लोकसभा चुनाव के साथ आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव का नतीजा अभी से आ गया
लोकसभा चुनाव में एनडीए की सरकार तो बन गई, लेकिन इस चुनाव के नतीजों मे लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनावों के कुछ पहलू भी छिपे हैं.
-
Total Shares
देश की जनता ने जब अपना फैसला सुनाया तो पूरे देश में बीजेपी का परचम लहराने लगा. चुनाव से पहले ही दिल्ली की सियासी फिजा को पूरे देश के सियासी माहौल का अक्स माना जा रहा था. हुआ भी कुछ ऐसा ही. दिल्ली की सातों सीटों पर कमल खिला और पूरे देश में कमल की बहार आ गई. लोकसभा चुनाव में एनडीए की सरकार तो बन गई, लेकिन इस चुनाव के नतीजों मे लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनावों के कुछ पहलू भी छिपे हैं. देश की जनता ने अगर इसी तरह अपना भरोसा बीजेपी पर बरकरार रखा तो आखिर अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव की तस्वीर क्या होगी.
दिल्ली में चुनाव से पहले महीनों तक आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की सुगबुगाहट चली. आम आदमी पार्टी अपनी सियासत बचाने के लिए कांग्रेस से गठबंधन की गुहार लगाती रही. कांग्रेस भी असमंजस में दिखती रही और आखिरकार गठबंधन का सपना चूर-चूर हो गया. आम आदमी पार्टी अपने आंकड़ों की दलील से दावे कर रही थी कि अगर दिल्ली में कांग्रेस और आप का गठबंधन हो जाता तो बीजेपी को शिकस्त दी जा सकती थी. कांग्रेस ने नामांकन तक आप को असमंजस में रखा, ताकि आम आदमी पार्टी गठबंधन की आस में कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी न करे.
कांग्रेस को लग रहा था कि वो इस चुनाव में मजबूती के साथ वापसी कर रही है और गठबंधन के बहाने आम आदमी पार्टी को असमंजस में रखने से उसे फायदा होगा. लेकिन ये सारे समीकरण धराशायी हो गए, जब 23 मई को चुनाव के नतीजे आए. आंकड़ों ने साफ कर दिया कि अगर दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ते तो भी वो बीजेपी को हरा नहीं सकते थे. दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी को 52 फीसदी से लेकर 60 फीसदी तक वोट मिले. दिल्ली में इस चुनाव में बीजेपी को कुल 56.55 फीसदी वोट मिले. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों मिलकर सिर्फ 40.62 फीसदी वोट ही जुटा पाए. यानी आप और कांग्रेस से मिलाकर बीजेपी का वोट शेयर करीब 15.93 फीसदी ज्यादा रहा. यानी एक बात तो तय है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों मिलकर भी बीजेपी को टक्कर देने की ताकत नहीं जुटा पाते.
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव की तस्वीर भी साफ कर दी है.
ये कितना मुश्किल था?
दिल्ली में चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा था. बीजेपी के सभी सातों सांसदों को न सिर्फ एंटी इंकम्बेंसी के खिलाफ लोगों का समर्थन हासिल करने की चुनौती थी, बल्कि केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को भी शिकस्त देना था. गौरतलब है कि कि 2013 के बाद दिल्ली में बीजेपी को केजरीवाल से जबरदस्त टक्कर मिलती रही है, और इस बार तो केजरीवाल ने चुनावों से ठीक पहले पूर्ण राज्य का मुद्दा उठाकर बीजेपी वाली केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश भी खूब की. लेकिन चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया के एंटी इनकंबेंसी के साथ साथ सत्ता विरोधी दूसरे सारे पहलू नाकाम रहे और सिर्फ मोदी के नाम पर ही बीजेपी ने ये जबरदस्त जीत दर्ज की.
