2019 लोकसभा चुनाव में फेसबुक का रोल अभी रहस्यमय ही है
कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक से चुराए डेटा का इस्तेमाल 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया. अब 2019 में भारत में लोकसभा चुनाव होने वाला है. डर है कहीं कोई कंपनी इन चुनावों को भी प्रभावित करने की कोशिश ना करे.
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अगला साल यानी 2019 भारत के लिए बेहद अहम है. 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है. इसी बीच विवादों में फंसी मार्क जकरबर्ग की कंपनी फेसबुक को लेकर भी कई तरह की बातें हो रही हैं कि कहीं इन चुनावों को फेसबुक के जरिए प्रभावित करने की कोशिश न की जाए. हालांकि, अमेरिकी सीनेट के सामने पेश हुए मार्क जकरबर्ग ने यह साफ कर दिया है कि भारत में होने वाले चुनाव को लेकर वह खास तौर पर सतर्कता बरतेंगे. उन्होंने कहा है कि वह भारत में होने वाले आगामी चुनाव का ध्यान रखेंगे और किसी भी तरह से इसे प्रभावित नहीं होने देंगे.
फेसबुक का राजनीतिक से क्या लेना-देना?
दरअसल, कैंब्रिज एनालिटिका के जिस मामले की वजह से फेसबुक कटघरे में जा पहुंची है वह ब्रिटेन की एक पॉलिटिकल रिसर्च फर्म है. आरोप है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने गलत तरीके से फेसबुक के करीब 9 करोड़ यूजर्स के डेटा चुराए हैं और उस डेटा का इस्तेमाल 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया. जहां एक ओर कैंब्रिज एनालिटिका ने चुनावी कैंपेन चलाने वाली कंपनी के तौर पर ट्रंप की मदद की वहीं दूसरी ओर फेसबुक ने ट्रंप को एक क्लाइंट मानकर चुनावी कैंपेन में मदद की. अब 2019 में भारत में चुनाव होने वाले हैं, लेकिन फेसबुक की पॉलिसी से ये साफ नहीं है कि वह यहां राजनीतिक पार्टियों के लिए काम करेगी या नहीं. अगर करेगा, तो उसके क्या नियम और शर्तें होंगी.
फर्जी अकाउंट को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं
अमेरिकी सीनेट के सामने पेश हुए जुकरबर्ग ने यह तो माना है कि अमेरिका में बहुत सारे फर्जी अकाउंट डिलीट किए गए हैं, लेकिन इस बात को लेकर कुछ नहीं कहा है कि भारत में जो फर्जी अकाउंट हैं, उनका क्या होगा. क्या फेसबुक इन अकाउंट को भी डिलीट करेगा?
इतना ही नहीं, फेसबुक पर आरोप लगा कि उसने कैंब्रिज एनालिटिका को लोगों की जानकारियां दीं. अब उस डेटा को डिलीट करने की मांग की जा रही है. चलिए मान लेते हैं कि कैंब्रिज एनालिटिका उसे डिलीट कर देती है और ब्रिटेन की तरफ से इसका सर्टिफिकेट भी फेसबुक को मिल जाता है. लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने उस डेटा को किसी और देश में नहीं छुपाया है? क्या उस डुप्लिकेट डेटा का इस्तेमाल करके कल कोई कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनी चुनावों को प्रभावित नहीं कर सकती है?
फेसबुक पर लोगों को भड़काने वाली पोस्ट का रोल है अहम
फेसबुक पर चुनावी मौसम में इस तरह की बहुत सारी पोस्ट देखी जा सकती हैं जो किसी खास पार्टी का प्रचार प्रसार करती हों. इतना ही नहीं, किसी पार्टी के खिलाफ भी बहुत सारे पोस्ट या तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं जो लोगों की विचारधारा को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते हैं. लोगों की विचारधारा बदलने वाले ऐसे पोस्ट कितने खतरनाक हो सकते हैं, इससे जुड़ा भी एक सवाल जकरबर्ग से पूछा गया.
अमेरिकी सीनेट Patrick Leahy ने जकरबर्ग पर निशाना साधते हुए म्यांमार की एक घटना का उदाहरण दिया, जिसमें एक पत्रकार की हत्या कर दी गई थी. उन्होंने कहा कि आखिर फेसबुक पर उस पोस्ट के इतना अधिक वायरल होने के बावजूद उसे 24 घंटे के अंदर-अंदर डिलीट क्यों नहीं किया गया? इस पर जकरबर्ग का जवाब था कि वह स्थानीय भाषा में होने की वजह से दिक्कत आई थी. इस तरह की दिक्कतों से निपटने के लिए फेसबुक बहुत सारे लोगों की नई भर्ती करने जा रहा है, जो इस तरह की पोस्ट को मॉडरेट करने का काम करेंगे.
कंटेंट रिव्यू करने वालों का राजनीतिक झुकाव
अधिकतर लोगों का किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के लिए झुकाव होता ही है. ऐसे में चुनावों के मद्देनजर मार्क जकरबर्ग से इसे लेकर भी एक सवाल पूछा गया कि जो 15-20 हजार लोग फेसबुक में सिक्योरिटी और कंटेंट का रिव्यू करते हैं क्या उन लोगों के राजनीतिक झुकाव के बारे में भी जकरबर्ग को पता है? इस पर जकरबर्ग ने कहा है कि किसी को भी नौकरी देते वक्त यह नहीं पूछा जाता है कि उसका राजनीतिक झुकाव किस पार्टी की ओर है. इस पर फेसबुक द्वारा अधिग्रहीत की गई कंपनी Oculus VR के को-फाउंडर Palmer Luckey का उदाहरण भी दिया, लेकिन जकरबर्ग ने कहा कि उन्हें राजनीतिक झुकाव के चलते नहीं निकाला गया था. दरअसल, राजनीतिक झुकाव का सवाल जकरबर्ग से इसलिए किया गया, क्योंकि अगर चुनाव समय में कोई पोस्ट राजनीतिक हो और उसे मॉडरेट करने वाले का झुकाव उसी पार्टी की ओर हुआ तो हो सकता है कि वह उस पोस्ट को न हटाए या रिपोर्ट न करे.
महज साल भर बाद भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. जिस तरह से कैंब्रिज एनालिटिका ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव को फेसबुक के डेटा से प्रभावित किया, डर है कि कोई और कंपनी उसी तरह से भारत में होने वाले लोकसभा चुनावों को भी प्रभावित न करे. लेकिन हाल ही में होने वाले कर्नाटक चुनाव में चुनाव आयोग के सोशल मीडिया पार्टनर के तौर पर फेसबुक काम कर रहा है. वहीं दूसरी ओर, अमेरिका में सीनेट के सामने मार्क जकरबर्ग ने कहा कि भारत में होने वाले चुनावों को फेसबुक प्रभावित नहीं करेगा, तो खुद रविशंकर प्रसाद भी फेसबुक का पक्ष लेते दिखाई दिए. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि अब कैंब्रिज एनालिटिका का रोल साफ हो चुका है और फेसबुक ने चुनावों को प्रभावित न करने का भरोसा दिला दिया है. ऐसे में राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए. यहां भले ही उन्होंने विपक्षी पार्टी के नेता राहुल पर निशाना साधा हो, लेकिन इसी बहाने से फेसबुक का पक्ष भी ले लिया. ऐसे में जब खुद सरकार भी फेसबुक के साथ है तो अगर उसने कोई गड़बड़ की, तो उसे पकड़ेगा कौन?
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