भगवान करें हर साल चुनाव आए और इसी बहाने महिलाओं का कल्याण हो जाए!
देखिए ना चुनाव भी क्या चीज़ है, मामला धर्म से बदलकर अब महिला मोर्चा (women issues in india) पर आ टपका है. राजनीति का उद्धार अब महिलाएं ही करने वाली हैं.
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चुनाव (election 2022) आता है तो वोटबैंक के लिए अलग-अलग राग आलापे जाते हैं. इस बार राजनीति पार्टियों का ध्यान पता नहीं कैसे महिला सशक्तिकरण पर आ गया? भगवान करें हर साल चुनाव आए और इसी बहाने महिला मुद्दों के नाम पर महिलाओं का कल्याण हो जाए. अब सबको हमारी याद तो चुनाव के समय ही आती है, क्यों कोई शक?
चाहें दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल पंजाब में महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं को 1000 रुपया हर महीने देने की बात कर रहें हों या फिर लड़की हूं, लड़ सकती हूं के नाम पर कांग्रेस की प्रियंका गांधी चुनावी मैदान में महिलाओं की हिस्सेदारी को बड़ा मुद्दा बना रही हों. असल में प्रियंका गांधी ने आने वाले चुनाव में 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की बात कही है. इसके पहले कांग्रेस ने महिलाओं के साथ आखिर ये अन्याय क्यों किया? पहले भी तो चुनाव होते आए हैं.
चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों की रणनीति से महिलाओं को ही फायदा है
कुछ महीनों पहले तक धर्म, महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल और एलपीजी के बढ़ते दामों की चर्चा थी वहीं अब चुनावी मैदान में महिला मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है. वैसे चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार यूपी में कुल वोटरों की संख्या करीब 14.61 करोड़ है. जिसमें 7.90 करोड़ पुरुष वोटर और 6.70 करोड़ महिला वोटर हैं. अब यही महिलाएं यूपी चुनाव की नैया पैर लगाने वाली है.
वैसे बीजेपी भी 21 साल शादी की उम्र वाले कानून से महिला स्वास्थ्य और शिक्षा की अलख जला रही है...बीजेपी महिला मोर्चा हर चुनावी राज्य के लिए अलग-अलग रणनीति बना रहा है. यूपी में कमल शक्ति संवाद इसी का उदाहरण है. वहीं पंजाब में बीजेपी खेतों की मालकिन और खेतों में मजदूरी करने वाली महिलाओं से भी बात करेगी. माने हर तरफ से महिलाओं को फायदा ही फायदा है.
वहीं समाजवादी पार्टी का कहना है कि हम महिलाओं को लेकर आधुनिक सोच रखते हैं. अखिलेश यादव का कहना है कि हम महिलाओं का सम्मान करते हैं. ये अलग बात है कि यूपी में महिलाओं का क्या हाल रहा है, ये आपको भी पता है. देखिए ना चुनाव भी क्या चीज़ है मामला धर्म से बदलकर अब महिला मोर्चा पर आ टपका है. राजनीति का उद्धार अब महिलाएं ही करने वाली हैं.
हम तो बस यही चाहते हैं कि इस चुनावी सीजन में महिला अपराध अब खत्म ही हो जाए और महिलाओं को वे सारी सुविधाएं मिल जाएं जिससे उनका विकास हो जाए. बात तो अजीब है लेकिन चुवानी सीजन में महिलाओं की चर्चा भी बयानबाजी के साथ ही शुरु होती है.
दो बिल्ली की लड़ाई में बंदर का भला हो गया, यह कहानी तो आपने सुनी ही होगी. बस कुछ इसी तरह पार्टियां भी आपस में लड़ती रहें और महिलाओं के लिए योजनाओं की बौछार करती रहें. इस तरह फायदे में तो महिलाएं ही रहेंगी. वैसे जिन लोगों को लगता है कि महिलाओं को कुछ अता-पता नहीं रहता उनका दिमाग अब तक तो ठनक ही गया होगा, क्योंकि आज की नारी सबपर भारी है.
इस युग में अपने मताधिकार का उपयोग करने वाली महिलाएं अब उसे वोट नहीं देंगी जिसे घरवाले या पति कहेंगे. आज की महिलाओं को भी समझ में आ गया है कि चुनावी वादा करने में और हकीकत में फर्क है. वे अब उसे ही अपना नेता मानेंगी जिसने थोड़ा ही सही उनके बारे में सोचा तो सही.
वैसे शहर से लेकर गांव तक की महिलाएं इस बात को लेकर हैरान हैं कि अचानक से सभी पार्टियां हम पर इतना मेहरबान क्यों हैं? महिलाओं को लेकर नेता कबसे इतने सजग हो गए? ओह अच्छा, इस बार वोट महिलाओं के नाम पर हो रहे हैं क्या? यानी ये सब चुनावी बयार का ही असर है वरना अब तक तो किसी को महिलाओं की याद भी ना आई, जे हुई ना बात...
वैसे जब किसी चीज की नीलामी होती है तो उसकी कीमत बढ़ ही जाती है. इस बार के चुनाव में महिलाओं का मत काफी कीमती हो गया है. अब देखना है कि वोट के नाम पर ही सही कौन कितना महिलाओं का कल्याण करता है...जो जितना कल्याण करेगा महिलाओं का साइलेंट वोट भी उन्हीं को जाएगा. फिलहाल महिलाओं को तो यही अच्छा लग रहा है कि चुनाव होता रहे और महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं का भला होता रहे.
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