ब्रांड मोदी काम कर गया
उम्मीद की जा रही थी कि इस बार कांग्रेस बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है. आम आदमी पार्टी भी अपनी कोशिशों से दिल्ली के मुकाबले को मुश्किल बनाने में जुटी थी. माना जा रहा था कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दम लगाएगी तो बीजेपी को जवाब देना मुश्किल होगा. सीलिंग और जीएसटी के मुद्दे भी काफी गर्म थे, इसके अलावा केंद्र पर ये भी आरोप था कि वो दिल्ली के काम को अटकाती है और पूर्ण राज्य की मांग पर भी तवज्जो नहीं देती. पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 46.4 फीसदी वोट हासिल हुआ था, और इतने वोट के दम पर ही वो सभी सात सीट जीत गई थी. लेकिन इस बार तो हवा और ज़्यादा तेज़ चली, पिछली बार की तुलना में 10 फीसदी से भी ज़्यादा बढ़ोत्तरी बीजेपी ने कर ली, उसे पूरी दिल्ली में 56.5 फीसदी वोट हासिल हुए.
ये मोदी का ही असर था जो कई सांसद जनता के बीच बहुत ज़्यादा पॉपुलर नहीं होने के बावजूद लाखों वोट से जीत गए. नॉर्थ वेस्ट दिल्ली से बीजेपी उम्मीदवार हंसराज हंस की उम्मीदवारी पर विरोधी सवाल उठा रहे थे. लेकिन हंसराज हंस ने साढ़े पांच लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीतकर विरोधियों के मुंह पर ताला लगा दिया. हंसराज हंस ने भी माना के ये विजय मोदी की छवि की वजह से मिली. मोदी की लहर कितनी तेज़ थी इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब आम आदमी पार्टी ने 2015 में 70 में से 67 सीटें जीतीं थीं तब भी उन्हें 54 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे. लेकिन इस बार बीजेपी ने इससे भी एक कदम आगे जाते हुए 56.5 फीसदी वोट बंटोर लिये.
भारी मतों से जीती भाजपा
ये शायद मोदी नाम की लहर ही थी कि दिल्ली में बीजेपी उम्मीदवारों ने भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की. पूरी दिल्ली में सबसे कम मतों के अंतर से चांदनी चौक के सांसद डॉ हर्षवर्धन जीते, लेकिन उनके मतों का अंतर भी 2 लाख 25 हज़ार से ज़्यादा रहा. नई दिल्ली से मीनाक्षी लेखी 2 लाख 55 हज़ार वोटों से ज़्यादा अंतर से जीतीं, गौरतलब है कि लेखी को बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट में जगह नहीं दी थी और आखिरी समय में नाम तय किया था. शीला दीक्षित जिन्हें कांग्रेस के सबसे मजबूत उम्मीदवारों में से एक बताया जा रहा था वो भी मनोज तिवारी के सामने कोई चुनौती नहीं पेश कर सकीं, उनकी हार का अंतर लगभग 3 लाख 64 हज़ार का रहा.
दक्षिणी दिल्ली से रमेश बिधूड़ी नें भी आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा को लगभग 3 लाख 65 हज़ार मतों से ही शिकस्त दी. क्रिकेट की पिच पर रन बनाने वाले गौतम गंभीर ने भी राजनीति के पिच पर खूब शानदार पारी खेली, उन्होंने कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली को 3 लाख 91 हज़ार से ज़्यादा वोट से हराया, आतिशी यहां तीसरे नंबर पर आईं. नॉर्थ वेस्ट दिल्ली में गायक हंस राज हंस ने तो पहली बार में ही कमाल कर दिया, उनकी जीत का मार्जिन 5 लाख 53 हज़ार हज़ार रहा और दूसरे नंबर पर आए आम आदमी पार्टी के गुग्गन सिंह. लेकिन दिल्ली की सबसे बड़ी जीत नाम रही वेस्ट दिल्ली के सांसद परवेश वर्मा की जिन्होंने कांग्रेस के महाबल मिश्रा को 5 लाख 78 हज़ार वोटों से शिकस्त दी. यानि बीजेपी न सिर्फ जीती बल्कि उसको वोट भी छप्पर फाड़ कर मिले.
