वहां के लोगों से जुड़ने की कोशिश करते हैं, सबसे जोरदार हमला अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल की तरफ से ही होता. किसान आंदोलन के दौरान भी जब राहुल गांधी पंजाब के किसानों की आवाज उठा रहे थे, हरसिमरत कौर कूद पड़ीं पर 1984 के सिख दंगों की याद दिला कर राहुल गांधी पर तो जैसे टूट ही पड़ीं. और अब भी हरसिमरत कौर बादल ही सबसे ज्यादा आक्रामक नजर आ रही हैं - हालांकि, ऐसे रिएक्शन के लिए कहीं न कहीं पंजाब को लेकर राहुल गांधी का रुख भी जिम्मेदार लगता है.

हरसिमरत कौर अब राहुल गांधी के कार्यक्रम को लेकर पंजाब कांग्रेस के नेताओं को भी धिक्कार रही हैं. अकाली नेता ने राहुल गांधी के बहाने गांधी परिवार पर सिखों से गद्दारी और सिखों के धार्मिक स्थल को नष्ट करने का आरोप लगाया है.

अव्वल तो हरसिमरत कौर का ये आक्रामक रुख अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे अकाली दल को पंजाब के लोगों के दिमाग से ओझल न होने देने की कवायद ही लगती है. ऐन उसी वक्त राहुल गांधी के खिलाफ कड़ा रुख अपना कर बीजेपी नेतृत्व खुश करने की कोशिश भी लगती है. आखिर बादल परिवार ये भी तो देख ही रहा होगा कि किस तरह चिराग पासवान के दिन बदलने लगे हैं - और अब तो जेड कैटेगरी की सिक्योरिटी भी मिल चुकी है. किसान आंदोलन खत्म होने के बाद एक बार ऐसा लगा कि अकाली दल की एनडीए में वापसी हो सकती है, लेकिन विधानसभा चुनावों तक तो बीजेपी ने भाव ही नहीं दिया. हो सकता है, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के हाथ में पंजाब की राजनीतिक कमान चले जाने के बाद बीजेपी भी थोड़ी नरम पड़ी हो - आखिर 2024 में भी तो चुनाव लड़ना ही है, और कैप्टन अमरिंदर सिंह का योगदान तो परिवार सहित बीजेपी में शरणार्थी बन जाने से ज्यादा तो लगता नहीं.

हरसिमरत कह रही हैं, 'मैं कांग्रेस वालों से सवाल पूछना चाहती हूं... आप इनका स्वागत कर रहे हो... बिना माफी मांगे इनकी यात्रा को पंजाब में आने कैसे दिया?

वो गांधी परिवार का नाम तो नहीं लेतीं, लेकिन बाकी सब सीधे सीधे बोल देती हैं, 'वो ऑपरेशन जिसमें सेना ने गोल्डन टैंपल के अंदर दस्तक दी थी... जरनैल सिंह भिंडरावाले को मारने का मकसद था... ऑपरेशन में सेना की जीत तो हुई, लेकिन उसे एक बड़ी सियासी हार के रूप में देखा गया... सिखों की भावना आहत हुई थी... ऑपरेशन में 83 सैनिक शहीद हुए थे, 492 लोगों की मौत की पुष्टि हुई और... '

सिर्फ राजनीतिक विरोधी ही नहीं, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से ही भी राहुल गांधी की कोई औपचारिक स्वागत नहीं हुआ. ढाई दशक पहले ठीक ऐसा ही व्यवहार सोनिया गांधी के साथ भी हुआ था. और वजह अब भी वही है. वही पुरानी वाली - ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए गांधी परिवार की तरफ से माफी नहीं मांगा जाना.

माफी की मांग तो आगे भी पीछा नहीं छोड़ने वाली है, लेकिन सवाल ये बना हुआ है कि राहुल गांधी ने जान बूझ कर ये बवाल क्यों मोल लिया? ये तो राहुल गांधी और उनके सभी सलाहकार भी जानते ही होंगे कि उनको स्वर्ण मंदिर जाने पर विवाद होगा ही, फिर ऐसा कार्यक्रम क्यों बनाया गया होगा - क्या राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही अपनी टीशर्ट से लेकर कांग्रेस और गांधी परिवार से जुड़े सारे विवादों की चर्चा का मौका दे रहे हैं - ताकि राहुल गांधी हर मुद्दे पर अपना राजनीतिक बयान जारी कर सकें?

