राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने में कमलनाथ जैसे नेता बहुत बड़ी बाधा हैं
कमलनाथ (Kamal Nath) ने 2024 के चुनाव के लिए प्रधानमंत्री (Prime Minister) पद पर कांग्रेस की दावेदारी बता कर भारत जोड़ो यात्रा के मकसद को ही कमजोर कर दिया है - अब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चाहे जैसे भी अपना विजन समझाते रहें, बहस का मुद्दा बदल जाएगा.
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प्रधानमंत्री (Prime Minister) पद को लेकर राहुल गांधी जो बातें छुपा रहे थे, कांग्रेस नेता कमलनाथ ने सब सामने ला दिया है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तो वैसे भी प्रधानमंत्री पद के खानदानी दावेदार हैं, फिर कमलनाथ ने नया क्या कहा है?
कमलनाथ (Kamal Nath) ने राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर जो बात कही है, वो तो हर कोई पहले से जानता ही है. अब ऐसा तो है नहीं कि नीतीश कुमार या ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल के आ जाने से कांग्रेस ने कदम पीछे खींच लिये थे.
जिस तरीके से नीतीश कुमार के प्रस्ताव को कांग्रेस नेतृत्व ने लटका रखा है, कमलनाथ नहीं भी कुछ कहते तो मानी हुई बात थी. एक ही वजह है, राहुल गांधी के होते हुए विपक्ष का दूसरा नेता कांग्रेस को मंजूर कैसे हो सकता है?
अलग अलग समय पर नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दोनों ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन कर उभरते हैं, और कांग्रेस धीरे से खेल कर देती है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मामले में ये खेल सामने से होता है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मामले में पर्दे के पीछे से हो जाता है. भला ममता बनर्जी कैसे भूल सकती हैं कि पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद जब वो कांग्रेस को किनारे रख कर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रही थीं, ये कमलनाथ ही तो थे जो शरद पवार से सोनिया गांधी के मैसेज के साथ मिले और खेल हो गया. ये बात अलग है कि ममता बनर्जी अब इन चीजों से आगे बढ़ चुकी हैं, ये सब उनके लिए अब कम ही मायने रखता है.
नीतीश कुमार भी आरजेडी नेता लालू यादव के साथ सोनिया गांधी से मिले थे. तब सोनिया गांधी ने ये कह कर बात टाल दी थी कि जरा कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव निबट जाये, फिर देखते हैं. भले ही लालू यादव मीटिंग को लेकर कहे हों कि वे लोग वहां 'फोटो खिंचवाने' नहीं गये थे. भले ही वो दावा करते फिरें कि मीटिंग में काफी गंभीर बातें हुई थीं, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो तभी बोल दिया था कि चुनाव बाद मामले को वो ही देखेंगे. अभी तक वो देख ही रहे हैं. ऐसे देख रहे हैं जैसे लगता है बीरबल खिचड़ी पका रहे हों.
अब तो कमलनाथ ने वो बात साफ ही कर दी है जो सोनिया गांधी ने नीतीश कुमार और लालू यादव से मुलाकात में नहीं कही या फिर मल्लिकार्जुन खड़गे थोड़ी देर के लिए टाल गये - सीधी सी बात है, जब राहुल गांधी ही 2024 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे तो नीतीश कुमार के मैदान में होने न होने का क्या मतलब है. कमलनाथ ने ये भी साफ कर दिया है कि अगले आम चुनाव में राहुल गांधी ही विपक्ष के भी नेता होंगे - फिर तो नीतीश कुमार भी मान कर चलें कि अब मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ बातचीत में कुछ निकल कर नहीं आने वाला है.
जिस तरीके से राहुल गांधी ने ताजा प्रेस कांफ्रेंस में विपक्षी खेमे के क्षेत्रीय दलों को लेकर नये सिरे से अपनी पुरानी राय जाहिर की है, नीतीश कुमार को भी समझ लेना चाहिये कि कांग्रेस नेता के टारगेट एरिया में उनकी पार्टी जनता दल - यूनाइटेड भी है.
और कांग्रेस की यही अकड़ उसे विपक्ष से दूर भी रख रही है. ममता बनर्जी ने अपनी तरफ से कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी तो रास्ते बदल लिये. भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी को विपक्षी नेताओं का कितना साथ मिला है, सबने देखा ही है - और ब्रेक के बाद शुरू होने वाली यात्रा से यूपी में भी बाकी विपक्षी दल कैसे दूरी बना रहे हैं, ये भी सब जान ही चुके हैं.
राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने में कांग्रेस का भला करने का इरादा कम और कमलनाथ का अपना स्वार्थ ही ज्यादा लगता है - ऐसा लगता है जैसे कमलनाथ अपने सांसद बेटे नकुलनाथ के भारत जोड़ो यात्रा की भीड़ पर दिये गये बयान के लिए गांधी परिवार को सॉरी बोल रहे हों.