आप-कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त
किसी भी सीट पर जमानत बचाने के लिए कुल वोट का छठा हिस्सा हासिल करना जरुरी होता है. लेकिन आम आदमी पार्टी के तीन उम्मीदवार ऐसा नहीं कर पाए. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से उम्मीदवार दिलीप पांडे को महज 13 फीसदी वोट मिले, चांदनी चौक के पंकज गुप्ता को 14.75 फीसदी वोट हासिल हुए तो नई दिल्ली के उम्मीदवार बृजेश गोयल को 16.33 फीसदी वोट ही मिले और उनकी जमानत तक नहीं बच पाई. जबकि ईस्ट दिल्ली की उम्मीदवार आतिशी, बमुश्किल अपनी जमानत बचा पाईं, उन्हें 17.44 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस के भी दक्षिणी दिल्ली के उम्मीदवार और इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त बॉक्सर, बिजेन्द्र, राजनीति के पिच पर नॉक आउट हो गए, उन्हें महज 13.5 फीसदी वोट हासिल हुए जो जमानत बचाने के लिए काफी नहीं था.
तीसरे नंबर पर पहुंची आप
इस चुनाव का सबसे बड़ा नतीजा रहा आम आदमी पार्टी का नंबर तीन पर खिसकना. जहां बीजेपी को 56.5 फीसदी वोट हासिल हुए. कांग्रेस ने भी 22.5 फीसदी वोट हासिल कर दूसरा पायदान हासिल कर लिया. लेकिन दिल्ली में सरकार चलाने वाली केजरीवाल की पार्टी नंबर तीन पर खिसक गई, उसे महज 18.1 फीसदी वोट ही हासिल हुए, जो पिछले लोकसभा चुनावों से तकरीबन 15 फीसदी कम है और 2015 के विधानसभा चुनावों से 36 फीसदी कम, यानि बीजेपी और कांग्रेस को वोट का फायदा हुआ, और दोनों ने आम आदमी पार्टी के वोट में सेंधमारी की.
विधानसभा चुनावों पर क्या होगा असर?
बीजेपी इस बार काफी अच्छा करेगी ये तो अंदाजा था लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कांग्रेस के साथ साथ दिल्ली में सरकार चला रही आप का भी सूपड़ा साफ हो जाएगा. एक एक सीट पर दोनों को मजबूत माना जा रहा था लेकिन आखिरी नतीजों ने इसे गलत साबित कर दिया. साबित कर दिया कि मोदी की आंधी चल रही थी. सवाल ये उठता है कि अगर यही लहर आगे भी जारी रही और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वोटिंग का यही ट्रेंड रहा तो आखिर दिल्ली की सियासत की तस्वीर क्या होगी. दिल्ली में अगर इस लोकसभा चुनाव के मतदान के आंकड़ों को विधानसभा सीट के लिहाज से आंका जाए तो जो तस्वीर उभरती है वो कुछ सियासी पार्टियों के लिए मुसीबत का सबब हो सकती है.
दिल्ली में कुल सात लोकसभा सीटें हैं और हरेक लोकसभा सीट में 10 विधानसभा सीटें हैं. हम इन दस सीटों पर मिले वोटों के प्रतिशत के आधार पर बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की स्थिति का आकलन कर रहे हैं. सबसे पहले वेस्ट दिल्ली की सीट के आंकड़ों को खंगालते हैं. वेस्ट दिल्ली सीट पर प्रवेश वर्मा ने सबसे जबरदस्त जीत दर्ज की है. उनको कुल 8 लाख 65 हजार 648 वोट मिले जो कुल वोटों को 60.05 फीसदी होता है. महाबल मिश्रा को करारी हार मिली उनको 2 लाख 87 हजार 162 वोट मिले जो कुल वोटों को 19.92 फीसदी होता है. आप के बलबीर जाखाड को 2 लाख 51 हजार 873 वोट मिले जो कुल वोटों का सिर्फ 17.47 फीसदी बैठता है. इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली दसों विधानसभा में बीजेपी हर सीट पर नंबर एक पर रही. जबकि कांग्रेस 9 विधानसभा में दूसरे नंबर पर रही. जबकि आम आदमी पार्टी सिर्फ एक सीट पर दूसरे पायदान पर थी. यानी अगर वोटिंग का ट्रेंड यही रहता तो ये सीट भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के हाथ से निकल जाती.
