उपचुनाव की तारीखों पर रोक AAP के लिए संजीवनी बूटी जैसा ही है
20 विधायकों की अयोग्यता ठहरा दिये जाने के बाद आम आदमी पार्टी की तमाम अर्जियां अदालत से भले ही खारिज हो गयी हों, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट का ताजा कदम उसके लिए मौजूदा दौर में संजीवनी बूटी जैसा ही है.
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कोर्ट में किसी भी मामले की सुनवाई तभी होती है - जब उस केस में कोई मेरिट नजर आती है, वरना - कोई भी अपील खारिज होते देर नहीं लगती. कई बार तो अदालतें ऊलूल-जूलूल अर्जियों के जरिये वक्त बर्बाद करने के लिए पेनॉल्टी लगाने से भी परहेज नहीं करतीं.
दिल्ली हाई कोर्ट में अयोग्य ठहराये गये आम आदमी पार्टी के विधायकों की अपील पर सुनवाई को इसी तरीके से देखने की जरूरत है. आप विधायकों के मामले को दिल्ली हाई कोर्ट ने न सिर्फ सुनवाई के लायक मांगा है - बल्कि, चुनाव आयोग को उपचुनाव की तारीखों के ऐलान जैसे 'अप्रत्याशित कदम' उठाने पर भी 29 जनवरी तक रोक लगा दी है. कोर्ट का तो यहां तक कहना है कि 29 जनवरी के बाद रोज इस मामले की सुनवाई होगी - और जरूरत पड़ी तो 'अप्रत्याशित कदम' उठाने पर रोक की मियाद भी बढ़ सकती है.
आप विधायकों की अपील
आप के विधायक चुनाव आयोग द्वारा लाभ के पद के मामले में 20 सदस्यों को अयोग्य ठहराये जाने के बाद से ही लगातार कोर्ट के दरवाजे खटखटाते रहे. आखिरकार, 24 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट को उनकी बातों में कुछ दम नजर आया और याचिका मंजूर हो पायी.
अदालत में आप के सुपर 20 का मामला...
आम आदमी पार्टी के विधायक तो चाहते थे कि दिल्ली हाईकोर्ट 20 विधायकों को अयोग्य करार देने वाली केंद्र की अधिसूचना पर ही स्टे दे दे, लेकिन कोर्ट ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. फिर 20 में से पांच विधायकों के वकील ने एक ऐसी दलील दी जो कोर्ट को बहुत ही वाजिब लगी. फिर तो कोर्ट ने चुनाव आयोग को न सिर्फ नोटिस दिया - बल्कि, कड़ी हिदायत भी दी.
जब कोर्ट ने केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगाने की गुजारिश ठुकरा दी तो, 20 में से 5 विधायकों की ओर से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट केवी विश्वनाथ ने दलील पेश की - 'अगर चुनाव आयोग को रोका नहीं जाता है तो उनका मकसद की नाकाम हो जाएगा.'
विधायकों के वकील ने अदालत से अपील की - 'अगर कोर्ट केंद्र के आदेश पर रोक नहीं लगाता, तो कम से कम चुनाव आयोग को अदालत कहे कि वो उपचुनाव की तारीखों का ऐलान न करे, जब तक कोर्ट इस केस के बारे में फैसला नहीं सुनाता. कोर्ट को इस बात में दम नजर आया और बात मान ली गयी.
हाईकोर्ट की आयोग को हिदायत
हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से 20 विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने के मामले में जवाब तलब किया है. कोर्ट ने चुनाव आयोग से भी वे सारे रिकॉर्ड्स पेश करने को कहा जिनके आधार पर 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने की सिफारिश भेजी गयी और उसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गयी.
'अप्रत्याशित कदम' पर स्टे...
अदालत ने कहा, "चुनाव आयोग को 29 जनवरी को या अगली सुनवाई तारीख से पहले रिकॉर्ड पेश करने होंगे. अगली सुनवाई तक वो खाली हुई सीटों पर उपचुनाव की तारीख का ऐलान करने जैसे कोई 'अप्रत्याशित कदम' नहीं उठाएगा."
हाईकोर्ट की एक और टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है - "मामले में विचार विमर्श की जरूरत है."
कोर्ट ने कहा है कि 29 जनवरी के बाद इस केस में रोजाना सुनवाई की जाएगी और जरूरत पड़ने पर 'अप्रत्याशित कदम' उठाने से रोकने के आदेश की मियाद बढ़ाई भी जा सकती है.
तो क्या आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को आश्वस्त हो जाना चाहिये? केजरीवाल को इस बात के लिए आश्वस्त तो हो ही जाना चाहिये कि चुनाव आयोग उनके साथ जैसे भी पेश आया हो, अदालत में उनके विधायकों की बात जरूर सुनी जाएगी. चुनाव आयोग को भी अपनी दलील पेश करनी होगी कि किस बिनाह पर उसने राष्ट्रपति से विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश की.
कोर्ट ने मांगा आयोग से जवाब
कोर्ट के इस कदम से केजरीवाल को और कोई फायदा हो न हो, इतना तो हो ही गया है कि उन्हें अपनी तैयारियों के लिए मौका मिल गया है. अभी तक केजरीवाल को भी ये डर रहा होगा कि उपचुनाव की तारीखें जल्द आ गयीं तो तैयारी कितनी मुश्किल होगी. अब उन्हें इसके लिए कुछ न कुछ मौका तो मिल ही गया है.
जहां तक लाभ के पद का सवाल है, जया बच्चन तो सुप्रीम कोर्ट तक गयी थीं, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली. ये तब की बात है जब वो सांसद होते हुए उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष पद भी संभाल रही थीं. आखिरकार उन्हें राज्य सभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी. लाभ के पद के ही मामले में सोनिया गांधी को 2006 में लोक सभा की सदस्यता गंवानी पड़ी - और इस्तीफा देकर रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा.
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