धरने को अचूक हथियार मानने वाले CM केजरीवाल को अपने खिलाफ धरने नापसंद हैं!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Delhi CM Arvind Kejriwal) उन चुनिंदा लोगों में हैं जिन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत धरनों से की थी. आज जब उन्होंने राजनीति में ठीकठाक वक़्त गुजार लिया है तो जैसा उनका रवैया है वो उन नेताओं में हैं जिन्हें अपने खिलाफ धरनों से सख्त नफरत है.
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अगर कहा जाए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal) की सफलता में उनके धरनों (Dharna) का बहुत बड़ा योगदान है तो गलत नहीं होगा. अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक लड़ाई में धरनो को सीढ़ी के तौर पर इस्तेमाल किया. लेकिन अब यही धरने केजरीवाल को अखरने लगे है. दिल्ली की राजनीति और वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि केजरीवाल का सबसे अचूक अस्त्र, जब खुद उनके ऊपर इस्तेमाल हुआ तो वह बुरी तरह से छटपटा उठे हैं. 18 दिसंबर 2020 को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा के सत्र में धरने का जिक्र किया.
केजरीवाल ने कहा कि, 'बीजेपी के कुछ लोग मेरे घर के बाहर बीते कई दिनों से धरने पर बैठे हैं. वह लोग फंड की मांग कर रहे हैं, लेकिन मेरे पास मेरे कई सहयोगियों के फोन आ रहे हैं. वह कह रहे हैं कि अगर उन लोगों का फंड मांगना बनता भी हो तब भी आप (केजरीवाल) फंड मत देना.'
दिल्ली में केजरीवाल के घर के बाहर प्रदर्शन करते भाजपा के लोग
अरविंद केजरीवाल का यह बयान सुनकर धरने पर बैठे लोगों को झटका तो लगा ही होगा लेकिन उससे ज्यादा झटका उन लोगों को लगा होगा जो धरने को दिल्ली में एक अस्त्र के तौर पर मानते हैं. बीते दो हफ्तों से अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर बीजेपी के दो दर्जन से ज्यादा पार्षद और दिल्ली के तीनों ही नगर निगम के मेयर धरने पर बैठे थे. जो बीते कुछ दिनों से भूख हड़ताल भी कर रहे हैं और इसी बीच खबर आई कि इनमें से कुछ बेहद बीमार हो गए हैं.
इस धरने प्रदर्शन में कई महिला नेता भी हैं जिनके छोटे बच्चे भी हैं और इससे पहले वह घर से बाहर इतने लंबे समय तक नहीं रही लेकिन यह पहला अनुभव है जब भयंकर ठंड में खुले आसमान के नीचे उन्हें रात बितानी पड़ रही है.
बात धरने के मुद्दे की नहीं, बात धरने की है
मुख्यमंत्री के घर पर धरना दे रहे बीजेपी नेताओं को लगा होगा कि शायद मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने के लिए यह एक बेहतर तरीका है. लेकिन केजरीवाल के सामने ये तरीके पहले भी नहीं चले और अब भी नहीं चलते दिख रहे हैं. इससे पहले भी 2016 में पूर्वी दिल्ली से बीजेपी सांसद महेश गिरी, अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर कई दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठे रहे थे. उस वक्त भी कुछ नहीं हुआ था बाद में तबीयत भी करने पर बीजेपी के नेताओं ने उनका धरना तुड़वाया था.
बहरहाल विरोध करने के लिए धरना पॉलिटिक्स एक बेहतर और लोकतांत्रिक तरीका है. खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसका कई बार उपयोग किया है. मुख्यमंत्री बनने से पहले और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपनी मांगे मनवाने के लिए धरना सबसे सटीक हथियार साबित हुआ है.
जब केजरीवाल ने दिए धरने :
अरविंद केजरीवाल ने 2012 में राजनीतिक पार्टी के गठन के समय जंतर-मंतर पर करीब 12 दिनों तक किया अनशन.
मार्च 2013 में बिजली के मुद्दे पर सुंदर नगरी में करीब 15 दिनों तक किया अनशन.
49 दिन की सरकार के समय मुख्यमंत्री पद पर रहते अरविंद केजरीवाल दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर जनवरी 2014 में रेल भवन पर धरने पर बैठे.
14 मई 2018 को शहर में सीसीटीवी लगाने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी कैबिनेट के सभी सदस्यों और पार्टी के विधायकों के साथ सड़कों पर उतरे और एलजी हाउस के बाहर सड़क पर धरने पर बैठ गए
सीएम केजरीवाल ने अपने मंत्रियों के साथ 11 जून 2018 को एलजी हाउस के वेटिंग रूम में धरना शुरू किया था और 9 दिनों के बाद धरना खत्म किया.
एक बात तो साफ है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दूसरों के खिलाफ धरना देना तो बेहद पसंद है. लेकिन जब कोई उनके खिलाफ धरना देने पर उतर आता है तो उसको बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते. ऐसा क्यों है इसका जवाब खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही दे सकते हैं.
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