दूसरी बडी जीत दर्ज की हंसराज हंस ने. आखिरी मौके पर उम्मीदवार बने और जीत दर्ज की 5 लाख 53 हजार 897 वोट से. नॉर्थ वेस्ट दिल्ली से बीजेपी के हंसराज हंस ने कुल मिलाकर 8 लाख 48 हजार 663 वोट हासिल किए जो कुल वोटों को 60.69 फीसदी होता है. राजेश लिलोठिया को कुल 2 लाख 36 हजार 882 वोट मिले यानी कुल मिलाकर 20.83 फीसदी. आप के गुग्गन सिंह को 2 लाख 94 हजार 766 वोट मिले यानी 16.88 फीसदी. ये दिल्ली की इकलौती रिजर्व सीट थी. नॉर्थ वेस्ट दिल्ली में भी हर विधानसभा सीट पर बीजेपी पहले पायदान पर रही. सात विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर और तीन सीटों पर तीसरे नंबर पर रही. कांग्रेस यहां सात विधानसभा सीटों पर तीसरे नंबर पर हरही और तीन में दूसरा पायदान हासिल कर पाई. यानी वोट प्रतिशत के लिहाज से देखें तो ये सीट भी बीजेपी के पाले में ही जाती
दिल्ली में तीसरी बडी जीत दर्ज की रमेश विधूडी ने साउथ दिल्ली से. उन्होंने आप के राघव को 3 लाख 67 हजार 43 वोट से हराया. साउथ दिल्ली में रमेश विधूडी ने कुल 687014 वोट हासिल किए. ये कुल वोटों को 55.75 फीसदी होता है. राघव चड्ढा दूसरे नंबर पर रहे लेकिन उनको कुल वोट 3 लाख 19 हजार 971 वोट ही हासिल हो पाए जो कुल वोटों का 26.35 फीसदी होता है. तीसरे नंबर पर विजेंद्र सिंह रहे जो महज 1लाख 64 हजार 613 वोट हासिल कर पाए. ये कुल वोटों को का 13.56 फीसदी होता है..और विजेंदर सिंह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए. वोट प्रतिशत के लिहाज से यहां भी बीजेपी हर सीट पर पहले पायदान पर रही. 9 विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी दूसरे और एक सीट पर तीसरे पायदान पर रही. यानी इस सीट पर भी बीजेपी सबसे मजबूत स्थिति में है...और यहां आम आदमी पार्टी की पोजिशन कांग्रेस से कहीं बेहतर दिखी.
नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से मनोज तिवारी ने कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित को साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया. नॉर्थ ईस्ट पर मुकाबला दिलचस्प था. मनोज तिवारी को कुल 7 लाख 87 हजार 799 वोट मिले. यानी कुल वोटों का 53.09 फीसदी. कांग्रेस की पूर्व सीएम शीला दीक्षित को 4लाख 21 हजार 697 वोट मिले यानी कुल मिलाकर 28.85 फीसदी. आम आदमी पार्टी के दिलीप पांडे की जमानत जब्त हो गई. उनको 1 लाख 90 हजार 856 वोट मिले यानी कुल मिलाकर 13.06 फीसदी. वोट प्रतिशत के लिहाज से भी इस लोकसभा सीट की 10 विधानसभाओं में बीजेपी 9 सीटों पर पहले पायदान पर रही. जबकि एक सीट पर दूसरे पायदान पर. कांग्रेस यहां 1 सीट पर पहले नंबर पर रही और 8 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. जबकि आम आदमी पार्टी सिर्फ एक सीट पर ही दूसरे पायदान पर रही और 9 सीटों पर उससे तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा.
ईस्ट दिल्ली पर क्रिकेटर से नेता बन गौतम गंभीर को कुल 6 लाख 96 हजार 156 वोट मिले . ये कुल वोटो का 55.35 फीसदी होता है. अरविंदर सिंह दूसरे नंबर पर रहे जिनको 3 लाख 4 हजार 934 वोट मिले जो कुल वोटों का 24.24 फीसदी है. आतिशी तीसरे नंबर पर रहीं जिनको 2 लाख 19 हजार 328 वोट मिले जो कुल वोटों का 17.44 फीसदी है. वोट प्रतिशत के लिहाज से इस लोकसभा में आने वाली दस विधानसभाओं में 9 सीटों पर बीजेपी ही नंबर एक पर रही और एक सीट पर दूसरे नंबर पर . यहां कांग्रेस एक सीट पर पहले नंबर पर रही जबकि 6 सीटों पर दूसरे नंबर पर. आम आदमी पार्टी तीन सीटों पर दूसरे पायदान पर रही और 6 सीटों पर तीसरे पायदान पर. यानी इस सीट पर भी बीजेपी मजबूत स्थिति में है जबकि कांग्रेस की स्थिति आम आदमी पार्टी से बेहतर नजर आ रही है.
