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Updated: 16 मई, 2018 01:29 PM
खुशदीप सहगल
खुशदीप सहगल
  @khushdeepsehgal
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कर्नाटक के पूरे नतीजे आ गए हैं. 224 सदस्यीय विधानसभा की 222 सीटों पर मतदान हुआ. 104 सीट बीजेपी, 78 कांग्रेस, जेडीएस+38 (जेडीस 37, बीएसपी 1), केपीजेपी 1, निर्दलीय 1.

स्थिति ये है कि बीजेपी को अपनी 104 सीट के अलावा अभी तक किसी और ने समर्थन नहीं दिया है. कांग्रेस और जेडीएस+ ने मिलकर सरकार बनाने का दावा किया है. बाकी निर्दलीय और केवीजेपी के 2 विधायक भी कांग्रेस और जेडीएस के साथ ही नजर आ रहे हैं. इस तरह चुनाव बाद बने इस गठबंधन को कुल 118 का समर्थन दिखाई दे रहा है.

इसके बावजूद कई लोग बीजेपी की कर्नाटक में सरकार बनने को लेकर आश्वस्त हैं. कह रहे हैं कि उन्हें अपने मोटा भाई पर बहुत भरोसा है. उनका कहना है कि गवर्नर साहब भी अपने हैं. इसलिए कर्नाटक में जुगाड़ के जरिए देरसवेर सरकार बना ही ली जाएगी.

karnataka electionsकर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है बीजेपी

फिलहाल कर्नाटक में किसके हाथ बाजी लगती है ये सारा दारोमदार गवर्नर वजूभाई आर वाला पर टिका है. वजूभाई 2001 में नरेंद्र मोदी के पहली बार गुजरात का मुख्यमंत्री बनने पर अपनी राजकोट की सीट भी खाली कर चुके हैं. हो सकता है कि वे सबसे बड़ी पार्टी के नाते बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दें और सदन में बहुमत साबित करने के लिए कुछ दिन का समय दें.

बीजेपी कैसे बना सकती है सरकार?

या तो कांग्रेस और जेडीएस में टूट कराए. एंटी डिफेक्शन लॉ से बचने के लिए हर पार्टी के दो तिहाई विधायकों का टूटना जरूरी है, यानी कांग्रेस के 52 और जेडीएस के 25 विधायक कम से कम टूटे. फिलहाल ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती.

फिर बीजेपी के पास क्या रास्ता है

वो रास्ता ये है कि कर्नाटक विधानसभा की प्रभावी टोटल सदस्य संख्या को 222 की जगह 207 पर ले आए. ऐसा होगा तो बीजेपी को 104 पर ही बहुमत मिल जाएगा. इसके लिए लिए जरूरी है कि जिस दिन सदन में बीजेपी विधायक दल के नेता बहुमत साबित करें उस दिन कम से कम बीजेपी के बाहर के 15 विधायक सदन से अनुपस्थित रहें.

ये कैसे संभव है

चौंकिए नहीं ऐसा कारनामा बीजेपी गोवा में दिखा चुकी है. वहां विश्वजीत प्रताप सिंह राणे नामक विधायक ने पिछले साल गोवा विधानसभा के त्रिशंकु नतीजे आने पर ऐसा ही किया था. ये जनाब कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे. इनके पिता प्रताप सिंह राणे गोवा के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. विश्वजीत गोवा में फ्लोर टेस्ट वाले दिन कांग्रेस के व्हिप के बावजूद अनुपस्थित रहे. बीजेपी सरकार को बहुमत मिल गया. उसी शाम को विश्वजीत विधायकी से भी इस्तीफा स्पीकर को दे आए. कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया. 20 दिन बाद ही विश्वजीत को इनाम मिला और वे मनोहर पर्रिकर सरकार में कैबिनेट मंत्री के ओहदे से नवाजे गए. बाद में वे बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव लड़ कर दोबारा विधायक भी बन गए. ये सीधे-सीधे दलबदल विरोधी कानून को मुंह चिढ़ाने जैसा था.

लेकिन पिक्चर यहीं खत्म नहीं हुई, कांग्रेस ने विश्वजीत के इस कृत्य को संविधान के साथ धोखाधड़ी बताते हुए और उन्हें अयोग्य करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इसी साल फरवरी में ये याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए गोवा सरकार, चुनाव आयोग, गोवा विधानसभा के स्पीकर, प्रो टर्म स्पीकर, विश्वजीत राणे और बीजेपी के अन्य नेताओं को नोटिस जारी किए.

चीफ जस्टिस मिश्रा ने तब व्यवस्था में कहा कि लॉ के इस सवाल पर विस्तार से गौर किए जाने की जरूरत है कि क्या स्पीकर (उस वक्त प्रो टर्म स्पीकर) ने बिना जांच कराए एक सदस्य का इस्तीफा स्वीकार किया जिसने अवज्ञा (व्हिप का पालन नहीं कर) के कृत्य से अयोग्यता को निमंत्रित किया.

अब ऐसे हालात में कर्नाटक में भी बीजेपी विधायकों के इस्तीफा रूट को पकड़ती है तो निश्चित तौर पर ये मामला भी अदालत में जाएगा. इससे बचने के लिए अभी ये भी हो सकता है कि गवर्नर विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित रखे और कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन यानी केंद्र के अधीन ही रहे.

खैर देखिए आगे-आगे होता है क्या...

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खुशदीप सहगल खुशदीप सहगल @khushdeepsehgal

लेखक आजतक में न्यूज़ एडिटर हैं

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