किसान-सरकार दोनों नर्म हैं, क्या किसान आंदोलन अब कुछ दिनों का मेहमान है?
सरकार और किसानों के बीच जारी खींचतान पर कब लगाम लगेगी और इस मसले का हल क्या होगा. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंट्री के बाद अब यह गतिरोध खत्म हो जाएगा और खत्म होगा तो कैसे खत्म होगा इस बात पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है.
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देश की राजधानी दिल्ली की अलग अलग सीमाओं पर पिछले दो महीने से जारी गतिरोध में अबतक कई बार उतार चढ़ाव देखने को मिल चुके हैं. नये कृषि कानून को रद करवाने के लिए किसानों का जत्था दिल्ली की सीमाओं पर डटा हुआ है, वहीं सरकार भी कानून को वापिस न लेने पर अड़ी हुयी है. लगभग दर्जन भर बार किसान संगठन और सरकार के बीच बातचीत भी हुई लेकिन हर बार वार्ता बेनतीजा ही रही. किसान बिल वापसी पर अड़़े रहे जबकि सरकार कानून में संशोधन की बात करती रही. किसान और सरकार के बीच बातचीत का सिलसिला भी जनवरी के खत्म होते होते खत्म हो गया. किसान संगठन के आगे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का एक भी फार्मूला असरदार नहीं साबित हो पाया. बातचीत का सिलसिला खत्म होने के बाद किसानों ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड निकाली जिसका खामियाजा भी किसानों को ही उठाना पड़ा, किसानों की परेड ने हिंसा का रूप ले लिया और लालकिले के प्राचीर धरोहर पर एक शर्मनाक हरकत कर डाली.
कृषि बिल पर अब सरकार और किसान दोनों ही नर्म पड़े हैं
इस घटना के बाद प्रशासन ने सख्ती दिखाई तो किसान आंदोलन में शामिल बड़ी तादाद में लोग अपने घर की ओर लौट गए. किसान आंदोलन कमज़ोर हो गया ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने इस मौके का फायदा उठाकर आंदोलन को खत्म करवाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए. यूपी पुलिस ने दिल्ली पुलिस के साथ आंदोलन स्थल का घेराव कर दिया, बिजली काट दी गई और पानी की सप्लाई भी रोक दी गई.
सुरक्षाबलों की बढ़ती तैनाती ने साफ कर दिया था कि अब आंदोलन स्थल को पूरी तरह से खाली करा लिया जाएगा. इसी बीच गाज़ीपुर बार्डर पर हो रहे आंदोलन का नेतृव्य करने वाले किसान यूनियन के प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने चारोंतरफ से सुरक्षाबलों के बीच घिर जाने के बाद एक भावुक अपील की, जिसके बाद किसानों का जत्था एक बार फिर आंदोलन स्थल पर पहुंचने लगा, एक के बाद एक काफिला बार्डर पर पहुंच गया, देखते ही देखते फिर से आंदोलन स्थल पर हज़ारों लोगों का हुजूम पहुंच गया.
प्रशासन ने भी कोई भी एक्शन लेने से पीछे हट गया. आंदोलन अभी भी जारी है लेकिन पुलिस सख्ती दिखाते हुए लोगों की पहचान कर कार्यवाई करने से भी पीछे नहीं हट रही है. किसान और सरकार के बीच चल रहे इस रस्साकशी में पहली दफा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ज़़िक्र हुआ है.
शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई थी जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों का मसला केवल और केवल बातचीत के माध्यम से ही हल होगा. किसानों को सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है उसपर सरकार अभी भी कायम है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी कहा था कि वह किसानों से केवल एक फोन दूर हैं.
उधर किसान आंदोलन की मुख्य कड़ी राकेश टिकैत ने भी कहा है कि वह सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं और अगर प्रधानमंत्री वार्ता के लिए तैयार हैं तो हम भी उनसे बातचीत करना चाहते हैं बातचीत से ही मसला हल होगा. किसान आंदोलन का गतिरोध पिछले दो महीने से ज़्यादा समय से जारी है.
किसानों की भाषा और सरकार की भाषा दोनों में तेवर साफ दिखाई पड़ते थे. लेकिन सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने बातचीत को जारी रखने की बात इस बात को साफ करती है कि प्रधानमंत्री मसले का हल चाहते हैं, उधर अड़ियल रवैया दिखाने वाले किसान नेता भी अब बातचीत करना चाहते हैं.
राकेश टिकैत ने तो यहां तक कह दिया है कि किसानों का मान सरकार को रखना चाहिए, किसानों का सम्मान भी ज़रूरी है सरकार बातचीत करे हम बात करने को तैयार हैं. सरकार और किसानों के बीच बंद हुई बातचीत ने दोनों को ही नरम कर दिया है. किसान नेता भी बातचीत करना चाहते हैं और सरकार भी.
माना जा रहा है कि अब बातचीत का दौर फिर से शुरू होने वाला है लेकिन इस बार दोनों के तेवर में भी बदलाव ज़रूर दिखने को मिलेगा. किसान भी आंदोलन को अब ज़्यादा लंबा खींचने के मूड में कम ही दिखाई पड़ते हैं. खासतौर पर तब जब गणतंत्र दिवस के दिन के बाद से वहां लोगों की भीड़ में काफी गिरावट देखी गई थी.
उधर सरकार भी जल्द इस आंदोलन को समाप्त करवाना चाह रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में अगले 2-3 महीने के भीतर ही पंचायत चुनाव होने हैं और उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भी अब बहुत दूर नहीं है. सरकार इस आंदोलन को कुचलने के बजाय बातचीत के ज़रिए खत्म करना चाहती है ताकि उसको आगामी चुनावों में नुकसान न उठाना पड़ जाए.
अब सवाल उठता है कि आखिर बातचीत के माध्यम से ही लेकिन इसका हल क्या निकलेगा, तो यह बात साफ है कि न तो कानून पूरी तरह से वापस होगा और न ही पूरी तरह से लागू होगा. किसान तीनों कानून को खत्म करके एमएसपी पर कानून चाहते हैं. सरकार तीनों कानूनों को बरकरार रखना चाहती है. ऐसे में हो सकता है कि सरकार इन तीन कानून में से किसी एक या दो कानून को वापिस ले ले या फिर एमएसपी पर नया कानून बना दे.
यह तो तय है कि दोनों में से कोई भी झुकना नहीं चाहता है लेकिन दोनों को बराबरी पर समझौता करना ही होगा, मसले का हल वही है. सरकार और किसान दोनों ही अपनी आधी बात एक दूसरे से मनवा सकते हैं और यह आंदोलन खत्म हो सकता है. फिलहाल बातचीत कब शुरू होती है इसपर सभी की नज़रें टिकी हुई है.
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