Farm Bill पर कंगना रनौत की प्रतिक्रिया के बराबर आ गया राज्य सभा मेंं सांसदों का हंगामा
कंगना रनौत (Kangana Ranaut) और राज्य सभा में हंगामा करने वाले विपक्षी सांसदों (Opposition Rajya Sabha Members) का व्यवहार करीब करीब एक जैसा लगता है. कृषि विधेयकों (Farm Bills) पर अपने एक्शन और रिएक्शन में दोनों को ही - अपनी अभिव्यक्ति की आजादी की फिक्र तो है लेकिन दूसरों की परवाह नहीं है.
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कंगना रनौत (Kangana Ranaut) अब मुंबई और महाराष्ट्र से दायरा आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय मुद्दों पर रिएक्ट करने लगी हैं. कृषि विधेयकों (Farm Bills) को लेकर चल रहे विरोध के बीच कंगना रनौत ने अपने एक ट्वीट में 'आतंकी' शब्द का इस्तेमाल किया है, हालांकि, बवाल मचने पर सफाई भी दी है.
और कुछ तो नहीं लेकिन सफाई से ये तो साफ हो गया है कि कंगना के लिए अभिव्यक्ति की परिभाषा अपने लिए अलग और दूसरों के लिए अलग है - कृषि बिल को लेकर राज्य सभा से निलंबित किये गये सांसदों (Opposition Rajya Sabha Members) का भी रवैया वैसा ही नजर आ रहा है, खासकर उस सभापति के करीब पहुंच कर उनके व्यवहार को देखने के बाद.
विपक्षी सांसदों का व्यवहार
कृषि विधेयकों पर अपनी मांगें न मानी जाने पर विपक्षी सांसदों ने राज्य सभा में खूब हंगामा किया था - और उप सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहते थे. सभापति एम. वेंकैया नायडू ने अविश्वास प्रस्ताव की मांग तो नामंजूर कर ही दी, हंगामा करने वाले 8 सांसदों को मॉनसून सत्र के बाकी दिनों के लिए निलंबित भी कर दिया.
अपने निलंबन का फैसला सुनने के बाद भी ये सांसद सदन में डटे रहे और जब कार्यवाही स्थगित की गयी उसके बाद ही वहां से हटे. बाद में संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के पास अपने खिलाफ एक्शन के विरोध में धरने पर भी बैठे. जिन सांसदों को निलंबित किया गया है वे हैं - डेरेक ओ'ब्रायन और डोला सेन (TMC), संजय सिंह (AAP), राजू साटव, रिपुन बोरा और सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस), केके रागेश एलमाराम करीम (CPM). इन सांसदों का कहना है कि कृषि विधेयकों पर मत विभाजन की मांग को खारिज करके उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह ने असंवैधानिक काम किया है. सांसदों का ये भी आरोप है कि हंगामे के दौरान जिस तरीके से मार्शलों ने सांसदों के साथ धक्कामुक्की की और राज्य सभा टीवी को रोक दिया गया वो भी संसदीय मर्यादाओं के खिलाफ है.
कंगना रनौत और विपक्षी सांसद एक ही मुद्दे पर आमने सामने हैं लेकिन रवैया एक जैसा ही है
निलंबित सांसदों का एक आरोप ये भी है कि 12 राजनीतिक दलों के 100 सांसदों की तरफ से उपसभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को बगैर सुने ही खारिज कर दिया गया और सारा दोष विरोध कर रहे विपक्ष के सांसदों पर डाल दिया गया.
दूसरी तरफ सत्ता पक्ष ने विपक्षी सांसदों की हरकत पर कड़े ऐतराज के साथ मार्शल के नहीं आने की स्थिति में उप सभापति पर हमले की आशंका जतायी है. मोदी सरकार के तीन मंत्री रविशंकर प्रसाद, प्रहलाद जोशी और पीयूष गोयल ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह के अनादर का आरोप लगाया है. इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित मोदी सरकार के 6 मंत्रियों ने मीडिया के सामने आकर ये मुद्दा उठाया था.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 13 बार उप सभापति ने सांसदों को अपनी सीट पर लौटने का अनुरोध किया था. अगर उनको वोट देना था तो सीट पर लौटना चाहिये था. रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ये संसद के लिए शर्मनाक दिन था - माइक टूट गया, तार टूट गया, रूल बुक फाड़ दी गयी - और अगर मार्शल नहीं आते तो हमला शारीरिक भी हो सकता था.
संसद के भीतर इस साल होने वाला ये ऐसा दूसरा वाकया है. दिल्ली चुनाव के बाद लोक सभा में राहुल गांधी ने सवाल पूछा था. जवाब स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को देना था. हर्षवर्धन जवाब देने के लिए खड़े हुए तो राहुल गांधी पर बरस पड़े. दरअसल, ठीक पहले ही दिल्ली चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर अपना 'डंडा मार' बयान दिया था. हर्षवर्धन के राहुल गांधी को टारगेट करते ही कांग्रेस के कुछ सांसद उनकी तरफ बढ़े और पास पहुंच कर विरोध जताने लगे. तब दोनों तरफ से एक दूसरे के साथ हाथापाई के आरोप लगाये गये थे - और दोनों ही पक्षों ने स्पीकर ओम बिड़ला के पास शिकायतें दर्ज करायी थी.