राहुल के साथ भी सोनिया जैसा सलूक!

राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के पंजाब चैप्टर शुरू होने की पूर्व संध्या पर अमृतसर पहुंचे थे. सुबह तक न तो पंजाब कांग्रेस के नेताओं और न ही मीडिया को ये मालूम था कि राहुल गांधी का दोपहर में स्वर्ण मंदिर जाकर मत्था टेकने का कार्यक्रम बन चुका है.

rahul gandhiस्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने पहुंचे राहुल गांधी को केसरिया पगड़ी में देखा गया, जबकि भारत यात्रा लाल पगड़ी में शुरू की - ये भी कोई राजनीतिक बयान है क्या?

ये कार्यक्रम कब बना? किसकी सलाह पर बना? ये हर किसी के लिए रहस्य बना हुआ है. रहस्य इसलिए भी क्योंकि अगर कार्यक्रम बना था तो पहले से ये जानकारी पंजाब कांग्रेस के नेताओं तक को क्यों नहीं मिल पायी?

क्या ये सब दिलचस्पी पैदा करने के लिए किया गया होगा? या फिर राहुल गांधी के मन में अचानक ये बात आयी होगी. राहुल गांधी तो भारत जोड़ो यात्रा के तहत मंदिर, दरगाह और बाकी पूजा स्थलों पर गये ही थे. ऐसे में स्वर्ण मंदिर के लिए कार्यक्रम बनाने में क्या दिक्कत आ रही होगी? जो दिक्कत वाली बात है, वो तो बरसों से चली आ रही है - और राहुल गांधी को अक्सर ही ऐसे सवाल फेस भी करने पड़ते हैं. और अब तक कभी भी वो कोई ठोस जवाब देकर सवाल खत्म भी नहीं करते लगते हैं.

सबसे बड़ी ताज्जुब की बात है, राहुल गांधी का वहां आने वाली हस्तियों की तरह औपचारिक स्वागत न किया जाना. दिसंबर, 1999 में भी ऐसा ही वाकया देखा गया था. तब सोनिया गांधी स्वर्ण मंदिर गयी थीं. सोनिया गांधी को भी सम्मान के रूप में सरोपा भेंट नहीं किया गया था. तब के स्वर्ण मंदिर के सूचना अधिकारी गुरबचन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस के पूछने पर कहा था, क्योंकि न तो वो स्वर्ण मंदिर पर 1984 की कार्रवाई और न ही सिख विरोधी दंगों के लिए माफी मांगी थीं.

इंडियन एक्सप्रेस ने ही एक बार फिर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के हवाले से लिखा है, जिसमें अकाल तख्त पर 1984 की कार्रवाई के लिए माफी न मांगे जाने को वजह बतायी गयी है - मतलब, ये कि जब तक राहुल गांधी 1984 में अपनी दादी इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते स्वर्ण मंदिर पर हुई सैन्य कार्रवाई के लिए माफी नहीं मांगते, पंजाब में गांधी परिवार के वारिसों को ऐसे ही गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ेगा.

राहुल गांधी के औपचारिक स्वागत को लेकर सामने आयी एक और जानकारी तो और भी चौंकाने वाली है. जनचौक वेबसाइट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि SGPC की तरफ से पहले राहुल गांधी का सम्मान न करने जैसी कोई बात नहीं थी, लेकिन तभी अचानक ऊपर से किसी की हिदायत पर कार्यक्रम रोक दिया गया - अब तो ये और भी बड़ा सवाल है कि राहुल गांधी के सम्मान का कार्यक्रम किसके कहने पर रोका गया?

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में राहुल गांधी के सम्मान से परहेज न किये जाने की बात भी काफी महत्वपूर्ण लगती है. मतलब, ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर राहुल गांधी या गांधी परिवार के प्रति गुस्से का भाव शांत हो चुका है. जैसे गांधी परिवार की तरफ से राजीव गांधी के हत्यारों को माफ कर दिया गया, कमेटी ने भी गांधी परिवार को अपनी तरफ से माफ कर दिया है - लेकिन वो कौन है जो इस बात के खिलाफ है? ये फिलहाल सबसे बड़ा सवाल है.