ये तो बीजेपी को मौका देने जैसा ही है
छिंदवाड़ा से कांग्रेस सांसद नकुलनाथ ने अपने इलाके में 7 किलोमीटर लंबी उपयात्रा निकाली थी. यात्रा के दौरान जुटी लोगों की भीड़ से उत्साहित नकुलनाथ ने बोल पड़े थे, 'मैं पूरे मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की यात्रा में शामिल रहा... जितनी भीड़ परासिया विधानसभा में है, इतनी भीड़ तो राहुल गांधी की ओरिजिनल भारत जोड़ो यात्रा में भी नहीं थी.'
कमलनाथ का बयान राहुल गांधी को फायदा की जगह नुकसान ही पहुंचाएगा.
राजस्थान में विधायकों के बवाल पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो सोनिया गांधी से मिल कर सॉरी बोल दिया था, लेकिन लगता है कमलनाथ, बेटे के दुस्साहस के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी से नजर मिला पाने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे, लिहाजा नया पैंतरा सोचा और राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी की ऐसी चाल चली कि गांधी परिवार तो खुशी रोक भी नहीं पाएगा. कमलनाथ को बयान देने के बदले क्या मिलेगा ये तो तभी पता चलेगा जब कोई सामने आकर बताये भी.
न्यूज एजेंसी पीटीआई को ईमेल के जरिये दिये एक इंटरव्यू में कमलनाथ ने और भी कई बातें कही है. मसलन, इतिहास में किसी ने भी इतनी लंबी पदयात्रा नहीं की है - और गांधी परिवार के अलावा किसी ने भी देश के लिए इतने बलिदान नहीं दिये.
और फिर मुद्दे पर आ गये, 'जहां तक 2024 के लोकसभा चुनाव की बात है... राहुल गांधी न सिर्फ विपक्ष का चेहरा होंगे, बल्कि वो विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी होंगे.'
प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी अपनी जगह है, लेकिन क्या कांग्रेस इस हैसियत में है कि वो राहुल गांधी को विपक्ष का नेता भी बना पाएगी? विपक्ष कोई कांग्रेस का एस्टेंशन फोरम तो है नहीं, जो कांग्रेस की बात मान लेगा.
विपक्षी खेमे से अब तक कुल जमा पांच नाम सामने आये हैं जो राहुल गांधी को अपना नेता मानने के लिए तैयार हो सकते हैं. ये नता हैं - एमके स्टालिन, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती.
एमके स्टालिन इसलिए क्योंकि वो पहले से ही खुल कर राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पद पर दावेदारी को लेकर सार्वजनिक तौर पर बयान देते रहे हैं. और कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने से पहले झंडा दिखा कर रवाना भी एमके स्टालिन ने ही किया था. साथ ही, डीएमके और कांग्रेस में चुनावी गठबंधन भी है.
शरद पवार के सपोर्ट की बात इसलिए क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र में दाखिल होने पर एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी हिस्सा लिया था - और उद्धव ठाकरे ने भी वैसे ही अपने विधायक बेटे आदित्य ठाकरे को प्रतिनिधि बना कर भेजा था. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने भारत जोड़ो यात्रा में आगे शामिल होने की हामी भरी है.
लेकिन विरोध की ताजा आवाज तो यूपी से ही आयी है. अखिलेश यादव और जयंत चौधरी से लेकर मायावती तक सारे ही नेताओं ने भारत जोड़ो यात्रा से पहले ही दूरी बना ली है. ब्रेक के बाद भारत जोड़ो यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होकर गुजरने वाली है.
राहुल गांधी से विपक्षी खेमे के परहेज का कारण तो पहले से ही कई हैं, लेकिन ताजा वजह क्षेत्रीय दलों की विचारधारा पर कांग्रेस नेता के तीखे हमले नये सिरे से गुस्सा दिलाने वाले हैं. भारत जोड़ो यात्रा की ताजा प्रेस कांफ्रेंस में भी राहुल गांधी से ये सवाल पूछा गया तो उनका जवाब वैसा ही रहा, जैसे पहले था. राहुल गांधी का कहना है कि वो विपक्ष का सम्मान करते हैं और म्युचुअल रिस्पेक्ट के पक्षधर भी हैं, लेकिन राष्ट्रीय विचारधारा तो सिर्फ कांग्रेस के पास ही है.
सवाल के जवाब में अखिलेश यादव के प्रति राहुल गांधी की नाराजगी भी साफ दिखी, जब वो बोले - 'अब समाजवादी पार्टी का आइडिया केरला में तो चलेगा नहीं.'
ये सब अच्छी तरह जानने समझने के बाद भी कमलनाथ अगर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने के साथ साथ विपक्ष के नेता होने का दावा करते हैं तो बलिहारी ही समझी जाएगी - मालूम नहीं राहुल गांधी और उनके सलाहकारों, रणनीतिकारों को ये सब समझ में आता भी है या नहीं.
