सैफई में जुटा पूरा समाजवादी परिवार, मगर किसी को साथ पसंद नहीं आया
लोकतंत्र के 'सैफई महोत्सव' में जुटा तो पूरा समाजवादी परिवार था, लेकिन ज्यादातर वोट अलग अलग ही डाले गये. टाइमिंग का भी ऐसा ख्याल रखा गया कि किसी से किसी की भेंट न हो.
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लोकतंत्र के 'सैफई महोत्सव' में जुटा तो पूरा समाजवादी परिवार था, लेकिन ज्यादातर वोट अलग अलग ही डाले गये. टाइमिंग का भी ऐसा ख्याल रखा गया कि किसी से किसी की भेंट न हो. पूछने पर सभी एक सुर में बोले - 'हम साथ साथ हैं...'
मैनपुरी में इटावा को लेकर आगाह करने वाले अखिलेश यादव ने भी सैफई के उसी बूथ पर वोट डाला जो उनके चाचा शिवपाल यादव के विधानसभा क्षेत्र जसवंत नगर में आता है.
टारगेट अखिलेश
तीसरे चरण की वोटिंग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए सबसे अहम रही क्योंकि ज्यादातर इलाके बरसों से उनके पिता मुलायम सिंह यादव के गढ़ माने जाते रहे हैं. इटावा, मैनपुरी, कन्नौज से लेकर औरैया तक 2012 में भी समाजवादी पार्टी ने क्लीन स्वीप किया था. इस बार सारा दारोमदार अखिलेश यादव पर आ टिका है. ऊपर से चुनौती ये है कि उन्हें साइकिल का हैंडल कांग्रेस को पकड़ाने के फैसले को भी सही साबित करना है.
कांग्रेस से समाजवादी पार्टी के गठबंधन होने के बाद से ही अखिलेश यादव लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर रहे हैं. कभी वो पिता के दुश्मन की गोद में बैठ जाने का आरोप लगाते हैं तो कभी कुछ और.
मन की बात बता देता है...
फतेहपुर की चुनावी सभा में भी मोदी ने अखिलेश को फिर से टारगेट किया, "आज मतदान करने के बाद टीवी वालों ने जब अखिलेश से पूछा तो उनका चेहरा लटक गया... आवाज में दम नहीं था... वो डरे हुए थे - और शब्द खोज रहे थे. आप देखना टीवी पर चल रहा है... जैसे बाजी हार गए. बड़ी मुश्किल से बोले. चुनाव का तीसरा चरण पूरा नहीं हुआ है, लेकिन आपके हौसले पस्त हो गए हैं."
वोट तो डालना ही था
इटावा के इर्द गिर्द की चुनावी सभाओं में बात बात पर चाचा शिवपाल यादव पर बेनामी हमले करने वाले अखिलेश यादव सैफई से ही वोटर हैं, जहां पूरा परिवार वोट डालता आया है. सैफई पहुंच कर अखिलेश ने उन सभी अटकलों को गलत साबित कर दिया जो हवाओं में घूम रही थीं.
बावजूद इसके वो मीडिया के सवालों से बच नहीं पाये. जवाब तो दिया, लेकिन पूछे गये सवाल का नहीं - 'लगता है आप दिल्ली से सुबह खाना खाकर नहीं आए हैं. आप सिर्फ निगेटिव सवाल ही पूछ रहे हैं.'
वोट तरक्की के लिए...
दूसरे सवाल पर तो झल्लाहट भी सामने आ गयी, 'आप बहुत दिनों बाद आए हो - और पता नहीं कौन सी बात कहां जोड़ रहे हो.' खैर, कितना टालते और इधर उधर घुमाते. अभी असली सवाल तो बाकी ही था.
पत्रकारों का सवाल था - 'वोट किसे दिया?'
अखिलेश बोले, "मैंने एसपी को वोट दिया है. साइकिल पर बटन दबाया है. मैंने यूपी की तरक्की के लिए वोट डाला है. यूपी की खुशहाली के लिए वोट डाला है.'
यहां भी उन्होंने किसी भी रूप में चाचा शिवपाल यादव का नाम नहीं लिया.
मेरे दोनों 'अनमोल रतन'
अखिलेश यादव की ही तरह राम गोपाल यादव और शिवपाल यादव ने अलग अलग वोट डाले, लेकिन मुलायम सिंह पत्नी साधना और छोटी बहू अपर्णा के साथ पहुंचे. सवाल तो साधना का भी इंतजार कर ही रहे थे.
अपने लिए वोट...
बात जब अखिलेश और प्रतीक की आई तो साधना बोलीं, 'कोई अखिलेश को सौतेला बोलता है तो मुझे बुरा लगता है. हम लोगों में कोई सौतेलापन नहीं है. हमने अखिलेश की शादी कराई, उसके बच्चे हैं, हमारी बहू है. अखिलेश मेरा बड़ा बेटा है.'
अब सवाल-जवाब बाकी था तो सिर्फ मुलायम सिंह से. मीडिया के सवाल पर मुलायम सिंह बोले, "शिवपाल भारी बहुमत से जीतेंगे और मंत्री बनेंगे."
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