चांदनी चौक सीट पर डाक्टर हर्षवर्धन को कुल 5 लाख 19 हजार 055 वोट मिले. ये कुल वोटों का 52.94 फीसदी हैं. यहां पर जेपी अग्रवाल दूसरे नंबर पर रहे. उनको 2 लाख 90 हजार 910 वोट ही मिले जो 29.67 फीसदी होते हैं. आप के पंकज गुप्ता 1 लाख 44 हजार 551 वोट हासिल कर सके जो कुल वोटों का 14.74 फीसदी होता है. आम आदमी पार्टी के पंकज गुप्ता अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए. वोट प्रतिशत के लिहाज से इस सीट पर 10 में से सात सीट पर बीजेपी पहले पायदान पर रही और तीन में दूसरे पायदान पर. कांग्रेस तीन सीटों पर पहले पायदान पर रही और 6 सीट पर दूसरे पायदान पर. आम आदमी पार्टी यहां सिर्फ एक सीट पर दूसरा पायदान हासिल कर पाई और बाकी नौ सीटों पर आप तीसरे नंबर पर ही रही. यानी इस सीट पर भी बीजेपी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से बेहतर स्थिति में दिखी.
नई दिल्ली सीट पर मीनाक्षी लेखी को कुल 5 लाख 4 हजार 206 वोट मिले . ये कुल वोटों को 54.01 फीसदी होता हैं. कांग्रेस के दिग्गज माकन दूसरे नंबर पर रहे जिनको कुल 2 लाख 47 हजार 702 वोट मिले. यानी उनको 26.91 फीसदी वोट ही मिले. जमानत जब्त कराने वाले आपके बृजेश गोयल को कुल 1 लाख 50 हजार 342 वोट मिले यानि 16.29 फीसदी. वोट प्रतिशत के लिहाज से नई दिल्ली की 10 विधानसभा सीटों में से हर सीट पर बीजेपी पहले पायदान पर रही, कांग्रेस हर सीट पर दूसरे पायदान पर रही और आम आदमी पार्टी यहां हर जगह तीसरे पायदान पर ही संतोष करती दिखी.
क्या हैं मायने?
अगर लोकसभा चुनाव के आधार पर दिल्ली विधानसभा चुनाव का आकलन किया जाए तो इस बार नतीजे बिल्कुल उलट जाएंगे. पिछले बार जहां 70 में से 67 सीटें सिर्फ आम आदमी पार्टी ने जीती थीं, वहीं उस बार भाजपा के खाते में अधिकतर सीटें आएंगी. भाजपा को करीब 65 विधानसभा सीटों पर जीत मिलेगी और करीब 5 सीटों पर वह दूसरे नंबर की पार्टी रहेगी. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस करीब 5 सीटें जीत सकती है, 42 सीटों पर दूसरे नंबर की पार्टी रहेगी और बाकी की 23 सीटों पर वह तीसरे नंबर पर रहेगी. इसके अलावा, आम आदमी पार्टी को एक भी सीट मिलना मुश्किल हैं. वह 23 सीटों पर दूसरे नंबर पर और 47 सीटों पर तीसरे नंबर पर रह सकती है.
(दिल्ली की इन सातों लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजे का यह विश्लेषण दिल्ली आज तक के पत्रकार सुधांशु श्रीवास्तव ने किया है.)
ये भी पढ़ें-
EVM and Exit Poll FAQ: चुनाव नतीजों से पहले EVM और exit poll से जुड़े बड़े सवालों के जवाब
Elections 2019 मतगणना: जानिए कैसे होगी EVM और VVPAT की गणना? कब तक आएगा पूरा रिजल्ट
क्या होता है EVM Strong Room में? सभी पार्टियां जिसकी चौकीदारी में लगी हैं
आपकी राय