डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतें बनाम मोदी सरकार की 'मौकापरस्त' राहतें
डीजल-पेट्रोल की कीमतें अपने सारे रिकॉर्ड तोड़कर अभी तक के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं. लेकिन सरकार उत्पाद शुल्क में कटौती करने के बिल्कुल मूड में नहीं है, उल्टा अंतरराष्ट्रीय कीमतों की दुहाई जरूर दे रही है.
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21 मई को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 76.57 रुपए है और डीजल की कीमत 67.82 रुपए है. ये कीमतें अभी तक के उच्चतम स्तर पर हैं. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक्साइज ड्यूटी में कटौती का इशारा करते हुए कहा है कि सरकार जल्द ही डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का समाधान लाएगी. लेकिन सवाल ये है क्या प्रधान ये बयान देते हुए कितने गंभीर हैं. पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से लोगों का गुस्सा अपने चरम पर है, तो कहीं ये बयान डैमेज कंट्रोल या लोगों के गुस्से को शांत करने की कोशिश तो नहीं.
I accept that citizens of India& specially middle class suffers due to fuel price hike. Factors like less production of oil in OPEC countries & hike in price of crude oil in intl market affect price. Indian govt will soon come out with a solution: Union minister Dhamendra Pradhan pic.twitter.com/wx7ReBLLS8
— ANI (@ANI) May 20, 2018
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा- मैं यह बात स्वीकार करता हूं कि हिंदुस्तान के लोगों खासकर मध्यम वर्ग को तेल की महंगाई से जूझना पड़ रहा है. ओपेक देशों में तेल का कम उत्पादन और कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों के कारण अतरराष्ट्रीय बाजारों पर असर पड़ा है. भारत सरकार बहुत जल्द इसका समाधान निकालेगी.
सरकार अब तक कीमतों में उछाल के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें बढ़ने की दुहाई देती रही है. लेकिन जब-जब उसे अपना उल्लू सीधा करना हुआ, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी लाने के लिए इन सभी कारणों को पीछे छोड़ते हुए उसने उपाय किए. पिछले कुछ सालों का ट्रेंड देखकर यह साफ होता है कि सरकार मौकापरस्त है, जो अपने फायदे के लिए कीमतों में बदलाव कर देती है. आइए, इस पर एक नजर डालते हैं -
3 बार दिखाई मौकापरस्ती
यूं तो मोदी सरकार ने सिर्फ एक बार अक्टूबर 2017 में डीजल-पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क घटाया है, लेकिन कुल 3 बार मौके का फायदा उठाया है:
1- अक्टूबर 2017 में डीजल की कीमत 59.14 रुपए और पेट्रोल की कीमत 70.88 रुपए के स्तर पर पहुंच गई थी, तब सरकार ने दो रुपए उत्पाद शुल्क घटाया था. यहां यह जानना दिलचस्प है कि उसके अगले ही महीने 9 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे और 9 दिसंबर से 14 दिसंबर तक गुजरात में विधानसभा चुनाव थे. और विपक्ष पेट्रोल कीमतों में बढ़ोत्तरी को मुद्दा बना रहा था.
2- इस साल का बजट पेश करते समय भी मोदी सरकार ने डीजल-पेट्रोल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में दिखावे वाली कटौती की. मोदी सरकार ने डीजल-पेट्रोल पर लगने वाली बेसिक एक्साइज ड्यूटी को 2 रुपए घटा दिया और 6 रुपए अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी को भी खत्म कर दिया. ऐसा लगा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 8 रुपए की भारी कमी आने वाली है. लेकिन लोगों की हसरत अधूरी रह गई. सरकार ने डीजल-पेट्रोल पर प्रति लीटर 8 रुपए Road cess लागू कर दिया. यानी जितनी कटौती की, उनता ही सेस. सब बराबर.
3- अब तीसरी बार मोदी सरकार ने कर्नाटक चुनाव के दौरान अपना पैंतरा दिखाया. विपक्ष फिर डीजल-पेट्रोल के दामों को लेकर हल्ला मचा रहा था. दोनों ईंधनों की कीमतों को रोज बढ़ा रही मोदी सरकार ने 20 तक मौन धर लिया. डीजल-पेट्रोल की कीमतों में कोई कटौती नहीं की. फिर हद तब हो गई कि कर्नाटक में मतदान के अगले ही दिन पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया. जो अब रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है. अब जब कीमतें लगातार बढ़ रही हैं तो इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही कच्चे तेल की कीमतों का असर बताया जा रहा है.
डीजल-पेट्रोल महंगा होने का ये है असली कारण
जहां एक ओर अभी तक मोदी सरकार ने सिर्फ एक बार डीजल-पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क घटाया है, वहीं दूसरी ओर नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच में मोदी सरकार ने पेट्रोल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी 9 बार बढ़ाई है. 2013 में जब कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल थी, तब डीजल-पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क 9 रुपए था. आज के समय में यह शुल्क 10 रुपए बढ़ चुका है और 19 रुपए हो गया है.
यहां दिलचस्प बात ये है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अभी 76 डॉलर प्रति बैरल पर है. यानी अगर देखा जाए तो डीजल-पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों का असली कारण कच्चे तेल के दाम नहीं हैं, बल्कि सरकार की तरफ से लगाया जाने वाला टैक्स है. जब मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद कच्चे तेल की कीमतें तेजी से गिरीं तो राजस्व बढ़ाने के लिए कई बार उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया, लेकिन अब जब कच्चा तेल महंगा हो रहा है और जनता को राहत देने के बारी है तो सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है.
अगर सरकार उत्पाद शुल्क में 5 रुपए की कटौती कर दे तो इससे डीजल-पेट्रोल की कीमतों में करीब 6-7 रुपए की कमी आ सकती है. पिछले 4 सालों में ग्राहकों को कच्चे तेल की कम कीमत की वजह से कोई फायदा नहीं हुआ है, ऐसे में अब जब तेल की कीमतें बढ़ रही हैं तो सरकार को जनता को राहत देनी चाहिए. इसका राजनीतिक फायदा भी होगा, लेकिन शायद सरकार इसका फायदा 2019 में उठाने की तैयारी कर रही है. ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव से कुछ पहले डीजल-पेट्रोल में बड़ी गिरावट आए तो हैरान होने वाली बात नहीं होगी.
हर बार जीएसटी की होती है बात
जब कभी कीमतें अधिक बढ़ जाती हैं तो सरकार की ओर से यह जरूर कहा जाता है कि हम जल्द ही इसे जीएसटी के दायरे में लाने वाले हैं. जीएसटी में आने के बाद कीमतें कम हो जाएंगी. धर्मेंद्र प्रधान ने अपने ताजा बयान में इस बात को दोहराया है. वे राज्यों से वैट कम करने की अपील कर रहे हैं और GST काउंसिल से गुजारिश कर रहे हैं कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए. लेकिन दिक्कत ये है कि राज्य सरकारों के लिए डीजल-पेट्रोल राजस्व का बेहद अहम जरिया है, जिसे वह केंद्र सरकार को सौंपना नहीं चाहते. एक ओर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क घटाने को तैयार नहीं है, तो वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारें मनमाने ढंग से टैक्स लगाकर डीजल-पेट्रोल को महंगा कर रहे हैं. दोनों के बीच में पिस रहा है आम आदमी, जिसे अपनी जेब कटवानी पड़ रही है.
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