'आप' संकट में मौका तो कांग्रेस के लिए भी है, पर हड़बड़ी में सिर्फ बीजेपी क्यों?
'आप' के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने के बाद से ही संभावनाओं और आशंकाओं के बादल लगातार मंडरा रहे हैं - माना तो यहां तक जा रहा है कि कोशिशें तो सरकार गिराने की भी हो सकती हैं.
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फर्ज कीजिए, अरविंद केजरीवाल के विरोधी फिर से सक्रिय हो उठते हैं. ऐसे विरोधियों को उन नेताओं का भी सपोर्ट मिल जाता है जो आम आदमी पार्टी की ओर से राज्य सभा भेजे जाने के इंतजार में थे लेकिन पलक झपकते ही गाड़ी छूट गयी. स्वाभाविक सी बात है, उन्हें बीजेपी बीजेपी से वैसे ही बैकअप फायरिंग अब भी मिल सकती है जिस तरह का पिछली बार इल्जाम लगा था. भले ही ये कोरी कल्पना वाली स्थिति हो - लेकिन सवाल है कि ऐसी मुश्किलों का सामना केजरीवाल भला कैसे करेंगे? लगता है ऐसे सवाल केजरीवाल के मन में भी चल रहे हैं. अपने एक ट्वीट में केजरीवाल ने ऐसी तमाम संभावनाओं के साथ साथ समाधान का भी जवाब दे दिया है - 'सत्यमेव जयते!'
जब आप सच्चाई और ईमानदारी पर चलते हैं तो बहुत बाधाएँ आती हैं। ऐसा होना स्वाभाविक है। पर ब्रह्मांड की सारी दृश्य और अदृश्य शक्तियाँ आपकी मदद करती हैं। ईश्वर आपका साथ देता है। क्योंकि आप अपने लिए नहीं,देश और समाज के लिए काम करते हैं। इतिहास गवाह है कि जीत अंत में सचाई की होती है।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 19, 2018
चुनाव तो होना ही है
चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजी है. चुनाव आयोग एक्शन भी कोई तभी लेगा जब राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाएगी. नियमों के अनुसार, चुनाव आयोग की सिफारिश के नामंजूर होने का स्कोप नहीं है.
फिर तो ये सवाल तो बनता ही नहीं कि चुनाव होगा या नहीं? अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ 20 सीटों पर उपचुनाव होंगे या फिर दिल्ली विधानसभा का मध्यावधि चुनाव होगा?
ये मुलाकात, ये अदा - समझने वाले भी खुद को अनाड़ी समझेंगे
सीधे सीधे देखें तो चुनाव आयोग की सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के छह महीने के भीतर चुनाव आयोग को चुनाव कराने ही होंगे. तब तक 2019 के लिए भी माहौल गर्म हो चुका होगा. कहीं 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की राह पर बात आगे बढ़ी तो समझिये आम चुनावों के बीच ये चुनाव भी कराये जा सकते हैं.
वैसे इस सवाल पर भी बहस हो रही है कि क्या दिल्ली में विधानसभा भंग कर जल्द चुनाव करवाए जा सकते हैं? जल्द से मतलब वक्त से पहले जिसे मध्यावधि चुनाव भी कहते हैं.
दलील ये है कि जीएसटी से परेशान कारोबारी तबके के सिर पर सीलिंग की तलवार भी लटकने लगी है. इसे लेकर कारोबारी तबके में एमसीडी के खिलाफ नाराजगी है जिसे बीजेपी के प्रति आक्रोश के तौर पर देखा जा सकता है. आम आदमी पार्टी के हिसाब से देखें तो उसे इस माहौल का फायदा मिल सकता है. हालांकि, आप नेताओं ने ऐसी संभावनाओं को खारिज कर दिया है.
केजरीवाल सरकार से पहले लगातार 15 साल तक कांग्रेस का शासन रहा है. 2013 में तो उसे 8 सीटें मिली थीं, लेकिन 2015 में तो साफ ही हो गयी. बह तो आम आदमी पार्टी की बाढ़ में बीजेपी भी गयी और उसे तीन सीटें जैसे तैसे मिल पायीं. बाद में राजौरी गार्डन उपचुनाव में उसे कामयाबी जरूर मिली लेकिन बवाना में आप ने बीजेपी की सारी तरकीबों पर पानी फेर दिया.