कमलनाथ के बयान पर बीजेपी की प्रतिक्रिया भी आ गयी है. बिलकुल वही जैसी अपेक्षा रही होगी. बीजेपी नेता सैयद शहनवाज हुसैन का कहना है, यहां तो हर राज्य में एक उम्मीदवार बैठा है. आरजेडी और जेडीयू के लोग कह रहे हैं कि नीतीश कुमार जी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे... टीएमसी के लोग कह रहे हैं कि ममता जी उम्मीदवार हैं... केसीआर के लोग कह रहे हैं कि वो उम्मीदवार हैं... महाराष्ट्र में शरद पवार जी के लिए लोग नाम लेते हैं. एक अनार है, सौ बीमार हैं.'
ये चापलूसी बहुत महंगी पड़ रही है
कमलनाथ की बातों से तो नहीं लगता कि राहुल गांधी से उनको कोई मतलब है और वो गांधी परिवार की वास्तव में भलाई चाहते हैं. बस अपनी दुकान चलानी है. जैसे अशोक गहलोत चला रहे हैं. चाहे जब तक चलती रहे. अभी चापलूसी करके चला रहे हैं, आगे अशोक गहलोत की ही तरह मनमानी करके चलाएंगे.
2019 की हार के बाद CWC की मीटिंग में प्रियंका गांधी ने जिन 'कांग्रेस के हत्यारों' वहीं कमरे में बैठे होने की बात की थी - कमलनाथ और अशोक गहलोत उनमें शामिल थे. तभी राहुल गांधी ने भी बताया था कि किस तरह दोनों नेताओं ने अपने अपने बेटों को टिकट देने के लिए दबाव बनाया था.
काफी दिनों तक कमलनाथ अपनी तरफ से अहमद पटेल की जगह लेने का भी प्रयास किये. सोनिया गांधी के यहां दाल नहीं गली - और अब अगले साल मध्य प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं तो फिर से गांधी परिवार को खुश करने का नया तरीका खोज निकाले हैं.
ऐसा तो है नहीं कि कमलनाथ को जन्नत की हकीकत नहीं मालूम - जो कुछ चल रहा है. जिस तरह से भारत जोड़ो यात्रा में विपक्ष ने व्यवहार किया है, वो भी तो देख ही रहे हैं. यूपी में विपक्षी नेताओं के रवैये से भी अपडेट होंगे ही.
ये तो ऐसा लगता है जैसे कमलनाथ ने राहुल गांधी की सारी मेहनत पर ही पानी फेर दिया है. राहुल गांधी चाहते थे कि यात्रा को लेकर सत्ता की राजनीति की बात न हो. वो लोगों से जुड़ें. लोगों से अपनी बात कहें. कनेक्ट हों और फिर अपनी बातें लोगों को ठीक से समझा सकें.
होता तो यही आया है कि राहुल गांधी कोई गंभीर बात भी कहते हैं तो उनके राजनीतिक विरोधी मजाक उड़ाना शुरू कर देते हैं. भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल गांधी ने कई तरह की गंभीरता दिखायी है - और ये कुछ कुछ बीजेपी को परेशान भी करने लगा है. स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया की कोविड के नाम पर यात्रा रोक देने की अपील भरी चिट्ठी से भी ऐसा ही लगा.
ये भी सही है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत में राहुल गांधी की कोई सार्वजनिक भूमिका नहीं है, लेकिन जीत का असर तो देश के राजनीतिक समीकरण पर भी पड़ ही रहा है - लेकिन कमलनाथ ने ये बयान देकर बीजेपी को अपना एजेंडा सेट करने का मौका दे दिया है.
फिर तो यात्रा के जरिये जो बहस चल रही थी, वो तो भटक ही जाएगी. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां के निधन के चलते प्रेस कांफ्रेंस टाल कर एक सही संदेश देने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी प्रेस कांफ्रेंस से पहले ही कमलनाथ ने उनके लिए ये सवाल खड़ा कर दिया है कि - मीडिया उनसे बार बार ये सवाल पूछे और उनके रिएक्शन पर नयी नयी हेडलाइन बने.
कमलनाथ ने जो पहल की है, नुकसान ये होगा कि राहुल गांधी ने जो कुछ भी सोच रखा होगा - सब नीचे दब कर रह जाएगा. भला ये ये चापलूसी नहीं तो और क्या है? चापलूस कहीं भी हों, सही सलाह कभी नहीं देते... बस अपनी नौकरी चलाते हैं. अशोक गहलोत ने राहुल गांधी के सामने कांग्रेस अध्यक्ष की डिमांड पकड़ रखी थी, लेकिन जब मुख्यमंत्री बदलने को लेकर गांधी परिवार की बात मानने की बारी आयी तो राजस्थान विधायकों के जरिये अलग ही खेल कर दिये - और आज तक गांधी परिवार को समझ नहीं आ रहा है कि राजस्थान पर क्या फैसला ले, जिस पर अमल भी हो सके. कमलनाथ भी अब बयानबाजी के जरिये आगे राजनीतिक दुकान चलाना चाहते हैं - क्योंकि गांधी परिवार को वो ये तो समझा नहीं सकते कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने में सिर्फ ऑपरेशन लोटस वजह था, उनका कोई रोल नहीं था.
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