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Updated: 04 अक्टूबर, 2016 04:27 PM
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सर्जिकल स्ट्राइक पर पाकिस्तान का सवाल लाजिमी है. अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के सवालों की वजह भी अलग हो सकती है. इराक वॉर के दौरान भी तो मीडिया टीम को ले जाया जाता रहा - क्या तस्वीरें वही हुआ करतीं जो दिखाई गईं? इराक वॉर पर बहस तो अब भी खत्म नहीं हुई. फिर मीडिया टीम को ये कैसे कंफर्म हुआ कि LoC पर जो जगह उन पत्रकारों को दिखाई गई वहीं सर्जिकल स्ट्राइक हुए थे?

लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक पर ममता बनर्जी की खामोशी के मतलब समझे जाएं? जहां तक अरविंद केजरीवाल की बात है तो उन्होंने तो सवाल खड़े कर ही दिये हैं.

सियासत और सवाल

सर्जिकल स्ट्राइक पर ममता की खामोशी पर बीजेपी ने सवाल उठाया है. केजरीवाल ने बीजेपी को ऐसा करने का मौका नहीं दिया, बल्कि मोदी को सलामी देते देते उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक पर ही सवाल खड़े कर दिये हैं - देखते ही देखते पाक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह एक ही चर्चा है.

तो क्या ममता बनर्जी की खामोशी और केजरीवाल के वीडियो में मैसेज कॉमन है?

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सियासत अपनी जगह है और सवाल अपनी जगह. वीडियो मैसेज में केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति को सैल्यूट तो किया है, लेकिन उनका सवाल वही जो पाकिस्तान कर रहा है. जो यूनाइटेड नेशंस के महासचिव का रहा है - और जो पाकिस्तान की एम्बेड-मीडिया-टीम की ओर से उठाए जा रहे हैं.

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देश बड़ा या एजेंडा?

मौनं स्वीकार लक्ष्णम् - ज्यादातर मामलों में ऐसा ही माना जाता है, लेकिन ममता बनर्जी के मामले में बीजेपी ने जो सवाल उठाए हैं उन्हें गैर वाजिब नहीं कहा जा सकता. सर्जिकल स्ट्राइक पर ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की खामोशी का मतलब 'मौनं-स्वीकार' तो कहीं से भी नहीं लग रहा है. अगर ऐसा नहीं होता तो केजरीवाल भी चुप ही रहते, मगर उन्होंने इसकी गंभीरता और चुप रहने के खतरे को समझ लिया. वैसे तो सर्जिकल स्ट्राइक से पहले भी केजरीवाल ने एक ट्वीट में पाकिस्तान को अलग थलग करने के चक्कर में भारत के ही आइसोलेट हो जाने का शक जताया था.

बीजेपी ने टीएमसी की ओर से कोई रिएक्शन नहीं आने पर शक जताया है - वो भी तब जब मोदी के विरोधी नीतीश कुमार ने भी फौरन तारीफ की. सवाल उठता है कि आखिर टीएमसी के इस फैसले के पीछे क्या मजबूरी हो सकती है? क्या टीएमसी सिर्फ मोदी विरोध के चलते इतना सख्त फैसला लेने को मजबूर हुई है - या फिर किसी खास वोट बैंक की वजह से उसे ऐसा करना पड़ा है? इस सवाल का जवाब तो टीएमसी की ओर से ही आ सकता है. खबर है कि राजनाथ सिंह द्वारा बुलाई गई ऑल पार्टी मीटिंग में भी टीएमसी की ओर से कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा.

शक के दायरे में कौन?

केजरीवाल ने वीडियो में मोदी को सलामी तो ठोकी लेकिन लगे हाथ सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत भी मांग लिये. सीधे सीधे शब्दों में केजरीवाल मांग तो पाकिस्तान को बेनकाब करने को किये लेकिन बातों बातों में बता डाला कि उन्हें सबूत देखने का बहुत ज्यादा मन हो रहा है. केजरीवाल के लिए सवालों से परे कोई नहीं, सिवा खुद केजरीवाल के. अगर ऐसे सवाल उनसे किये जाते हैं तो वो पलटी मार जाते हैं - योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण से लेकर कर्नल सहरावत जैसे सभी नेताओं के मामले इस ओर साफ इशारा करते हैं.

सर्जिकल स्ट्राइक पर कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने भी सवाल उठाया है. इसके साथ ही निरूपम भी इस कार्रवाई के सबूत मांगने वालों की जमात में शामिल हो गये हैं.

सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आई हैं. अंग्रेजी उपन्यासकार चेतन भगत का कहना है कि सर्जिकल स्ट्राइक कोई स्टिंग ऑपरेशन या सेक्स टेप नहीं है जिसका सामने आना जरूरी हो गया है.

सीनियर पत्रकार शेखर गुप्ता ने तो साफ तौर पर कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत सामने लाने की कतई जरूरत नहीं है.

हालांकि, हालात को देखते हुए शेखर गुप्ता ने माना है कि संभव है इसे लेकर कुछ आरटीआई और पीआईएल वाले सक्रिय हो जाएं.

शेखर गुप्ता ने पत्रकारों को भी बड़ी संजीदगी से सलाह दी है, लेकिन अगर किसी के अंदर किसी और जर्नलिज्म की भूख है तो उनके लिए सलाह है - स्कूप.

अहम बात ये है कि ऐसे सवालों के घेरे में कौन है? केजरीवाल या फिर ममता के शक के दायरे में कौन है? क्या उनका शक सिर्फ मोदी पर या फिर किसी और पर है? वैसे मोदी भला उनके इस शक के दायरे में आ भी कैसे सकते हैं. न तो खुद मोदी न उनके किसी मंत्री ने ऐसा दावा किया जैसा म्यांमार के मामले में हुआ था. पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में तो सेना के डीजीएमओ ने खुद प्रेस कांफ्रेंस करके इसकी जानकारी दी. उरी हमले के बाद जब सेना को एक्शन के लिए ग्रीन सिग्नल मिले तो डीजीएमओ ने पूरी साफगोई से कहा कि वक्त और जगह वो खुद तय करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी की ओर से उन्हें इसकी पूरी छूट दी गई.

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अगर गौर किया जाये तो देश के राजनीतिक नेतृत्व ने तो महज इच्छाशक्ति ही दिखाई. देश ने उसे फैसले का अधिकार दिया है इसलिए उन्होंने वैसा किया. उन्होंने एक्शन लेने से लेकर पब्लिक में जिम्मेदारी लेने तक हर फ्रंट पर सेना को आगे रखा. फिर तो वो इस दायरे से अपने आप बाहर हो जाते हैं. तो क्या संवैधानिक पद और गोपनीयता की शपथ लेने वाले केजरीवाल के सवाल और ममता के खामोशी भरे शक के दायरे में सेना है? अगर वाकई ऐसा है तो लोकतंत्र में इस बीमारी को तो लाइलाज ही कहा जाएगा.

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