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Updated: 19 नवम्बर, 2015 02:23 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अरविंद केजरीवाल और आंग सान सू की में कई बातें कॉमन हैं. दोनों नेताओं की आंदोलनकारी छवि है. सत्ता संभालने से पहले दोनों प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं. केजरीवाल को जहां रमन मैगसेसे पुरस्कार मिल चुका है, वहीं सू की नोबेल पुरस्कार विजेता हैं.

सत्ता की डगर होती तो सभी के लिए बेहद मुश्किल है - मगर केजरीवाल और सू की के अनुभव बिलकुल अलग माने जा सकते हैं.

सत्ता की डगर

केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से पहली बार अपनी आम आदमी पार्टी की सरकार तो बनाई लेकिन '49 दिन' में ही इस्तीफा दे बैठे. सू की को सत्ता मिलते मिलते रह गई. 25 साल पहले सू की की पार्टी एनएलडी यानी नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने चुनावों में जीत जरूर दर्ज की लेकिन सैन्य शासन ने उसे मान्यता नहीं दी.

दिल्ली जैसी जंग

केजरीवाल की दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल की जंग जग जाहिर है. बात बात पर केजरीवाल अधिकारों की दुहाई देते रहते हैं - और ज्यादातर मामलों में केंद्र की मोदी सरकार और उप राज्यपाल पर दोष मढ़ते रहते हैं.

दिल्ली जैसी ही जंग म्यांमार में भी होने की आशंका है. म्यांमार के मौजूदा संविधान के हिसाब से 25 फीसदी सीटें सैन्य शासन के लिए पहले से आरक्षित हैं. सेना संसद के दोनों सदनों के एक चौथाई सदस्यों को खुद नामांकित करती है. दिलचस्प बात ये है कि इनमें रक्षा, गृह, सीमा सुरक्षा और पुलिस विभाग शामिल हैं. फिर बचता क्या है? अगर एनएलडी को सत्ता हासिल भी हो जाती है तो सभी अहम मुद्दों के लिए सैन्य शासन के मठाधीशों का ही मुंह देखना होगा.

म्यांमार सरकार में सबसे बड़ी संस्था 11 सदस्यों वाली नैशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी काउंसिल होती है - और इसमें मनोनीत सदस्यों का ही दबदबा होता है.

आप और वो

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को सत्ता बहुत जल्दी मिल गई, जबकि सू की की पार्टी नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को इसके लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा.

केजरीवाल ने तो दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, लेकिन सू की के लिए ऐसा मुमकिन ही नहीं है. संविधान के अनुसार अगर कोई विदेशी से शादी करता है तो वो राष्ट्रपति नहीं बन सकता. सू की के पति ब्रिटिश नागरिक रहे हैं - और उनके बच्चे भी वहीं के नागरिक हैं.

ऐसे में सू की के पास यही विकल्प बचता है कि पार्टी के किसी और नेता को वो राष्ट्रपति बनाएं.

चुनाव से पहले सू की ने मीडिया से कहा था, "अगर नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी चुनाव में जीतती है तो हम सरकार बनाएंगे, चाहे मैं कानूनन राष्ट्रपति बनूं या नहीं लेकिन इसका नेतृत्व मेरे हाथों में होगा."

राष्ट्रपति का चुनाव फरवरी में होना है जबकि नई सरकार का गठन मार्च में होगा. मौजूदा सरकार का कार्यकाल मार्च 2016 में खत्म हो रहा है.

सबसे बड़ा सवाल

साल 1990 के चुनावों में एनएलडी को जीत हासिल होने के बावजूद सैन्य शासन ने उसे मान्यता नहीं दी. फिर 2010 में चुनाव के वक्त सैन्य शासकों ने सू की को घर में ही नजरबंद कर दिया. इस कारण एनएलडी ने चुनावों का बहिष्कार कर दिया. अब 2015 में एनएलडी ने भारी जीत दर्ज की है.

म्यामांर के राष्ट्रपति थेन सीन ने आम चुनाव में आंग सान सू की की पार्टी को मिली भारी जीत को उनके नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार के सुधारों का परिणाम बताया है और कहा है कि सत्ता का हस्तांतरण आसानी से होगा.

थेन सीन की बात मायने रखती है. लेकिन एनएलडी को ऐसी बातों में यकीन नहीं रहा है. होने को तो 1990 में भी ऐसा ही हुआ था. लेकिन सैन्य शासन ने सत्ता नहीं सौंपी.

यही वजह है कि एनएलडी के प्रवक्ता विन तेन को थेन सीन की बात पर यकीन नहीं हो रहा, "हम नहीं समझते सत्ता हस्तांतरण सौ फीसदी पक्का होगा. हम खुश हैं कि इस बार हम जीते हैं, लेकिन हमें फिक्र है कि कहीं इतिहास खुद को दोहरा न दे."

सू की को और कुछ हासिल हो न हो, जीत का जश्न मनाने का पूरा मौका है, जब तक इतिहास म्यांमार का भविष्य तय नहीं कर लेता.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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