वैसे भी पंजाब के लोग जब 1992 से कई बार कांग्रेस की सरकार बनवा चुके हों, 2019 की मोदी लहर में भी कांग्रेस को 8 सीटें दे देते हों, फिर बार बार राहुल गांधी को 1984 की वजह से क्यों बचाव में आना पड़ता है? अब तो राहुल गांधी को भी सवाल का जवाब खोज ही लेना चाहिये - वैसे भी विवादों में घसीटे जाने के लिए राहुल गांधी के पास मुद्दों की कोई कमी तो है नहीं.

1984 पर गांधी परिवार का स्टैंड क्या होने वाला है

अक्सर चुनावों के वक्त जब भी पंजाब का जिक्र आता है राहुल गांधी को 1984 के सिख विरोधी दंगों और ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है. और ये सिलसिल तब तक नहीं थमने वाला है, जब तक राहुल गांधी अपनी तरफ से ऐसे सवालों को हमेशा के लिए खत्म नहीं कर देते.

2014 से पहले भी राहुल गांधी के सामने पंजाब और सिख विरोधी दंगों का सवाल आया था. राहुल गांधी ने सारी घटनाओं पर अफसोस भी जाहिर किया. ये भी बताया कि तब की कांग्रेस सरकार ने अपनी तरफ से दंगे रोकने की कोशिश की. फिर भी जो लोग जिम्मेदार थे, उनको सजा भी मिल चुकी है.

राहुल गांधी ने सोनिया गांधी के सिख दंगों पर दुख जताये जाने की भी याद दिलाने की कोशिश की, और ये भी ध्यान दिलाया कि प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह भी माफी मांग चुके हैं - लेकिन जब राहुल गांधी से माफी मांगने के बारे में पूछा जाता है तो वो गोलमोल बातें करने लगते हैं.

अगस्त, 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने माफी मांगते हुए कहा था, 'मुझे सिख समुदाय से माफी मांगने में कोई हिचकिचाहट नहीं है... मैं सिर्फ सिख समुदाय से ही नहीं, बल्कि पूरे देश से माफी मांगता हूं क्योंकि जो 1984 में हुआ वो संविधान सम्मत देश की अवधारणा के खिलाफ था.'

जनवरी, 1998 की अपनी चंडीगढ़ रैली में सोनिया गांधी ने अपनी तरफ से मुख्य तौर पर बस इतना ही कहा था, 'मुझे दुख हुआ.' - और यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की माफी को भी गांधी परिवार के खिलाफ 'एक्सीडेंटल-माफी' से ज्यादा नहीं समझा जाता है.

दंगों के मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी में 2014 जैसा ही टकराव 2020 में भी देखने को मिला था. सिख दंगों को लेकर सवाल उठाये जाने पर राहुल गांधी ने 2002 के गुजरात दंगों की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश की थी. जब 2020 के दिल्ली दंगों को लेकर सोनिया गांधी ने अमित शाह से सवाल पूछा और राष्ट्रपति से मिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म याद दिलाने की गुजारिश की तो बीजेपी नेता बारी बारी मोर्चे पर आकर 84 के सिख दंगों की याद दिला कर सवाल पूछने लगे - और फिर कांग्रेस में खामोशी ही छा गयी.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ये देखने को मिला है कि राहुल गांधी अपनी बातों और एक्शन से कांग्रेस और गांधी परिवार से जुड़े मुद्दों पर जवाब देते रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर मल्लिकार्जुन खड़गे का बैठना भी राहुल गांधी के स्टैंड से ही निकल कर आया है. विपक्षी दलों, खास कर क्षेत्री राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा को लेकर उदयपुर शिविर में कही गयी अपनी बात पर भी राहुल गांधी ने बड़ी मजबूती से अपनी बात कही है.

ये भी देखने को मिला कि भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र पहुंचने पर राहुल गांधी ने जान बूझ कर विनायक दामोदर सावरकर पर अपने स्टैंड का जिक्र छेड़ा और फिर एक कागज के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर के अपना रुख दोहराया भी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अपने टीशर्ट पर सवाल उठाने को लेकर भी राहुल गांधी ने बाकायदा बयान दिया ही है. तो क्या राहुल गांधी ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर भी पंजाब में ऐसा ही कुछ करने वाले हैं - बहुत देर से ही सही, दुरूस्त आना तो हमेशा ही अच्छा होता है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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