एक आम आदमी की मौत
आम आदमी की मौत कैसी होती है? कोई किसान खुदकुशी कैसे करता है? किसी की मौत पर सियासत कैसे होती है?
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आम आदमी की मौत कैसी होती है? कोई किसान खुदकुशी कैसे करता है? किसी की मौत पर सियासत कैसे होती है?
आम आदमी अपनी मौत मरता है. किसान खुदकुशी खुद ही करता है. मौत पर सियासत बस मौके की बात होती है.
मौका, आज एक आम आदमी ने दे दिया. वो आम आदमी किसान भी था. मौत को गले उसने तब लगाया जब सामने सियासत चल रही थी.
सूबे की सरकार संघ की सरकार पर हमले बोल रही थी. हमले की वजह भी किसान ही था. दो सरकारों की सियासत में आम आदमी पिस रहा था.
जब एक आम आदमी मौत की तैयारी कर रहा था. सियासत के स्पीकर और श्रोता दोनों तमाशा देख रहे थे.
जब आम आदमी पेड़ पर चढ़ रहा था, तब आवाज गूंज रही थी, 'अध्यादेश तब लाया जाता है जब कोई मजबूरी हो.'
जब आम आदमी गमछे को फंदा बना रहा था, तब आवाज गूंज रही थी, 'नरेंद्र मोदी सरकार के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी थी?'
जब आम आदमी फंदे को पेड़ से बांध रहा था, तब आवाज गूंज रही थी, 'शायद मोदी सरकार किसी उद्योगपति को फायदा पहुंचाना चाहती थी'
जब आम आदमी फंदे में गला फंसा रहा होगा. दूसरी तरफ आवाज गूंजी, 'दिल्ली में जमीन हमारे अधिकार में नहीं है लेकिन हम पूरी कोशिश करेंगे कि किसानों के साथ अन्याय न हो.'
जब आम आदमी ने आखिरी आह भरी होगी. तब आवाज गूंज रही थी, ' दिल्ली के किसानों की जमीन नहीं लेने देंगे.'
सियासत के इस स्टेज शो में सरकारें अपने अपने रोल का एलान कर रही थीं, बस आम आदमी का रोल तय नहीं हो रहा था. हर कोई लीड रोल का दावेदार था, सिर्फ आम आदमी को छोड़ कर. उसे रोल भी तभी मिला जब वो राम मनोहर लोहिया के नाम पर बने दवाखाने में आखिरी सांसें गिन रहा था - और आखिरकार दम तोड़ दिया.
इस सियासत में दो सरकारें आमने सामने थीं. तभी एक आम आदमी की मौत की खबर आई. स्क्रिप्ट में झट से थोड़ी तब्दीली कर दी गई. शो फिर से शुरू हो गया. पहले लैंड बिल, अब एक आम आदमी की मौत. मुद्दे पर मुद्दे. मुद्दे ही मुद्दे.
'किसानों और मजदूरों को कहना चाहता हूं कि वो घबराएं नहीं, हम उनके साथ खड़े हैं. मोदी सरकार अपने क्रोनी कैपिटलिस्ट दोस्तों की ही मदद करती है. संसद में वे कहते हैं कि सुसाइड नहीं हो रहे हैं.'
मौत पर सवाल उठा. सरकार ने जवाब में जांच की घोषणा कर दी. लगे हाथ मुआवजे और हर संभव मदद की रस्म अदायगी भी.
फसल बर्बाद हो गई तो घर में मातम छा गया. फिर सदमे से उबरने के लिए लोग शादी की तैयारियों में जुट गए. फिर जो खबर पहुंची उसे कोई किसी को बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.
उस आम आदमी के परिवार में आज दो बेटियों की शादी थी. दौसा में घरवाले बारात का इंतजार कर रहे थे. तभी दिल्ली से गजेंद्र की मौत की खबर पहुंची.
पहले उम्मीदों का दिन. फिर नाउम्मीदों की रात. और शायद, फिर से उम्मीदों का दिन. यही आम आदमी की जिंदगी और मौत की कहानी है.
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