दिल्ली के 20 विधायक अयोग्य होने का आप और केजरीवाल पर असर
अरविंद केजरीवाल पहले से ही आप में गुटबाजी से जूझ रहे हैं. अयोग्य ठहराये गये विधायक उनके सबसे करीबी रहे तभी तो उन्होंने इतना बड़ा जोखिम उठाया. आगे तो मुश्किलों का अंबार ही नजर आ रहा है.
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दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के तीन साल बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जोर का झटका बड़े जोर से लगा है. लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग ने आप के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया है - और अपनी सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेज दी है.
आप नेता अरविंद केजरीवाल के लिए 2014 में वाराणसी में नरेंद्र मोदी से शिकस्त, 2017 में पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव और दिल्ली एमसीडी में बुरी हार से भी ये बड़ा नुकसान है.
क्या है मामला
सबसे पहले तो एक कन्फ्यूजन खत्म करना जरूरी है. जब ऑफिस ऑफ प्रॉफिट को लेकर जांच के दायरे में 21 विधायक आये थे, फिर चुनाव आयोग ने 20 विधायकों को ही क्यों अयोग्य माना?
असल में, 21 विधायकों में से एक जनरैल सिंह थे जिन्होंने पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था. वो पंजाब में अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गये. बाद में जब राजौरी गार्डन उपचुनाव हुए तो आप ने उन्हें टिकट नहीं दिया - और उस सीट पर बीजेपी का कब्जा हो गया.
मुश्किलों का दौर फिर से...
अब बाद आप के उन सुपर- 21 की. मार्च, 2015 में आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया था जिसका बीजेपी और कांग्रेस ने जोरदार विरोध किया.
फिर प्रशांत पटेल नाम के एक शख्स ने राष्ट्रपति के पास याचिका देकर विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की. याचिका में कहा गया कि 21 विधायकों को सरकार में लाभ का पद हासिल है.
इस मुद्दे पर चौतरफा घिरी केजरीवाल सरकार ने एक तरकीब निकाली - दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन एक्ट-1997 में संशोधन किया और मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजी. इसका मकसद संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से छूट दिलाना था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसे नामंजूर कर दिया.
टीम केजरीवाल की भूल सुधार की ये कोशिश बेकार चली गयी. दरअसल, दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों की नियुक्ति मार्च 2015 में की, जबकि इसके लिए कानून में संशोधन जून, 2015 में विधानसभा से पास हुआ. मामले में बड़ा पेंच यही फंस गया.
प्रशांत पटेल के मुताबिक खुद दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने आयोग को दिए अपने हलफनामा में माना कि विधायकों को मंत्रियों की तरह सुविधा दी गई. नियमों के मुताबिक दिल्ली में 7 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन, प्रशांत पटेल का इल्जाम है कि केजरीवाल सरकार ने 28 बना डाले.
जब विधायकों की ओर से इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की गयी तो केंद्र सरकार ने विरोध जताया. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होना चाहिये
आम आदमी पार्टी की ओर से आई प्रतिक्रिया में आशुतोष ने शेषन के दिनों को याद करते हुए मौजूदा चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री कार्यालय का लेटर बॉक्स बताया है - और खुद केजरीवाल ने रायसिना सीरिज के लेखक कृष्ण प्रताप सिंह के ट्वीट को रीट्वीट किया है.
Person like me who has covered EC as reporter during Seshan days, today I can say EC has never touched so low ever. Sad.
— ashutosh (@ashutosh83B) January 19, 2018
EC SHOULD NOT BE THE LETTER BOX OF THE PMO.. but that is a reality today.
— ashutosh (@ashutosh83B) January 19, 2018
You may oppose AAP all you want, but this is the first time in India's democratic history that assembly seats representing the verdict of nearly one-fourth of a state's electorate have been wiped out with the stroke of a pen & without a hearing. Even Indira Gandhi never did that.
— Krishan Partap Singh (@RaisinaSeries) January 19, 2018
फैसले से क्या फर्क पड़ेगा
आप को 2015 में हुए चुनाव में 67 सीटें मिली थीं, लेकिन राजौरी गार्डन की हार के बाद ये संख्या 66 हो गयी. अब 20 विधायकों को अयोग्य करार देने पर दिल्ली विधानसभा में आप के सिर्फ 46 विधायक रह जाएंगे.
20 विधायकों के अयोग्य होने के बावजूद आप को मिली भारी बहुमत पर संख्या बल के चलते कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन कई मायनों में आप नेता अरविंद केजरीवाल के लिए ये बहुत बड़ा झटका है.
1. ऐसे में जबकि आम आदमी पार्टी में भयंकर गुटबाजी चल रही है, वे ही विधायक अयोग्य घोषित किये गये हैं जो केजरीवाल के बेहद करीबी रहे. ये वे विधायक रहे जिन्हें मंत्री न बनाने की स्थिति में एडजस्ट किया गया था. इनमें अलका लांबा और आदर्श शास्त्री भी शामिल हैं.
2. आप में जो गुटबाजी चल रही है उसमें कपिल मिश्रा बागी धड़े का नेतृत्व करते हैं - और माना जाता है कि उन्हें केजरीवाल के पारिवारिक दोस्त से सियासी दुश्मन बने कुमार विश्वास का भी समर्थन हासिल है.
3. चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद केजरीवाल के कट्टर समर्थकों की संख्या कम होना स्वाभाविक है, ऐसे में विरोधी गुट पहले के मुकाबले ज्यादा सक्रिय हो सकता है.
4. बदले हालात में विरोधी भी विधायकों पर तरह तरह का चारा फेंक सकते हैं. अजय माकन ने कहा है कि वे लोग दिल्ली विधानसभा में मार्च करेंगे और केजरीवाल का इस्तीफा मांगेंगे. बीजेपी को तो ऐसे मौके का अरसे से इंतजार रहा.
5. अगर दिल्ली और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार होती तो ये समस्या ये रूप ले ही नहीं पाती. दिल्ली सरकार के संशोधन को बहुत पहले ही राष्ट्रपति से मंजूरी मिल चुकी होती.
मुमकिन है अब केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के नेता अरुणाचल और उत्तराखंड जैसे तिकड़म अपनायें और केजरीवाल सरकार को मुश्किल में डालने की कोशिश करें. केजरीवाल तो पहले ही तख्तापलट के शिकार हो गये होते अगर वक्त रहते उनके पुराने स्टाफ ने मुखबिरी नहीं की होती. जब का ये वाकया है तब खबर आयी थी कि बीजेपी की शह पर कुमार विश्वास को आप का नेता और कपिल मिश्रा को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी थी - लेकिन केजरीवाल ने फौरी और सही फैसला लेते हुए सारी बाजी ही पलट डाली.
लालच में अंधे होने की कीमत चुकानी पड़ रही है केजरीवाल को - सभी 20 सीटों पर जमानत होगी केजरीवाल के लोगों की। pic.twitter.com/SqmgSufBAb
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) January 19, 2018
अब आप नेता के सामने ऐसी चुनौतियां मुहं बाये खड़ी रहेंगी - और कदम-कदम पर केजरीवाल को उनकी काट ढूंढनी होगी. सबसे मुश्किल स्थिति उपचुनाव वाली होगी. अब तक हुए दो उपचुनावों में से एक में अरविंद केजरीवाल को हार झेलनी पड़ी है - फर्ज कीजिए जब दिल्ली में एक साथ 20 सीटों पर उपचुनाव होंगे तो क्या होगा?
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