'उपचुनाव' या अगला कोई भी चुनाव 'आप' के लिए कैसा रहेगा
2015 के चुनाव के बाद से कुछ नेताओं को आप से निकाला जा चुका है, कुछ बागी बन चुके हैं और कुछ मौके की तलाश में हैं. माना जा रहा है कि कपिल मिश्रा के साथ कम से कम पांच बागी नेता हैं. इसी तरह कुमार विश्वास का साथ देने वालों की संख्या 10 तक हो सकती है.
आम आदमी पार्टी की हार की झोली से पंजाब और गोवा को अलग रख कर भी देखें तो राजौरी गार्डन में उसे शिकस्त मिली तो बवाना में विजय पताका फहराने का मौका मिला. एमसीडी चुनावों में बुरी तरह हार हुई थी.
एक न्यूज चैनल के सर्वे के मुताबिक अयोग्य ठहराये गये विधायकों की 20 सीटों पर अगर तत्काल उप चुनाव हुए तो आप को 12 सीटों से हाथ धोना पड़ सकता है. बाकी 8 सीटें बीजेपी और कांग्रेस आपस में बांट सकती हैं. ये सर्वे तो यही बता रहा है कि आप ही नहीं बल्कि एमसीडी चुनाव में जीत और बवाना की हार से बीजेपी फिलहाल उबरती नहीं दिखती है. कांग्रेस के लिए सर्वे में खबर अच्छी है.कपिल मिश्रा को ओर से भी इस सिलसिले में एक दावा किया गया है. कपिल मिश्रा ने एक सर्वे जारी किया है जिसे वो आप का इंटरनल सर्वे बता रहे हैं. ये सर्वे तो कहता है किस्मत से भले ही आप कुछ सीटें बचा पाये वरना हार तो ज्यादातर पर तय है. कपिल मिश्रा ने इस सर्वे में सभी 20 सीटों का स्टेटस रिपोर्ट दिया है जिसमें केजरीवाल सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत, अलका लांबा और आदर्श के इलाके भी शामिल हैं.
- अलका लांबा दिल्ली की चांदनी चौक से विधायक हैं. कपिल मिश्रा के सर्वे के मुताबिक ये सीट पार्टी हार रही है और उम्मीदवार बदला जा सकता है. क्यों? लोगों का कहना है कि विधायक को इलाले में नहीं देखा गया.
- आदर्श शास्त्री द्वारका सीट से विधायक हैं. कपिल मिश्रा के सर्वे के मुताबिक हार के डर से पार्टी चुनाव में उम्मीदवार बदल सकती है.
- नजफगढ़ से कैलाश गहलोत विधानसभा पहुंचे और अभी सरकार में मंत्री हैं. सर्वे कहता है कि पार्टी ये सीट हारती तो दिख रही है क्योंकि कार्यकर्ताओं में फट पड़ी है लेकिन उम्मीदवार बदलने का कोई विचार नहीं है.
- बुराड़ी में अवैध कालोनियां और कई गांव हैं. संजीव झा यहां से करीब 69 हजार वोटों से जीते थे. सर्वे कहता है कि पार्टी नेताओं में आपसी मतभेद गहरे हैं, फिर भी पार्टी उम्मीदवार नहीं बदलेगी.
- बुराड़ी की तरह नरेला में स्लम और अवैध कालोनियों के अलावा कई गांव आते हैं. यहां से शरद कुमार करीब 40 हजार वोटों से जीते थे. सर्वे में बताया गया है कि सारी खामियों के बावजूद पार्टी उन पर फिर से भरोसा कर सकती है.
चुनाव आयोग से आयी खबर के बाद से ही संभावनाओं और आशंकाओं के बादल लगातार मंडरा रहे हैं - माना जा रहा है कि कोशिशें तो सरकार गिराने की भी होंगी? सबसे पहले तो दिमाग अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड दस्तक देते हैं, बाद में बारी बारी गोवा और मिजोरम भी.
आप पर आये इस संकट की घड़ी में स्कोप तो पूरा कांग्रेस के लिए भी है, लेकिन बीजेपी में उत्साह कुछ ज्यादा ही देखा जा रहा है. कभी कभी तो ऐसा लग रहा है जैसे वो मध्यावधि चुनाव की तैयारियों में जुट गयी हो.
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