विपक्षी सांसदों के सारे आरोप अपनी जगह हैं, लेकिन जो कुछ उन सभी ने सदन में किया. जिस तरह का व्यवहार उप सभापति के साथ किया. रूल बुक फाड़ डाली, माइक और तार तोड़ डाले ये सब वे किस दलील के साथ सही ठहरा सकते हैं?
अगर सांसदों को लगता है कि उप सभापति ने उनकी मांगें नजरअंदाज करके नियमों का उल्लंघन किया है तो वे उसके खिलाफ उचित फोरम पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में भी चैलेंज किया जा सकता है.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो कृषि विधेयकों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात पहले ही कह दी है. पंजाब में तो कृषि बिल के खिलाफ किसानों आंदोलन भी चल रहा है.
कंगना रनौत की नजर में आतंकी कौन?
पंजाब और हरियाणा में किसान सरकार के कृषि बिलों के खिलाफ कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. सरकार के इस कदम के विरोध में अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा भी दे दिया है - और अब शिरोमणि अकाली दल एनडीए छोड़ने को लेकर फैसला करने वाला है.
सरकार के इस कदम के बचाव में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे आये हैं और किसानों को भरोसा दिला रहे हैं कि अगर उनको आशंका है कि MSP खत्म कर दिया जाएगा, तो ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. इस बीच सरकार ने रबी की फसल के लिए एमएसपी की घोषणा भी कर दी है.
कंगना रनौत ने प्रधानमंत्री की किसानों से अपील वाले ट्वीट को रिट्वीट करते हुए अपने विचार शेयर किये हैं - और साथ में बिल का विरोध करने वालों को 'आतंकी' बताया है. कंगना ने अपने ट्वीट में कृषि बिल के विरोधियों की तुलना CAA का विरोध करने वालों से की है.
प्रधानमंत्री जी कोई सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, जिसे ग़लतफ़हमी हो उसे समझाया जा सकता है मगर जो सोने की ऐक्टिंग करे, नासमझने की ऐक्टिंग करे उसे आपके समझाने से क्या फ़र्क़ पड़ेगा? ये वही आतंकी हैं CAA से एक भी इंसान की सिटिज़ेन्शिप नहीं गयी मगर इन्होंने ख़ून की नदियाँ बहा दी. https://t.co/ni4G6pMmc3
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) September 20, 2020
टाइम्स ऑफ इंडिया ने कंगना रनौत के ट्वीट को लेकर खबर प्रकाशित की कि एक्टर ने किसानों को आतंकवादी बताया है तो वो अखबार पर ही बरस पड़ीं. कंगना ने अखबार पर अपने ट्वीट को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया.
People who spread misinformation and rumours about CAA that caused riots are the same people who are now spreading misinformations about Farmers bill and causing terror in the nation, they are terrorists. You very well know what I said but simply like to spread misinformation ???? https://t.co/oAnBTX0Drb
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) September 21, 2020
कंगना रनौत ने अखबार को टैग कर भले ही अपनी भड़ास निकाल ली हो, लेकिन उसी ट्विटर पर एक हैशटैग भी ट्रेंड कर रहा है - #Arrest_Casteist_Kangna. हाल ही में कंगना रनौत एक पत्रकार को ट्रोल बताने पर तुली हुई थीं क्योंकि उनके शिवसेना को वोट देने के दावे को ट्विटर पर चैलेंज कर दिया गया था. कंगना रनौत का दावा रहा कि जब वो वोट देने पहुंची तो ईवीएम में बीजेपी का उम्मीदवार ही नहीं मिला - और मजबूर उनको शिवसेना को वोट देना पड़ा. जबकि उस सीट से शिवसेना ने उम्मीदवार ही नहीं उतारा था क्योंकि वो सीट बीजेपी के कोटे में थी.
बाकी बातें अपनी जगह है लेकिन क्या सरकार के किसी फैसले को लेकर विरोध जताने वाले आतंकी हो सकते हैं?
आखिर कंगना रनौत को CAA और कृषि बिल का विरोध करने वाले आतंकी क्यों और कैसे लगते हैं?
अगर प्रदर्शनकारियों नके खिलाफ पुलिस एक्शन हुआ है तो वो सरकारी संपत्तियों के नुकसान को लेकर हुआ है, न कि कानून के विरोध के कारण. अगर डॉक्टर कफील खान पर एनएसए लगाया गया तो उनके भाषण को सामाजिक विद्वेष फैलाने वाला मानकर - हां, ये जरूर है कि हाई कोर्ट ने पुलिस के दावे और प्रशासन की दलील को सही नहीं माना.
लेकिन न तो पुलिस प्रशासन और न ही सरकार ने किसी को आतंकवादी माना. फिर कंगना किस आधार पर किसी को आतंकी बता रही हैं - और सबसे दिलचस्प तो ये है कि आखिर वो किस आधार पर अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का ढिंढोरा पीट रही हैं.
संजय जी मुझे अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी हैमुझे अपने देश में कहीं भी जाने की आज़ादी है । मैं आज़ाद हूँ । pic.twitter.com/773n8XDESI
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) September 6, 2020
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