2019 लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ इस्तेमाल होगा 'कर्नाटक-फॉर्मूला'
कर्नाटक चुनाव में प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने जनता दल (सेक्युलर) को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ीं थी. लेकिन जब सीटों की संख्या 122 से गिरकर 78 पर आ गई तो राहुल गांधी ने उसी 'जनता दल संघ परिवार' को सर आंखों पर बिठा लिया.
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम और उसके बाद के घटनाक्रम से एक बात साफ़ हो गई है. यदि भाजपा को स्वयं के बल पर आगामी विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलता है तो आपस में लड़ते विपक्षी दल भी एक होकर भाजपा के सामने खड़े हो जाएंगे. कर्नाटक चुनाव में प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने जनता दल (सेक्युलर) को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ीं थी. जनता दल (सेक्युलर) को 'जनता दल संघ परिवार' कहा, तथा भाजपा की 'बी टीम' तक कह दिया. जब चुनाव के नतीजे सामने आए और कांग्रेस की संख्या 122 से गिरकर 78 पर आ गई तो राहुल गांधी ने उसी 'जनता दल संघ परिवार' को सर आंखों पर बिठा लिया.
दरअसल, पिछले 4 सालों में भाजपा ने देश के अधिकांश राज्यों में सरकार बना ली है. भाजपा की इस सफलता ने कई राज्यों में प्रादेशिक राजनीतिक दल और कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल पैदा कर दिए हैं. भाजपा की सफलता से एनडीए के कुछ साथी भी परेशानी महसूस कर रहे हैं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर हों या शिव सेना के उद्धव ठाकरे - भाजपा के साथ होते हुए भी भाजपा का विरोध करने से नहीं चूकते हैं. वह इसलिए क्योंकि वह जानते हैं कि जैसे-जैसे भाजपा मजबूत होती जाएगी, वैसे-वैसे भाजपा के लिए उनका महत्व घटता जाएगा.
जब किसी राजनीतिक दल के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे तो वह किसी भी दल के साथ गठबंधन करने को तैयार हो जाएगा. उसका पहला प्रयास अपने दल को जीवित रखने का होगा. उस समय विचारधारा मायने खो देगी. कुछ ऐसा ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हुआ है. कांग्रेस को पता था कि यदि चुनावों में भाजपा उससे कर्नाटक छीन लेगी तो वह एक प्रादेशिक दल बन कर रह जाएगी. दूसरी तरफ जनता दल (सेक्युलर) यदि और पांच साल सत्ता से बाहर रहती तो शायद अगली बार तक समाप्त हो जाती.
यह रणनीति 2019 लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगी. यदि भाजपा की अपनी 225 लोक सभा सीटें नहीं आईं और एनडीए को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो बाहर से कोई अन्य दल आकर उसे समर्थन नहीं देने वाला है. भाजपा के साथ एक और समस्या है. तथाकथित 'धर्मनिरपेक्ष' दलों की परिभाषा में भाजपा एक 'सांप्रदायिक' दल है. 'सांप्रदायिक' दल के खिताब के कारण अन्य दल बड़ी आसानी से भाजपा को अस्पृश्य घोषित कर देते हैं. देश को भाजपा की 'सांप्रदायिक राजनीति' से बचाने के नाम पर सब तथाकथित 'धर्मनिरपेक्ष' दल अपनी-अपनी विचारधारा त्याग करके एक होने में बिल्कुल समय नहीं लगाते हैं. कोई नहीं जानता की एक साल बाद एनडीए के कितने दल भाजपा के साथ रहकर चुनाव लड़े. इन कारणों से यह साफ़ है कि 2019 की लड़ाई भाजपा को अकेले अपने बाल पर ही लड़नी होगी.
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