काबुल आतंकी हमला बता रहा है कि बौखलाए हुए हैं आतंकी
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारतीय दूतावास के पास एक जबरदस्त आत्मघाती हमला हुआ जिसमें करीब 80 लोगों के मारे जाने की खबर है.
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अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में वजीर अकबर खान इलाके में, आज एक कार में जबरदस्त आत्मघाती बम धमाका हुआ जिसमें 80 लोग मारे गए हैं और 350 घायल हुए हैं. ये आंकड़े अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार हैं, जबकि गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 125 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
काबुल के वीवीआईपी इलाके में हुआ आत्मघाती हमला
यह धमाका अफगानिस्तान में विदेशी राजनयिक वाले क्षेत्र में हुआ, जिसमें भारतीय दूतावास की इमारत को नुकसान पहुंचा है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर बताया है कि जबरदस्त धमाकों के बाद भारतीय स्टाफ और राजनयिक सुरक्षित हैं. वहीं भारतीय राजदूत मनप्रीत वोहरा के अनुसार धमाका काफी खतरनाक था, परंतु दूतावास के सभी स्टाफ सुरक्षित हैं. यह हमला आज सुबह 8:30 बजे हुआ था, जो काफी भीड़-भाड़ का समय था. हमला ईरान और जर्मन दूतावासों के बीच हुआ था.
स्पेन की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर इस आतंकवादी हमले की निंदा की है तथा स्पष्ट किया कि भारत आतंकवाद के सभी रुपों का खंडन करता है.
धमाका इतना जबरदस्त था कि धुएं के गुब्बार को दूर से ही देखा जा सकता था. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि धमाके के निशाने पर कौन था? राष्ट्रपति निवास सहित अधिकांश विदेशी राजनयिक प्रतिष्ठान यहीं पर हैं. लेकिन कुछ समाचारों के अनुसार ईरानी दूतावास आतंकवादयों के निशाने पर था. हाल ही में ईरान ने पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही की थी. ईरान ने सीमा पर पाकिस्तान में बैठे आतंकियों पर मोर्टार से हमला किया था. इससे आतंकवादी काफी गुस्से में थे. आतंकवाद के जन्मस्थली पाकिस्तान और ईरान के बीच 100 किमी लंबी साझी सीमा है.
इससे पूर्व रमजान के पवित्र महीने की शुरूआत से एक दिन पहले भी अफगानिस्तान में एक बड़ा आतंकी हमला 'खोस्त' शहर में हुआ था, जिसमें 18 लोगों की मौत हुई थी. अफगानिस्तान में लगातार आतंकवादी हमले हो ही रहे हैं. अफगानिस्तान ही वह देश है, जहां 2001 में अमेरिका के आतंकवादी हमले के बाद तालिबान के मुल्ला उमर के सरकार को अमेरिका ने अपदस्थ कर इसे आतंक से मुक्त कराने का प्रयास किया था. अप्रैल 2017 में अमेरिका ने 'मदर ऑफ ऑल बॉक्स' को अफगानिस्तान में आतंकियों पर गिराया था, जिसके बाद दावा किया गया था कि आईएस के खुरासान मॉड्यूल का नामोनिशान मिट चुका है.
अफगानिस्तान के आतंकवाद की कहानी भी अंतत: महाशक्तियों के वर्चस्व के संघर्ष में ही छिपी हुई है. शीत युद्ध के समय जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था, तब अमेरिका ने ही सोवियत संघ के विरुद्धअपने संसाधनों एवं हथियारों के साथ तालिबान को खड़ा किया था.
शीतयुद्ध तो समाप्त हो गया, लेकिन अफगानिस्तान के भाग्य में ज्यादा बदलाव नहीं आया. वह सदैव शक्ति संघर्ष का केन्द्र बना ही रहा. यद्यपि इसका प्रमुख कारण अफगानिस्तान का सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में अवस्थित होना भी है. शीत युद्ध के बाद मुल्ला उमर के युग में तालिबान कट्टरपंथियों ने अपना शासन प्रारंभ कर दिया. यह आतंकवाद का वह बुरा दौर था,जब तालिबान एवं पाकिस्तान के सहयोग से आतंकवाद को व्यापक पैमाने पर फैलने का मौका मिला. अमेरिका के ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला के बाद ही अफगानिस्तान में तालिबान का शासन प्रारंभ हुआ, न कि तालिबान.
भारत भी अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण एवं सैनिकों के प्रशिक्षण में पूर्ण सहयोग कर रहा है. अब अफगानिस्तान के तरफ से भी पाकिस्तानी आतंकवादियों को करारा जवाब मिल रहा है. साथ ही इरान भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रहा है. आज अफगानिस्तान का आतंकवादी हमला मूलत: आतंकवादियों की बौखलाहट को ही प्रतिबिंबित करता है.
अभी भी सीरिया एवं लीबिया में महाशक्तियों द्वारा वर्चस्व की लड़ाई जिस तरह से आतंकवाद के नाम पर लड़ी जा रही है, उससे आतंकवादियों का खात्मा नहीं अपितु मजबूती ही मिलती है. लीबिया में जिस प्रकार छोटे-छोटे भागों में महाशक्तियों के हस्तक्षेप से अनेक सत्ताएं समांतर कार्य कर रही हैं, वह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. उसी तरह सीरिया प्रकरण में रुस और अमेरिका जिस तरह से आतंकवाद के नाम पर प्रभुत्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, वह और भी खतरनाक है. वहां अमेरिका बसर के विरोध में किसी भी हद तक विद्रोहियों को समर्थन दे रहा है, वह मूलत: आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के नाम पर आतंकवाद को प्रोत्साहित ही करता है. उसी प्रकार रुस भी जिस कठोरता के साथ हर हाल में सीरियाई सरकार को बचाने में लगा हुआ है, उससे रुसी महत्वकांक्षाओं को भी स्पष्टत: समझा जा सकता है.
अफगानिस्तान के आतंकवादी हमले हों या यूरोप के, सभी मानवतावाद के विरुद्ध हमले हैं. आतंकवाद को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर ईमानदार, कठोर, रणनीतिक प्रयास और पुन:महाशक्तियों को स्वार्थों, पूर्वाग्रहों एवं दुराग्रहों से हटकर एक मजबूत पहल करने की आवश्यकता है.
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